कमसिन - 17 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कमसिन - 17

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(17)

वो एक बहुत सुंदर होटल था ! उसकी पार्किंग में कार खड़ी करने के लिए चाबी वाचमैन को दे दी ! और वे दोनों उस सुंदर और विशाल होटल के अंदर आ गए ! अंदर प्रवेश करते ही एक खूब सुंदर लॉबी जहाँ पर सोफे पड़े हुए थे ! उन सोफों पर कुछ लोग भी बैठे हुए थे ! वहीँ पर रिसेप्शन काउंटर था एक बड़ा सा एक्वेरियम रखा था ! बेहतरीन, कलात्मक लकड़ी की मूर्तियों से सजा हुआ ! रवि ने काउंटर पर जाकर बात की और दो चाबियाँ लेकर आ गए !

चलो राशि !

वो रवि के पीछे हो ली ! लिफ्ट में उन दोनों के अलावा दो लोग और भी थे ! राशि बात करना चाह रही थी किन्तु अनजान लोगों के सामने कोई भी बात करने में उसे हिचक महसूस हो रही थी ! उनके रूम तीसरी मंजिल पर थे ! लिफ्ट से निकल कर रवि ने एक कमरे के सामने खड़े होते हुए कहा, यह आपका रूम है !

मेरा, मतलब मैं अकेले ?

हाँ, मेरा उधर गैलरी के आखिर में है !

कमरे अलग अलग क्यों ? हम तो पति पत्नी हैं ?

हैं तो लेकिन अभी हम कानूनन पति पत्नी नहीं हैं न, इसलिए अभी साथ में रहने का हक़ नहीं है ?

चलो अब तुम आराम कर लो ! कहकर वो अपने कमरे में चला गया !

आराम कैसा आराम ? जब मन परेशान हो तो तन को चैन कहाँ ?

उसका मन घबराहट से भर गया ! क्या उसने रवि पर विश्वास करके गलत किया है ? थके क़दमों से कमरे के अंदर जाकर देखा उसका सामान वहाँ पर पहले ही कोई रख गया था ! वो कमरा क्या बल्कि एक छोटे से घर जैसा था खूबसूरत और सजा हुआ ! बेडरूम, उसी से अटेच्ड वाशरूम बराबर में लाबी !

बेडरुम में एक बड़ा सा बेड जिस पर मोटे मोटे गद्दे पड़े थे, कुशन और तकिये लगे हुए ! साईड में टेबल जहाँ फोन और पानी का जग ! लकड़ी की कवर्ड, लकड़ी का सुंदर सा ड्रेसिंग टेबल ! खूब बड़ा सा आइना उस ड्रेसिंग टेबल की शोभा बढ़ा रहा था ! लकड़ी के नक्काशीदार काम से सुसज्जित वो कमरा बेहद खुबसूरत था फिर भी राशि के मन में ख़ुशी का कोई अंकुर नहीं फूटा ! बल्कि रवि से दूर होने के अहसास भर से ही उसके मन में हूक सी उठी और आँखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली ! इन आंसुओं पर कोई जोर नहीं ! क्या वह अकेले इतने बड़े इस कमरे में रहेगी ? उसने तकिये में अपना मुँह छिपा लिया और उलटी होकर बेड पर लेट गयी ! पूरा तकिया गीला हो गया था लेकिन आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे ! कभी भी इतने बड़े कमरे में वो अकेली नहीं रही है ! रवि की वजह से ही तो वो सबसे झूठ बोलकर आई है और रवि का यह कैसा व्यवहार था जो उसकी समझ से एकदम परे था ! आखिर अचानक से रवि बदल कैसे गये ? उससे सहन नहीं हो रहा था उसकी आत्मा तक दर्द से कराह उठी !

उसे वह दिन याद आया जब रवि ने अपने स्टडी रूम में एक कागज पर अपने हाथ से हर रंग से आई लव यू लिखकर दिया था और नीचे को कलात्मक तरीके से अपने साइन कर दिए थे ! जो उसने बहुत संभाल कर अपनी किताबों की अलमारी में सहेज कर रख लिया था ! उनकी आँखों से टपकती नेह की धारा उसके मन में बस गयी थी ! फिर अचानक से उसे हुआ क्या है ?

वो उन नजरों से ही यह सवाल करना चाहती थी ! लेकिन कैसे करे क्योंकि रवि तो उसके इतने करीब होकर भी उससे इतनी दूर थे ! !

