कमसिन - 30 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कमसिन - 30

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(30)

आज पूरे तीन महीने के बाद रवि के अलावा भी कोई उसके दिलो दिमाग पर छाया था अन्यथा उसे सिर्फ रवि की छवि, उसकी बातें, उसकी यादें ही किसी फिल्म की तरह चला करती थी। अगले दिन जब वह पिंकी के साथ पानी का पाइप जोड़ने के लिए छोटी सी पहाड़ी पार करके उस ओर जा रही थी कि तभी सामने आ रहे बकरियों और भेड़ों के झुंड से बचने के लिए एक तरफ को हुई थी, अचानक न जाने क्या हुआ कि राशि को अपनी आँखों के सामने अंधेरा छाता महसूस हुआ और वह चकरा कर गिरने लगी भेड़ो बकरियों द्वारा उसे रौंदे जाने का खौफ मन पे छाया और आगे का नहीं पता चला कि वह सड़क पर गिरी या नीचे खाई में।

क्योंकि वह मुश्किल से दो फुट चौड़ी पगडंडी थी एक तरफ को ऊँचे विशाल पहाड़ देवदार से भरे हुए। और दूसरी तरफ हजारों फीट गहरी खाईयाँ, अनेकों वृक्ष और झाड़ झंगाड़ से भरी हुई। कुछ समय बाद जब राशि को होश आया तो घर के उसे बैड पर लेटी हुई थी जिस पर वह पहली बार आकर लेटी थी।

ओ दीदी क्या हुआ था आपको? उसकी आँखें खुलती देखी पिंकी ने तो एकदम से घबराहट के साथ पूंछा था।

उसने कमरें में नजरें घुमाई, देखा सामने की कुर्सी पर उन बच्चियों के चाचा बैठे हैं ! साथ ही पिंकी भी बैठी है, जो उसको होश में आया देख, उसकी तरफ को झुकी हुई है।

घर में कोई और नहीं है? शायद वे सब तो बाग में होंगे। सेबों का सीजन है, कितने सारे तो काम है !

अरे! कुछ भी तो नहीं हुआ, देखें मैं बिल्कुल ठीक हूँ शायद कमजोरी की वजह से चक्कर आया होगा।

लेकिन आप तो उन भेड़ों और बकरियों को देखकर घबरा गई थी न।

उसे याद आया वो बकरियां और भेड़े उसी की तरफ बढ़ी चली आ रहीं थी और वह बेहोश होने लगी थी। आगे का कुछ भी याद नहीं आया।

पता है दीदी, अगर आज ये चाचा नहीं होते न, तो आप या तो भेड़ो, बकरियों के झुंड से कुचल जाती या फिर उस गहरी जंगली खाई में गिर जाती।

अच्छा तो आज इन्होंने उसे बचाया है, वह तो कितनी बार उस रास्ते पर पिंकी के साथ गई थी ! पानी का पाइप जोड़ने को तो सामने के पहाड़ के सामने खडे होकर हर बार रवि को आवाज लगाई थी, वो आवाज गूँजती हुई चारों दिशाओं में फैलती हुई उससे आकर टकराती है ! तो फिर उसे बचाने को रवि क्यों नहीं आया? क्या उसकी प्रेम पुकार जो दिल की अथाह गहराईयों से निकलती है। रवि तक नहीं पहुँचती है क्या? दर्द की तीखी लहर उसके दिल में उठी, ओह! ये विरह वेदना उसकी जान क्यों नहीं ले लेती, क्यों हरदम दर्द से तड़पाती रहती है।

भीतर मचते भयंकर दर्द के बादल से पीड़ित हो, उसका चेहरा आँसुओं से तर हो आया।

क्या हुआ दीदी? लगता है आपकी तबियत ठीक नहीं है?

नहीं पिंकी, कुछ नहीं हुआ मुझे, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, बस घबराहट ओर बेचैनी आज कुछ ज्यादा महसूस हो रही है। वैसे ये सब मेरे लिए आम बात ही है, तुम तो समझती ही हो।

हाँ ठीक कहा आपने, शायद आज कुछ अलग सा महसूस कर रही हैं आप।

अलग सा कहाँ वह तो हमेशा एक सा ही महसूस करती है उसे सिर्फ एक ही रट या धुन मन में लगी रहती है। और वह तब तक ऐसे ही रहेगी, जब तक उसका रवि लौट नहीं आयेगा और सबके सामने उसे अपना बनाकर ले नहीं जायेगा। दीदी अच्छा आप अब चाचा से बात करो ! मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ। राशि का न तो चाय पीने का मन था और न ही चाचा से बात करने का। उसे चाय के नाम से ही मन में अजीब सा मीठा मीठा महसूस हुआ और जोर से जी मिचलाया, इतनी ठंड में भी चेहरे पर पसीना उभर आया। ओह! ये क्या हो रहा है?

