Kamsin - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

कमसिन - 21

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(21)

सुबह के सात बज रहे थे दरवाजे पर नाॅक हुई, रवि ने जाकर देखा बाहर वेटर एक ट्रे में चाय स्नैक्स व एक बुके लेकर आया था।

गुड मार्निंग, सर। यह आपके लिए !

अरे वाह! वैरी गुड मार्निंग।

आज हमारे होटल का फाउन्डेशन डे है और उसी की वजह से सुबह सुबह वैलकम करने आये है। हमारे होटल में आज के दिन आप सबके लिए सब कुछ फ्री।

फ्री में।

हाँ हर साल हम अपने मेहमानों को फाउन्डेशन डे पर वैलकम करते हैं। वह ट्रे टेबल पर रखकर चला गया।

सबकुछ फ्री !

अरे तू इतनी फिक्र क्यों करता है, चलो आज के दिन यही रूक जाते है। थोड़ा और घूमना फिरना हो जायेगा। हैं न ठीक कह रही हूँ।

हाॅ हाॅ भई, आप तो हमेशा बिल्कुल ठीक ही कहती है।

क्यों राशि तुम्हारा क्या ख्याल है? दीदी ने पूछा !

मेरा वहीं ख्याल है जो आप दोनों का है। राशि तो यही चाह रही है, उसकी तो जान बच गई थी, वरना लग रहा था दूर जाते ही निकल जायेगी। अंधा क्या चाहे, दो आँखें ! उसे तो आँखें ही मिल गईं लगती थी। एक दिन ही सही, उसे रवि का साथ तो मिलेगा ! उसने अपनी गर्दन हिलाई, फिर सोचा रवि के बिना जीवन कहाँ रह जायेगा ? वो तो निर्जीव मशीन की तरह हो जायेगा और दूर जाना तो अभी नियति है। उसे रवि के कहे सारे शब्द याद आने लगे। उसने राशि को कितने प्रेम पत्र लिखे थे वे सब सहेज कर उसने अपनी अमानत बना लिया था। रवि ने एक बार ये कहा था कि शब्द ब्रह्म होते हैं और ब्रह्म अडिग है एक बार जो कह दिया वहीं सत्य होता है उसके आगे सब कुछ झूठ व निरर्थक।

राशि ने टेबल पर रखी चाय को केटली से कपों में लौट कर, एक कप रवि को व एक कप दीदी को दे दी !

वाह राशि, तुममें तो बहुत सेवा भाव है, ये कहकर वे उससे बोली तुम स्वयं अपने लिए भी ले लो,!

जी ले लूँगी। राशि का अभी चाय पीने का मन कर रहा था और चाय आ गई वैसे जो दिल में होता है वो चीज अक्सर सच हो जाती है। जुबां से निकली बात भी सच होती है तभी तो लोगों को कहना है कि जुबां पर सरस्वती का निवास होता है। इसलिए वही शब्द बोलो जो तुम अपने जीवन में चाहते हो, सकारात्मक होना जीवन के लिए बहुत जरूरी है अन्यथा, जीवन बहुत कठिन हो जायेगा।

रवि, जब आज रूक ही रहे है तो क्यों न हम लोग नाश्ते के बाद घूम आये, शाम तक लौट आयेंगे।

चलो ठीक है, अभी सात बजा है, दीदी इस्मत चुग ताई की श्रेष्ठ कहानियों की किताब में उलझी हुई थी। कमाल की लेखिका थी ये इस्मत चुग ताई भी। बताओ आज से इतने वर्ष पूर्व लिहाफ जैसी कहानी रच गई।

हा बहुत बेहतरीन लेखिका थी वे।

राशि चुपचाप उन दोनों को सुन रही थी। बड़ी अलग अलग सी पड़ गई थी ! उसे इतना अजनबीपन का अहसास न जानें क्यों हो रहा था, रवि तो उसके अपने हैं ! उन दोनों ने गंधर्व विवाह किया है जल्द ही घर वालों की मर्जी से सात फेरे भी ले लेंगे फिर इतनी दूरी का एहसास क्यों करा रहे है? क्या दीदी की वजह से या फिर उनके मन में कुछ और है। उसका दिमाग चकरा गया परन्तु, इस कुछ का उसे कोई जवाब नहीं मिला। राशि ने भी अपना मोबाइल मे नैट आन कर लिया पर उसमें सिग्नल ही नहीं आ रहे थे और बार-बार कनेक्शन फेल हो रहा था। रवि से पूछती हूँ कि उनके लैपटाॅप में कैसे सिग्नल आ रहे हैं।

अपने लैपटाप पर नजरें गड़ाये रवि खुद से बुदबुदा उठे, ये नैट भी बड़ा परेशान कर्ता है !

