अनोखी मुस्कान - छोटी कहानी Ramesh Desai द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अनोखी मुस्कान - छोटी कहानी

' डेडी ! वोट ए सरप्राइज ! आप के जन्म दिन को ही मेरी शादी होने जा रही हैं . यह दिन हम भला भूलना चाहे तो भी कभी नहीं भूल पायेंगे ! यह दिन हमारे लिए एक यादगार बन जायेगा ! '

' वादा कीजिये आप आंटी और चीनू को लेकर मेरी शादी में हाजिर रहेंगे , इतना ही नहीं मेरे डेडी की भूमिका भी बखूबी निभायेगे . उस का मतलब यह बिल्कुल नहीं कि आप को अपनी जेब हलकी करनी हैं . सब तैयारियां हो गई हैं . आप को केवल एक पिता की तरह मुझे आशीर्वाद देना हैं , अपने गले लगाकर बिदा करना हैं ! '

' यस बोस ! '

मानवके होठ तक आकर शब्द वापस लौट जाते हैंं . एक बेेटी को ऐसे कैसे बिदा करूं ? उस के अंतरमन में सवाल उठता हैैं . अनोखी की अपील सुनकर उस की आँखों में खुशी के आँसू उमडने लगते हैैं . उस की शादी का सपना साकार होने जा रहा था . वह लगातार ईस दिन की प्रतिक्षा कर रहा था . लेकिन एक बात का अफसोस उस को होता रहता हैं . उस के हाथ खाली थे . अनोखी का मंगेतर उस की परेशानी ताड़ लेता हैं . वह मानव की नजदीक जाकर उन के कंधों को थपथपाते हुए , भावुक मुद्रा में अपील करता हैं !

' अंकल मुझे पता हैं . आप की सेहत ठीक नहीं चल रही हैं . लेकिन अनोखी आप की लाडली बेटी हैं . आप के आशीर्वाद के बिना उस की शादी कैसे मुकम्मल हो सकती हैं ? उस की शादी बिना गुड़ के कंसार जैसी फिक्की हो जाएगी ! आप को किसी भी सूरत में हमारी शादी में अकेले नहीं बल्कि आंटी और चीनू को साथ लेकर आना हैं ! मैं आप लोगो के लिए एक अलग गाड़ी का प्रबंध करूँगा ! '

मौलिक की बात सुनकर मानव गर्व महसूस करता हैं . वह अपनी आदत के मुताबिक अनोखी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देने की मुद्रा में कहता हैं :

' माय गर्ल ! मैं निःसंदेह तुम्हारी शादी में हाजिर हो जाऊंगा . मैं आज दिन तक इसी दिन की प्रतिक्षा कर रहा था . तुम नहीं भी बुलाती तो भी मैं बिन बुलाये मेहमान की तरह हाजिर हो जाता . तुम्हारी आंटी और चीनू भी मेरे साथ रहेंगे ! '

' थैंक्स डैडी ! '

उस के मुंह से यह शब्द सुनकर मानव खुशी से झूमने लगता हैं . डैडी संबोधन से मौलिक भी काफी प्रभावित हो जाता हैं . निःस्वार्थ प्रेम की ज्योत उस की आँखों में खुशी के आंसू छलकाती हैं . यह देखकर अनोखी भी भावुक हो जाती हैं . वह अपने हाथ रुमाल से अपने मंगेतर के आँसू पौंछती हैं , और आँखों आँखो में ही मौलिक को कोई संकेत देती है , जिस का पालन करने के लिए वह मानव की दिशा में प्रयाण करता हैं .

' अंकल ! आप के लिए एक बढ़िया खबर हैं ! आप के पैसे की पूर्ण रूप से रिकवरी हो गई हैं ! '

सुनकर मानव के सिर से बड़ा बोज हट जाता हैं !

भगवान ने उसे अपने बेटी को करियावर देने के लिये समर्थ बनाया था . इस ख्याल से उस का चेहरा खुशियों से चमक उठता है . एक साथ मानो उसे दुनिया भर की सारी खुशियां हांसिल हो जाती हैं . वह मौलिक को गले लगाकर उस का शुक्रगुजार करता हैं .

उसी वक्त मानव की बीबी अर्चना चाय नास्ते की ट्रे लेकर होल में दाखिल होती हैं . वह हाथ के अभिनय से अनोखी को आग्रह करती हैं .

' अनोखी ! आज तुम दोनों को खाना खाकर ही जाना होगा ! '

' नहीं आंटी आज तो संभवित नहीं हैं . हमे कार्ड्स बाँटने सब के घर जाना हैं . लेकिन मैं आप को वादा करती हूं . शादी के बाद सब से पहले आप के ही हाथों का खाना खायेगे ! '

' ओ के डन ! ' अंगूठा दिखाकर अर्चना उस की बात को समर्थन देकर हल्की सी मुस्कान बिखेरती हैं !

