Kamsin - 18 books and stories free download online pdf in Hindi

कमसिन - 18

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(18)

बाहर पहाड़ों पर हरी घास और फल, फूल देख उसके मन को कुछ अच्छा महसूस हुया। ये प्रकृति उसे इतना क्यों लुभाती है जरूर मेरा और प्रकृति का आपस में कोई रिश्ता है। ये पहाड़ मोह लेते है मन को। उसने एक गहरी सांस ली। और फिर से उस महिला का काल्पनिक चित्र मन ही मन बनाने लगी। क्या रवि इतने गिरे हुए इंसान है ।

नहीं, नहीं, नहीं, उसका रवि ऐसा कदापि नहीं हो सकता, वे तो बहुत ही अच्छे और प्यारे इंसान है। वे खुद से पहले दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझते हैं। वे कभी भी उसका दिल नहीं दुःखा सकते है, जरुर उसे गलत फहमी हो रही है और केवल सुनने से किसी को गलत नहीं ठहराया जा सकता, जब तक आँखों से न देख लिया जाये। वैसे कहते है, आँखों से देखा भी कभी-कभार गलत होता है। आँखों देखी और कानों सुनी बात भी गलत हो सकती है। भ्रम पैदा कर सकती है। अतः हर बात या काम सोच समझकर अपनी चेतना को जाग्रत करके ही करना चाहिए, तभी किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए। उसे सब्र रखना होगा, अपना धैर्य बनाये रखना होगा क्योंकि जल्दबाजी में या बिना सोंचे समझे लिया गया कोई भी फैसला गलत भी हो सकता है। वह इन्हीं सब उलझनों में उलझी, वहीं पड़े सोफे पर आकर बैठ गई। मोबाइल निकाल कर उसमें गेम खोल लिया और गेम खेलने लगी लेकिन जब मन उलझन में हो तो फिर किसी भी काम में मन नहीं लगता है। उसने फोन बंद कर दिया और यूँ ही इधर उधर देखती हुई मन को बहलाने लगी।

राशिद इधर आ जाओ, जब तक इन सोफो पर बैठते हैं। ये आवाज उसकी गहन विचार मग्न मुद्रा को तोड़ने में कुछ सफल हो गई। वह वर्तमान में लौट आई। देखा बराबर में सोफे पर दो नवयुवक आकर बैठ गये। वे शायद किसी कालेज के लडके थे और छुट्टियों में घूमने के लिहाज से आये लगते थे। अब यहाँ पर बैठना सही नहीं लग रहा था। राशि ने उठकर जाने का उपक्रम किया कि उनमें से एक बोल पड़ा, कहाँ चली जानेमन। हम तो आपकी वजह से ही यहाँ पर बैठे है।

ये लफ्ज उसे भीतर तक सिहरा गये। वह बिना कुछ बोले या पलट के जवाब दिये चुपचाप जाने लगी।

अरे भई, हम तो आपके कद्रदान है हमसे कैसी चोरी। चलो आओ बैठो कुछ बतियाते है आपका डर भी कुछ हद तक कम हो जायेगा। अरे इन लोगों को कैसे पता मैं अकेली हूँ। जरूर होटल वालों ने बता दिया होगा या फिर इन लोगों ने रजिस्टर में देख लिया होगा। जो भी हो वह चुपचाप कमरे में जाकर और दरवाजा बंद करके कमरे में ही बैठ रहेगी। एक रात की ही तो बात है फिर वापस अपने होस्टल।

क्या सोंच रही है मोहतरमा ?

उसे जब वी मेट फिल्म का वो सीन याद आ गया जो करीना कपूर से स्टेशन मास्टर बोलते हैं ’आपको पता है एक अकेली लड़की खुली तिजोरी के समान होती है’ आज ये बात उसे बिल्कुल सच लग रही थी। एक तो पहले से परेशान, आँखें भरी हुई और अब ये मुसीबत। क्या करे किससे कहें, किसको बतायें? ये मुसीबत उसे बहुत बड़ी लग रही थी। राशि चुपचाप चलती हुई लिफ्ट तक आई और ग्राउण्ड फ्लोर पर बनी कैण्टीन में चली गई। उसकी नजरें उधर ही देख रही थी कि कहीं वे लड़के इधर भी न आ जाये। उसने एक कप काफी का आर्डर कर दिया। कैंटीन में खूब चहल पहल थी। उसका डर थोड़ा कम हुआ। अधिकतर सभी लोग अपने परिवार के साथ थे या फिर ग्रुप में । बस वही अकेली थी । जो अकेली टेबल के पास पडी कुर्सी पर बैठी थी। उसकी टेबल के अगल बगल पड़ी तीन कुर्सियां खाली पड़ी हुई थी। उसने पहले इधर उधर नजर घुमाई फिर उन तीन कुर्सियों की तरफ देखा। उन पर कोई भी आकर बैठ सकता था।