रवि क्या यहाँ पर वाईफाई है, मीन्स ये होटल पूरा वाईफाई है कहीं भी चला सको?

हाँ भाई ऐसा ही है। रवि के मुँह से निकले एक शब्द पर भी वो नत मस्तक हो जाती है हजारों फूल अपनी अंजुरियों से भर भर के उन शब्दों पर अर्पित करने को जी मचल उठता है।

अब इसका पासवर्ड भी बता दी जिए? राशि ने अपने मो. में वाईफाई आन करते हुए पूंछा। रवि ने बिना कुछ कहे, उसके हाथ से मोबाइल लेकर उसमें पासवर्ड डालकर उसे वापस कर दिया। ओह! ये रवि भी न, क्या कहूँ। बहुत परेशान करते हें तोड़ते जा रहे है उसे कमजोर बना रहे है लेकिन वो क्यों कमजोर पड़ रही है प्यार कभी भी इंसान को कमजोर नहीं बल्कि मजबूत बनाता है। चाहे लाख नाराजगी, बेरूखी दिखायें लेकिन राशि अपने प्यार को कभी झुकने नहीं देगी। उसने स्वार्थ वश प्यार नहीं किया जो क्षणिक हो और टूट कर बिखर जाये। वो तो एक फल युक्त हरी भरी डाली है जो हमेशा झुकी रहती है यही उसके गुण है। टूट कर बिखरने से पहले ही अपने प्रेम को सहेज लेगी ये उसका विश्वास है उसके जीवन का सबसे बड़ा अडिग विश्वास।

राशि ने अपने मोबाइल पर इस्मत चुगताई की कहानियाँ सर्च करके लिहाफ कहानी पर क्लिक कर दिया। जबसे सुना था तभी से इस कहानी को पढने का दिल कर रहा था ! अच्छा ये समलैंगिक विषय पर बनाई है। क्या उस जमाने में भी लोग समलैंगिक हुआ करते थे। जरूर ये कुंठा ही होती है जब शारीरिक जरूरतें पति से या जीवन साथी से पूरी नहीं हो पाती तो उपलब्ध व्यक्ति से अपनी कुंठा को दूर करने का प्रयास करता है।

चलो राशि नाश्ता कर ले। दीदी ने उससे कहा !

वो अभी तक कहानी पढ़ने में ही लगी थी।

ठीक है दीदी चलती हूँ ! कहानी सेव कर ली !

वे तीनों नीचे डाइनिंग एरिया में आ गये थे। वहाँ पर नाश्ते में आज दूध कोर्नफलैक के अलावा। पोहा, उपमा, इटली सांवर, छोले भटूरे, मीठा दलिया और खीर थी।

आज तो काफी कुछ है नाश्ते में। दीदी इधर जलेबी फाफड़ा भी है, जेठा भाई का पसंदीदा। आप थोड़ा सा ले लिजिए।

रहने दे, इतना तो पहले ही ले लिया है, तुम ले लो उसमें से ही थोड़ा बहुत मैं भी चख लूंगी। और जेठा भाई क्या सब टीवी वाले हैं !

हाँ वही ! रवि मुस्कुराये !

