कमसिन - 23 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कमसिन - 23

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(23)

भाभी, सुरीली सी आवाज में बोली !

अंदर आ जा न राशी, कल्पना ने कमरे में लेटे लेटे ही कहा।

कितनी देर से वह इंतजार कर रही थी और अब आई तो बाहर से बुला रही है ये राशी भी अजीब है। वैसे भी उसके आने में थोडी सी भी देर हो जाये तो कल्पना का मन उदास हो जाता है और आज आने में इतनी देर कर दी । कमरे में आ गयी और उसके पास बैड पर बैठ गयी।

क्या सोंच रही हो भाभी। आते ही उसने पूछा

अच्छा पहले यह बता कि इतनी देर कैसे हो गयी ? दूसरी यह कि तू आज बाहर से क्यों आवाज लगा रही थी वैसे तो सीधे कमरे में ही आती थी । वह पूँछ बैठी

भाभी मुझे लगा, आज शायद भइया घर मे हैं। राशी आंखों में शरारत भरके मुस्काराती हुई बोली !

बताऊँ तुझे, आज भइया हैं, वैसे तो भइया के सामने भी अन्दर आने से नहीं हिचकिचाती ! फिर वह उस दिन को याद कर शरमा गई जब कमरे को बन्द किये बिना ही रोहित ने उसे बाहों मे भर कर चूम लिया थाए तभी कमरें में राशी घुस आई थी और कल्पना उस किशोरी के सामने शर्म से पानी-पानी हो गई थी, राशी भी शरमा के मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर आ गई थी ! फिर उस दिन के बाद या तो वह बाहर आकर बैठ जाती या फिर देखती कि भइया तो नहीं हैं। भाभी अकेली ही हैं तो सीधे कमरे में घुस जाती थी !

कल्पना ने राशी से पूँछा, बताया नहीं राशी कि आज तुमको घर तक आने में देर कैसे हो गयी !

अरे हाँ भाभी आपको बताना ही भूल गयी साइकिल की चैन टूट गई थी न ! तो साइकिल को हाथ से खींचकर पैदल चलती हुई घर आई हूँ ! रास्ते में कोई साइकिल ठीक करने वाला ही नहीं मिला इसलिए देर हो गई !

तू खाना तो खा कर आई है न !

हाँ भाभी आज मम्मी ने राजमा चावल बनाये थे और आपको तो पता ही है कि राजमा चावल के आगे तो मेरे लिए सब पकवान फेल हंै । समझ गई कि यह जरूर मनगडंत कहानी सुना रही है क्योंकि बबिता आंटी जब सुबह आई थी तब कह रही थी आज पालक पनीर बनाने जा रही हैं । अभी जाकर पालक पीसनी है और यह राजमा बता रही है। वह मन ही मन सोच रही थी, तभी राशी बोल पड़ी, भाभी मै अब जा रही हूँ, आज बहुत सारे मैथ के सम करने हैं, अगर नहीं किये तो कल सर क्लास में खड़ा कर देंगे ।

उसने सहमति में सिर हिला दिया था । उसके जाने के बाद वह कमरे आ गई ओर सोने की कोशिश करने लगी किन्तु नींद उड़ चुकी थी ! मन केवल राशी की ओर ही लगा था, आज कुछ बदली बदली सी लग रही थी ! जरूर कुछ है अभी 10 पास कर 11 में आई है ! १६ साल की लगभग होगी। यह उम्र ही कुछ ऐसी होती है अल्हड़, लापरवाह, मस्त वह भी तो इस दौर से गुजर चुकी थी, अभी वह स्वयं भी तो 21 की हुई है । तो उसे राशी की मनोदशा भाँपने में जरा देर ना लगी थी ! उस दिन शाम को भी ना आई थी ! घर में सब मस्त थे किसी में ध्यान ना दिया किन्तु कल्पना रह रह कर यही सोच बैठती, आखिर सासु माँ के पास जाकर बोली माँ जी, आज राशी आई नहीं वैसे तो दिन भर यहाँ ही रहती थी !