राशि को वो रात और इस रात का रोमांच अभी तक शरीर में महसूस होता था। वह रात कभी न भुलाई जाने वाली रात थी, जब उसे उसका प्यार मिल गया था। रवि का प्रेम और उसका समर्पण, दोनों मिलकर उस रात को एक यादगार रात बना गये थे। वह रात और उसका प्यार हमेशा अडिग सच बने रहेंगे। इन पहाड़ों के समान अडिग, कभी न हिलने वाले।

शायद उस रात का प्रेम उसकी कोख में भी अपना अधिकार बना चुका है। हाँ, शायद नही, बल्कि पूरे विश्वास के साथ वह समझ गई थी कि उसके अंग में उसके प्रेम रवि का अंश पूरे अधिकार के साथ अपना अस्तित्व बना चुका है। एक खुशी की लहर तन मन में उभरी, देखा रवि मैंने तुम्हें पा लिया है। और तुम। तुम मुझे पाकर भी शायद पा न सके। पिंकी चाय लेकर आ गई थी साथ में बिस्कुट भी थे।

अरे आप लोग एक दम चुप और शांत बैठे हो। आप दोनों ही एक से हो आप को कैसे चुप रह लिया जाता है मैं समझ ही नहीं पाती। मैं एक सेंकेण्ड भी चुप नहीं रह सकती।

राशि ने मन ही मन बुदबुदाया, एक दिन तुम भी चुप हो जाओगी। जब तुम्हारे दिल में प्यार उभर आयेगा। या कोई तुम्हारे दिल पर अपना अधिकार जमा लेगा। देख लेना पिंकी, फिर तुम भी इसी तरह चुप और शांत हो जाओगी ! तब तुम्हें मेरे शांत रहने का एहसास हो जायेगा। लेकिन हे ईश्वर मेरी पिंकी को कभी विरह वेदना मत देना। वह हमेशा खुश और यूँ ही चहकती रहे। उसका प्यार कभी उससे जुदा न हो ! अनायास उसके हाथ जुड़ गये थे और चेहरा कुछ ऊपर को उठ गया था।

क्या बात है दीदी, आज आप कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही है।

पिंकी आज मेरा चाय पीने का मन बिल्कुल भी नहीं है। राशि ने बात को पलटते हुए कहा।

लेकिन चाय तो तीन कप बन गई है।

आज तुम मेरे हिस्से की भी पी लो बहन।

दीदी आप हमेशा खाने पीने में नखरे करती हो। इसी कारण देखो कितनी कमजोर हो गई हो। ये बुझा बुझा चेहरा फीकी सी मुस्कुराहट और अपनी आँखें तो जरा शीशे में देखो। आपकी आँखें ही कमजोरी की चुगली कर रही है।

ले लीजिए थोड़ी सी चाय और बिस्कुट आपको अच्छा महसूस होगा और तबियत भी ठीक लगेगी। चाचा ने राशि से कहा।

कितनी शांत और ठहरी हुई, गंभीर आवाज है चाचा की। कुछ कुछ उसके रवि जैसी। राशि ने एक नजर उसकी तरफ उठाई और फिर चाय को देखा, गर्म चाय से भाप उठ रही थी। हालांकि उसका बिल्कुल मन नहीं था, फिर भी उसने चाय उठा ली और एक बिस्किट भी उठा लिया। बिस्किट को चाय में भिगोकर मुँह में डालने ही जा रही थी कि बड़ी तेज जी मिचलाया चाय में भींगा बिस्किट यूं ही चाय में गिर कर बिखर गया। राशि ने चाय का कप मेज पर रख दिया अगर चाय पी तो फौरन उल्टी आ जायेगी। उसने चाचा का मान रखते हुए चाय ले ली थी। फिर यह उबकाई या जी मिचलाने के कारण उससे चाय पीना असंभव ही लगा।

क्या हुआ आपको? पिंकी ने कुछ घबरा कर उससे पूछा।

अरे कुछ नहीं हुआ। लग रहा है डी हाइड्रेशन हो गया है। पिछले एक महीने से ऐसा ही महसूस हो रहा था।

अरे तो आपने बताया क्यों नहीं।

मुझे जरूरत नहीं लगी, मैंने सोचा कि ठीक हो जायेगा।

दीदी आप हद करती हैं ! पिंकी थोड़े गुस्से में लग रही थी, प्यार भरा गुस्सा।

अरे मेरी प्यारी बहन, गुस्सा क्यों करती है ?