राशि अपनी प्लेट में थोड़ा सा उपमा और सांभर ले आई साथ ही एक फींकी चाय का आर्डर भी किया।

ये कौन सा कांबिनेशन है भई, उपमा के साथ सांभर ! रवि ने उसे टोंका? रवि को उसके लिए ये कहना उसे बिल्कुल भी नहीं हड़ा था। वो तो स्वयं चाहती कि रवि बात बात में उसे टोंके, बात करें। राशि ने मुस्कुरा कर बात को टाल दिया था। पेट भर के खा लेना वैसे भी पूरा दिन घूमने फिरने में निकल जायेगा।

जी ठीक है। राशि ने कहा और चम्मच से सांभर पीने लगी।

चाय की ट्रे रखकर बेटर चला गया। राशि को न जाने क्यों आज चाय पीने की इतनी तलब हो रही थी। सुंदर और साफ तरीके से रखी हुई देखने में ही अच्छी लग रही थी शायद इसलिए भी ! अभी बहुत गरम थी फिर भी गरम गरम ही उठाकर पीने लगी जबकि ठंडी चाय पीना या फिर ना पीना ही उसकी आदत में शुमार था। शायद मन में कुछ जम सा रहा था उसे पिघलाने के लिए। नाश्ते के बाद जब वे लोग बाहर लाबी में आकर बैठ गये तो वहाँ सोफे पर पहले से बैठे राशिद पर उसकी नजर चली गई। एकदम लाल सुर्ख आँखें व शार्ट्स पहने। वह उसे देखकर थोड़ा सहम सी गयी और उसके बारे में वह रवि से कुछ कहना चाहती थी कि दीदी वहीं सोफे पर आकर बैठ गई। रवि रिशेप्शन के काउंटर पर गये और माउथ फ्रेशनर लेकर आ गये। थोड़ा सा माउथ फ्रेशनर दीदी को दिया और बाकि का वे स्वयं खा गये और अपने हाथों को जेब से रूमाल निकाल कर पोंछ लिया। रवि की पतली पतली मूछों के बीच फँसे उसे छोटे से रंगीन सौंफ के दाने को देखकर उसके चेहरे पर हँसी का भाव आया परन्तु वह किसी भी हाल में हँस न सकी। आखिर क्या वजह है रवि की बेरूखी की। जो पूरी तरह से अपना है, उससे अजनबियत का एहसास किस प्रकार सहा जाये, उसके लिए क्या इस दिल से अपने प्यार को मिटा दिया जाये, नहीं, ये नही मिट सकता। रवि मुस्कुराते हुए अपनी बातचीत में व्यस्त थे वो भी रवि के हँसते चेहरे को देखकर खुशी का अनुभव कर रही थी। आज उसे यह बात पूर्णतया सच लगी थी कि आप जिस शख्स को प्यार करते हो, उसके लिए अपनी हर खुशी कुर्बान कर दी जाती है। बशर्ते वह शख्स प्यार करने के लायक हो।

अच्छा चलो दीदी तुम्हें घुमा लाता हूँ उसने अपनी जेब से कार की चाबी निकालते हुए कहा। दीदी और वे दोनों बाहर निकल गये राशि भी पीछे-पीछे आ गई थी।

राशि तुम यहीं रूकों ये लो कमरे की चाबी। राशि चौंक गई थी !

ये रवि नहीं हो सकते ! वे उससे ऐसा नहीं कहते ! एकदम से इतना बदलाव, रूखापन आखिर कैसे? वो चाबी लेकर सीधे उपर कमरे में कमरे में चली आई, अगर बाहर रूकती तो राशिद से जरूर सामना होता और फिर उसके अनेको सवालों के जवाब देने पड़ते। कमरे में आते ही वह दौडकर बैड पर उल्टे मुँह गिर पड़ी उसने अपने आसुँओं भरे चेहरे को तकिये के बीच में छुपा लिया। पूरा तकिया गीला-गीला सा हो गया। क्या यही किस्मत है एक औरत की। सदियाँ गुजर गई हालात बदल गये समय परिस्थितियाँ सब कुछ बदला परन्तु एक औरत का समय कभी नहीं बदला, वह महज एक जिस्म भर ही रही, उसके मन तक कोई नहीं पहुँचा। न ही किसी ने पहुँचने की कोशिश ही की। इस समय वो बेहद तन्हा थी, उसे किसी सहारे की सख्त जरूरत थी, जो उसे समझ सके, उसकी भावनाओं को समझ सके और मानसिक सबल दे सके। इसी तरह रोते-रोते न जाने कब उसकी आँख लग गई करीब दो तीन घंटे सोने के बाद जब आँख खुली तो एक बज रहा था। तकिया पूरा गीला हो गया था। उसकी आँखों से बहे आसुओं के साथ काजल भी बह आया था और और तकिये के सफेद रंग को काला कर दिया था। उसने सोंचा होटल के किसी कर्मचारी को बुलाकर इस तकिये का कवर बदलवा दें अन्यथा दीदी, रवि न जाने क्या सोचेंगे। उसने रूम में रखे इण्टरकाम फोन से फोन मिलाकर रिशेप्शन पर बता दिया कि कृप्या इस रूम नं. में तकिये का कवर बदलवा दो। कुछ ही देर बाद कर्मचारी ने दरवाजे पर नाॅक की !

