कमसिन - 20 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कमसिन - 20

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(20)

ओह! ! सिर को हल्के से झटका। कुछ देर को आँखों को बंद करके, लेटने को जी कर रहा है ! खाना खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं, मन में घबराहट भी है !

इतने बड़े कमरे में अकेले सोने की सोचकर ही मन में भय पैदा हो रहा है। क्या वो स्वयं ही रवि को फोन करके बता दे ? हां बता देती हँ क्या होगा थोड़ी देर नाराज हो जायेंगे, हो जाने दो क्या फर्क पड़ेगा, वैसे भी नाराज ही है। उसने मिला लिया फोन, हैलो

हाँ !

सुनो, आप कहाँ पर हो ?

यहीं पर, होटल के कमरे में ही हूँ।

जी, आप कुछ देर पहले तक कमरे में नहीं थे।

हाँ घूमने चला गया था।

अब क्या कहे वो? घूमने चले गये थे, उसे अकेला छोड़कर, एक बार सोचा तो होता। लेकिन वे नहीं समझ सकेंगे ? उसके मन की पीड़ा को कितना दर्द होता है जैसे कोई सागर में डूब जाता है उबरने को छटपटाता है, पर न तैरना आता है न कोई आसपास बचाने वाला । सच ही कहा था एक दिन रवि ने कि मर्द तो खिलंदडंा होता है। उसे बंधन में जीना पसंद नहीं वो कभी बंध के नहीं रह सकता, जब तक उसका दिल होगा खुशी-खुशी हर बंधन स्वीकार कर लेगा लेकिन जब उसका दिल भर जायेगा फिर वह मुड़कर देखना पसंद नहीं करता।

बीती ताहि बिसार दंे! ! जैसा

राशी ! खाना खाने के लिए नीचे आ रही हो ?

सुनिये मुझे इसे कमरे में अकेले नहीं रहना है, मुझे बहुत डर लग रहा है, घबराहट हो रही है।

ओह! लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता, तुम्हें खुद ही मैनेज करना होगा। लेकिन मैं अकेले कैसे मैनेज कर सकती हूँ।

कुछ भी करो। चलो ठीक है मैं आपको ज्यादा कुछ नहीं बता सकता। अच्छा पहले नीचे खाना खाने आओ। कहकर फोन काट दिया। कैसे जाऊँ? दिन का वाकया उसकी आँखों में घूम गया। वह अब लिफ्ट से नहीं सीढ़ियों से चलकर जायेगी, उसे जाना है और रवि से बात भी करनी है क्यों कि उस कमरे में रात गुजारना रिस्की लग रहा था, वैसे अपनी सुरक्षा अपने हाथ ही होती है और आज के दौर में किसी का क्या भरोसा। पल भर में ही किसी की नजर बदल सकती है। दरवाजे पर नाॅक की आवाज आई कौन है? उसने थोड़ी हिम्मत जुटा कर कहा। राशि खोलिए, मैं राशिद हूँ। उसका दिल डर की वजह से जोर-जोर से धड़क उठा।

राशि खाना खाने नहीं आ रही हो?

हाँ आ रही हूँ। उसके दिल की धड़कने कुछ मंद पड़ने लगी। चलो राशिद के साथ ही खाना खाने चली जाये। कोई साथ में होगा तो डर की बात कम हो जाती है। क्या अजीब विडम्बना है जिससे डर रही है उसी का सहारा ले रही हैं वैसे राशिद दिल का बहुत ही अच्छा इंसान है कभी कभी परिस्थिति वश भी कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिसका दर्द तमाम उम्र सहना पड़ता है। क्यों कि जब तक होश आता है तब तक हम बर्बाद हो चुके होते है। सच में इंसान के अंदर एक शैतान व हैवान दोनों ही बसते है और कब कौन सा पक्ष जाग्रत हो जाये वक्त की बात है।

