अगले दिन सुबह मेसेंजर पर
सुम्मी- असस्लामु अलैकुम लेखक साहब।
मैं- व अलैकुम अस सलाम,खेरयत हैं शायरा मोहतरमा ?
सुम्मी- जी अल्लाह का शुक्र,
आप बताएं ?
मैं- जी मे भी बेहतर,वैसे आप किस सिटी से हैं ?
सुम्मी- हम आप के शहर मुरादाबाद से ही हैं।
मैं- अरे वाह,कमाल की बात है,एक शहर में रहते हैं और मुलाक़ात मातृभारती के ज़रिए हुई।
सुम्मी- जी उसका क्रेडिट भी हमें दीजिये मातृभारती को नही,हम मेसेज नही करते तो कैसे मिलते?
मैं- हाहाहा जी जी आप भी सही हैं,हम शायरों से बहस नही करते।
सुम्मी- क्यों?
मैं- चुभते हुए तीरों से अल्फाज़ो को फूलों में लपेट कर मारते हैं शायर,इसलिए हम शायरों से कभी बहस नही करते।
सुम्मी- हे हे सही है।
खैर रोज़ाना सुम्मी से बातें शायरियां और बहस करते करते कब एक महीना बीत गया पता ही न चला,लेकिन अभी तक सुम्मी से उसका फ़ोटो मांगने की हिम्मत नही हुई थी,लेकिन दिल मे बड़ी हसरत थी,के जिसके अल्फ़ाज़ ऐसे हैं वो केसी होंगीं।
एक दिन बातों बातों में मैने सुम्मी से कहा, कल आप हमारे ख्वाब में आई थीं।
सुम्मी- अरे वाह फिर?
मैं- फिर क्या ! मुँह पर हिजाब बांध रखा था,न आवाज़ सुन ने को मिली न चेहरा देखने को।
सुम्मी- इसमें हम क्या कर सकते हैं।
मैं- हिज्र की तल्खी ज़हर बनी है मीठी बातें भेजो न
खुद को देखे अरसा गुज़रा अपनी आंखें भेजो न।
सुम्मी- हमने तो सुना था लेखकों की इमेजिनेशन बहुत अच्छी होती है,आप भी इमेजिन कर लीजिए।
मैं - आप अगर न बेनक़ाब होंगे
तो इस दिल में हज़ारो फसाद होंगे।
सुम्मी-ठीक है तो हम आपको अपनी फ़ोटो भेज देते हैं,आप फसादों से महफूज़ रहिये।
इतना कह कर सुम्मी ने फ़ोटो सेंड कर दी, सांवली सलोनी वो लड़की चंचल आंखों वाली।
एक झलक देखने के बाद उन्होंने पूछा क्या हुआ लेखक साहब? हमारी तस्वीर केसी लगी?
मैं -
तुम्हारी तस्वीर कहती है
मुझे तुम गोर से देखो,
मेरी आंखों में झांको तुम
मेरी ज़ुल्फो से उलझो तुम,
तक़ाज़े रूह के अपने
तक़ाज़े जिस्म के अपने
करो पूरे इजाज़त है।
सुम्मी-
मगर तुमको इजाज़त ये
फ़क़त ख्वाबो की हद तक है।
मैं- आप हमें बांधने का कोई मौका नहीं छोड़ती,ओर यकीन मानिए आपकी इस सादगी और हाज़िर जवाबी पर हम बड़े फिदा हैं।
सुम्मी- ज़रा काबू रखिये लेखक साहब, दिल के सौदे बड़े महंगे पड़ते हैं।
मैं-कुछ चीज़ों में नफा नुकसान कहां देखा जाता है सुम्मी जी।
हमने देखा था फ़क़त शोक ए नज़र की ख़ातिर
न थी ख़बर इश्क़ हो जायेगा देखते देखते।
सुम्मी- पर जिस राह पर आप चलना चाह रहे हैं उसका अंजाम हमारे और आपके दोनों के लिए ही बेहतर नहीं।
मैं- मोहब्बत मेंने करनी है अंजाम की परवाह नही मुझ को।
मैं जो कुछ दिल से करता हूं ख़ुदा सब खेर करता है।
जैसा कि आप जानती ही हैं कि मेरे दिल की हसरते क्या हैं।में बस आपके दिल की बात जानना चाहता हूं।
सुम्मी- नहीं,हमारा जवाब है नहीं।
मैं- पर क्यों? अच्छे घर से हुँ,अच्छा कमाता हुँ,अपना कारोबार है और १९ साल की उम्र में सेटल हूं,आखिर बुराई क्या है मुझमे?
