क्या यही प्यार है - 2 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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क्या यही प्यार है - 2

क्या यहीं प्यार हैं


भाग-2 में ज़री है...


दो दिन बाद शाबा के खत में कहे लफ्ज़ो के मुताबिक मै स्टेशन पहुंच गया था, उसदिन कई गाड़िया स्टेशन पर आई रुकी और अपनी मंज़िल के लिए गुज़र गई शाम हो चली थी लेकिन शाबा का पता नहीं था. मै न चाह कर भी घर की और चल दिया....

शाबा के घर पर ताला लगा था. तब यकीन हुआ कि वो आज नहीं आयी.... मन और दिल उसके आने की अगुआई में कल की योजना में लग गया.... और ऐसे ही हर रोज़ सिल सिला चलता रहा... और देखते देखते महीनों फिर साल गुज़र गये काफ़ी खत लिखें पर किसी का कोई जवाब नहीं मिला ज़िन्दगी बेचैन सी हो चली थी...
घर वालों को लगा लड़के पर कोई साया आ बैठा है.... झाड़ फूक चली लेकिन इश्क़ का भूत तंत्र मन्त्र से जाता है भला.... कुछ हमदर्द चुगल खोर दोस्तों ने मेरी इस दसा की बजह घर बालों को चुगल दी थी... घर बालों का निर्णय हुआ कही लड़का हांथो से निकल गया तो मुश्किल होंगी... सब की सलाह से मुझें इस शहर से दूसरे शहर भेजा यानि दिल्ली भेजा गया...

एक वो दिन था जब शाबा को अपने अल्फाजो से i love you कहा था जब मै कितना हल्का महसूस कर रहा था ये तो मै ही जनता हूं.... लेकिन आज उस दिन से कही अधिक बोझ आज मै लिए जा रहा हूं वो भी मै ही जनता था... ये बात तो मै जान ही चुका था मोहब्बत का बोझ अकेले ही ढोना पढता है.... लेकिन मोहब्बत करने बालों को ये सब क्यों झेलना होता है इस बात की वजह मै नहीं जान पा रहा था....

शाबा और शाबा के घर बाले ऐसे गायब हुए कि कुछ पता ही नहीं चला काफ़ी जानकारी जुटाने की कोशिश की कोई कहता शाबा की बड़ी बहन नुसरत का निकाह हुआ था लेकिन 8-10 दिन बाद उसने आत्म हत्या कर ली.... इसीलिए सब बदनामी से बचने के लिए ये शहर हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया... कोई कहता कि शाबा का निकाह हो गया.... जितने लोग उतनी बातें सामने आ रहीं थी.... लेकिन मै इस बात से आस्वस्त था कि दिल्ली से अलीगढ़ जानें का मुझें कभी ना कभी तो मिलेगा ही... मेरे पास उसके खत जो है... उनपर शाबा के घर का पता नहीं लिखा तो क्या हुआ उसके इलाके के पोस्ट ऑफिस की मोहर तो है... इन्ही सब बातों को सोचता हुआ मै दिल्ली पहुंच गया....

एक अजीब सा सुना पन मानो फ़िज़ा भी बेरंग हो गई हो आँखों से चारों और नज़ारा बेरंग नज़र दिखाई दें रहा था... सुना था दिल्ली दिल बालों की होती है क्योंकि बात बात पर बुआजी कहा करती है दिल्ली बाले दिलदार बहुत होते है.. हलाकि दिल्ली में कइयों बार आया था.... लेकिन अब मुझें तो यही पढना था कॉलेज में... इस बदरंगी दुनियां में दिल लगाने की वजह सिर्फ इतनी थी के हम घर के वो हिस्से थे जिस पर आने वाला कल हमारी सोच पर निर्भर था.... इस दौरान कइयों ने दिल लुटा और दिल जला से भी नवाज़ा लेकिन हमें शाबा की कमी हमेशा खलती रही....

कालेज में कई तितलियाँ और भौरे दिखे जो आम थे क्योंकि ये शहर जो दिल वालों का था.... फिर मैंने क्या गुनाह किया था किसी से प्यार करके.... शायद मेरे शहर में गुनाह था.....

आज काफ़ी दिनों बाद मौका मिला था अलीगढ जाने का दिल और मन में सैलाब था कई सबाल थे और कई जबाब भी थे..... क्या हक़ीक़त थी ये जानना मेरे लिए बेहद ज़रूरी थी.... क्यों वो इतनी कठोर हो गई या फिर पाबंदियों में सिमट कर मज़बूर हो गई... क्या कभी उसे मेरी याद नहीं आती... यहीं सोच सोच कर में पागल हो रहा था.. जैसे जैसे मै शहर के करीब पहुंच रहा था दिल की धड़कन और बेचेनिया बढ़ती जा रहीं थी... लेकिन कभी ऐसा भी लगता शायद वो मुझें एकबार देख कर सब कुछ छोड़ कर दौड़ी चली आए....