राशि आप जल्दी आ जाइये प्लीज। इन शब्दों के साथ उसकी चेतना लौटी।

हाॅ आ रही हूँ। राशि इस बार सीढ़ियों से उतर कर नीचे आ गई। ये तर्क देकर वह और राशिद दोनों नीचे आये कि सीढ़ियों से चलने से भूख लग जायेगी। क्यों कि अभी तो पकौड़ी खाई है। राशिद ने उसकी बात को मुस्कुरा कर अपनी हाॅ की छाप लगा दी थी। सीढ़ियों से उतर सामने रिशेप्शन के पास पड़े सोफे पर रवि अपनी टैबलेट चलाने में मस्त थे साथ ही उनके पास कोई महिला बैठी थी। काले रंग का सूट, माथे पर लाल बड़ी सी बिंदी, लम्बी सी लहराती हुई चोटी, सुंदर लग रही थी वे, चेहरे पे चमक भी थी ! हाॅ रंग कुछ सावला सा था। ओह! ये महिला कौन हो सकती है? क्या पत्नि? नहीं, नहीं रवि उससे झूठ नहीं बोलेंगे वे हमेशा सच बोलते है अगर शादीशुदा होते तो जरूर बता देते। इतना विश्वास तो उन पर वह करती है। वह, सीधे रवि के पास जाकर बैठ गई थी। राशिद खाना खाने मैस में चला गया था। रवि अभी भी उस टैबलेट में आंखे गढ़ाये थे, उनका ध्यान राशि की तरफ गया ही नहीं, हाॅ पास में बैठी महिला जरूर उसकी तरफ देखने लगी। उनकी इस तरह घूरती निगाहें देखकर उसने नजर झुका ली।

रवि... राशि ने आवाज दी।

ओह! राशि, आ गई तुम।

हाॅ क्या कर रहे हो।

कुछ खास नहीं आज घूमने गया था वहाँ के फोटोज सैट कर रहा था।

अच्छा जी। वे महिला अभी भी उसको ध्यान से देखे जा रही थी।

सुनों राशि, इनसे मिलों, ये है हमारी बड़ी बहन, यहाँ घूमने आई है, अब इन्हें घुमाना हमारा फर्ज है । और रामा दी, ये है राशि।

कौन राशि?

हमारी स्टूडेंट थी, अब तो यह दूसरे बड़े शहर के काॅलेज में पढ़ रही है।

अच्छा तो ये भी शाहबाद की है?

जी हाॅ रामा दी। रवि ने राशि को इशारा किया कि इनके पैर छू लो जाकर।

राशि उठी और उनके पैर छूते हुए बोली आप घूमने आई है।

हाॅ बेटा ! कहकर उन्होंने राशि को मुस्कुरा के गले से लगा लिया।

तुम अकेली हो, तुम्हारे साथ में कोई नहीं है?

नही मैं अकेली ही आई हूँ और रवि साथ में है न।

तुम रवि के साथ आई हो?

रवि ने आँख मार के मना किया।

नहीं इनके साथ नहीं, ये मुझे यहां मिल गये थे, वैसे महिला टीचर है वे भी इसी होटल में ठहरी हुई है। रवि ने कहा चलो पहले खाना खा लो, फिर बातें करना वैसे ये बात बिलकुल सच है कि दो महिलायें कभी चुप नही बैठ सकती है।

तुम शाहबाद से हो, किसकी बेटी हो ?

