गुमशुदा की तलाश - 2 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 2



गुमशुदा की तलाश
(2)



रंजन लौटा तो घर में अंधेरा था। उसने आवाज़ दी।
"मम्मी.…कहाँ हैं आप ?"
उसकी पुकार पर कोई जवाब नहीं मिला। वह ढूंढ़ते हुए बैकयार्ड में गया। शर्ली कुर्सी पर चुपचाप बैठी थी। रंजन जाकर सामने की कुर्सी पर बैठ गया। आहट पाकर शर्ली अपने खयालों से बाहर आई।
"तुम कब आए रंजन ?"
रंजन ने अपनी माँ का हाथ पकड़ कर कहा।
"आप इस तरह अंधेरे में क्यों बैठी हैं ?"
शर्ली ने कोई जवाब नहीं दिया।
"इसका मतलब आज फिर से चिठ्ठी आई है। जब वह हमारी ज़िंदगी से चले ही गए थे तो अब दोबारा क्यों दस्तक दे रहे हैं। हमें चैन से क्यों नहीं रहने देते हैं।"
रंजन की बात सुन कर शर्ली बोली।
"हो सकता है कि उन्हें हमारी ज़रूरत हो।"
"ज़रूरत तो हमें भी थी उनकी जब वह छोड़ कर गए थे। तब उन्हें हमारा खयाल नहीं आया। जो तकलीफें आपने सही हैं मैं उनसे बखूबी वाकिफ हूँ।"
"मैं मानती हूँ बेटा कि उन्होंने हमारे साथ सही नहीं किया। पर हम भी वही करें ये तो ठीक नहीं। बाइबल भी माफ करने को कहती है।"
"मैंने भी पढ़ा है। पर मैं उन्हें माफ नहीं कर सकता हूँ। मैं नहीं भूल सकता जब मैं टेंथ क्लास में था तो मेरा एक्सिडेंट हुआ था। तब आपने अकेले कितनी तकलीफ उठाई थी।"
रंजन की बात सुन कर शर्ली सोंच में पड़ गई। सचमुच वह बहुत कठिन समय था। उसे पैसों की मदद के लिए रिश्तेदारों के सामने हाथ फैलाने पड़े थे।
"मैंने आपको बताया था कि कल सुबह ही मुझे केस के सिलसिले में बाहर जाना है।"
शर्ली को याद आया। दोपहर को रंजन ने फोन किया था। लेकिन खत पढ़ कर वह बहुत परेशान हो गई थी। उसे तो यह भी याद नहीं रहा कि आज रंजन का बर्थडे है। शर्ली उठी और रंजन का माथा चूम लिया।
"हैप्पी बर्थडे। प्रभु ईशू तुम पर कृपा बनाए रखें। मैं अभी तुम्हारा बैग लगा देती हूँ।"
"वो मैं लगा लूँगा। आप जल्दी से डिनर बना लीजिए।"
रंजन कमरे में आकर अपना बैग लगाने लगा। लेकिन उसके मन में एक सवाल उथल पुथल मचा रहा था कि जब पापा ने इतने सालों तक उन दोनों की सुध नहीं ली तो अब क्यों चिठ्ठी भेज कर उनके जीवन में हलचल पैदा कर रहे हैं ?
वह उसका जन्मदिन ही था जब उन्होंने उसकी माँ से विदेश जाने की बात की थी। वह कमरे के बाहर खड़ा सब सुन रहा था।
"समझने की कोशिश करो शर्ली ये बहुत अच्छा अवसर है। यूके के कॉलेज में मुझे ईसाई धर्मशास्त्र के प्रोफेसर का पद मिला है। वहाँ मुझे अन्य धर्मों के बारे में पढ़ने का भी अवसर प्राप्त होगा।"
"वो ठीक है डैनियल पर तुम हमें साथ क्यों नहीं ले जा रहे हो ?"
"मैंने ले जाने से कब इंकार किया। मैं तो बस कह रहा था कि कुछ दिन तुम लोग यहाँ रहो। मैं वहाँ पहुँच कर सही व्यवस्था कर लूँ तब बुला लूँगा तुम लोगों को।"
"व्यवस्था क्या करनी है। क्रिस्टोफर ने कहा तो है कि वह रहने की व्यवस्था कर देगा।"
"कर देगा पर अभी हुई नहीं है। पता नहीं कितना समय लग जाए। मुझे अगले हफ्ते निकलना है। एक बार वहाँ जम जाऊँ तो तुम लोगों को भी बुला लूँगा।"
यूके जाने के बाद उसके पिता ने उम दोनों की कोई सुध नहीं ली। रंजन की माँ बहुत समय तक उनके बुलावे की राह देखती रहीं। दो साल बाद पता चला कि उसके पिता ने लंदन में दूसरी शादी कर ली है। उसकी माँ को बहुत धक्का लगा। इतने दिनों में कभी भी उसके पिता ने उन लोगों से कोई संबंध नहीं रखा। अब पिछले छह महीनों में दो खत आ चुके हैं। पिछला खत जो उसने पढ़ा था उसमें अपने किए की माफी मांगी थी। इस बार भी ऐसा ही कुछ लिखा होगा।
रंजन जब बाहर आया तो शर्ली ने खाना टेबल पर लगा दिया था। साथ में एक चॉकलेट केक भी था। उस पर हैप्पी बर्थडे रंजन लिखा था। रंजन को आश्चर्य हुआ। उसके अचरज को भांप कर शर्ली ने कहा।
"मैंने डिसूज़ा अंकल की बेकरी में फोन कर आर्डर दिया। उन्होंने आधे घंटे में तैयार कर अपने नौकर से भिजवा दिया। अब पहले तुम केक काटो।"
रंजन ने केक काटा। एक टुकड़ा अपनी माँ के मुंह में डाल दिया। शर्ली ने भी एक टुकड़ा उसे खिलाते हुए आशीर्वाद दिया। खाना खाते हुए रंजन ने पूँछा।
"इस बार खत में क्या लिखा है ?"