दोपहर को आई तो थी ! अब छत पर होगी या पढ़ रही होगी ! पढ़ाई भी तो ज्यादा हो गई !

पर माँ, वह कहते - कहते रूक गई उसे चैन नहीं आ रहा था !

माँ बाबू जी के पास बैठकर चाय पीने लगी! घर में कुछ खास काम नहीं था ! सारा काम कमली ही कर जाती थी ! उसके जाने के बाद बस उसे तो गर्म गर्म रोटियाँ ही सेकनी होती है ! चाय अधिकतर माँ बना लेती है ! वह तो चाय पीती नहीं बाबू जी जब से रिटायर हुए हैं! उन्हें हर दूसरे घन्टे चाय की तलब लगती थी ! माँ भी साथ देने को पी लेती!

राजीव भी है नहीं ! वे काफी पीते हैं वो भी बस सुबह सुबह बेड पर ही ! शाम को तो आफिस से आने में ही उन्हें 7 बज जाते हैं ! तब उन्हे आकर कुछ हल्का फुल्का खाने को चाहिए होता था! उसे वह उसी समय तैयार कर देती ! कभी चिप्स तल लेती, या कुछ और !

दो बहनों के बीच राजीब उसके पति, अकेले भाई, दोनों बहनों की शादी हो चुकी फिर राजीव की हुई। अभी कल्पना को इस घर में आये आठ महीने ही हुए थे ! पड़ोस में रहने वाली राशी ने इस बीच उसे खूब मान सम्मान दिया था। और उसने उसे खूब प्यार-दुलार ! अगर कभी कभी वो मायके जाती तब राशी उससे लिपट कर रो पड़ती थी। “ भाभी, जल्दी आ जाना”

वह अकेली सन्तान थी अपने माँ बाप की, बहुत ही प्यारी भी और उसकी बातें उससे भी प्यारी और अच्छी ! उसके दिन तो राशी के सहारे ही कटते थे और रात पता ही नहीं चलती कब निकल जाती ! राजीव की बाहों में प्यार भरी बातों के बीच !

शाम के छः बज रहे थे। अभी राजीव को आफिस से आने में एक घन्टा था, माँ बापू जी अपने कमरे में, वह अकेली क्या करे, वैसे तो राशी उसके साथ होती थी, उससे रहा नहीं गया और वह छत पर पहुँच गई उसकी और राशी की छत आपस में जुड़ी हुई थी । देखा वो फोल्डिंग बिछाकर बैठी हुई है और सामने ढेर सारी किताबें कापियाँ और कानों में मोबाइल का इयर फोन, अच्छा तो यहाँ है यह, वह बेकार में परेशान हो रही थी। सचमुच अब बहुत पढ़ाई करनी पड़ रही थी जुलाई का महीना था स्कूल भी अभी खुले थे ! जून की छुट्टियाँ थी तो राशी के पास समय था ! अब स्कूल, कोचिंग व होमवर्क सब करना था आखिर उसे इंजीनियर जो बनना है ! हाई स्कूल के एम्जाम में उसने उसकी मदद करा दी थी पढ़ाई में लेकिन उसे मैथ्स में बिल्कुल भी इन्ट्रस्ट नहीं था ! ना कभी उसका विषय रहा था वह तो कामर्स की स्टूडेन्ट रही थी ! यह सब सोच ही रही थी कि राशी ने उसे आवाज दी “भाभी” । कल्पना ने देखा इयर फोन निकाल कर उसके पास आ रही है!

राशी तुम पढ़ो, आज तुम नहीं आई तो देखने आ गई !

भाभी, यह मैथ के सम ही कर रही थी आपको बताया तो था!

हाँ याद नहीं रहा !

कल सर को दिखाने है !

ठीक है ! तुम करो!