रवि शंकर मिश्रा की। वे दोनों इस तरह से आपस में बातें कर रहे थे मानों कब से एक दूसरे को जानते हैं। राशि को खुद पर गुस्सा आने लगा वह रवि के बारे में अभी तक न जाने क्या-क्या सोच रही थी, लेकिन वो उसको अकेला क्यों छोड़ गये, दीदी तो इतनी प्यारी है वे साथ में ले जाते तो भी क्या फर्क पड़ता चलो छोड़ो जो बीत गया उसको भूल जाओ तो ही ठीक है ! उसने अपने सिर को हल्का सा झटका दिया और एक प्लेट लेकर अपने लिए खाना लगाने लगी, उसने अपनी प्लेट में दाल व थोड़ी सी मिक्स सब्जी के साथ एक हरी मिर्च भी रख ली, दो तरह की रोटियां थी। बटर नान व चपाती (तवा)। राशि ने एक सूखी (बिना घी) की एक चपाती उठाकर अपनी प्लेट में रख ली और वहीं पर पड़े टेवल पर प्लेट रखकर एक कुर्सी पर बैठ गई। रवि और उनकी दीदी एक दूसरे से बाते करते, मुस्कुराते हुए सूप का आनंद ले रहे थे, राशि का मन नहीं था सूप पीने का ! हालांकि उसका खाना खाने का भी मन नहीं था सच में उसकी बिल्कुल इच्छा नहीं थी कि वह खाना खाये परन्तु रवि नाराज होते उससे अच्छा है कि बिना इच्छा के भी कुछ खा लिया जाये। रोटी किसी तरह खत्म कर दी, हरी मिर्च बहुत पसंद है, मिर्च को खाना जरूरी है लेकिन अब और रोटी या चावल लिये जाये रूखी अगर मिर्च खा ली तो जरूर हिचकी लग जायेगी, तब तक रवि भी अपनी प्लेट लेकर मेज तक आ गये।

क्यों खा लिया खाना?

हाॅ

तू तो ऐसा कर, खाना खाना ही छोड़ दे क्योंकि तूने दान ही नहीं किया पिछले जन्म में जो इस जन्म में खाए ! राशि चुपचाप सुन रही थी।

चल ऐसा कर, ये मिर्ची खाकर दिखा।

अगर आप कहते हो, तो अभी खा लेती हूँ !

भले ही मिर्ची से मुँह जल जाये ! मेरे कहने भर से खा रही है तो फिर वो प्लेट में जितनी मिर्चियां रखी है सब खा के दिखाओ। चलिए खा लेती हूँ लेकिन मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला ध्यान रखना।

सही कहा ! अब कहाँ पड़ेगा तुम पर कोई फर्क। अब तो फर्क मुझ पर पड़ रहा है, गलती मेरी ही थी ! मैंने गलती की है और ये भी जानती हूँ कि इस गलती की कोई माफी नहीं ! सजा तो मुझे भुगतनी ही पड़ेगी। रवि ने मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखा और खाना खाने में मस्त हो गये।

ये कातिल मुस्कान, ओफ्फोह कत्ल भी करते है और वह भी मुस्कुरा कर। उसके दिल में इस शख्स के लिए इतना प्यार क्यों है ? ये बात राशि की समझ से परे थी। वह अपनी प्लेट रख आई और एक कटोरी में आइसक्रीम डालकर ले आई। रवि और दीदी आपस में मस्त होकर बतियाते हुए खाना खा रहे थे। ये लोग आपस में कितना क्लोज है लग ही नहीं रहा ये उनकी बड़ी बहन है क्योंकि उन का व्यवहार एक दम से दोस्ताना लग रहा था। रवि से बात करनी है लेकिन इनके सामने अपनी बात करना क्या उचित होगा? उसके मन में हिचक सी हुई। उसने तो फोन पर ही रवि को बता दिया था, क्या उन्हें याद नहीं रहा। बड़े भुलक्कड़ है, हर बात भूल जाते हैं।

राशि तुम फोन पर क्या कह रहीं थी कि तुम्हे उस कमरे पे अकेले नहीं रहना है ? रवि खाना खाते हुए बोले।

जी रवि, मैं अकेले सोने से नहीं बल्कि......! वह कुछ करते-करते रूक गयी।

क्या हुआ? पूरी बात बोलो।

वह चुप ही रही कैसे बताये कि राशिद नाम के उस युवक ने उसके साथ क्या करने की कोशिश की, कितना डर गई थी, उस अधूरे हादसे को सोचकर ही उसकी घबराहट बढ़ गई।

चलो ठीक है मेरे कमरे में ही आ जाओ मैं अभी बिस्तर लगवा देता हूँ।

उसने देखा दूर बैठा राशिद उसकी तरफ देख रहा है। अब उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं है फिर भी वो उसके देखने के कारण घबरा सी गयी !

अरे अब तुम इतना घबरा क्यों रही हो ? ठीक है न, मेरे साथ ही चलना। और मेरे कमरे में ही सो जाना ! अब परेशान न हो !