चाय नास्ते को न्याय देकर दोनो चले जाते हैं .

और मानव अतीत की यादों में घिर जाता हैं !

अनोखी सीधी सादी , सरल टाइप की भोली , निखालिस लड़की थी . वह अपने नाम के मुताबिक अनोखी और अनन्य थी . हर किसी को अपने जैसे मानकर चलती थी . सदैव कुछ ना कुछ सिखने को तैयार रहती थी . और मानव हरदम उसे नैतिक मदद करता था .

' अनोखी ! हम दोनों एक ही बेंच पर बैठने वाले छात्र हैं ! '

रुचि कोई गलतफहमी की शिकार होकर उस की जिंदगी से वॉक आउट कर गई थी . उसी समय ही मानवने अपने कान पकड़ते हुए तय कर लिया था .

' आज के बाद मैं किसी भी नारी के साथ भावनात्मक संबंध नहीं रखूंगा !! '

लेकिन अनोखी के आगमन और संगत में वह अपने शपथ तोड़ने पर विवश हो गया था .

, आग से नाता नारी से रिश्ता ,
काहे मन समझ ना पाया ,

नारी एक आग जेसी होती हैं . रूचि के बेसमझ , ,नादान व्यवहारने उस के मतलबी स्वभाव से अवगत कराया था . उस ने बेबुनियादी आक्षेप कर के मानव की प्रतिभा को दाग लगाने की गंदी साजिश खेली थी , जिस ने मानव के दामन पर बदनुमा दाग लगाया था जब कि अनोखी के प्यार भरे व्यवहार और निखालिस , निःस्वार्थ स्वभावने मानव के दिल में एक जगह कायम कर ली थी .

मानव एक संवेदनशील , नाज़ुक एवम भावुक इंसान था . नारी को देवी मानकर चलता था . उन कि इज्जत करता था . रुचिने अपने मतलबी , नादान व्यवहार के जरिये मानव के दिल को गहरी चोट पहुचाई थी . उस की गिनती और सोच ने मानव के दिल मे नफरत की आग भड़काई थी .

अनोखी के साथ उस का क्या नाता था ? मानव कुछ समझ नहीं पा रहा था . यह फैसला अनोखी पर छोड़ते हुए उसने सवाल किया था !

' अनोखी ! तुम्हे इस स्पर्श में कौन नजर आता हैं ? '

जवाब में उस के सिर पर हाथ रखकर के बी सी स्टाइल में चार सवाल भी किये थे :

' एक ओफिस सह कर्मचारी ? '

' एक दोस्त ? '

' एक भाई ? '

' एक पिता की , जो हमेशा तुम्हारी चिंता करता हैं ! '

एक दोस्त , एक भाई , एक पिता - यह सारे रिश्ते पैसे के पाबंद हो गए हैं . पैसे की लेनदेन ही इन संबंधों की बुनियाद हैं . रिश्ते निभाने की राह में यह पैसा रुकावटें पैदा करता हैं ! अपनी बेटी की मौत ने मानव को नग्न सत्य से अवगत कराया था .

उस की इकलौती बेटी मुस्कान एक लड़के को चाहती थी . वह दूसरी बिरादरी का सदस्य था . उस की रहन सहन बिल्कुल विभिन्न थी . इस लिए मानव ने इस रिश्ते को स्वीकारा नहीं था . लेकिन वह लाचार और अकिंचन था . इस हालत में मुस्कानने भागकर विवाह किया था . उस के ऐसे व्यवहारने मानव को बहुत ही बड़ा झटका दिया था . उसको अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था , फिर भी दूसरे ही पल उस ने हालात से समजोता कर के शादी को स्वीकार लिया था .

लेकिन यही पर उस की यातना का अंत नहीं हुआ था .

दूसरे ही साल एक फूल जेसी कोमल चीनू को जन्म देकर मुस्कान इस दुनिया को अलविदा कर गई थी . अपनी बेटी की मौत से मानव की जिंदगी में अंधेरा सा छा गया था . इन हालतमें चीनू उस के नाना नानी की जिंदगी का मक़सद बन गई थी . मुस्कान के जाने के बाद उस के पतिने चीनू की जिम्मेवारी उन की डिमांड पर सास ससुर को सौंप दी थी !

