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वरुण का सफर -- अजनबी से........तक

नमस्कार मित्रों,
सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
आप सभी पाठकों ने मेरा पहला लेख "मेरा पहला अनुभव...." को इतना प्यार और स्नेह दिया, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। आपके इतने प्यार और स्नेह का सदा आभारी रहूंगा।
यह मेरी दूसरा लेख है, आशा करता हूं, यह भी आपको पसंद आएगा और अपना प्यार, स्नेह और आशीर्वाद हमेशा बनाए रखेंगे। यह लेख मैंने अपने एक दोस्त से प्रभावित होकर लिखा है। इस लेख के अंत में आप अपने बहुमूल्य अनुभव के आधार पर अपना सुझाव अवश्य दीजिएगा।
अब मैं अपने लेख पर आता हूं आनंद लीजिए और अपना प्यार और स्नेह बरकरार रखिए और हां कहानी के अंत में अपना बहुमूल्य सुझाव देना ना भूलिएगा।
यह कहानी है वरुण और वैदेही (दोनों काल्पनिक नाम)की। वरुण एक सुलझा सा लड़का था और अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश कर रहा था। इसी दौरान उसकी मुलाकात वैदेही से हुई। जब वह मिले तो वह एक दूसरे से अनजान अजनबी थे। पहले कुछ दिन हाई हेलो किया और एक दूसरे को जानने के लिए थोड़ा सा समय दिया। धीरे धीरे दोनों की बातचीत आगे बढ़ने लगी थी और उस दिन से शुरू हुआ था वरुण का सफर, इस रिश्ते में, एक अजनबी से।
कुछ दिनों बाद, बातों का सिलसिला थोड़ा और बढ़ रहा था और वह एक दूसरे से और पास आने लगे थे। एक दूसरे की पसंद- नापसंद, खाना खाने का ध्यान रखना, ख्याल रखना उनकी जिंदगी में आम सा होने लगा था। वरुण का, वैदेही की जिंदगी में अनजान सा रिश्ता था। एक दिन वैदेही ने वरुण से पूछा कि "क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकती हूं।" वरुण ने बड़ी ही सहजता से "हा" में जवाब दिया और कहा "मैं इस विश्वास को कायम रखने की पूरी कोशिश करूंगा।" उस दिन से वरुण का सफर एक अजनबी से दोस्ती की ओर बढ़ने लगा था, हालांकि इतना आसान नहीं था जितना लग रहा था।
एक दिन वैदेही ने वरुण के सामने दोस्ती का प्रस्ताव रखा। वरुण ने उसे स्वीकृति दी और अपने रिश्ते में एक कदम और बढ़ाया। अब वो अजनबी नहीं रहे थे। वह अच्छे दोस्त बन चुके थे। ऐसे दोस्त जिन्हें दोस्त कहा जा सकता था। हां उन्हें दोस्त कहा जा सकता था।
अब तक उनकी जिंदगी में एक दूसरे के मायने थोड़े से बदल चुके थे। एक बार दोनों ने फैसला किया, क्यों न एक मुलाकात की जाए, एक शाम को एक दूसरे के नाम किया जाए। दोनों ने समय निकाल कर एक जगह पहुंचने का वादा किया। इससे पहले दोनों में काफी बातें हुई थी लेकिन ऐसा मिलना पहली बार था। जब वह मिले तो उनकी काफी बातें हुई। इस तरह सामने से एक दूसरे को जानने का मौका मिला। उन्होंने एक दूसरे को जाना समझा। अंत में वैदेही ने मुलाकात की याद में, वरुण को एक गिफ्ट दिया, जिसे वरुण ने सहर्ष स्वीकार किया। उसके बाद वह दोनों अपने अपने घर को चले गए। लेकिन उस मुलाकात के बाद उनकी दोस्ती और गहरी हो गई और धीरे-धीरे ऐसी मुलाकातें नियमित अंतराल पर होने लगी। वरुण वैदेही और करीब आने लगे थे। वरुण को अपने रिश्ते में एक अजब सा अहसास होने लगा था। वरुण ने आखिरकार दोस्ती के रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए सोचा और अपने एहसासों का खुलासा करके एक मुलाकात पर अपने मन की बात वैदेही को बता दी। उसे पूरा यकीन था कि उसे निराशा नहीं मिलेगी और हुआ भी वैसा ही। अब उनके बीच रिश्ता और गहरा होने लगा था वह एक दूसरे को अपना अधिक से अधिक समय देने लगे थे, जो एक रिश्ते के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होता है। वे समाज की चिंता और फिक्र के साथ-साथ एक दूसरे का पूरा ख्याल रखने लगे थे। आखिरकार वो दिन आ ही गया था जिस दिन का दोनों को कब से