कहीं उन लड़को का पूरा ग्रुप ही न हो या फिर कहीं वे ढूँढते हुए इधर ही न आ जाये और इन खाली कुर्सियों पर बैठ जाये। वह मना भी तो नहीं कर पायेगी। उसका दिल चाहा कि वह इस मेज के नीचे छुपकर बैठ जाये, कोई देख नहीं पायेगा और सुरक्षित भी रहेगी। फिर एक बारगी उसके दिल में ख्याल आया कि यहाँ मैस की किचिन में चली जाये। लेकिन वहाँ भी तो मर्द ही होंगे, उसको अनायास हर मर्द के अन्दर एक जानवर नजर आने लगा। घबराहट के कारण चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें टपक आई थी। इस समय घर वालों की बहुत तेज याद आ रही थी। सच में हमारा परिवार एक मजबूत सहारा होता है और उसकी छत्र छाया में हम हमेशा ही सुरक्षित रहते है। परिवार जीवन के हर मोड़ पर हमारा साथ देता है। आज वह अपने आप को कितना असहाय महसूस कर रही थी। वह रवि को फोन करना चाहती थी परन्तु कहीं वे नाराज न होने लगे, इस डर की वजह से उन को फोन नहीं किया। आजकल रवि कुछ ज्यादा ही नाराज होने लगे है समझ ही नहीं आ रहा कि वे उससे खफा है या अपने आप से। कुछ परेशान भी लगते हैं लेकिन क्यों? ये सब जानने समझने की उसकी बिल्कुल भी हिम्मत नहीं है। वो एक बात पूछेगी और वे 50 बातें बताकर उसको चुप करा देंगे।

ओह ईश्वर! मेरी मदद करो, कोई तो मेरी मदद करे। उसकी नजर बराबर की टेबल पर बैठी एक आंटी पर चली गई। वे एक मोटी ताजी, उम्र दराज महिला थी। उसने सोचा कि वो उनके साथ ही जाकर बैठ जाती है उन्हें भी कंपनी मिल जायेगी और उसके दिल का डर भी कुछ हद तो कम हो ही जायेगा। वह उठी और उनकी टेबल के पास जाकर खड़ी हो गई।

क्या मैं आपके साथ बैठ सकती हूँ? राशि ने बड़े अनुनय भरे शब्दों में उनसे कहा ! उसके चेहरे से लाचारगी झलक रही थी।

अरे बेटा, बैठ जाओ। आप इतनी परेशान क्यों लग रही हो? घरवाले कहाँ है?

वे लोग कमरे में है मेरा मन काफी पीने का कर रहा था, तो यहाँ आ गई।

ठीक है बैठ जाओ, मुझे भी काफी पीनी है, तुम्हारे साथ पीकर अच्छा लगेगा।

वेटर एक ट्रे में तीन काफी के कप लाकर वहीं मेज पर रखकर चला गया।

अरे! हम दो काफी तीन, क्या आंटी दो कप पियेंगी? एक कप खत्म होने तक दूसरा तो बिल्कुल ही ठण्डा हो जायेगा। वे बाद में मँगा लेती। इतने परेशानी भरे समय में थी उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट खेल गई।

आपको काफी बहुत पसंद है न ? राशि ने दूसरे कप की तरफ देखते हुए कहा।

हाँ, मुझे बहुत पसंद है। अगर मेरा वश चले तो मैं सिर्फ काफी पीकर ही गुजारा कर लूँ । हाहाहा ! वे हंसी !