शर्ली की आँखें नम हो गईं। भर्राए गले से बोली।
"डेनियल को कैंसर है। साल भर पहले ही पता चला। आजकल कोलकाता में अपने कज़िन विक्टर के पास है। इलाज के लिए दिल्ली एम्स जाने वाले हैं।"
"क्यों यूके में भी तो अस्पताल हैं। यहाँ क्यों आ गए।"
बीमारी की बात सुन कर भी रंजन के मन में तल्खी शर्ली को अच्छी नहीं लगी।
"हैं....पर वहाँ उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। दूसरा बचे हुए दिन वह अपनों के बीच काटना चाहते हैं।"
"क्यों वहाँ उनकी पत्नी है तो ?"
इस बार शर्ली ने गुस्से से रंजन को देखा।
"पाँच साल पहले उनका तलाक हो गया था। अब वहाँ उनका कोई नहीं है।"
रंजन कुछ नहीं बोला। उसे एहसास हो गया था कि माँ को उसकी बात बुरी लगी है। माँ को सांत्वना देने के लिए बोला।
"मम्मी कल सुबह ही मुझे निकलना है। लौट कर बात करूँगा।"
खाना खत्म कर रंजन अपने कमरे में चला गया। बहुत देर तक वह अपने पिता के बारे में सोंचता रहा।
जब उसके पापा' यह वादा करके यूके गए थे कि वहाँ जाकर उसे और उसकी मम्मी को जल्द ही वहाँ बुला लेंगे तो वह बहुत खुश हुआ था। विदेश जाकर रहने की बात सोंच कर वह बहुत खुश था। वह छोटा था। उसके कई दोस्त अमीर थे। वह छुट्टियां मनाने वैसे ही विदेश जाते थे जैसे बाकी लोग भारत के किसी हिल स्टेशन पर। वहाँ से लौट कर वह विदेशी दौरे की कई रोचक बातें बताते थे। उन्हें सुन कर उसकी इच्छा भी विदेश जाने की होती थी। अतः जब उसके पापा' ने उसे विदेश ले जाने की बात कही तो वह बहुत उत्साहित हो गया था।
अपने पापा के जाने के बाद वह इस बात की राह देखता रहा कि कब वह उसे और उसकी मम्मी को अपने पास बुलाएंगे। आरंभ में उसके पापा हफ्ते में कम से कम चार दिन उन लोगों से फोन पर बात करते थे। जब भी वह या उसकी मम्मी उनसे अपने पास बुलाने की बात करते तो वह यह कह कर टाल देते कि कुछ दिन रुको। वह पूरी कोशिश कर रहे हैं।
समय के साथ फोन करने की अवधि बढ़ने लगी। पहले हफ्ते में एक बार। फिर पंद्रह दिन में और उसके बाद महीने में एक बार। उनका एक ही बहाना होता था। काम बहुत है। फुर्सत नहीं मिल पाती है। वह प्रयास कर रहे हैं। जैसे ही व्यवस्था हो जाएगी उन लोगों को बुला लेंगे।
उसकी मम्मी की चिंता बढ़ती जा रही थी। पर उसके सामने सब सामान्य दिखाने की कोशिश करती थीं। जब कभी वह शिकायत करता कि पापा उन लोगों को अपने पास क्यों नहीं बुला रहे हैं तो उसे समझाती थीं कि विदेश में सारी चीज़ें अकेले मैनेज करना कठिन होता है। वह जल्द ही उन लोगों को यूके बुला लेंगे।
रंजन सोलह साल का हो गया था। चीज़ों को समझने लगा था। शिकायत कर अपनी मम्मी को परेशान नहीं करना चाहता था।
उसके पापा का फोन आना बंद हो गया था। उन्होंने अपना कोई मोबाइल नंबर नहीं दिया था। वह पब्लिक फोन से लैंडलाइन पर बात करते थे। मम्मी के पास क्रिस्टोफर अंकल का भी कोई नंबर नहीं था। इसलिए इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।
एक दिन क्रिस्टोफर अंकल के फोन ने इंतज़ार भी समाप्त कर दिया। उन्होंने बताया कि पापा ने दूसरी शादी कर ली है।
उसकी मम्मी टूट गई थीं। पर उसके सामने मजबूत बनी रहती थीं। वह चर्च द्वारा संचालित स्कूल में प्राइमरी टीचर थीं। वह पूरी कोशिश करती थीं कि उसे उसके पापा की कमी महसूस ना हो।
वह भी अपनी मम्मी के सामने कभी यह प्रकट नहीं करता था कि पापा के दूसरी शादी कर लेने का उसे बहुत बुरा लगा है।
लेकिन अक्सर अकेले में बैठ कर वह रोता था। जब वह अपनी मम्मी को संघर्ष करते देखता था तो अपने पापा के लिए उसके मन में गुस्से का बवंडर उठने लगता था।
जब भी वह अपने पापा द्वारा मम्मी को दिए गए धोखे के बारे में सोंचता था तो उसे उनसे नफरत होने लगती थी। लेकिन वह उनसे पूरी तरह नफरत भी नहीं कर पाता था।
उसने तय कर लिया था कि अपने पैरों पर खड़े होकर वह अपनी मम्मी को दुनिया की हर खुशी देगा।