अनोखी एक गरीब घराने से थी . वह मुस्कान की उम्र की ही थी . उस ने बड़ी आसानी से मुस्कान की जगह ले ली थी . उस ने कभी मानव से आर्थिक व्यवहार या सहाय की आशा रखी नही थी . फिर भी ना जाने क्यों ? मानव अपने आप को असुरक्षित महसूस करता था . ओफिस के अन्य सदस्य अनोखी को फ़्लर्ट करने की कोशिश करते थे , उस को उपहार देते थे , उस की मनपसंद चीजे भी खिलाते थे . भोली भाली अनोखी उन की बातों में आ जाती थी . मानव को इस बात से डर लगता था . कोई उसे फ़सायेगा तो ?

यह सवाल ऊसे बेहद परेशान कर रहा था .

एक बार अनोखी ने मानव की मौजूदगी में अपनी पसंद बताते हुए कहां था :

' मुझे पिझा बहुत अच्छा लगता हैं ! '

मानव उस की छोटी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकता था . उस बात का उसे बेहद रंज होता था . उस के दिमाग पर एक सवाल सवार हो गया था !

' क्या अनोखी उसे छोड़ देगी ? '

जब अनोखी को इस बात का पता चला तो वह काफी नाराज हो गई थी : उस ने खुद मानव को विश्वास दिलाया था .

' हम दोनों में बाप बेटी का निःस्वार्थ प्यार पनप रहा हैं . यही सब से बड़ी बात हैं , मुझे बस तुम्हारी मुस्कान समज कर प्यार करते रहिएगा . यही मेरी सब से बड़ी धन संपत्ति हैं ! '

उस की गरीबी की आग अपनी बेटी को भरख गई थी . वह अनोखी को किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहता था . खोने का ख़्याल भी वह बर्दाश्त नहीं कर पाता था . उस के पास पैसे होते तो ? क्या वह अपनी बेटी को मौत के मुंह मे जाने से रोक पाया होता ? अनोखी और मुस्कान हम शक्ल तो नही थे लेकिन दोनों के आचार विचार में काफी समानता थी . मानो दोनो एक दूजों के हम सिरत थे , पुरक थे !

' रहने को घर नहीं सोने को बिस्तर नहीं । ' इस हालत में वह अनोखी उसकी बेटी होने का दावा करता था . उस पर ओफिस कर्मचारी उस की मजाक उड़ाते थे . उन के संबंध पर किचड़ फेंकते थे . फिर भी उन के रिश्तों को कोई दिक्कत नहीं आई थी . अनोखी मुस्कान की तरह उस का ख्याल रखती थी . यह उस की जिंदगी का अहम और बहुमूल्य बोनस था . मानव की तबियत को लेकर वह बेहद परेशान रहती थी . अनोखी उस को एक ही सलाह देती थी .

' अपना ख़्याल रखना ! '

उस की इतनी सी बात मानव को वैशाखी दोपहर की जलती लू में शीतल छाया देती थी .

अनोखी की हर एक बात में उस की लागणी की महक आती थी . उस के पिता हिन्दू मुस्लिम कोमी दंगल में शहीद हो गए थे . और मानव ने उस के पिता की खाली जगह को भरने का प्रयास किया था . वह एक सगे बाप से भी बढ़कर उस की देखभाल करता था . अपने पिता की तरफ से उसे संस्कार भरी थैली मिली थी .

वह सदैव अपने कर्मचारी भाई बहनों के साथ हिल मिल के रहती थी . सभी खाने की चीजें आपस मे बाँटने की उसे आदत थी . उस के यह संस्कार अपने ससुराल में काम आयेंगे . मानव को ईस बात का पूरा यकीन था .

फिर भी वह बीसवीं सदी की पैदाश थी . इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ के साथ दुनिया में बहुत कुछ बदलाव आ गया था . ऐसा उहापोह मच रहा था . और अनोखी भी ईस नये रंग में रंग चुकी थी . फिर भी वह सब से अलग , सब से जुदा थी . यह बात मानव को बहुत ही आश्वस्त करती थी .

विजातीय हस्तियों के साथ वह बड़ी आसानी से जुड़ जाती थी . यह बात मानव को पीड़ा देती थी . उस का आजाद मानस कभी मानव को तकलीफ देता था . अनोखी एक हिंदी फिल्म की नायिका की कार्बन कॉपी थी . जो उसी की तरह भोली , सरल हदयी और संवेदनशील थी . सब को अपने जैसे भोले एवम सरल मानकर चलती थी . वह किसी की जरा सी परेशानी भी झेल नहीं पा रही थी . किसी भी जातिय या विजातिय हस्ती को जरा सी चोट लगने पर मदद के लिए दौड़ी जाती थी . उस के ऐसे व्यवहार से दुखी होकर उस का भाई घर छोड़कर चला गया था ..

