गुमशुदा की तलाश - 6 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 6




गुमशुदा की तलाश
(6)


सरगम डिस्को में तेज़ संगीत पर लोग झूम रहे थे। आंचल भी अपने ग्रुप के साथ पूरी मस्ती में नाच रही थी। बहुत देरे से नाचते हुए उसका गला सूखने लगा। बार एरिया में जाकर उसने अपने लिए एक सॉफ्ट ड्रिंक मांगा। वह अपना ड्रिंक सिप कर रही थी तभी एक आदमी उसके पास आकर खड़ा हो गया। देखने में वह किसी बॉडी बिल्डर की तरह था। उसके बाल कंधे तक लंबे थे। दोनों कानों में हीरे के स्टड पहने हुए था। काले रंग की स्लीवलेस टीशर्ट से उसके डोले बाहर झांक रहे थे।
"आर यू आंचल...."
उसके इस सवाल पर आंचल ने उसे घूर कर देखा।
"तुम्हें मेरा नाम कैसे मालूम है ?"
उस बॉडी बिल्डर आदमी ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। उलटा उसे आदेश दिया।
"मेरे साथ बाहर आओ।"
उसकी बात सुन कर आंचल को गुस्सा आ गया।
"आर यू क्रेज़ी...गो टू हेल..."
उस आदमी ने आंचल का हाथ कस कर पकड़ लिया। वह उसे धमकाने लगा।
"पैसे खाकर बैठी है। ऊपर से ऐंठ दिखाती है। चुपचाप बाहर चल। नहीं तो यहीं तेरा तमाशा बना दूँगा।"
वह आदमी आंचल का हाथ खींचते हुए बाहर ले जाने लगा। आंचल भी बिना किसी विरोध के चुपचाप चली जा रही थी। रवीना और उसकी सहेलियों ने देखा पर जानबूझ कर नज़रें फेर लीं।
वह आदमी उसे खींचते हुए बाहर खड़ी काले रंग की स्कॉर्पियो के पास ले गया। स्कॉर्पियो का दरवाज़ा खोल कर उसे भीतर ढकेल दिया। अंदर बिंदिया थापर बैठी थी।
बिंदिया की उम्र कोई पैंतालीस साल की थी। वह हमेशा काले रंग की साड़ी ही पहनती थी। माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाती थी। हाथों में सोने की चूड़ियां पहनती थी। गले में सोने का हार और कानों में बड़े बड़े झुमके। देखने में जितनी भोली लगती थी। अंदर से उतनी ही क्रूर थी।
काले कपड़ों की तरह उसके धंधे भी काले थे। सिग्नल पर बच्चों से भीख मंगवाना, मासूम लड़कियों से धंधा कराना, सुपारी लेकर अपने गुंडों से हत्या करवाना। लेकिन ऊपरी तौर पर पैसों के लेनदेन का काम करती थी।
अपने बढ़ते खर्चों के कारण आंचल को घर से जो पैसे मिलते थे वह पूरे नहीं पड़ रहे थे। उसे महंगी ड्रेसेज़ खरीदने, मंहगे रेस्टोरेंट में खाने की आदत पड़ गई थी। अतः वह घर फोन कर और पैसे मंगा लेती थी। दरअसल वह अपने पिता की जगह माँ को फोन करती थी। उन्हें किसी ना किसी बहाने से बहला कर पैसे मंगा लेती थी। उसकी माँ को लगता था कि वह महानगर में रहती है। अतः उसे अधिक पैसों की ज़रूरत पड़ती होगी। इसलिए वह पैसे भेज देती थीं। हलांकि उन्होंने भी उसे कई बार टोका था कि वह बहुत खर्च कर रही है। लेकिन आंचल उनकी इकलौती संतान थी। अतः वह उसकी बातों में आ जाती थीं। पर जब उसके पिता को इस बात का पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने कह दिया कि वह आवश्यक खर्चों के अलावा और पैसा नहीं भेजेंगे। उसके पिता ने उसे अधिक पैसे भेजना बंद कर दिया था। उसने अपने खर्चों पर रोक लगानी चाही किंतु कर ना सकी।
जब घर से पैसे मिलना बंद हो गए तो वह दोस्तों से उधार मांगने लगी। उन्हीं में से एक ने उसे बिंदिया से मिलवा दिया। वहाँ से उसे आसानी से पैसे मिलने लगे। उसके सिर पर कर्ज़ का पहाड़ खड़ा हो गया।
स्कॉर्पियो के अंदर बैठी आंचल थर थर कांप रही थी। बिंदिया उसे बहुत ही अजीब सी निगाहों से ऊपर से नीचे तक घूर रही थी। उसका ऐसे घूरना आंचल को और परेशान कर रहा था।
"क्यों री चिकनी....जब पैसे चाहिए थे तो मुंह उठा कर चली आती थी। अब वापस करने की बारी आई तो बच कर निकलना चाहती है।"
बिंदिया ने आंचल की ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया।
"मैं जितनी आसानी से पैसे देती हूँ ना मिलने पर उतनी ही आसानी से वसूल लेती हूँ। मेरे पास बहुत से तरीके हैं।"
बिंदिया ने आंचल का गाल सहलाते हुए कहा।
"तुझसे वसूली करना और भी आसान होगा।"
बिंदिया की आँखों में क्रूरता उतर आई थी। वह उसे धमकाते हुए बोली।
"एक हफ्ता है तेरे पास। पैसे लौटा दे। नहीं तो धंधे पर बिठा कर कई गुना वसूल कर लूँगी। समझी....अब फूट ले...."
