गुमशुदा की तलाश - 13 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 13


गुमशुदा की तलाश
(13)


सरवर खान बिपिन की बात करते हुए अरुण के चेहरे पर आने वाले कृतज्ञता के भाव को परख रहे थे। अरुण नम आँखों के साथ बोला।
"सर आज अगर मैं दूसरों की मदद करने के लायक बना हूँ तो बिपिन भाई के कारण। यदि वह सही समय पर मेरी सहायता के लिए ना आए होते तो मैं नशे और अवसाद के भंवर में डूब गया होता।"
"मैं समझता हूँ अरुण। बिपिन सचमुच तुम्हारे लिए एक फरिश्ता बन कर आया। उसकी जगह कोई और होता तो शायद तुम्हें केवल एक केस स्टडी ही मानता।"
"हाँ सच कह रहे हैं आप। तभी उनके गुमशुदा होने की खबर ने मुझे परेशान कर दिया है। सर आप मुझे पूरी बात बताइए।"
सरवर खान ने अरुण को बिपिन के लापता होने के केस में अब तक जो घटा वह बता दिया। सारी बात जानने के बाद अरुण ने कहा।
"सर मैं इस केस में आपकी जो मदद कर सकता हूँ वह ज़रूर करूँगा।"
सरवर खान ने मन ही मन वो सभी सवाल सोंच लिए थे जो उन्हें अरुण से पूँछने थे। उन्होंने पहला सवाल पूँछा।
"अरुण तुमने कभी बिपिन को ऐसे किसी आदमी के साथ देखा जो था जिसके आगे बालों का एक गुच्छा गोल्डन कलर से रंगा हो। जो कान में बाली पहनता हो।"
"सर मैंने उसे बिपिन भाई के साथ तो नहीं देखा। पर हुलिया सुन कर लगता है कि आप रॉकी की बात कर रहे हैं।"
"रॉकी....ये है कौन ?"
"सर ये रॉकी ईगल क्लब का मालिक है। इसका नाम राकेश तनवानी है। पर खुद को रॉकी कहता है। सर इस ईगल क्लब में नशे का कारोबार होता है।"
सरवर खान को याद आया कि सीसीटीवी की फुटेज में कार के दरवाज़े पर बाज़ जैसे पक्षी का स्टिकर लगा था। तो क्या कार का संबंध ईगल क्लब से हो। लेकिन वह सोंच में पड़ गए कि बिपिन रॉकी से क्यों मिलता था। कार्तिक के दोस्त ने उसे स्कोडा कार में रॉकी के साथ बैठे देखा था।
"अरुण तुमने कभी बिपिन को किसी लड़की के साथ देखा था। या उसके मुंह से किसी रिनी का नाम सुना हो।"
"सर बिपिन भाई मुझसे मिलते ज़रूर थे। लेकिन कभी अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई बात नहीं करते थे। मैंने ना ही उन्हें किसी लड़की के साथ देखा और ना ही किसी रिनी का नाम सुना।"
"अच्छा चिंता हरण फूल या नंदपुर इनका नाम सुना है। याद करो शायद कोई बात हो जो केस में मददगार हो।"
नंदपुर का नाम सुन कर अरुण को कुछ सुना सुना लगा। वह कुछ देर तक अपने दिमाग पर ज़ोर डालता रहा। फिर अचानक उसे कुछ याद आया।
"सर नंदपुर से याद आया। एक बार जब बिपिन भाई मुझसे मिलने आए थे तो किसी का फोन आया था। बातचीत से लग रहा था कि किसी लड़की का है। उन्होंने तब नंदपुर का नाम लिया था।"
"क्या कहा था बिपिन ने उस लड़की से ?"
अरुण ने फिर अपने दिमाग पर ज़ोर डाला। उसके बाद बोला।
"बिपिन भाई ने कहा था कि नंदपुर में हमें हमारी चीज़ मिल जाएगी। तुमसे बात करनी है। हॉस्टल के पास वाले उसी चाईनीज़ रेस्टोरेंट में मिलो जहाँ हम अक्सर मिलते हैं।"
"यह कब की बात है ?"