आज कितना खाली खाली लग रहा था ! वह छत पर खड़ी होकर बाहर की ओर झांकने लगी ! उसका घर सड़क के किनारे ही बना था ! रास्ते पर कार बाइक चल रही थी ! सड़क पर सब चल रहे थे! सबको न जाने कहाँ जाने की जल्दी थी ! घर के सामने की तरफ सड़क तो पीछे की तरफ घर बने हुए थे ! वहाँ पर एक नीम का पेड़ भी था ! जिसकी शाखायें उसकी छत को छूती थी ! वह गई और नीम की कुछ पत्तियाँ तोड़ ली ! बाबू जी को किसी तरह सुबह सुबह दो चार पत्तियाँ खिलवा देगी ! उनकी शुगर बहुत बढ़ रही थी ! वह पत्तियँा लेकर नीचे जाने लगी !

तभी राशी ने कहा रूको भाभी ! वह रूक गई! देखा राशी अपनी छत से कूदकर उसकी तरफ ही आ रही है ! दोनों घरों की छत के बीच मे थोड़ी सी बाऊँण्ड्री बनी है ! जिस पर चढ़कर इधर उधर जा सकते हैं !

भाभी, कल मैं पापा के साथ स्कूल जाऊँगी !

क्यों ?

क्योंकि मेरी साईकिल खराब पड़ी है ! पापा स्कूटर से छोंड़ आयेगें !

फिर आओगी कैसे?

रिक्शा कर लूगीं !

हाँ कर लेना !

काफी दूर पड़ता होगा स्कूल !

ज्यादा तो नही फिर भी 1 ड़ेढ कि0 मी0 तो होगा ही ।

अच्छा!

भाभी आज स्कूल में बहुत मजे आये ! हम सब मस्ती कर रहे थे ! उसके बाद कैसे रवि सर ने पूरी क्लास को सजा दे दी थी !

क्यों क्या हुआ था?

ऐसा कुछ खास नहीं ! सर सम समझा रहे थे । बच्चे बातें कर रहे थे खास कर व्यायज लेकिन पनिशमेंट पूरे क्लास को मिली फिर पूरे पीरियड खड़ा रखा सबको ! सक्षम को पूरे पीरियड बाहर ही रहना पड़ा।

तुम लोग ध्यान से समझा करो । मैथ तो खासकर !

भाभी आप तो जानती ही हो ! कि को एड मे बच्चे बातें ज्यादा करते हैं और पढ़ाई कम !

लेकिन तुम मन लगा कर पढ़ाई करो ! तुम्हें तो इंजीनियर बनना है !

सो तो है ही । सर यह नहीं देखते कौन बोल रहा है सब खड़े हो जाओ ।

कहकर वह जोर से हॅस दी ।

सक्षम कैसा है पढ़ने में।

ठीक है पर बातें बहुत करता है।

कितने गल्र्स और व्यायज है तुम्हारे क्लास मे ?

ंपूरे 65 बच्चे हैं 25 गल्र्स बाकी 40 व्यायज हैं ।

राशी शहर के नामी कान्वेट में पढ़ती थी, शहर के सब अच्छी फैमिली और आफिसर्स के बच्चे वही पढते हैं । जैसे की राशी बताती थी तभी नीचे से राजीव की आवाज सुन वह राशी से बोली, जाओ तुम पढ़ों, मैं नीचे जा रही हूँ, राजीव आ गये हैं !

वह नीचे आ गई, राशी अपनी छत पर चली गई, राजीव अभी अभी ही आये थे । वह उनको पानी देकर कुछ हल्का फुल्का नाश्ता बनाने लगी क्योंकि वे खाना तो रात को 11 बजे ही खाते हैं । माँ बाबू जी नौ बजे तक खा पीकर सो जाते थे वे लोग इस समय नाश्ता नहीं करते थे । रिया ने थोड़ी सी मैकरोनी बना ली थी । राजीव, उसे दोनों को ही पसंद थी !

सुबह राशी स्कूल जाने से पहले आई तो आते ही बोली, “भाभी” देखो मेरे बाल आज शाइन कर रहे हैं न ?

हाँ क्यों नहीं बाल भी बहुत अच्छे और तुम भी, सब कुछ साईन कर रहा है !