राशि की निगाह फिर राशिद की तरफ चली गई थी। वो आराम से खाना खाने में व्यस्त था !

राशि रवि के कमरे में आ गयी ! वह बहुत ही खूबसूरत कमरा था। उसके कमरे से कई गुना ज्यादा सुन्दर व बड़ा था। कमरे में लगी बड़ी सी शीशे की खिड़की के ऊपर मोटे मोटे परदे व परदों के ऊपर सुंदर कसीदेदार बूटे कमरे की भव्यता को बढ़ा रहे थे। जमीन पर मोटा मखमली कालीन, दो बड़े बड़े सोफे व बैड भी उसके कमरे से बड़ा नजर आ रहा था। दो कबर्ड व साइड टेबल। रवि ने आते ही सबसे पहले कमरे में खिड़की पर लगे परदे हटा दिये। बाहर खूबसूरत नजारा, पूरा शहर नजर आ रहा था, दूर से टिमटिमाती रोशनी जुग्नू की तरह लग रही थी। पहाड़ियों पर बसे वे घर मन में खूबसूरत एहसास जगा रहे थे। अब वापस जाना है, कल वापस चले जाना है, इन सुंदर वादियों को छोड़कर। जाना तो हर जगह से होता है, आये हैं तो जाना निश्चित है ! जिंदगी भर के लिए कोई भी नहीं टिकता, दुनिया को भी छोड़ के जाना पड़ेगा एक दिन क्योंकि आगमन के बाद प्रस्थान, आदि के बाद अन्त और जीवन के बाद मृत्यु निश्चित है। ओह! कितना आगे का सोंच रही हूँ। आज को जी लूँ यही काफी है आगे की छोड़ो देखा जायेगा। सिर को हल्का सा हिलाकर उसने मन में आने वाले विचारों की इति श्री कर दी। रवि सोफे पर बैठे अपने लैपटाॅप पर कुछ काम कर रहे थे और दीदी बैड पर लेटी हुई मुद्रा में किसी उन्यास में खोई हुई थी। कमरे के दरवाज पर हल्के से नाॅक हुआ।

आ जाओ भाई, दरवाजा खुला हुआ है ! एक लड़के ने हाथ में बिस्तर चादर व कम्बल लेकर भीतर प्रवेश किया और खिड़की की तरफ ही जमीन पर उसे बड़े करीने से बिछा कर चला गया। राशि ने उस बिस्तर की तरफ देखा, क्या ये मेरे लिए है? मन ही मन उसने सोंचा कभी भी आज तक जमीन पर लेटने की नौबत नही आई थी तो फिर आज कैसे लेटेगी? मजबूरी है वह कुछ कह नहीं सकती। किससे करेगी? कौन है यहाँ अपना? आज उसे अहसास हुआ रवि उसके नहीं है उनके दिल में राशि के लिए कोई मृदुभाव नहीं है। जो प्रेम हर वक्त उनकी आँखों में छलकता था वो अब कहीं दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा है । इन्हीं जज्बातों में उलझी वो बाथरूम में चली गयी। जी चाहा जोर-जोर से फूट-फूट कर रो ले और मन में उठते गुबार को आसुओं में बहा दे पर ऐसा संभव नहीं था। फिर भी उसकी आंखे अनवरत बहने लगी। कोई हूक सी दिल में उठने लगी। राशि ने वाशबेशिन में पूरी टंकी खोल कर पानी के छींटे अपनी आंखों पर मारे। अपनी लाल हो आई आंखों को अपनी उंगलियों के पोरो से हल्के से दबाया ताकि ये लालिमा दिखाई न दे। वो बाथरूम निकालकर और जमीन में बिछे बिस्तर पर बैठ कर अपने मोबाइल पर गेम खेलने लगी। वैसे खुद को व्यस्त रखने के लिए व मन को दुविधा से हटाने का ये सबसे अच्छा साधन है। कमरे में एक दम शांति, निस्तब्धता छाई हुई थी। इतनी शान्ति कि कोई सुई भी गिरे तो तेज आवाज गूँज जाये।

ओह! क्या सुई के गिरने से क्या इतनी तेज आवाज होगी कि शान्ति भंग हो जाये। उसे अपने ही ख्यालों पर हँसी आ गई। हँसी को मन में दबाकर उसने अपना ध्यान गेम खेलने में लगा लिया। वो भी कितनी बड़ी पागल है, पल में हँसने लगती है और पल में रोना शुरू !