आ जाओ ! राशि के कहने पर वो अंदर आया और सुंदर से फूलों वाले नीले रंग के तकिये के कवर तकियों पर चढ़ाकर वो वापस चला गया। एक बज रहा था तीन बजे तक लंच चलेगा। परन्तु उसका तो बिल्कुल भी खाने का मन नहीं, रोते रोते सिर से बहुत तेज दर्द होने लगा था। राशि ने कम्बल उठाया और अपने सिर को कसकर लपेट लिया ताकि दर्द में कुछ राहत मिले। परन्तु जो आग सीने मे जल रही थी उसे कैसे शांति किया जाये किस तरह मन में उठते ज्वार भाटे को दबाया जाये। आँसू बदस्तूर बह रहे थे जिन्हें किसी भी हाल में चैन नहीं था। सोंच में डूबते उतराते यूँ ही दिन निकल गया, शाम हो आई थी। इस बीच वह एक बार भी उठकर न बाथरूम गई, न ही परदा हटाकर बाहर झांका था।

जब मन में अंधेरा इस कदर व्याप्त हो जाये तो फिर कैसे उजाला देखने को मन करे। उसने कमरे की लाइट भी नहीं जलाई थी। हल्का हल्का बुखार सा महसूस हो रहा था। जो अपना था वो अब कहीं, नजर नहीं आ रहा था। कमरे के दरवाजे पर नाॅक हुई, राशि ने कमरे की लाइट आॅन करके दरवाजा खोला तो बाहर रवि और दीदी खड़े थें रवि के आने भर से उसके मन में एक आशा की किरण जाग गई। समय मिलते ही वो सारी बातें रवि से कर लेगी। उसने मुस्कुरा कर उन लोगों की तरफ देखा, दीदी भी मुस्कुराई परन्तु रवि ने नजरें ही नहीं मिलाई बिना उसकी तरफ देखें नजरें दूसरी तरफ फिरा ली।

क्या किया पूरा दिन? दीदी ने पूछा !

कुछ नहीं, बस सोती ही रहीं, बुखार सा महसूस हो रहा था।

अरे कोई दवाई ले लो। उन्होंने फार्मेलटी निभाते हुए कहा।

जबकि रवि ने सुनकर भी अनसुना कर दिया। कोई तो बात है रवि के मन में? उसके दिल में फिर दर्द की एक तेज हूक सी उठी। उसने उससे न खाने के बारे में पूछा, न ही किसी अन्य बात पर कोई बात की ! जबकि वो चाह रही थी कि रवि एक बार तो उससे प्यार से बात करे उसकी तरफ प्यार से देखे और थोड़ी सी केयर करे ! !