सुम्मी- कुछ भी नही,लेकिन आप चेहरा देखने से पहले इज़हार करते तो बात दूसरी होती,पर अब नही।
मैं-माना कि इश्क़ अंधा होता है,पर मोहब्बत आंखों के ज़रिए ही दिल तक उतरती है ।
सुम्मी- आपने हमसे हमारी मर्ज़ी पूछी थी लेखक साहब,वो हम बता चुके।
मैं - ठीक है सुम्मी,में इंतेज़ार करूँगा।
सुम्मी-कब तक लेखक साहब?
मैं- मोहब्बत ज़िद्दी है..आख़री सांस आखरी धड़कन आखरी पल तक इंतेज़ार कर सकती है,ओर कभी कभी उसके बाद भी।
सुम्मी- ठीक है जैसा आपको बेहतर लगे...
सुम्मी ने हालांकि साफ इंकार किया था।लेकिन में जानता था इस इंकार में भी इज़हार छुपा है,अगर ऐसा न होता तो वो मुझे अब तक ब्लॉक न कर चुकी होतीं।
खैर फिर भी दिल मे डर था लेखक मोहतरमा के दूर जाने का,इसी लिए सब्र के साथ हम अपने मिशन(मोहब्बत) में लगे रहे।
वक़्त भी धीरे धीरे गुज़रता रहा। अब तक हम दोनों को ही एक दूसरे की आदत हो चुकी थी। सुम्मी जो भी नई कहानी पढ़ती उसे मुझसे ज़रूर डिस्कस करती। वो कहानी को पढ़ा नही करती ।।बल्कि जिया करती।
आज सुम्मी ने फिर एक नई कहानी सूरज प्रकाश जी की "लहरों की बांसुरी" पढ़ी,सुम्मी ने कहा तुम भी वो कहानी पढो जुनैद,उस कहानी में सूरज प्रकाश जी ने बड़ी खूबसूरत और पाक मोहब्बत को दर्शाया था,सुम्मी से मैने कहा कहानी तो वाक़ई बहुत अच्छी है,मोहतरम ओर मोहतरमा का बड़ा प्यारा प्यार दिखाया है,साथ मे घूमना,मौज करना, एक दूसरे को समझना,बेबाक ज़िन्दगी,,
सुम्मी- हम्म,इतनी बेबाक ज़िन्दगी जीने के बाद भी दोनों एक कमरे में साथ होते हुये भी शारिरिक सबंध नही बनाते, मैंने कहा हां,वो मोहतरमा सम्भाल लेती हैं।
इस पर सुम्मी कहती हैं,लड़कियों का खुद पर काबू लड़को से ज़्यादा होता है।। कमाल तो वो था जब मोहतरमा नशे में थी और सबंध बनाने पर उतारू थी तब जनाब ने खुद को काबू किया,क्या सच मे ऐसे लोग होते है जुनैद?
मैंने कहा जी बिल्कुल होते है, बस ज़रूरत है उन्हें ढूंढने की।
सुम्मी- उन्हें ढूंढना आसान है क्या?