उसका घर मेन सिटी में ही था तंग गलियां निचे मार्किट और ऊपर मकानों की ना खत्म होने वाली कतारे उसी मार्किट के एक लॉज में मै ठहर गया था बमुश्किल पता चला की शेख अलीम यही रहते हैं बड़ा परिवार हैं जिसमें
उनके कुनवे की एक लड़की का नाम शाबा हैं जो पिछले कुछ सालों पहले भोपाल से यहां आकर अपने पुस्तैनी घर लौट आए हैं... जिसका सबसे बड़ा कारण सामने आया कि शाबा किसी हिन्दू लड़के के इश्क़ में फस गई थी और ये बात उसके घर बालों को पता चल चुकी थी काफ़ी समझाइश के बाद भी शाबा नहीं मानी तो उसके घर बालों को ये कदम उठाना पड़ा था.... मतलब वो कड़े पहरे में थी...

दो दिन गुज़र जाने के बाद भी शाबा नज़र नहीं आई थी मै उदास लॉज के कमरे में बैठा था तभी निचे पान की दूकान दार ने एक लड़के को भिजवा कर खबर भिजवाई थी के शाबा अभी अभी अपनी छोटी बहन के साथ मार्केट की और निकली हैं... मै फ़ौरन उस और भगा.... और आगे मार्केट में मैंने शाबा को पकड़ा... उसने मुझें देखा लेकिन बिलकुल अनजान की तरह रिएक्ट किया...

शाबा मै तुम से अभी इसी वक्त बात करना चाहता हूं...
आप कौन..?
देखो शाबा ilove you.... मै ज़ानिब...
देखो मिस्टर जान ना पहचान बेवजह गले पढ़ रहें हो... सलामती चाहते हो तो निकल जाइये आप यहां से... वरना अपनी शक्ल तक नहीं पहचान पाओगे...
इतना कह कर शाबा आगे को जाने के लिए हुई थी तो मैंने उसका हाँथ पकड़ लिया... उसने हाँथ छुड़ाने की ज़द्दो ज़हद की तो उसकी बहन ने चिल्लाना शरू कर दिया....
आंख खुली तो मैंने अपने आपको अस्पताल में पाया एक पुलिस वाला मेरे बाजू में बैठा मुझें देख रहा था... मानो मेरे जागने का इंतज़ार कर रहा हो...
कौन हेरे तू... कहा से आया.... और उसने सबलो की झड़ी लगा दी.... मै चुचाप था.... लेकिन वो बोले जा रहा था
तो तू ऐसे ना बोलेगा.. खैर तू थाने चल वहा तो तेरा बाप भी बोलेगा...
मै भोपाल का रहने वाला हूं...
तो यहां क्या छोरी को छेड़ने आया था क्या...
क्या आपको मै शक्ल से मवाली दीखता हूं...
नहीं बैसे लग तो तू ठीक ठाक घर से रहा हैं.. के बात हैं बता फिर तूने उस छोरी का हाँथ क्यों पकड़ लिया था रे बाबरे...?

में उसकी आंखो में देखता रहा.... क्योंकि ये मेरे प्यार में धोखे की हिम्मत थी....मैंने ते कर लिया था वजह पूरी जान कर ही जाऊँगा...

ओ... के घूर तू मने आँखों में..? साले इतना पिटा फिर भी तेरे तेवर कम ना हुए... हूं कोई तो बात हैं... अच्छा चल बता के बात हैं...? देख तू मुझें अपना बड़ा भाई समझ मै तेरे साथ हू...

मुझें किसी का साथ नहीं चाहिए... उससे प्यार मैंने किसी के दम पर नहीं किया था जो आज मै तुम्हारा सहारा लू...

ओ... तो क्या तू धर्मेन्दर हैं... जो इन से अकेला लड़ लेगा... और तू जनता हैं तूने मुस्लमान ज़नानी का भरे बाजार में हाँथ पकड़ लिया.... क्या तू दंगा कराएगा बाबरे
बात कितनी बिगड़ गई तेरे इस प्यार के चक्कर में...

सही में मुझें एहसास हुआ कि मझे शाबा के साथ ऐसा नहीं करना था लेकिन क्या करता....

अब क्या करु...?
तेरी खोपड़ी में बात देर से घुसती हैं... पहले तो यहां से चुपचाप निकल लो... देख तू ऐसा कर में बाथरूम के बहाने निकल रहा हू और तू चुप चाप बाहर निकल जा में तुझे तेरे लॉज पर मिलूंगा... और हा कोई चालाकी नहीं करना.... समझा बाकी मै सब सम्हाल लूंगा...