नायिका अपने परोपकारी जीवके कारण बार बार मुसीबतों का शिकार हो जाती थी . फिर भी वह चुपचाप सब कुछ सह लेती थी . उस के मुकत बर्तावने उस की जिंदगी में कई मुसीबते पैदा की थी . उस का बड़ा भाई तो उसे बदचलन मानता था . इसी वजह से उस की सगाई भी टूट गई थी . उस के जनक पिता भी अपनी बेटी को कसूरवार मानकर चलते थे . इस हालत में नायिका खुदकुशी के लिए तैयार हो जाती हैं . लेकिन उस की निर्दोषता रंग लाती हैं और सब कुछ लाइन पर आ जाता हैं .

वह नेकदिल , पाक दामन थी . बेहद संवेदनशील स्वभाव की थी .

अनोखी भी बिल्कुल उसी धारा में बही जा रही थी . उस के दिल में समग्र मानव जात प्रति करुणा का महासागर उमट रहा था . वह एक हमदर्द थी , करुणा की मूरत थी . उस का कोई भी गलत फायदा उठा सकता था . यह बात मानव को निशदिन परेशान करती थी . मुंह पर मीठा बोलने वाली जमात के लोग उस की पीठ के पीछे उस की बदनामी करते थे . यह बात मानव के दिल को कचोटती रहती थी .

ओफिस के किसी फंक्शन में अनोखी ने झुककर मानव के चरण छुए थे . इस बात से वह काफी प्रभावित हो गया था . उस ने अनोखी के सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिए थे और दूसरे ही दिन उस ने खुश खबरी सुनाई थी .

' मानव भाई ! आप के आशीर्वाद यथार्थ साबित हुए . कल आपने फोन किया उसी वक्त मौलिक और उस के मात पिता मुझे देखने आए थे . हम दोनो और दोनो के परिवार को यह रिश्ता पसंद आ गया हैं . इस महीने की २० तारीख को हमारी सगाई होने जा रही हैं ! '

' यह तो बहुत ही बड़ी खुशी की बात हो गई . '

उस की सगाई विधि में एक कवर अनोखी के हाथ में थमाते हुए एक चिट्ठी में अपने भावों को इस तरह से प्रदर्शित किए थे .

' खुशी खुशी कर दो बिदा हमारी बेटी राज करेगी ,
महलो का राजा मिला के रानी बेटी राज करेगी ,

' अनोखी ! ऊपर बैठे तुम्हारे डैडी ने तुम मां बेटी के नाम यह पयाम भेजा हैं !! '

मानव की बातें सुनकर अनोखी की आँखे नम हो गई थी .

बुफे बाद मानव ने वादे के मुताबिक मौलिक को अपने गले लगाया था और फोटोग्राफर ने यह सिनारियो अपने कैमरे में कैद कर लिया था .

शादी के बाद वह मुंबई छोड़ने वाली थी . यह जानकर मानव सुनमुन सा हो गया था . कुछ ही महीनों में वह सदा के लिये दूर चली जायेगी , इस ख्याल ने उस का चेहरा ही नही बल्कि दिल , दिमाग और जमीर को भी दिमक लगा दिया था .

अनोखी ओफिस में उस की बगल में ही बैठती थी . दोनो एक साथ एक साझीदारी में सब काम करते थे . वह लंच भी साथ ही लेते थे . शाम को स्टेशन तक साथ ही जाते थे फिर भी एक बात साफ थी , दोनो कभी भी अकेले नहीं थे . फिर भी ओफिस के कर्मचारी पीठ के पीछे दोनो की बुराई करते रहते थे .

रुचि के पास उस ने जो प्यार और स्नेह की उम्मीद की थी , वह सब कुछ बिन मांगे अनोखीने उसे भेट कर दिया था , उस ने ' बिन मांगे मोती मिले ' उस कथन को सार्थक किया था . रुचि की वजह से मानव के घर मे एक तूफान सा भरपा हो गया था . उस ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये मानव की पत्नी के दिल मे उस के पति के खिलाफ जहर उगल दिया था . पति पत्नी के रिश्तों में कुछ समय के लिए दरार आ गई थी जिस को अनोखीने अपने प्रेम से भर दी थी .

सुख की अवधि कम होती हैं , खुशी चमचभर हांसिल होती हैं ., लेकिन दुख गाड़ी भरके आता हैं . मानव यह बात जानता , समझता था . अनोखी का साथ कुछ ही समय का था . शायद भगवान को भी यह रिश्ता पसंद नहीं था . इसी लिए उस ने कोसो दूर उस का ससुराल ढूंढ कर दिया था !