राशि जरा ये लैपटाप का प्लग उस स्विच में लगा देना। रवि ने यह बात कहकर कमरे में छाई शान्ति को तोड़ दिया।

राशि ने प्लग लेकर कमरे में नीचे की तरफ लगे स्विच में लगा कर ऑन कर दिया। उसका मन कर रहा था कि वो रवि से ढेर सारी बातें करे, उसे वो सारा सच बता दें। आज सुबह से लेकर अब तक जो कुछ भी उसके साथ घटा है ! उसे अपने शब्दों में बयाँ कर दे। पर नहीं कर पा रही है। रवि बातें करने के मूड में नहीं लग रहे और दीदी भी तो कमरे में हैं, तो कैसे कुछ कह पायेगी।

उनके सामने दिल की ये बाते कैसे की जा सकती हैं भला ? रवि आई लव यू, ये शब्द बार-बार उसके मन में गूंजने लगे। बहुत तेज शोर मचने लगा भीतर ही भीतर। जब हम अपनी जुबां से कुछ कह नहीं पाते तो वे शब्द बहुत ज्यादा परेशान करते हैं। किसी ने सच ही कहा है कि यह शरीर तो ऐसा ही होता है, इसके सारे आवेग अपने समय पर बाहर आ जाये, तो ठीक, अन्यथा बहुत अड़चन पैदा करते हैं । किसी भी आवेग को हम जितना दबाते है वो उतनी ही विकट परिस्थिति में हमारे सामने आता है।

मन के भाव भी तो एक तरह से आवेग ही हैं जो फूट पढना चाहते हैं !

राशि ने कम्बल से मुँह ढँक कर, गेम में मन लगाने की निरर्थक कोशिश की ! लेकिन जब मन भटकता है तो उसे एकाग्र करना बहुत मुश्किल होता है। वो एक जगह टिकता ही नहीं ! उसकी सोंच चलने लगी ! लगता है रवि तो सोफे पर ही सो जायेंगे और दीदी इतने बड़े बैड पर अकेले सोयेंगी, इस पर तो तीन लोग आराम से सो सकते हैं, इतना बड़ा बैड है कि तीन लोगों के लेटने के बाद भी खूब जगह बची रहेगी।