इंतजार था उन्होंने जो फैसला किया था उस दिन उन्होंने उसको साकार किया। अब वो हमसफर बन चुके थे। यह दिन उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा दिन था, क्योंकि इस दिन उन्होंने एक दूसरे को हमसफर बनाया था हालांकि उनकी हदें क्या थी इसका अंदाजा दोनों को बखूबी था और इसी में रहकर, उन्होंने एक-दूसरे के साथ रहने और साथ निभाने का फैसला किया था। अब उन्हें एक दूसरे को समझाने और समझने की आवश्यकता कम ही पढ़ती थी। उनका वक्त अक्सर साथ ही गुजरता था। वैदेही और वरुण दोनों का एक दूसरे से रिश्ता काफी गहरा बन चुका था।
वरुण का सफर वैदेही की जिंदगी में एक अजनबी से शुरू होकर अच्छी दोस्ती से अब एक हमसफर तक जा पहुंचा था। दोनों अपने रिश्ते के साथ बहुत खुश थे।
खुशियों को नजर तो लगनी हीं होती है तो उनकी जिंदगी में भी एक तूफान आना लाजमी था और वह आया भी । अब दोनों की जिंदगी एक अलग ही मोड़ पर आ चुकी थी।हालांकि दोनों समझदार थे और अपने रिश्ते को लेकर आश्वस्त थे कि कोई भी परेशानी आएगी तो दोनों मिलकर संभाल लेंगे। दोनों को एक दूसरे पर बहुत विश्वास था और वह इस विश्वास से भरे रिश्ते के साथ ही जी रहे थे। लेकिन समय को शायद यह मंजूर न हुआ। हालांकि वह दोनों एक दूसरे को समझने और खुद को समझाने की कोशिश कर रहे थे। वह दोनों चाहते तो सारी परेशानियों का मिलकर सामना कर सकते थे, लेकिन उन्होंने परेशानियों को अपने-अपने तरीके से सुलझाना उचित समझा। उनमें गलती भले ही कोई एक करता लेकिन रिश्ता दोनों का खराब होना लाजमी था।
तेजी से भागते वक्त ने दोनों को मजबूरियों के हाथों मजबूर कर दिया अब समय में थोड़ी सी कटौती होने लगी थी और स्थितियां अब पहले जैसी नहीं रही थी। कई बार गलतफहमियो को समय पर निस्तारण न होने के कारण या तो गलतफहमियों का जवाब खुद बना लिया गया या रिश्तों को बनाए रखने के लिए उन्हें भूल जाना बेहतर समझा गया। इसके चलते उनका विश्वास थोड़ा सा कमजोर हो चला था। हालाकि दोनों को अपने रिश्ते पर पूरा भरोसा था। पहले एक दिन में कई बार होने वाली बातें, अब कई दिनों में एक-दो बार पर आ गई थी। कभी-कभी तो सप्ताह या 2 सप्ताह तक बातें नहीं हो पाती थी। वरुण और वैदेही के बीच रिश्ता इतना मजबूत था कि वो टूटा नहीं और कभी कभार ही सही उन्हीं बातों पर टिका रहा।
एक दिन वैदेही ने वरुण से कहा कि हमारा रिश्ता हमेशा कायम रहेगा चाहे कुछ भी हो जाए। हम कभी मिले या न मिले, बात हो या आज के बाद कभी न हो, हम अपने रिश्ते में नहीं रह सकते तो एक दोस्त बनकर हमेशा रह सकते हैं और हमेशा रहेंगे। हालांकि वैदेही और वरुण एक दूसरे के लिए जो भी एहसास रखते थे उनमें अभी तक कोई कमी नहीं आई थी। वैदेही की बातें सुनकर ही वरुण को उस दिन यह एहसास हो चुका था कि अब उसका सफर हमसफर से एक अच्छे दोस्त पर आ चुका था। वरुण ने इस बात को बहुत सोचा। यह वक्त उसके लिए बहुत नाज़ुक था। जब कभी उनकी बातें होती थी तब वैदेही हमेशा कहा करती थी जिस दिन मुझसे मिलोगे तो मेरी आंखों में देख कर तुम मेरी चाहत समझ जाओगे, तुम्हे अभी मेरी बातों से मेरा कोई अंदाजा नहीं है कि मैं किस हाल में हूं। अब दोनों उस दोस्ती के रिश्ते के साथ अपनी अपनी जिंदगी में खुशियां खोज रहे थे। वैदेही अपनी जिंदगी में आए इन नए फैसलों से खुद को संभाल रही थी और अपनी जिंदगी में खुश थी, इधर वरुण को भी आभास सो चुका था कि शायद इस कहानी में उसका किरदार एक दोस्त का ही था। अब वह भी अपनी जिंदगी में इसी बात से खुश था कि कम से कम दोस्त बन कर तो साथ रहा जा सकता था क्योंकि उस समय वरुण और वैदेही के लिए एक दूसरे की खुशी से बढ़कर और कुछ नहीं था।