सगाई के कुछ दिन पहले दोनो के बीच कुछ विवाद पैदा हुआ था .! अनोखीने फ़िल्म की नायिका जैसी कोई नादानी की थी , जिस की बजह से पहली बार मानवने उसे टोका था . उस ने पहली बार अनोखी पर गुस्सा भी किया था . इस बात से वह भी कुछ नाराज हो गई थी . लेकिन बहुत ही जल्द दोनो के बीच समाधान हो गया था . मानव के मीठे जल समान प्यार ने अनोखी को फौरन पिघला दिया था . और इस गरमा गरमी के बाद दोनों ओर भी निकट आ गए थे !

मानव को छोटे बच्चे की भ्रांति दांत से नाखून चबाने की आदत थी . उसे छोड़ने के लिए उस ने काफी जहमत की थी लेकिन नाकामी ही हाथ लगी थी . नाखून चबाने की बुरी आदत उसे महंगी पड़ रही थी . उसे काफी पीड़ा भुगतनी पड़ रही थी . उस की उंगलियों में अपार दर्द होता था . इस हालत में उसे क्लोरोफार्म सुंघाकर शस्त्र क्रिया करनी पड़ती थी . मानव ने खुद यह बात अनोखी को बताई थी . सुनकर वह भड़क गई थी .

' आप कितने गंदे और छिछोरे हो ! इस उमरमे भी एक बच्चे की भ्रांति नाखून चबाते हो ! '

अनोखी की इतनी सी टकोर ने मानव पर गहरा प्रभाव छोड़ा था . इस मुआमले में मानवने भोले भाले अंदाज़ में अर्ज की थी .

' मैं इस आदत से छुटकारा पाना चाहता हूं . तुम जब भी मुझे नाखून चबाते देखो , मेरे हाथ पर मार देना ! '

अनोखी उस का बहुत ही आदर करती थी . दोनो की आयुमें जमीन आसमान का अंतर था . वह अपने पिता के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकती थी ? इस लिये उस ने मानव को सवाल किया था :

' मैं भला आप को कैसे मार सकती हूं ? '

उस के सवाल में वजूद था . उस को लेकर मानवने कोई प्रतिभाव जाहिर नहीं किया था . फिर भी उस की टकोरने चमत्कार किया था . ठीक एक महीने के बाद मानवने अपनी उंगली के नाखून दिखाते हुए सवाल किया था :

' अनोखी कुछ फर्क जान पड़ता हैं ? '

' क्या आपने आदत छोड़ दी ? '

' हां एक दादी मां की वजह से यह संभावित हुआ हैं ! '

' कौन हैं आप की दादी मां ? ' अनोखी ने अचरज भरी निगाहों से उसे घूरते हुए सवाल किया था .

मानव यह बात गोपित रखना चाहता था , अनोखी के साथ शरारत करना चाहता था . लेकिन उस की बोडी लेंग्वेज बता रही थी , वह जानती थी .

ऐसे में मानव सच्चाई बयान करता हैं :

' तेरे सिवा ओर भला कौन हो सकता हैं ? '

' क्या आप मुझे इतना मानते हो ? '

' हां अनोखी ! हम जिसे चाहते हैं उस की हर बात महत्तम परिणाम ला सकता हैं ! '

अनोखी की वजह से ही वह अपनी पुरानी आदत से छुटकारा पा सका था . उस ने देखा जाये तो ऐसे कुछ नहीं किया था . लेकिन कुछ तीखे शब्दो ने अपना काम कर दिया था . मानवने इस बात का श्रेय अनोखी को दिया तो उस ने कहां था :

' यह तो आप के ही कारण संभवित हुआ हैं , शायद यह भगवान का आदेश था जिस ने अपना काम कर दिया हैं , मैं इस मुआमले में निमित्त बनी हूं , बाकी इतनी बात पर कोई अपनी आदत कैसे छोड़ सकता हैं ? '

कुछ साल पहले मानव को सिगारेट की आदत लग गई थी . उस से मानव को कुछ फायदा नहीं हुआ था . रुचि के मतलबी व्यवहारने मानव को मायूसी की गहरी खाई में ढकेल दिया था . उसी की वजह से उसे सिगारेट पीने की आदत लग गई थी . मानव को अपनी गलती का एहसास हो चूका था . उस ने सिगारेट छोड़ने के अथाग प्रयास किये थे , लेकिन नाकामी ही हाथ लगी थी . उस ने सिगारेट किस लिये पीना शुरू किया था ? वह किसी को बता नही पाया था . सिगारेट की वजह से उसे छाती में जलन होती थी , काफी पीड़ा होती थी . सिगारेट पीने से लंग केंसर होने की भी संभावना थी .अखबारों में कई किस्से उसने पढ़े थे . ईस बात से मानव को मौत का डर लग रहा था .