दीदी क्या उसे हेय दृष्टि से देख रही हैं या फिर उनकी नजरों में उसकी कोई इज्जत नहीं है । उसे लगा कि वह वाकई अपनी नजरों में गिर चुकी है उसे आत्म ग्लानि हुई। लेकिन क्या रवि को भी। अपने प्यार की कोई इज्जत नहीं, मान नहीं। उसका प्यार इतना छोटा नहीं हो सकता। वो महान है और रहेगा ! वैसे प्रेम छोटा या बड़ा नहीं होता। सब वक्त की बातें होती है, जब तक वक्त साथ नहीं देता, सब उलट पुलट ही होता है। इन्हीं सब बातों का मन में अंतर्द्वंद छिड़े हुए ही कब नींद आ गई पता नहीं चला। थोड़ी देर में किसी आवाज को सुन उसकी आँख खुल गई, उसने कम्बल हटाकर देखा, एक दम अंधेरा, शांति फिर ये आवाज? अरे! ये मोबाइल की बैट्री खत्म होने की आवाज है वो गेम खेलते खेलते ही कब सो गई उसे पता ही नहीं चला। अब बैट्री खत्म। चार्जिंग में लगा ले नहीं तो कल सफर में दिक्कत हो जायेगी। उसने हल्की हल्की मोबाइल की रोशनी में ही देखकर नीचे को लगे उसी स्विच में मोबाइल का प्लग लगा दिया और करवट बदलकर सोने का प्रयत्न करने लगी। उसका जी चाहा कि अभी रवि के गले लगकर मने को हल्का कर ले दिल को थोड़ी तसल्ली मिल जायेगी परन्तु कमरें में दीदी हैं उनके जाग जाने का डर भी तो था। अब ये दिन में तो ये बिल्कुल भी संभव नहीं होगा। उसे लगा जैसे कोई उसका जिगर काट कर अलग कर दे रहा है बहुत तेज हूक दिल में उठी। अब ये हूक उठना ही उसकी नियति है इसका कोई उपचार नहीं है। वो रवि से जाकर कह दे रही है अभी इसी वक्त फिर जो होगा देखा जायेगा। अंधेरे में टटोलते हुए वो सोफे तक पहुँची, उसने हाथ बढ़ाकर जैसे ही सोफे पर हाथ फिराना चाहा कि दीदी के हल्के से खाँसने की आवाज के साथ वो वापस लौट पड़ी। न ही अभी रूक जाओ उसकी अंतरात्मा से आवाज आई। थोड़ा धैर्य धरो, सब्र करो। सब्र का फल मीठा होता है। वह वापस आकर अपने बिस्तर पर लेट गई। ओह! ये कैसी पीड़ा है, बहुत तकलीफ है इसका कोई उपाय नहीं। क्या प्रेम की पीड़ा ऐसी ही होती है ?

उसने अपने पेट को एक हाथ से कसकर दबा लिया। शायद इस दर्द से राहत मिल सके। आँखें कसकर बंद की लेकिन आँखों से खौलते लाबे सा पानी बहकर गालों पर गिरने लगा। उफ़ ! अब कैसे जिउंगी, कैसे मन को समझाऊँ ? किसी तरह मन को समझाना होगा लेकिन मन आखिर कभी समझा है किसी की बात, वो नहीं समझेगा। ये नमकीन खौलता दर्द उसके जीवन में कब कैसे आ गया, उसे समझ ही नहीं आया। जब कहने को बहुत बातें हो और उन्हें किसी हाल में कहा न जा सके तो बस बहते आंसू ही एकमात्र अब्लंबन बन जाते हैं । आँखें आसुओं से नम हो गई थी ! आँख के आसुओं रूपी सैलाब को किसी भी तरह रोकना मुश्किल था।वे बहने लगे, गालों को चूमते हुए। दर्द जब दिल में होता है तो आँखों से आँसू क्यों बहते है? यह बात उसे आज तक समझ ही नहीं आई थी। ऐसे ही रात गुजर गई और मोबाइल का अलार्म 06 बजने की सूचना देने लगा। राशि अपने चेहरे को चादर में लपेटे लेटी रही, रवि उठ गये थे और वह ऐसा उपक्रम कर रही थी जैसे अभी भी सो रही है। दीदी उठकर बाथरूम में जा रही थी, वे बोली रवि तुम चाय बनाओं, मैं अभी नहा कर आ रही हूँ । शायद रवि केतली का पलग लगाने को उसके करीब वाले स्विच तक आये थे, उसे ऐसा एहसास हुआ उसने, हल्का सा कम्बल एक तरफ करते हुए कनखियाँ से रवि की ओर झाँका। सुबह सुबह अपने प्रिय के दर्शन, वह अभिभूत हो गई। हमेशा ऐसा ही हो, वह जब भी जागे, उसका चेहरा बस यूँ ही अपनी आँखों के सामने पाए ! परन्तु सोचा हुआ कब पूरा हुआ है, कभी भी नहीं। होता वही है जो किस्मत में लिखा होता है क्योंकि वहाँ सब कुछ पहले से ही लिखा जा चूका होता है, थोड़ा बहुत हम अपनी मेहनत से इधर उधर कर सकते है। रवि आई लव यू। उसके मुँह से अनायास निकल गया। कितना कंट्रोल करे जो शब्द हर वक्त जुबां पर घूमते रहते है उनका बाहर आ जाना स्वाभाविक है।

रवि ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा, राशि क्या तुमने अभी कुछ कहा?