रात्रि नौ, बजे का समय था। होटल के हाल में सभी लोग इकट्ठा हो गये थे, हल्का-हल्का म्यूजिक और मध्यम रोशनी, उस हाल की चारों दीवारों पर सुन्दर कलात्मक तैलीय पेन्टिंग व भित्तीय चित्रकारी की हुई थी जो उस हाल की भव्यता को बढ़ा रही थी। वहाँ पर ड्रिंक का भी इंतजाम था जिसका जी चाहें पी सकता था। रवि उस काउंटर की तरफ बढ़ गये, वहीं पर एक खूबसूरत छरहरी, लंबे खुले बाल, पिंक कलर की जिंस और नैवी ब्लू कलर का टाॅप पहने बेहद सुंदर लग रही लड़की भी थी। रवि उससे हाथ मिला चुके थे और उसके साथ बातों का सिलसिला शुरू कर दिया। ये देख राशि के पूरे बदन में आग सी लग गई। उफ ये मोहब्बत भी न आग का दरिया होती है जिसमें गोते लगाना हर प्रेमी की नियति है। कुछ लोग हल्के हल्के म्यूजिक पर फ्लोर के ऊपर डांस करने लगे थे। जब कोइ्र बात बिगड़ जाये, जब कोई मुश्किल पड़ जाये, गाना बज रहा था। रवि भी उस युवती का हाथ पकड़ कर डांस करने में तल्लीन हो गये थे। उसका जी चाहा कि अभी जाये और उस युवती का हाथ खींचकर अलग कर दे व स्वयं रवि के कंधे पर सिर रखकर डांस करना शुरू कर दें। तभी उसके करीब राशिद आकर खड़ा हो गया था आप यहाँ अकेले मैं आपको कल से ढूँढ रहा था मैंने सोंचा कि आप चली गई हो। वह कुछ न बोली। चलो डांस करते हैं। उसने हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा। अरे बिना इजाजत हाथ क्यों पकड़ा। फिर उसकी नजर रवि पर गई वे, बहुत मस्ती के साथ अपने पार्टनर के साथ डांस में व्यस्त थे। राशि भी राशिद के साथ फ्लोर पर चढ़ गई और डांस करने लगी। वहाँ वे दोनों महिला प्रोफेसर भी आपस में मिलकर डांस कर रही थी। वैसे खुशियाँ खुद मन में जगानी पड़ती है। किसी के देने से खुशी नहीं आती। वे दोनों उसे देखकर हौले से मुस्कुराई और फिर डांस करने में लग गई। रवि ने एक बार भी उसकी तरफ नहीं देखा था। उसे देखकर भी नजरें नहीं मिलाई। उसका दिल भर गया। पूरा फ्लोर मस्ती में झूम रहा था। राशि भी नाच रही थी। हाल रोशनी में नहा गया था, नकली बर्फ की बारिश की गई। पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज गया। रवि और वह बाहर सोफे पर बैठी दीदी के पास आ गये, दीदी स्टार्टर खाने में लगी थी। राशि को भी भूख लग आई सुबह से कुछ खाया भी नहीं था।

रवि आप खायेंगे? आपके लिए ले आऊँ? राशि ने न चाहते हुए रवि से पूछा।

नहीं तुम अपने लिए ले आना मैं नहीं खाऊँगा।

अब राशि का मन भी नहीं हुआ। लेकिन वेटर को लेकर उधर ही गया तो उसने एक प्लेट उठाकर अपने लिए दो स्प्रिंग रोल रख लिये, रवि ने भी कुछ स्नैक्स ले लिए थे। अभी तो मना कर रहे थे फिर अब क्या हुआ। खाना खाकर कमरे में आये। उसका विस्तर आज भी जमीन पर लगा था। उसे स्वयं पर घृणा हो आई ! क्या वह इतनी गई गुजरी है या सिर्फ उसकी इतनी ही अहमियत है कि वह जमीन पर सोये। राशि तुम इधर बैड पर सो जाओ ! इतना बड़ा बैड है पूरा खाली ही पड़ा रहता है। दीदी ने कहा था। चूँकि यूँ ही मन की उथल पुथल और व्यर्थ के तनाव में रात गुजर गई। अब वह कैसे रवि से बात करे, वह कैसे,कब और कहाँ उनसे मिल पायेगी और उनका शादी करने का वादा उसका क्या हुआ। सब जानने का हक उसे है आखिर उसने रवि से प्यार किया है और करती रहेगी कभी भी नहीं टूटेगा उसका प्यार। रवि का वो खुद जाने। जैसे हरी दूब घास जमीन में स्वतः फूट पड़ती है ठीक वैसे ही उसके मन में रवि के लिए प्यार फूटा था। दूब घास को कितना भी तोड़कर फेंक दो वह बार बार हरिया आती है, नम नम रहती है वो जगह जहाँ दूब घास फूटती है। वह भी नमी से ओत प्रोत है उसका दिल भी प्यार से भरा हुआ है बेइंतहा मोहब्बत है कितना भी तोड़ों नहीं टूटेगा न दिखेगा। तुम्हारी ये बेरूखी भी एक दिन फिर से प्रेम में तब्दील हो जायेगी। सकारात्मक विचार आते ही मन आत्मविश्वास से भर उठा। सुबह जब होटल से चैक आऊट किया तो रवि काउंटर पर पेमेंट करने चले गये दीदी कार में जाकर बैठ गई।