मानव अपनी बेटी मुस्कान को अनहद प्यार करता था . उस की हर एक बात मानता था . लेकिन सिगारेट के मुआमले में वह अपनी बेटी की बात मानने के लिये असफल साबित हुआ था .

एक बार उसे छाती में अपार दर्द उठा था , उस वक़्त मुस्कान ने तीखे शब्दो का अपने पिता पर प्रहार किया था और उस ने उसी पल सिगारेट छोड़ दी थी :

मुस्कान ने अपने पिता को मानो धमकी दी थी :

' अब से सिगारेट पीना बंद नही किया तो मैं आप से कभी बात नहीं करूंगी ! '

अनोखी तो उस से भी आगे बढ़ गई थी . उसी वजह से मानव का उस के प्रति का लगाव बढ़ गया था . वह अनोखी की भावना को सराहता था , अपनी जिंदगी का बोनस मानकर चलता था .

' रुचि की वजह से मेरी बीबी को मैंने काफी मानसिक यातना दी हैं . बस उसे तुम्हारे प्यार का यकीन दिलाना . उस ने भर युवानी में अपनी बेटी को खोया है . उस का घाव आज तक भर नहीं पाया . रुचि के व्यवहार ने मुझे दो दिन और रात खून के आंसू रुलाया था . बीवी को रुचि पर अंध विश्वास रखने का अफसोस हो रहा था . उस की हम सब को भारी कीमत चुकानी पड़ी हैं . बस यही परिस्थिति पुनः निर्माण ना हो जाये इस बात का सदैव ख़्याल रखना . अगर तुम आगे नहीं बढ़ना चाहती हो तो साफ बता देना ! मेरी बीवी को बस इतना विश्वास चाहिये , मैने ईस बार धौखा नहीं खाया हैं . मैं मुस्कान की तरह तुम्हारे हाथों में बिल्कुल सलामत हूं ! '

' आप इस के बारे में नचिंत हो जाइये ! '

' वेल अनोखी तुम तो जानती हो . मैं बहुत ही गरीब हूं . उसी वजह से मैं अपनी बेटी को खो बैठा हूं . मेरी गरीबी हमारे रिश्ते में कोई दीवार ना खड़ी कर दे इस बात का मुझे डर लग रहा हैं ! '

' मानव भाई ! आप सचमुच महान हैं . कितना कुछ सोचते हो . मुझे आप की बेटी कहलाने का गर्व होता हैं ! '

अनोखी जानती थी . मानव के हाथ खाली थे फिर भी वह प्यार का बड़ा व्यापार करता था .

' हूं बहुत नादान मैं करता हूं नादानी ,
बेचकर खुशियां खरीदूं आँख का पानी ,
हाथ खाली हैं मगर व्यापार करता हूं ,
आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं ,

सगाई बाद मानव ने फोन पर मौलिक से बात की थी .

' अनोखी मेरी बेटी हैं . वह काफी भोली और भावुक हैं , उस का खूब ख़्याल रखना ! '

उस ने फोन पर बात की थी . अनोखी को उस ने बताया भी था . लेकिन क्या बात हुई थी ? यह जानने के लिये वह काफी उत्सुक हो रही थी . उस को चिढ़ाने के इरादे से उसने कहां था :

मेरी अनोखी थोड़ी पागल हैं , उस से बचकर चलना ! '

' आप जुठ बोलते हाे , आप कभी ऐसी बात कर नही सकते ! '

'तुम्हे मुझ पर इतना भरोसा हैं ? '

' अपने आप से भी ज्यादा ! '

उस ने स्मित देते हुए जवाब दिया था . उस वक़्त उस के गालों के खंजन देखकर मानव खुश हो गया था !

अनोखी कभी गुस्से में एक जंगली बिल्ली जैसा व्यवहार करती थी . यह बात मानव को सदैव खटकती थी . जिस पर उस को गुस्सा आता था उस के पीछे वह चित्र विचित्र हरकते करती थी . उस की यह आदत उस के लिए मुसीबत खड़ी करेगी , इस ख़्याल से मानव डर जाता था . वह अनोखी की यह आदत छुड़वाना चाहता था . उस ने अनोखी को चैलेंज दी थी :

' मैं तुम्हारी यह आदत छुड़वा कर रहूंगा ! '

और मानव अपनी चेलेन्ज जीत गया था .

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कुछ दिनों बाद अखबार में एक इश्तेहार छपा था .

' घोड़े पर चढ़ने को तैयार एक नव युवक को किडनी की आवश्यकता हैं. दाता को १ लाख रुपये दिये जायेंगे ! '

इश्तेहार पढ़कर मानव अस्पताल पहुच गया था .