नहीं, कुछ भी तो नहीं ! कहते हैं कि दिल से दिल को राह होती है ! जब दो दिल आपस में जुड़े हो तो फिर एक दुसरे की बात को बिन कहे ही समझा जा सकता है ! न जाने कहाँ से इतने दर्द के भीतर छुपी हुई मुस्कुराहट उसके होठों पर आ गई। उसके एक शब्द मात्र से ही मन खुशी से बल्लियों उछल पड़ता है, जरा सी बात से इतनी खुशी महसूस करना सिर्फ प्यार में ही हो सकता है प्यार में छोटी छोटी बातें बड़ी बड़ी खुशियां दे जाती है और दुःख छोटी सी बात से पहाड़ जैसे नजर आते हैं।

राशि उठ जा, अब देर हो जायेगी। रवि बड़े प्यार से उससे कह रहे थे !

ये शब्द फिर कब सुनने को मिलेंगे? कौन उसे यूँ उठायेगा? रवि जा रहे है, वह भी जा रही है परन्तु अपने अपने रास्ते। राशि उठ गई तब तक दीदी भी बाथरूम से बाहर निकल आई थी। राशि भी उठ कर खड़ी हो गई थी उसने अपना कंवल झाड़कर तय किया और अपना ब्रश लेकर बाथरूम में चली गई। इतनी सुबह नहाने का मन नहीं कर रहा था, आँखों पर पानी के छीटे मारे, कड़वापन सा आँखों में घुल गया। कितनी खुशी-खुशी निकलें थे और अब ये कैसा दर्द सीने में समा गया था जो बार-बार हूक सी उठ रही थी आखिर क्या हुआ था, किसकी नजर उनके प्यार को लग गई थी।

राशि जल्दी से बाहर आ जाओं, मुझे भी फ्रैश होना है।

ठीक है आती हूँ। उसने भीतर से ही कहा दो तीन बार पानी के छींटों आँखों और मुँह पर मारे और फिर बाहर निकल आई। दीदी आराम से बैठी चाय पी रही थी, उन्होंने सिल्क की चटख पीले रंग की साड़ी पहन रखी थी। उनके लंबे बाल अभी खुले हुए थे, कितने सुंदर सिल्की और लंबे बाल है दीदी के। उसने अपने बालों पर हाथ फिराया देखा कितने छोटे छोटे हो गये है कभी उसके बाल भी लंबे काले घने थे किंतु जब से हाॅस्टल में रहने आई है तब से बालों की फिक्र कौन करें, सो कटा के छोटे छोटे करा लिये। अब ज्यादा समय भी नहीं लगता और देखरेख भी नहीं करनी पड़ती। आराम से एक कंघा मारो और बालों को इधर-उधर छितरा लो। उसे मन ही मन खुद पर हँसी आ गई, पगली कहीं की कितना सोंचती है। मेज पर चाय का एक कप और रखा हुआ था। उसका भी मन कर रहा था चाय पीने का। वैसे इतना खास शौक तो नहीं है चाय पीने का किंतु मौसम ठंडा हो रहा था और नींद पूरी न होने के कारण आंखे भारी भारी सी हो रही थी। शायद ये चाय उसी के लिए है या नहीं ये शायद रवि की होगी, अगर उसकी होती तो दीदी एक बार अवश्य उससे कहती कि चाय ले लो। खैर! अपना बंद बैग खोलकर उसमें से लैंगी कुर्ती निकालकर ले आई। ये वाली पहन लेती हूँ, ठीक लगेगी न? उसने स्वयं से ही सवाल किया। हाँ अच्छी तो लग रही है। सिर्फ अच्छी। चलो ठीक है। अब तैयार हो जाऊँ, फिर देर होगी। खुद को तर्क देकर समझा लिया, रवि निकल आये थे। वह पिंक कलर के कुर्ते और सफेद पायजामें में बहुत अच्छे लग रहे थे। उनके ऊपर पिंक कलर बहुत सुंदर लगता है शायद उनका रंग बहुत गोरा है न इसीलिए।

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