यलगार Dipti Methe द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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यलगार

Description : हर तरफ इंग्लिश भाषा और लहेजेने कब्जा कर रखा हैं | हिंदी - मराठी स्कूल भी बंद होने की कगार पर हैं | ईसी विचार से प्रेरित एक लघुकथा |

मैं अब भागते-भागते थक चुकी हुँ | भागना मेरे स्वभाव में नहीं | फिर भी अपने अस्तित्व को बचाते हुए अंधेरे से भरे कोने में जैसे तैसे मैंने अपने आपको छुपा लिया | थोड़ी ही दूर कुछ खुसरफ़ुसर सुनाई दे रहीं थी | मैं सुनने की कोशिश करने लगी | अंग्रेजी बोल सुनाई दे रहे हैं | काला कोट पहना वो गोरा आदमी मेरा पीछा कर रहा था | अपने ही देस में मैं छुपते छुपाते अपनी जान बचते फिर भड़क रहीं थी | उसके हाथ में पिस्तौल थी | देखते ही शायद मुझे मार दिए जाने का हुक्म आया हो | अंधेरे में कहीं वो मेरी आहट भाँप न ले ईसलिए उस छोटेसे अंधियारे कोने में जैसे तैसे अपने आप को छुपा रही थी कि, तभी अंधेरे में से एक हाथ निकलकर बाहर आया कुछ जाना पहचानासा | मैं डर के मारे सहम गयी | हाँफते हुए वह हाथ मेरे कंधेपर पड़ा | अब तो मैं बस चिल्लाने वाली थी कि, "चुप रहो वरना वो सुन लेंगे मेरी बहना |"- ओह..! मेरी बहन की भी हालत मेरी जैसी ही थी | वो भी उससे भागती फिर रहीं थी | उसकी हालत नाजुक थी | वह ठीक से सांस तक नहीं ले पा रहीं थी | मैंने उसका हाथ थाम लिया और हम दोनों अब भागने के लिए आगे बढ़े |
"भागो ! वे हम दोनों को मार देंगे | जाल बिछाया हैं | रुको मत भागती रहो |" मेरी बहन कुछ ज्यादा ही डरी हुई हैं | उसे भी वे मारना चाहते हैं | हम दोनों उन अँधियारी गलियों में भागती रहीं | पर कोई तेज़ी से हमारा पीछा कर रहा हैं | जहाँ भी छुपना चाहा वो पहले पहुँच जाता | पुलिस थाने, सरकारी दफ्तर, अस्पताल हर तरफ से हमें निकाला गया | सहारा देने की बजाय सब उसका साथ दे रहें हैं, जो विदेश से आकर यहाँ बसा हैं | मेरी भारत भूमि में | अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता | मैं यह सब खुली आँखोंसे नहीं देख सकती | और उस अजनबी विदेशी के साथ हाथ भी मिला नहीं सकती | तभी बहन की बातों से मेरा विचारमंथन खंडित हुआ | उसने कहा, "अरी..! बहना सुनो तो कोई हमें पुकार रहा हैं | शायद अब भी कोई उम्मीद की किरन बाकी हैं |" भोर होने ही वाली थी | सुबह की पहली किरन के साथ 'जन गण मन' हमारा राष्ट्रगीत सुनाई दिया | हम उस आवाज़ की ओर बढ़ने लगी | छोटे छोटे बच्चें पाठशाला की मैदान में हमारा हौसला बढ़ा रहें थे | गर्व से मैंने बहन से कहा,"सही कहा तुमने ! मराठी..!अभी वक्त नहीं आया हमारे जाने का | अभी शेष कार्य बाकी हैं अंग्रेजी को यहाँ से हटाने का |"
"हां..! बहन हिंदी..! चलो डंटकर अंग्रेजी का मुक़ाबला करें |"
"राष्ट्रभाषा हुँ मैं | ऐसे मुँह छुपाकर भाग नहीं सकती | जो अंग्रेजों से भारत की आज़ादी के लिए शहीद हुए | उनकी वीरगति व्यर्थ नहीं जाने देंगे | आओ..! मिलकर सामना करें ईस अंग्रेजी का |"
तिरंगा लहरा रहा था | पाठशाला में हिंदी और मराठी सीना ताने खड़ी थी |

Story by
Dip