वाह! क्या अच्छी बात कहीं आपने। आप में दूसरो को हंसा देने के उम्दा गट्स है।

ये गट्स बट्स हम नहीं जानते बस। हाँ हम गट्टे की सब्जी बहुत अच्छी बनाते हैं। बच्चे तो उंगलियां चाटते रह जाते है और कहते जाते है। माँ आप इस दुनियाँ की सबसे अच्छी कुक हो। आपके सामने 5 स्टार होटल के कुक भी फेल हैं ।

अरे हाँ माम आजकल आप संजीव कपूर से बढ़िया खाने बनाने लगी है। अगर आप खाना खजाना प्रोग्राम में शिरकत कर लो तो पूरी दुनियाँ आप की फैन हो जायेगी संजीव कपूर को भूल जायेगी। बेटा, ये कुछ ज्यादा ही नहीं हो रहा है। मेरे इतना कहते ही वे सब चुप हो जाते है।

हाहाहा ! वाह! आंटी, आप तो बहुत ही जिंदा दिल हो, मुझे आपसे मिलकर बहुत ही ज्यादा अच्छा लगा। उसके मन का डर कहीं छूमंतर हो गया था।

अच्छा भई ठीक है चलो पहले काफी पी लें। सावले रंग की वो महिला सुंदर नाक नक्शे वाली थी। उम्र की परछाई चेहरे पर झलक आई थी। फिर भी उनके चेहरे में कमाल की कशिश थी।

तभी तेजी से चलती हुई आई वो महिला, जिसने बंद गले का लंबा सा कुर्ता और लैगिंग पहनी हुई थी।

आते ही बोली मैडम, प्लीज सॉरी, मुझे देर हो गई। घर से पति का फोन आ गया था।

आयेगा ही, जब पत्नि इतने दिनों तक के लिए अकेला छोड़ आयेगी। बेचारा पति।

मैडम, आप ऐसी बात मत कीजिए ! आपकी खातिर ही चली आई हूँ और अब आप ही ऐसे कर रही हो।

अरे बुरा मान गई, मैं तो मजाक कर रही थी। अब मुस्कुरा दो ! पता है भाई पता है कि आपको अपने पति देव की बहुत याद आ रही है, है न। अब बोल भी दो याद करके आँसू न बहाओ ! ये सुनकर वे जोर से खिलखिला पड़ी। कितनी अण्डरस्टैडिंग है इन लोगों में ! दोनों बिलकुल बहनों जैसी लगती हैं और है दोनों पक्की सहेलियाँ। ऐ दोस्ती के रिश्ते बड़े प्यार होते है न। पल भर में रोते को हँसा देते हैं। वे वही पर बैठ गई और काफी पीने लगी। उनका नाम कपिला था और वे दोनों एक ही कालेज की प्रोफेसर थी वे यहाँ पर घूमने आई थी। दोनों को एक दूसरे का साथ मिल गया। पति को छुट्टी नहीं मिली थी दोनों की जाॅब की बजह से ! ! पर बच्चे बड़े हो गये। तो कुछ पल मस्ती भरे बिताने संग साथ चली आई थी। राशि को उन दोनों महिलाओं के पास बैठकर बहुत सकून मिला। मन में समाया भय गायब हो गया था। वे लोग राशि से खूब घुल मिल कर बातें करनी लगी थी, उसे घर की याद आ गयी ! माँ का प्यार याद आया और आँखों में आँसू भर आये, वैसे ये आँसू प्यार से ज्यादा उनके लिए थे जिनसे उसे प्रेम था।

हाँ उसे अहसास हो रहा था रवि वैसे नहीं है जैसा वो सोच रही है ! वे भी उसे प्रेम करते हैं । उन्होंने उसे पा लिया और अपना बना लिया ! वो अब उसके ही हैं ! लेकिन वो टूटने क्यों लगी है ? उसे सहारा क्यों चाहिए ? क्यों चाहिए कंधा रोने के लिए। उसे रवि पर विश्वास बनाए रखना चाहिए ! वो वायदे जो रवि ने किए हैं वे उन्हें कभी नहीं तोड़ेंगे ! कोई अगर किसी पर अडिग विश्वास करें तो उस विश्वास को तोड्ने की हिम्मत किसी में नहीं !

माँ...... अचानक से उसके मुँह से निकल गया बल्कि वह चीख चीख कर माँ से माफी मांगना चाहती थी। माँ मैं ठीक नहीं हूँ। मैं आपके पास अभी इसी वक्त आना चाहती हूँ, परन्तु ये कैसे संभव हो सकता था।

क्या हुआ बेटा ? सामने बैठी शशि मैडम ने पूछा। वे दोनों उसके चेहरे पर उभरी पीड़ा को देखके कुछ विचलित सी हो गई थी। एक महिला का दर्द दूसरी महिला ही समझ पाती है भले ही वो साथ दे न दे। उसने अपने सिर को झटका, थोड़ा दिमाग हटाया और मन में विश्वास भर के बोली, कुछ नहीं, बस यूँ ही !