चलो अब से मुँह भी नहीं छुपाऊँगी। मैंने सोचा कुछ भी बात नहीं है ये छोटी मोटी परेशानियाँ तो होती ही रहती है। चलो अब तुम नाराज मत हो। मैं ये चाय भी पी लूँगी, गर्म करके ले आ रही हूँ ठीक है न ? तुम यहाँ बैठो। पिंकी बिना कुछ बोले चुपचाप बैठी रही। चाय लेकर राशि बाहर आ गई ! धूप खिली हुई थी सामने के पहाड़ पर धूप धीरे धीरे चढ़ रही थी। फिर भी हवा मे शीतलता का अहसास हो रहा था परन्तु उसके मन में न जाने कैसी ये ज्वालामुखी सी धधकती रहती ही है, जो किसी भी शीतलता से शांत नहीं होती। ये भीतर की तपिश उसे कहीं जला कर खाक न कर दें।

रवि ने उसके तन मन पर पूरी तरह कब्जा कर लिया था और अब तो उसका अंश भी उसके भीतर समाहित हो गया था। रवि अपना अंश छोड़ गया था। रवि क्यों किया तुमने ऐसा। तुमने मुझे धोखा क्यों दिया? इतना छल? क्या मेरे प्यार की शक्ति भी तुम्हें मेरा नहीं बना सकी। लेकिन रवि तुमने मुझे पाकर भी बिसरा दिया, परन्तु मैंने तुम्हें खोकर भी पा लिया है। तुम हो मेरे साथ। अब तो जीवित हो उठे हो मेरी कोख में भी । उसने हल्के से अपने पेट को सहलाया। हाथ की चाय छलक के थोड़ी सी नीचे गिर गई थी। ओह! पहले चाय गरम कर लें नहीं तो फिर पिंकी नाराज हो जायेगी, कितनी प्यारी है, उसका कितना ख्याल रखती है। अपनी हर बात उसे बताती है। वह चाय लेकर किचन की तरफ बढ़ी ही थी कि तब तक पिंकी आ गई।

लाओ दीदी, मुझे दो चाय। आप ये वाली चाय नहीं पियेंगी और उसने राशि के हाथ से वह कप लेकर धुलने वाले गंदे बर्तनों के पास रख दिया।

क्यों, क्या हुआ था उस चाय को ?

आपको पता है न, पापा मना करते है ठन्डी चाय को दोबारा से गर्म करके पीने के लिए!

वह चुपचाप उसका मुंह ही देखती रहीं।

आप कमरे में जाइये। चाचा से बातें कीजिए। मैं आपके लिए दूसरी चाय बनाकर लाती हूँ, वो भी इलायची वाली ! पिंकी ने मुस्कुरा कर उससे कहा।

चलो ठीक है बाबा, तुम अपने आगे मेरी कब सुनोगी। वह वापस कमरे में आ गई। चाचा शांत बैठे थे। उसे आता देख अपनी सिगरेट की डिब्बी से सिगरेट निकाली और उसे होठों से लगाकर लाइटर से जला लिया फिर ढेर सारा धुआँ बाहर की तरफ फेंक दिया। पूरे कमरे में सिगरेट की महक और धुएं से भर गई। आज न जाने क्यों राशि को ये महक और धुआं अच्छा लगा था। अन्यथा रवि जब भी सिगरेट पीता था वह उसे हमेशा कहती थी, रवि तुम मेरे सामने सिगरेट पीना छोड़ दो, कभी भी मत पिया करो, मुझे इसके धुएं से बहुत एलर्जी होती है। और आज ये धुआँ भी अच्छा लग रहा था। जब हमारा अपना प्रिय हमसे दूर हो तो उससे जुडी कोई भी बात, चाहें वो अच्छी हो या गलत, मन को हर हाल में लुभाती ही है !

आप बैठ जाइये राशि। चाचा ने उससे कहा।

जी।

आप एक बात बताइये?

जी।

क्या आपको जी के अलावा कुछ और बोलना नहीं आता?

यह सुनकर राशि के चेहरे पर हल्की से मुस्कुराहट आ गई थी।

चलो आपकी हँसी तो आई ! आपकी स्माइल कितनी अच्छी है ! हँसते समय चेहरे पर पढने वाले ये गड्ढे आपकी खूबसूरती को बढ़ा देते हैं । पता नहीं क्यों, पर राशि को चाचा का इस तरह बात करना अच्छा नहीं लगा था। अभी कुछ देर पहले उसके मन में चाचा की जो शांत और गंभीर छवि बनी थी वह सिगरेट के धुएं की तरह धुआँ हो गई थी। ये मर्द लोगों की फितरत ही ऐसी होती है? कि कोई युवा लड़की को देख उनका ईमान डोल जाता है या फिर रंग ही बदल जाता है। लेकिन चाचा ने उसकी तरफ गंदी नजर से तो नहीं देखा फिर उसके मन में उनके प्रति गलत भावना क्यों आई ? बस उसकी स्माइल की हो तो तारीफ की शायद उनका नजरिया साफ हो और वह गलत समझ बैठी हो वैसे आजकल उसे हर मर्द के प्रति गलत भावना बनने लगी है। वह खुद से ही सवाल जवाब करने लगी !

पिंकी ट्रे में चाय के दो कप लेकर आ गई थी।

पिंकी तो अब मैं चलू? कोई जरूरत हो तो, फोन कर देना।

ठीक है चाचा जी ।

और वे चले गये। राशि ने न अभिवादन किया और न ही उनका शुक्रिया कहा। कम से कम थैंक्स तो कह ही सकती थी। पर उसके मन की गलत भावनाओं ने उसे हर किसी में कमियाँ नजर आने लगी थी और अच्छाईयाँ कहीं छुप जाती थी।

***