रवि के वापस आने पर वह उनके करीब आती हुई बोली, रवि क्या है ये सब? क्यों कर रहे हो? मैं तो तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाती और तुम सामने होकर भी मुझे दुख पर दुख दिये जा रहे हो।

कौन सा दुःख? कैसा दुःख? तुम्हारी यही बातें मुझे तोड़ती है?

क्या तुम नहीं जानते, प्यार कोई खेल नहीं?

तुम यह छोटी छोटी बाते करके अपना नुकसान करती हो क्योंकि तुम कुछ समझती ही नहीं हो ! तुम अपनी कीमत ही नहीं जानती हो राशि कि तुम मेरे लिए क्या हो !

जी ! मेरा प्यार और तुम्हारा वो प्यार क्या था ? क्या वो सब मात्र दिखावा या तन पाने की चाह थी । तुम पहले ही बात देते मैं तुम्हें वैसे ही समर्पण कर देती। आखिर मैंने तो प्यार किया और करती रहूँगी। राशि न जाने क्या क्या बोल रही थी !

इतना ही प्यार करती हो मुझसे, तो जाओ चली जाओ। मैं तुम्हें शादी करके अपना नहीं बना सकता। ये कहकर रवि अपनी कार की डिक्की की तरफ बढ़े और राशि का बैग उतार कर उसे देते हुए कहा कि तुम सामने से आॅटो लेकर रोडवेज जा सकती हो वहीं से तुम्हें बस मिल जायेगी। फिर बिना मुड़े या फिर बिना उसकी तरफ देखे वे चले गये। कार स्टार्ट की और सड़क पर पहुँच गये ! अचानक से कार रूकी, दीदी उसमें से उतरी और उसकी तरफ आते हुए दिखी। दर्द की इंतहा है वो इस दर्द को किसी हाल में बर्दाश्त नहीं कर पा रही, लग रहा है यह दर्द जान लेकर जायेगा,इसने कसकर दोनों हाथों से पेट को दबा लिया आसुओं की धारा बुरी तरह बहने लगी, ये सब क्या हो गया ?

राशि मूर्ति सी बनी खड़ी थी, उसकी आँखें बहते हुए आसुओं को रोक नहीं पा रही थी। दीदी को अपनी तरफ आता देख राशि ने आसुओं से भरी आंखों को चुन्नी से पोंछा और कुछ संयत होने का प्रयास किया।

राशि आओ, कार में बैठ जाओ, मैं तुम्हें बस स्टैण्ड तक ले चलती हूँ, वहाँ बस में बिठा के निकल जाऊँगी। राशि भाई की बात पर नाराज मत होना यह बहुत गुस्सा करता है ! किसी आग के गोले की तरह है इसका मिजाज लेकिन दिल का बहुत प्यारा है !

नहीं नहीं दी, कोई बात नहीं में चली जाऊँगी। आप तो जानती है न मैं हास्टल में रहती हूँ और अकेले आने जाने की आदत है।

नहीं फिर भी चलो बैठो। दीदी का आग्रह टाला नहीं गया उससे, वह बैठ गई, कार की पिछली सीट पर ही अपना बैग रख लिया था। कार चल पड़ी, एक चाय के ढाबे पर रोक ली थी, रवि ने उतर कर उसे चाय लाकर दी व दीदी को भी। अभी तो इतनी बेरूखी से बात कर रहे थे, अब ये चाय लाकर देना क्या है ये सब। क्या वाकई सबके ऊपर रवि को ऐसे ही गुस्सा आता है ! ऊपर से पत्थर और भीतर से नर्म !