"सर इसके बाद ही बिपिन भाई मुझसे मिलने नहीं आए।"
सरवर खान हिसाब लगाने लगे। अरुण के मुताबिक बिपिन तकरीबन एक साल पहले उससे मिला था। यानी उसके लापता होने से दो या तीन महीने पहले की बात होगी यह।
"तुमने सचमुच बहुत अच्छी जानकारी दी। आगे अगर तुम्हारी आवश्यक्ता पड़ी तो तुम्हें फोन करूँगा।"
अरुण के जाने के बाद सरवर खान उसके द्वारा बतों को आपस में जोड़ कर सही तस्वीर बनाने की कोशिश करने लगे। जो उभर कर आया वह था कि बिपिन ईगल क्लब के मालिक रॉकी से मिला था। वह किसी लड़की से हॉस्टल के पास वाले चाईनीज़ रेस्टोरेंट में मिलता था। शायद वही रिनी थी।
सरवर खान को अब दो जगहों पर जाना था। एक ईगल क्लब। दूसरा उस चाईनीज़ रेस्टोरेंट में। उन्होंने पहले चाईनीज़ रेस्टोरेंट में जाने का फैसला किया। उन्होंने गूगल पर सर्च किया। चरक हॉस्टल के पास एक ही चाईनीज़ रेस्टोरेंट था। जिस साईबर कैफे से सीसीटीवी फुटेज मिला था उसके आगे जाने पर कोई 300 मीटर दूर था ड्रैगेन हब रेस्टोरेंट। सरवर खान ने इसके खुलने और बंद होने का समय देखा। यह दो पालियों में चलता था। सुबह नौ बजे से दोपहर दो बजे तक। उसके बाद शाम छह बजे से ग्यारह बजे तक।
सरवर खान ने समय देखा। आठ बजकर बावन मिनट हुए थे। उन्होंने तय किया कि आज वह डिनर में चाईनीज़ खाएंगे।
ड्रैगेन हब में चाईनीज़ डिनर का लुत्फ उठाने के बाद सरवर खान ने बिल चुकाया। वेटर को टिप देते हुए उन्होंने कहा।
"मुझे तुम्हारे मैनेजर से मिलना है।"
वेटर को कुछ आश्चर्य हुआ।
"क्यों सर हमसे कोई भूल हुई है।"
"नहीं कुछ और बात करनी है।"
वेटर उन्हें मैनेजर के पास ले गया। मैनेजर को अपना परिचय देते हुए उसे अपने आने का कारण बताया। मैनेजर को मोबाइल पर बिपिन की तस्वीर दिखाते हुए पूँछा।
"इसका नाम बिपिन है। यह धनवंत्री इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ से पीएचडी कर रहा था। पिछले दस महीनों से लापता है। यह अक्सर किसी लड़की के साथ आपके रेस्टोरेंट में आता था।"
तस्वीर पर नज़र डालने के बाद मैनेजर ने कहा।
"सर मैंने इसे नहीं देखा। मैंने अभी चार महीने पहले ही इस रेस्टोरेंट को ज्वाइन किया है।"
"ओह....पर आपका कोई वेटर हो जो इसे जानता हो।"
"सर दस महीने पहले की बात है। हमारे यहाँ अभी कुछ महीनों पहले ही स्टाफ में फेरबदल हुआ है। पुराने वेटरों में सिर्फ एक मनोज ही बचा है। वही जो आपको मेरे पास लेकर आया था।"
"तो आप मनोज को बुला दीजिए। मैं उससे पूँछ कर देखता हूँ।"
मैनेजर ने मनोज को बुलाया। मनोज कुछ देर तक बिपिन की तस्वीर को देखने के बाद बोला।
"हाँ सर इन्हें यहाँ देखा तो है। पर कुछ बता नहीं सकता। जब भी यह आते थे तो जीवन ही इन्हें सर्व करता था। उसके साथ यह कुछ बातें भी करते थे।"
"तो जीवन को बुलाओ।"
"सर जीवन अब यहाँ काम नहीं करता है।"
"तुम्हें पता है कि आजकल वह कहाँ काम करता है।"
"सर पहले वह उसी बस्ती में रहता था जहाँ मैं रहता हूँ। पर अब कहीं और चला गया है। लेकिन मुझे किसी ने बताया था कि वह संत कबीर मार्केट में शाम को अपना मोमोज़ का ठेला लगाता है।"
"मार्केट में किस जगह लगाता है वह ठेला कुछ पता है।"
"सर इससे अधिक मुझे कुछ नहीं मालूम है।"
सरवर खान ने मनोज को और मैनेजर को धन्यवाद दिया और वहाँ से निकल गए। उन्होंने कार संत कबीर मार्केट की तरफ मोड़ दी।
संत कबीर मार्केट शहर का बहुत घना बसा बाज़ार था। कार को मार्केट के अंदर ले जाना कठिन था। अतः कार बाहर पार्क कर वह पैदल अंदर चले गए।
रात के साढ़े दस बज रहे थे। कुछ दुकानें बंद हो चुकी थीं। कुछ दुकानदार बंद करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन खाने पीने की दुकानों पर अभी भी चहल पहल थी। उन्होंने एक दुकान पर पूँछा।
"भाई यहाँ कोई मोमोज़ का ठेला लगाता है।"
"साहब मोमोज़ तो हमारे यहाँ भी मिलते हैं। तशरीफ रखिए।"
"नहीं....दरअसल मैं किसी को ढूंढ़ रहा हूँ। वह मोमोज़ का ठेला लगाता है। जीवन नाम है उसका।"
"साहब यह तो बाज़ार है। ना जाने कितने लोग ठेला लगाते हैं। हम तो बस कुछ एक दुकानदारों को जानते हैं।"
सरवर खान मार्केट में घूमते हुए देखने लगे। जीवन के बारे में केवल इतनी जानकारी थी कि वह इस मार्केट में मोमोज़ का ठेला लगाता है। अब मार्केट में घूम कर ही उसे खोजा जा सकता था। पर यह मार्केट भी बहुत बड़ी थी। यहाँ किसी को तलाशना भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा था।
सरवर खान लगभग पौन घंटे तक मार्केट के अलग अलग हिस्सों में घूमते रहे। उन्हें खाने के सामान के कई खोमचे और ठेले दिखे। पर किसी में भी मोमोज़ नहीं मिल रहे थे।
सरवर खान को थकावट महसूस हो रही थी। उन्होंने अगले दिन फिर से देखने का मन बनाया। वह मार्केट से निकल कर अपनी कार की तरफ बढ़ रहे थे। तभी सामने से एक ठेला आता दिखा। उस पर लिखा था।
'जीवन मोमोज़ कार्नर'
सरवर खान के चेहरे पर मुस्कन आ गई।