अभी भी तुम रो रही हो, बताओं न क्या बात है? तुम किसके साथ आई हो ? कोई हैं तुम्हारे साथ में ? उन्होंने एक साथ कई सवाल दाग दिये थे।

हाँ मेरे साथ में कुछ लोग और भी हैं परन्तु वे सब अभी अपने कमरे में है इसी होटल में। मैं अपने कमरे में अकेली थी, तो सोचा कुछ देर बाहर घूम आऊँ क्योंकि मेरा मन नहीं लग रहा था। वे लोग अभी आराम कर रहे हैं तो उन्हें डिस्टर्ब नहीं किया !

इस होटल में ही है।

हाँ यही है।

चलो फिर ठीक है।

अभी वे आपस में बातें कर रही थी। एक दूसरे के बारे में जानना समझना। वैसे भी जहाँ चार महिलायें एक साथ हो और चुप हो। ये दुनियाँ का सबसे बड़ा जोक है। अपने आप से बातों का सिलसिला चल निकलता है बिन बात के ही अनेकों बातें निकलती चली आती है। बीना मैडम जिनके पति शादी के दूसरे वर्ष ही गुजर गये थे, अपने दो माह के जुड़वा बच्चों को उसके अकेले और कमज़ोर कंधों पर डाल कर परन्तु बीना मैडम ने कभी खुद को अकेला या कमजोर नहीं समझा। वे शिद्दत से अने कर्म में जुट गई ! पढ़ी लिखी तो थी ही, एक कालेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हो गई। सब सही हो गया। कोई परेशानी नहीं। बस कोई कमी थी तो बस जीवन साथी की ! अपना सुख दुःख कहने बताने वाला उनके पास कोई न था। रिश्तेदारों का सहारा, कभी नहीं देखा। काॅलेज और घर यही उनकी दुनियाँ थी। कालेज में सब अधिकतर महिलायें ही थी एकाध पुरूष थे। घर जैसा माहौल लगता ! एक दूसरे के सुख दुःख में हमेशा तत्परता से लगी रहती ! बिन कहे ही एक दूसरे की परेशानी समझती।

आशा मैडम अभी जल्द ही आई है अपनी माँ जैसा सम्मान करती है उनका। उनके एक बार कहने भर से ही साथ चली आई अपने पति और दोनों छोटे बच्चों के अकेला छोड़कर। हालांकि पति ने ही परमिशन दी थी कि जाओ आप लोग घूम आओ मैं घर और बच्चे संभाल लूंगा, कहा मिलती है छुट्टियाँ या कहीं बाहर घूमने के लिए। फिर मैं भी तो अभी जून की छुट्टियों में खाली ही हूँ। उन्हें भी साथ चलने को कहा था किंतु उन्होंने मना करते हुए कहा, नहीं भई आप दोनों घूम आओ अगली बार चलेंगे।

बहुत प्यारे है आप के पति।

पति हमेशा प्यारे ही होते हैं बस उन्हें प्यारे बनाये रखना होता है। अच्छा चलो बाहर घूमकर आते हैं आपको चलना है राशि?

हाँ चलूँगी, कह कर आती हूँ उन लोगों से?

ठीक है। आप लोग इसी जगह पर बैठी मिलना। उसके दिल से उन लड़को का खौफ निकल गया था मन में कोई डर का भाव नहीं। ध्यान भी नहीं रहा था उन लोगों की बातों ने मन में गजब का आत्मविश्वास जगा दिया था। राशि ने लिफ्ट के बटन को प्रैस कर दिया। लिफ्ट का दरवाजा खुला, देखा सामने वही चार लड़के, उसका दिल घबरा गया, आत्मविश्वास पल भर में ही डगमगा गया। आखिर इस पुरूष जाति ने कैसा डर का भाव भर दिया है हम महिलाओं के मन में। लिफ्ट का दरवाजा खुला था परन्तु वह उसके अन्दर नहीं जा पा रही थी और न ही वे लड़के बाहर निकलने का ही कोई अनुक्रम कर रहे थे। क्या करे वह? तभी पीछे से एक सरदार जी उसे धक्का देते हुए बोले चलो बेटा, खड़ी क्यो हो। वह उन लड़कों के बीच में खड़ी हो गई एक मिनट का रास्ता सदियों सा लगा। वो खुद में सिमट गयी थी। सरदार जी तो फस्र्ट फ्लोर पर लिफ्ट के खुलते ही तेजी से बाहर निकल गये उसे थर्ड फ्लोर तक जाना था। उसने थर्ड नम्बर का बटन दबा दिया।

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