यह सुनकर वह शरमा गई और फिर मुस्कुरा कर बोली तो अब मैं जाऊँ देर हो रही है।

“ठीक है अब तुम जाओ बाद में आना बाय” राशी तो चली गई किन्तु पीछे छोड़ गयी अनुत्तरित कई प्रश्न जैसे अपने बारे में पूछना फिर शरमा कर मुस्कुराना आज वह कितनी प्यारी लग रही थी । मुस्कारते हुए उसके गालों के डिंपल तो और भी गहरे हो गये लगते थे, इस समय वह सिर्फ राशी के बारे में सोच रही थी ।

रिया। राजीव की आवाज से वह चोंक गई ।

जी अभी आ रही हूँ। वह कमरे में आई तो देख राजीव आँखे बन्द करके लेटे है।

“क्या चाहिए राजीव” क्यों भाई आज काफी पिलाने का इरादा नहीं हैं ?

यह सुन वह दौड़ी रसोई की तरफ, वह तो काफी बनाने के लिए दूध गैस पर रख कर आई थी, फिर राशी आ गई तो उससे बातें करने में सब भूल गई । उसने देखा गैस बन्द है तो जान में जान आई । अन्यथा माँ दूध जलने पर और उबलने पर बहुत नाराज होती थी लेकिन दूध तो उसने गैस जलाकर उबलने को रखा था किसने बन्द किया ।

तभी माँ जी आ गई बोली बेटा तुम काॅफी बना लो, मैं बाबू जी को चाय बना कर दे दूँगीं।

मैं बना दूँगी माँ जी।

नहीं, तुम काफी लेकर जाओ, बाबू जी नहा रहे हैं, तब तक मैं बना लँूगी ।

वह काफी लेकर आ आई, माँ ने कुछ नहीं कहा, मतलब गैस उन्होने तो बन्द नहीं की फिर किसने की, कमली भी नहीं थी, शायद उसने स्वयं ही बन्द करके बाहर निकली होगी, पता नहीं, कुछ पता नहीं । ज्यादा ना सोच वह मुस्कुराती हुई काफी लेकर कमरे में पहुँची राजीव चैन की नींद सो चुके थे । उसे देख कल्पना मुस्कुरा उठी और सोचने लगी यह पति लोग कितनी जल्दी सो जाते हैं अभी तो काफी माँग रहे थे ।

उसने पैर का अँगूठा पकड़कर हिलाते हुए कहा, ओ राजीव, उठाना नहीं है क्या ? काफी ठन्डी हो जायेगी ।

राजीव ने आंखे खोलते हुए कहा, कल्पना मै सोया कब था, तुम्हारे ख्वाबों मे खोया हुआ था !

अच्छा तो अब मसखरी जरूर कोई राज है।

राज कहाँ बचे, सब तो तुम्हारे आँचल में सोंप दिये । कहते हुए राजीव रोमांटिक मूड़ में आ चूके थे कल्पना की आंखों में झांकते हुए बोले, तुम्हारी आंखे कितनी सुन्दर है और चेहरा ओस में नहाया हुआ एकदम फ्रेश !

वो अपनी खुशी को दबाते हुए बोली, चलिए उठिये जनाब, आाफिस जाना है, आठ बज चुके हैं । वह मन ही मन अपनी सहेली की बात सोचने लगी, जो उसने उससे विदा होते समय कही थी यह पति लोग एक साल तो ऐसे न्यिोछावर होते हैं कि पूँछो मत हर बात में बस तारीफ ही तारीफ ! सही ही कहा था उसने ! बस यह सोच कर वह मन ही मन मुस्कुरा दी थी, हँसी से उसका चेहरा निखर आया था ! अभी उसकी शादी को मात्र छः माह ही हुए थे, बहुत खुशियों मिल रही थी ! राजीव बेइन्तहा प्यार करते हैं, सासु माँ ससुर जी भी ठीक ही है, वे दोनों अपने में ही मस्त रहते हैं, ससुर जी अभी-अभी रिटायर हुए हैं इस लिए आराम के मूड में रहते हैं तो सासु माँ उनकी सेवा का सुख पाने में ! दोनों सुबह टहलने चले जाते फिर चाय नाश्ते के बाद ससुर जी पेपर लेकर बैठ जाते और सासु माँ कुछ देर उससे बतियाती, दुनियाँ की, रिश्तेदारों की बातें बताती, ऊँच नीच समझाती फिर दोपहर का खाना सब साथ ही खाते राजीव को छोंड़कर क्योंकि वह आफिस में होते । उसके बाद वे दोनों अपने कमरे आराम करते । तब वह भी आराम कर लेती, राजीव सुबह निकलते तो रात को 7 बजे ही आते थे । इस बीच कल्पना बिल्कुल भी अकेलापन नहीं महसूस करती क्योंकि उसका साथ देने आ जाती थी राशी ! जो उसे छोड़ती ही नहीं बराबर आगे पीछे घूमती बोलती रहती । भाभी, आज ऐसे हुआ, वैसे हुआ, ना जाने कहाँ कहाँ की दुनियाँ भर की बातें । वह उसके प्यारे व अपनापन भरे स्वभाव के कारण बहुत अच्छा एनरजेटिक महसूस करती थी लेकिन दो दिन से उसका साथ ना पाकर वह उदास थी।