वह किडनी दान कर के अपनी बेटी के करियावर के प्रबंध के बारे में सोच रहा था . उस के लिये यह सुनहरा अवसर था .

तुरंत ही किडनी ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया शुरु हो गई थी . समय पर किडनी मिलने पर उस युवान की जिंदगी बच गई थी .

अपने भावी भरतार को किस ने किडनी दान की थी . यह जानने के लिए उस की मंगेतर काफी उत्सुक हो रही थी . वह खुद अपने हाथों किडनी दाता को मिलकर आभार मानना चाहती थी , अपने हाथों जाहिर की गई राशि देना चाहती थी . वह तुरंत ही किडनी दाता को मिलने पहुच गई . सूरत देखकर युवती चोंक सी गई !

' डैडी ! ' कहकर वह किडनी दाता की गोद में सिर रखकर छोटी बच्ची की भ्रांति रोने लगी !

' आप ने अपने आप को जोखिम भरी हालतमें रखकर मेरे चूड़ी और सिन्दूर की लाज रखी . '

उस के पीछे मनाई होते हुए भी मौलिक किडनी दाता के वॉर्ड में पहुच गया . वह भी मानव को देखकर चकित हो गया . उस ने अनोखी को आदेश दिया :

' अनोखी ! तुम अपने ही हाथों पुनित कार्य संपन्न करो ! '

उस ने आँसू पोछकर एक लाख का कवर मानव के हाथों में थमाने की कोशिश की लेकिन उस ने अपने हाथ पीछे खिंचते हुए कह दिया .

' पागल प्यार के कोई दाम होते हैं भला ? एक बाप भला अपनी बेटी के सुख के खातिर की गई आहुति की कीमत कैसे वसूल सकता हैं ? '

' डैडी ! मैं जानती हूं . आप एक आदर्शवादी पिता हो . आप बेटी के घर का पानी पीने के भी हक्क में नहीं हैं . लेकिन आज आप के महत्तम अंग की बदौलत मेरे जीवन साथी को नया जीवन मिला है .आप के इस महान त्याग को पैसे में तोलकर मैं आप की भावना का अपमान नहीं करना चाहती . लेकिन यह पैसे मैं आप की लाडो चीनू के भाविकी खातिर दे रही हूं ! '

अपने पति की बात को अर्चनाने मूक भाषा मे समर्थन दिया तो अनोखी अवाक सी रह गई .

' डैडी से ज्यादा मोम ज्यादा स्मार्ट हैं ! ' उन के गालों को बडे प्यार से सहलाते हुए , कुछ मीठे गुस्से के साथ अनोखी ने उन की सराहना की .

कुछ दिनों बाद मानव का विश्वास सार्थक हुआ था .

' अंकल ! मैं कल गांधी धाम जा रहा हूं . आप अपने क्लाइंट की सारी जानकारी और ऑथोरिटी पत्र दे दीजिये , अपनी पार्टी को मेरे बारे में बतादो , हिसाब के सारे पैसे मेरे हाथों में दे दे ! '

मानव जानता था . शिवशंकर एक कंजूस और लालची शख्श था . उस से पैसे निकालना आसान नहीं था , लेकिन उसे मौलिक की काबिलियत पर पूर्ण भरोसा था . उस ने सारी जानकारी एवम हिसाब के पूरे कागज मौलिक को दे दिए और शुभेच्छा भी प्रगट की थी .

' May God bless you and all the best ! '

और मौलिक पर किया गया विश्वास सार्थक हो गया . शादी की निमंत्रण पत्रिका के साथ वह नगद राशि लेकर मानव के घर पहुंच गया . अपने पैसे मिल जाने से मानव की खुशी का कोई ठिकाना नहीं बचा . भगवान ने उसे अपनी बेटी को करियावर देने के लिए समर्थ बना दिया था इस के लिए उसने परमकृपालु ईश्वर का शुक्रगुजार किया था .

शादी के तीन दिन पहले एक कुरियर बॉय ने उस के दरवाजे पर दस्तक दी थी .

साइन कर के मानव ने कवर फोड़ दिया था .

कवर में एक डिमांड ड्राफ्ट था . देखकर मानव की आँखे चोंधिया सी गई थी .

अर्चना भी चकित हो गई !

शिव शंकरने व्याज के साथ पैसे लौटा दिए . उस का मतलब था , मौलिक ने अपनी जेब से पैसे दिए थे .

उस ने बिना कुछ सोचे कहे ड्राफ्ट बैंक में जमा करवा दिया .

फिर भी उन दोनो का जुठ मानव हजम नहीं कर पाया था .इस पर मानव रात भर सो नहीं पाया था . बगल में ही चीनू सोई हुई थी . वह अपने नाना नानी के बिना रह नही पाती थी . इस बात पर उस की आँखे नम हो जाती थी . स्नेह का यह कैसा बंधन था ? मानव कुदरत का करिश्मा समज नहीं पा रहा था .