आंचल की डर के मारे हालत खराब थी। वह फौरन स्कॉर्पियो से बाहर निकल गई। वहाँ रुकने की बजाय वह तेज़ कदमों से सड़क पर भागने लगी। वह कोई ऑटो देख रही थी। पर कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था। वह बहुत परेशान थी। जल्द से जल्द वहाँ से निकल जाना चाहती थी। तभी एक मोटरसाइकिल आकर उसके बगल में रुकी। आंचल घबरा गई।
"रिलैक्स....डरो नहीं....मैं तुम्हारी मदद के लिए आया हूँ।"
आंचल अनिश्चय की स्थिति में घबराई हुई सी उसे देख रही थी।
"मैंने डिस्को में देखा था। कैसे वह आदमी तुम्हें खींच कर ले गया था। तुमको उस स्कॉर्पियो में ढकेल दिया था। वो लोग बहुत खतरनाक मालूम पड़ते हैं। डरो मत..ट्रस्ट मी।"
कहते हुए उस बाइक वाले ने अपना हैलमेट उतार दिया। आंचल कुछ समझ नहीं पा रही थी। उसने उस बाइक वाले की तरफ देखा। वह बिंदिया की धमकी से बहुत डरी हुई थी। वह बस वहाँ से निकल जाना चाहती थी।
"जल्दी से पीछे बैठ जाओ...."
आंचल एक पल झिझकी। फिर बाइक पर बैठ गई। उसके कहने पर बाइक वाले ने उसे हॉस्टल के गेट पर छोड़ दिया। आंचल ने गेट पर पहुँच कर कॉल किया। कुछ समय बाद किसी ने गेट खोल दिया। आंचल अंदर चली गई।
आंचल की मदद करने वाला रंजन था। उसने देखा कि रात के एक बजे थे। गेट पर मौजूद गार्ड ने आंचल को अंदर जाने दिया। इसका अर्थ था कि वह किसी लालच में इन लड़कियों को समय सीमा के बाद भी हॉस्टल में आने जाने देता था।
रवीना और उसकी सहेलियों ने जब आंचल को मुसीबत में देखा तो उसकी सहायता करने की जगह वह चुपचाप हॉस्टल वापस लौट आईं। आंचल जब अपने रूम में पहुँची तो रवीना जाग रही थी।
"क्या हुआ था आंचल ? तुम उस आदमी के साथ कहाँ गई थी ? हम परेशान हो गए थे।"
"यार....मैं बहुत मुसीबत में फंस गई हूँ। वह बिंदिया थापर का आदमी था।"
"वही जिससे तूने उधार लिया है।"
"हाँ... उसने सिर्फ एक हफ्ते का समय दिया है। अगर पैसे नहीं चुकाए तो...."
आंचल रोने लगी। रवीना उसे चुप कराने लगी। आंचल ने खुद को संभालते हुए कहा।
"वो बहुत खतरनाक है। कह रही थी कि मुझे धंधे पर बिठा देगी। मुझे बहुत डर लग रहा है।"
"कितने पैसे देने हैं ?"
"पचास हज़ार...."
रवीना चौंक गई।
"इतनी बड़ी रकम....अब कहाँ से लाएगी पैसे। वह भी इतने कम समय में।"
"मम्मी से बात करूँगी। उन्हें किसी तरह राज़ी करूँगी। और कोई रास्ता नहीं है।"
आंचल परेशान भी थी और थकी हुई भी। बिना चेंज किए बिस्तर पर लेट गई।
"यार....मुझे अपने घरवालों पर बड़ा गुस्सा आता है। सारी पाबंदियां लड़कों के लिए हैं। लड़कों को पूरी छूट है। कहीं भी कभी भी आओ जाओ। जितनी मर्ज़ी खर्च करो। कोई कुछ नहीं कहेगा। इतना पैसा है। पर मैं खर्च करूँ तो परेशानी है। आई हेट दिस..."
आंचल और भी ना जाने क्या क्या बड़बड़ा रही थी। रवीना अपने बिस्तर पर खर्राटे भर रही थी। कुछ देर में आंचल भी सो गई।
सुबह उठते ही आंचल ने अपनी माँ को फोन कर कहा कि उसे पचास हज़ार रुपयों की सख्त ज़रूरत है।
आंचल की माँ ने जानना चाहा कि आखिर बात क्या है। आंचल ने उन्हें सच नहीं बताया।
"मम्मी मै एक पार्टटाइम फोटोग्राफी कोर्स करना चाहती हूँ। उसके लिए चाहिए था। फीस देनी है। एक अच्छा कैमरा खरीदना है।"
"पर तुम बीफार्मा कर रही हो। दोनों एकदम अलग हैं।"
"हाँ हैं मम्मी...यह हॉबी के लिए है।"
"पर बेटा क्या दोनों साथ हो पाएंगे ?"
"हाँ तभी तो कर रही हूँ।"
उसकी माँ की तरफ से कुछ देर शांति रही। आंचल ने बात आगे बढ़ाई।
"मम्मी मैं लड़की हूँ तो क्या अपने मन का कुछ नहीं कर सकती हूँ। भाई लोगों पर तो कोई पाबंदी नहीं रहती है।"
आंचल जानती थी कि यह बात कर उसने सही तार पर हाथ रख दिया है। वह जानती थी कि उसका कोई भाई ना होने के कारण घर में बड़ी होने पर भी उसकी मम्मी का मान कम है। यह बात उन्हें भी खलती है।
"ठीक है बेटा...मैं भेज दूँगी।"
आंचल की चिंता खत्म हो गई थी।