तभी राजीब ने उससे कहा, क्या बात माँ की याद आ गई या मायके की !

नहीं, ऐसी बात नहीं है।

तो चलो, कल चले, दो दिन की छुट्टियाँ है।

वो कैसे मना करती, या उनको रोकती, वह तो खुश हो उठी और राजीव से बोली आप बेहद अच्छे हो, इस दुनियां के सबसे अच्छे पति । कहकर वो उसकी बाहों में समाती चली गई।

“बाहर आकर राजीव ने माँ से कहा, माँ .....।

हाँ क्या बात है बेटा, बोलो ?

माँ मेरी दो दिन की छुट्टी हैं, आप कहो तो मैं कल्पना का उसके मायके घुमा लाऊँ ?

हाँ हाँ क्यों नहीं, बहुत दिन से गई भी नहीं हैं उसका मन खुश हो जायेगा । वे स्नहिल स्वर में बोली।

कल्पना खुश हो उठी, सासु माँ कितनी अच्छी हैं, कभी भी मना नहीं करती, पता नहीं और बहुऐं अपनी सास को ही बुरा भला क्यों कहती रहती हैं ? वे भी तो माँ ही होती हैं, पति की माँ, ननद की माँ, वे भी कभी बहू बनकर ही आई होंगी, क्यों नहीं उनकी भावनाओं को समझा जाता। उन्हें प्यार से एक बार गले लगाकर देखो बिल्कुल माँ जैसे फीलिग ही आयेगी। ननद दोनों ही बड़ी थी, शादी हो गई थी, दोनों घर गृहस्थी बच्चे परिवार में मगन, उसकी शादी में ही आई थी । तब से से एक बार भी नहीं आई । उस समय वह नई नई थी, कुछ दिन ननदें साथ रही फिर वे दोनों भी अपने अपने घर चली गई, माँ जैसी ही वात्सल्यमयी बेहद प्यार से बात करती थी उनके जाने के बाद घर सूना सूना सा हो गया था अन्य रिश्तेदार तो पहले ही चले गये थे । अब वे दोनों भी गयी तो घर एकदम शान्त सा हो गया बच्चों की शैतनियों व उन सबको खिलखिलाहट से घर गुजायमान रहता था पर बच्चों की पढ़ाई व अपने घर बार को देखने के लिए जाना ही था ।

जाते जाते वे बोली, बेटा, अब यह घर तुम्हारा ही है माँ बाबू जी का ध्यान रखना, अब तुम आ गयी हो तो सबको संभाल लेना, वैसे तुम्हारे आ जाने से मन कुछ निश्चित हो गया है । पहले फिक्र लगी रहती थी, हम लोगों का तो जल्दी आना हो नहीं पता है बच्चों की छुट्टियां होगी तभी आ पायेगें कहकर उसके गले लगकर सिसक पड़ी थीं । माँ से गले लगकर उतना नहीं रोई होगी, जितना वे उसके साथ रो ली ।

उनके जाने के बाद राशी आ जाती, उतनी देर चहल पहल रहती थी, अब वह भी मस्त हो गयी थी, अपनी पढ़ाई में अपनी दुनिया में!

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