आखिरकार वह दिन आ ही गया, जिस दिन उन्हें फिर से मौका मिला, अपनी जिंदगी में एक और मुलाकात करने का। यह मुलाकात काफी समय बाद हो रही थी। वरुण और वैदेही नियत समय पर एक जगह पहुंचे। एक दूसरे से मिले। हालांकि वह मुलाकात भी पहले जैसी ही थी लेकिन इस बार बहुत कुछ अलग अलग था। वैदेही खुद को ऐसा महसूस करवाने की कोशिश कर रही थी जैसे सब ठीक हो, वह खुश हो। वरुण उसे अच्छी तरह जानता और समझता था। उस बात ने वरुण को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। जब वरुण सब कुछ जान सकता था तो वैदेही का यह स्वरूप किस लिए था? क्या छुपाया जा रहा था और क्यों? वह सोच रहा था कि क्या इतना विश्वास भी नहीं रहा कि कोई बात हो तो उससे कह दी जाए। वरुण को ऐसी मुलाकात की उम्मीद बिल्कुल भी न थी। उसे इस बात का बखूबी अंदाजा था कि इस बार स्थितियां थोड़ी अलग होंगी। लेकिन इतनी, उसने ये नहीं सोचा था। वरुण को उस मुलाकात के दौरान बहुत सारी बातें करनी थी, कुछ गलतफहमियां थी जिन्हें दूर करना था। वहीं गलतफहमियां जो दवा दी गई थी। लेकिन वैदेही ने मौका ही नहीं दिया। वरुण ने भी इस बात को समझते हुए गलतफहमियों को फिर वहीं पर दफन कर दिया।
वैसे बात यही पर खत्म नहीं हुई थी। एक दौर और भी था। जब उस दौर की शुरुआत हुई तो वरुण बस उस बात को याद कर रहा था जब वैदेही ने कहा था कि जब उससे मिलना उसकी आंखों में देख लेना। लेकिन आज तो आंखे मिलाई ही नहीं जा रही थी या यूं कहो कि आज आंखें दिखाई ही नहीं जा रही थी। वह सोच में था कि आखिर ऐसा क्यों ? रिश्ते में विश्वास बहुत बड़ी बात होती है उसे लग रहा था कि शायद इसी में कुछ कमी आ गई होगी वरना उसने आज तक ऐसा कभी नहीं किया। उस समय काफी सारे सवाल उसके मन में उठ रहे थे। उसने ऐसी उम्मीद कभी नहीं की थी।
सारे सवालों को उसने विराम देते हुए, खुद से बिना कोई सवाल किए वरुण ने बस इतना कहा- ऑल इज वेल..ऑल इज वेल.. ऑल इज वेल..
जिंदगी में सब कुछ होता है। आज वह बैठा वैदेही के साथ ही था लेकिन उसे अब ऐसा लगने लगा था आज वह किसी अजनबी के साथ बैठा था। आज से पहले उन दोनों की मुलाकात में उसे कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ था उनकी पहली मुलाकात में भी उसे ऐसा नहीं लगा था कि वह किसी अजनबी के साथ बैठा है। लेकिन आज पहली जब उसके सामने बैठे हुए भी उसे नजरअंदाज किया जा रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि शायद वो किसी अजनबी के साथ बैठा हुआ है। उसे वैदेही का इस तरह से नजरअंदाज करना बहुत बुरा लग रहा था। बहुत सारी बातो को सोचकर, और वैदेही के इस तरह के व्यवहार को देखकर उसने सारी बातें, जो वह करना चाहता था एक ही पल में अपने सीने में दबा कर रख ली। कहते हैं ना कि जब आपको किसी की जरूरत हो और वह उस वक्त आपके साथ न हो तो जिंदगी भर साथ रहने से भी आप उस एक पल की भरपाई नहीं कर सकते आज वही समय था वरुण की जिंदगी में। लेकिन उम्मीदें आज भी जिंदा थी क्योंकि इस बात का एहसास दोनों को था। वरुण और वैदेही एक दूसरे को आज भी चाहते थे। लेकिन उस रिश्ते की सच्चाई को आज भी परिभाषित नहीं कर पा रहे थे। बस इसी कशमकश में समय हो चला था और वह दोनों एक दूसरे से विदा लेकर अपने अपने घर की ओर निकल पड़े।
आज वरुण का सफर एक अजनबी से एक अजनबी पर खत्म हो चुका था। हालांकि बातें जैसी पहले हुआ करती थी आज भी कुछ बैसी ही होती है। जो एहसास एक दूसरे के लिए पहले था वो आज भी है। लेकिन वरुण को इन बातों और उस दिन बीती हुई हकीकत में बहुत अंतर नजर आता था। वरुण और वैदेही आज भी उस रिश्ते को खोज रहे हैं। आज दोनों उस रास्ते पर आ खड़े हैं, जहां फैसला भी नहीं कर पा रहे कि अब क्या किया जाए....
आशा करता हूं आपको यह लेख पसंद आया होगा। अंत में आप लोगों से सुझाव चाहता हूं, कृपया अपना बहुमल्य समय देकर सुझाव अवश्य दे ।
सधन्यवाद ।

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