रवि ऐसा करते हैं, यहीं पर नाश्ता कर लेते हैं राशि भी खा लेगी फिर चलते है। दीदी नीचे उतर आई थी। राशि का मन नहीं था फिर भी उतरना पड़ा था ऐसे अच्छा भी तो नहीं लगता है न कि बार-बार दीदी खुशामद करें। अपना पर्स हाथ में पकड़कर वो भी आ गई। रवि उससे नजर चुरा रहे थे एक बार भी उससे नजर नहीं मिलाई, वह अपने प्यार को कभी इस तरह देखेगी उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था ! वह प्यार जो उसके लिए आसमान से तारे तोड़कर लाने की बात करता था। कुछ भी कहने से पहले सब समझ लेता था और आज ये। जरूर वे कुछ छिपा रहे हैं। ढाबे पर आलू के पराठों का आॅर्डर कर दिया था। राशि कैसे खायेगी उसे तो अपना थूक निगलना मुश्किल लग रहा था। वह अपना पर्स दीदी के पास रखकर बाथरूम होकर आती हूँ। कह कर उस ढाबे के पीछे बने बाथरूम में चली गई। नीचे गहरी खाई उसके ऊपर लकड़ी के गट्ठों की सपोर्ट से बना वो बाथरूम, सामने चीढ़ के वृक्ष, नीचे खेत, गाँव व गहरी खाईयाँ। मन का भयंकर अंतद्र्वंद उसे कुछ भी सोंचने की इजाजत ही नहीं दे रहा था।

तुम चली जाओ।

यही तीन शब्द उसके दिमाग में हाहाकार मचाये थे। शब्द ब्रह्महा होते है। जरूर कोई बात उनके मन में है तभी कहा उन्होंने। उनका वह प्रिय रूप अचानक से इतनी रूडता में कैसे और क्यों बदल गया। वो एक एक पल उसकी आँखों के सामने घूमने लगे जब रवि ने उसे प्यार की गहराई में डुबोया था। इतना ख्याल रखना, हर बात में उसकी राय लेना। बात बात पर सिर्फ आई लव यू बोलना फिर ये नफरत का भाव कहाँ से और कैसे उनके मन में आया।

असहनीय, ये दर्द बहुत ज्यादा असहनीय, नहीं सहा जा सकता ! रवि के बिना एक पल जीना मर्त्यु के समान है ! वो तो उसकी दुनियाँ है जान है। उनकी नफरत लेकर कैसे जी पायेगी। उसके बिना जीने की सोचना भी एक सजा के समान है। यहीं इसी खाई में कूदकर अपने प्राण दे दे वह। उसने सोचा, नहीं यहाँ पर नहीं, यहाँ देने से वे लोग खोजेंगे। शायद नीचे दिख ही जाऊँ। उसने अपने कदम तेजी से सड़क की तरफ बढ़ा दिये। कुछ दूर जाकर किसी गहरी खाई से नीचे छलांग लगा लेगी। पर्स भी नहीं है, नहीं तो किसी सवारी से आगे निकल जाती। कोई बात नहीं ऐसे ही ठीक है ! मन की भयंकर उथल पुथल के बीच कदमों की रफ्तार भी बहुत तेज होती जा रही थी। जल्दी ही इस सड़क से ओझल हो जाऊँ। कहीं रवि उसे देख न लें। वैसे पहाड़ी क्षेत्रों में घुमावदार सड़कों के कारण जल्दी ही इस सड़क से निकल दूसरी सड़क की तरफ आ गई। सामने ही एक मंदिर था। इस मंदिर की तरफ से कई बार निकलना हुआ था ! हर बार जाने का मन करता था परन्तु रवि न स्वयं जाते, न ही उसे जाने देते। उसके कदम सीधे मंदिर के प्रांगण में घुस गये। वह उस पत्थर की बेंच पर बैठ गई। जो भीतरी भाग में पड़ी थी। सांसों का उतार चढ़ाव बहुत तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था। खुद को संभाल कर मंदिर में मत्था टेक लेगी। यहाँ वे लोग आ तो नहीं जायेंगें, मन में ये आशंका भी थी। अब वह स्वयं अपना चेहरा भी नहीं दिखाना चाहती। उसका प्यार इतना गिरा हुआ नहीं हो सकता।

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