मैं- हां . ये ऐसा है जैसे भूसे के ढेर में सुई ढूंढना,ढूंढ लिया तो तुम्हारा।
खेर हमारी इस बात के बाद में श्योर हो गया था के सुम्मी भी इसी तरह की मोहब्बत चाहती है,और ये कहानी "लहरों की बाँसुरी" सुम्मी पर गहरा असर छोड़ गई है,अपने बढ़ते हुए जज़्बातों को काबू में कर मेने सुम्मी को फिर प्रपोज़ किया,लेकिन इस बार तरीका अलग था।।
मैंने कहा सुम्मी तुम मुझे बहुत प्यारी लगती हो,जैसा के में पहले भी बता चुका हूं, में तुमसे बहुत प्यार करता हूं,इतनी हसरत से तुम्हारा फ़ोटो देखता हूं जितनी हसरत से एक गरीब बच्ची बड़ी सी दुकान में रखी महँगी गुड़िया को देखती है,और सोचती है काश ये मेरे पास होती।बस यही काश मेरी ज़िंदगी में भी है,में तुमसे निकाह करना चाहता हूं सुम्मी,इस बारे में मैने अपनी अम्मी से भी बात कर ली है, बस तुम्हारी रज़ा की देर है,तुम जब कहोगी घर वाले रिश्ता ले कर आ जायँगे।
सुम्मी ने कहा यार जुनैद प्यार में भी करती हूं,लेकिन हम दोनों की कास्ट अलग है,फाइनेंसियल स्टेटस अलग है,मेरे घर वाले मान जाएं मुश्किल है,
मैंने कहा वो तुम मेरे पापा पर छोड़ दो,वो किसी को भी आराम से बोतल में उतार सकते है।
सुम्मी ने कहा अगर मेरे घर वालो ने मना कर दिया तो प्लीज इसे अपनी सेल्फ रेस्पेक्ट पर मत लेना।
मैंने कहा तुम अच्छा सोचो बस,इंशा अल्लाह सब अच्छा होगा।
सुम्मी की रजामंदी मिलने के बाद मैंने अम्मी को समझाया,घर का माहौल फ्रेंक था,अम्मी अब्बा दोनों ही समझदार थे,जवां दिलो के जज़्बात समझते थे,कुछ वक्त लगा मुझे घर वालों को समझाने में,फाइनली अम्मी अब्बा रिश्ता ले गए।।
जब वहां पहुँचे तो पानी को पूछने के बाद सुम्मी की अम्मी ने आने की वजह पूछी, अम्मी ने साफ बता दिया आपके यहाँ लड़की है,जो हमें अपने लड़के के लिए पसन्द है।
सुम्मी की अम्मी ने पहला सवाल करा,आपकी कास्ट क्या है ?
अम्मी कहने लगी में पठान हुं।
सुम्मी की अम्मी कहने लगीं हम सय्यद है लेकिन पठानों में भी हमारे यहां शादी कर देते है।
अम्मी ने फिर कहा असल मे मैं पठान हुँ ओर हमारे हाजी जी चौधरी हैं।
सुम्मी की अम्मी कहने लगी हम बस सय्यदों में ही करते हैं,वेसे आपका लड़का करता क्या है ?
अम्मी कहने लगी पीतल का अपना कारखाना है मेरे लड़के का,
सुम्मी की अम्मी कहने लगी और पढ़ा हुआ कितना है ?
अम्मी कहने लगी पढ़ा हुआ तो बस दसवें तक है,पर कमाता अच्छा है।
10वी क्लास का नाम सुनते ही सुम्मी की अम्मी ने सुम्मी से टेबल पर आने वाला नाश्ता आधा करा दिया,जब टेबल पर पहुँचे तो सुम्मी के अम्मी अब्बा ने नाश्ते के बाद रिश्ते के लिए सुम्मी की तरह साफ इंकार कर दिया,कहने लगे आपकी हमारी कास्ट अलग है,आपका लड़का हमारी लड़की से पढ़ा लिखा कम है,अब्बा ने काफी समझाया पर वो अपनी जिद पर अड़े थे,
अब्बा कहते है जब किसी चीज़ से काम न बने तो धार्मिक बाते शुरू कर दो,धर्म वो चरस है जो नास्तिक तक के सिर चढ़ कर बोल जाती है,अब्बा ने कहा इस्लाम मे कास्ट तो कही लिखी ही नही साहब,अल्लाह के नबी ने आखरी खुतबे में कहा था न अरबी बड़ा है अजमी से,न अजमी बड़ा है अरबी से,बड़ा वो है ऊंचा वो है जिसके अख़लाक़ अच्छे है,बड़ा वो है जो खुद से पहले दुसरो का ख्याल रखता है, फिर अल्लाह के नबी ने ये भी कहा कि बच्चों की शादी के लिए उनकी मर्ज़ी ज़रूरी है,और आपकी सुम्मी ओर हमारा जुनैद दोनों एक दूसरे को पसन्द करते है,ऐसे में इन दोनों बच्चों की शादी कही और करना इन पर ज़ुल्म है,और जिसने ज़ुल्म किया वो जन्नत में न जायगा।