उस की दूसरी ओर अर्चना को भी नींद नहीं आ रही थी , वह बिस्तर में करवटें बदल रही थी . उस का पति भी जाग रहा था . अर्चना जानती थी .

सुबह होते ही उस ने एक चिट्ठी के जरिए अपने पति को समजाने की कोशिश की :

' मानव ! उन दोनों के जुठ के पीछे एक नेक मकसद काम कर रहा हैं . '

शादी की अगले दिन शाम मौलिक की गाड़ी उन को लेने आई थी और वह लोग शादी में शामिल होने निकल पड़े थे .

कुछ ही घंटों में अनोखी बिदा हो जाएगी . इस ख़्याल से मानव का दिल भारी हो गया था . वह अब भी जुठ को हजम नहीं कर पा रहा था . उस की नाराजी आँखों से झलक रही थी . अनोखी इस बात से शादी के मंडप में बैठकर भी अस्वस्थ महसूस कर रही थी !

मानव की दरियादिलीने उसे माफ कर दिया था .

उस ने अपनी बेटी को खुलकर करियावर दिया था .

उसे देखकर अनोखी की आँखे चमक गई . लाख मना करने के बावजूद मानव ने सारी रस्मे निभाई थी . उस ने अपने डैडी को डांटने का अधिकार इस्तेमाल कर लिया . साथ मे अपने जुठ पर अफसोस जाहिर किया :

' सोरी ! डैडी , आप की मदद न लेने की जिद ने हमे जुठ का सहारा लेने के लिए आमादा कर दिया था .'

मानव ने अपनी बेटी को गले लगाते हुए कहां था :

' बेटा ! तुम्हारी जगह मुस्कान होती तो वह भी कुछ ऐसे ही स्टंट करती ! '

अनोखी की बात से अर्चना भी काफी प्रभावित हो गई थी .

' भगवान अगर कुछ ले लेता है तो उसे व्याज समेत वापस लौटा देता हैं ! '

उस के कानों में पति की बाते गूंजने लगती हैं .

' अपने पास क्या हैं ? बस उस के बारे में सोचकर हमे खुश रहना सीखना चाहिए ! भगवान का शुक्रिया अदा करना हैं . वही सुखी जीवन की चाबी हैं ! '

यह बात याद आते ही अर्चनाने अपने पति की नजदीक सांकेतिक भाषा मे कुछ बातें की .

सभी रस्मे संपन्न होने के बाद बिदाई की घड़ी आ गई .

म्यूजिक सिस्टम पर बिदाई गीत गूंजने लगा :

' बाबुल की दुवा ये लेती जा
जा तुझ को सुखी संसार मिले,
मैके की कभी ना याद आये ,
ससुराल में इतना प्यार मिले,

मानवने अपनी बेटी को गले लगाकर आशीर्वाद दिया
उस वक्त अनोखी ने मानव से कुछ मांग लिया :

' डैडी ! आज तक मैंने आप से कभी कुछ नहीं मांगा हैं , लेकिन आज कुछ मांगने को मन कर रहा हैं , क्या मुझे दोंगे ? '

' बेटी ! तुम्हारे लिए तो जान भी हाजिर है ! '

' डैडी ! आप की जान तो बहुत ही अनमोल हैं , उसे ऑन्टी और हम सब के लिए बचाकर रखिए ! '

' आप सब लोगो के लिए तो मैं अपनी लंबी जिंदगी की भगवान से प्रार्थना करता हूं ! '

' आप की यह प्रार्थना जरूर फलेगी ! बस हमे चीनू दे दो . मुझे कोई करियावर की जरुरत नहीं थी , फिर भी आप ने बहुत कुछ दे दिया हैं . मैं जानती हूं आप मेरी मांग नहीं पूरी कर सकोगे , फिर भी आप से उस चीज को मांगने की गुस्ताखी कर रही हूं ! '

' तुम्हे चीनू चाहिये ना ? '

' आप ने तो मेरे मन की बात जान ली , मुझे कहने का मौका भी नहीं दिया . '

' यही तो हमारे रिश्ते की गरिमा हैं , चरम सीमा हैं ! '

' इतना ही नही बल्कि मेरे लिए सब से बड़ा करियावर हैं ! '

' बेटा ! अगर तुम यही चाहती हो तो यह शायद भगवान की मर्जी है उस मे आड़े वाला भला कौन होता हूं ? '

और वह अपना करियावर लेकर अपने पति के साथ सजी सजाई कार में बिदा हो गई .

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