कमरे के बाहर किसी ने नॉक किया शायद रवि होंगे ? इस बात को सोचकर वह ख़ुशी से रोते हुए भी मुस्कुरा उठी ! तेजी से भाग कर दरवाजा खोला ! देखा तो होटल का सर्विस बॉय खड़ा हुआ था ! ख़ुशी फिर से उदासी में बदल गयी ! नमस्कार मैडम ! क्या आप चाय लेंगी ? उधर सामने वाले कमरे के साहब ने पुछवाया है ! उसने रवि के कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा !

नहीं, मैं चाय नहीं पिऊँगी हालाँकि उसके सर में बहुत तेज दर्द हो रहा था और उसे चाय पीने का मन भी कर रहा था ! रवि ने कहलवाया है, इस गुस्से के कारण मना कर दिया था ! वैसे रवि के अलावा यहाँ और कौन बैठा है जो उसे मनाने के लिये आएगा और रवि तो भूले से भी आने से रहे ! राशि तू अकेली है एकदम अकेली तेरे साथ कोई नहीं है कोई भी नहीं क्योंकि रवि तो होकर भी कहीं नहीं हैं !

मन में भयंकर कोलाहल मचा हुआ था ! अब क्या करे ? कहाँ जाए ?

यूँ ही बहुत देर तक खड़ी रही फिर दरवाजा बंद करके अंदर आ गयी ! उस लड़के को कितनी देर तक घूरती रही थी, न जाने क्या सोच रहा होगा ! हुंह सोचने दो ! वो कोई उसका जानने वाला या रिश्तेदार तो है नहीं ! राशि बेड पर उसी मुद्रा में लेट गयी !

इतनी बैचैनी घबराहट और आंसुओं का सैलाब ! उसे बेहद अकेलेपन का अहसास हो रहा था ! उसने अपना मोबाइल उठाया और बाहर निकल आई ! किसी से थोड़ी देर बात कर लूँ तो मन में कुछ तसल्ली आये ! कुछ हल्कापन महसूस हो !

रवि के व्यवहार में अचानक से इतनी तब्दीली आ कैसे गयी ! उसे बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ! उनसे कैसे पूछे ? कहीं वे और भी ज्यादा नाराज न हो जाएँ ! इन्हीं विचारों में उलझी हुई थी ! आत्ममंथन चल रहा था ! उसने अपनी सहेली पूजा को फोन मिलाया कि थोड़ी देर बात करके मन को बहला ले ! जब हम प्रेम में होते हैं तब अपने मन को बहलाने के लिए न जाने कितने लोगों से बात करते हैं परन्तु मन तब भी नहीं बहलता है !

हाय राशि, कैसी हो ? फोन उठाते ही उधर से पूजा बोली !

हाय ! मैं ठीक हूँ तुम कैसी हो ?

कहाँ पर हो आजकल ?

कहाँ पर होउंगी बस अपने होस्टल में ! राशि ने उससे झूठ बोला !

बहुत दिनों के बाद फोन किया ! याद नहीं आती न मेरी ? वैसे भला क्यों आएगी मैं तो अपने छोटे शहर की ही पढने वाली और तुम बड़े शहर के बड़े कालेज में पढने वाली !

ओह पूजा ऐसी बातें क्यों करती हो अगर तुम्हारी याद नहीं आती तो फिर मैं फोन क्यों करती !

चलो कोई बात नहीं, तुम कभी न फोन करती हो न मेसेज इसलिए कह दिया !

हाँ इन दिनों थोडा ज्यादा व्यस्त हो गयी थी पढाई में ! पूजा यार तू ही कर लिया कर जब मैं नहीं करती हूँ ! क्या तू भी भूल जाती है ?

हाहाहा, बहन तू भी न !

अब क्यों हँस रही है ? क्या कुछ गलत कहा है मैंने ? तुझे पता है कभी कभी कितना अकेलापन महसूस करती हूँ घर से दूर इस होस्टल में ?

कमरे के बाहर लम्बी सी गैलरी थी वहीँ पर टहलते हुए वह बात कर रही थी !

राशी ने देखा कि गैलरी के पास एक तरफ को फब्बारा लगा हुआ था जिसके चारो तरफ सोफेनुमा कुर्सियां पड़ी हुई थी ! वो उस सोफे पर बैठ गयी, वहां पर बहुत ही अच्छा लग रहा था, रंगबिरंगी लाइट्स के साथ फब्बारे से गिरता हुआ पानी को देखना !

अच्छा पूजा अभी फोन रखती हूँ ! कभी मन किया करे तो मैसेज या फ़ोन कर लिया करो ?

ठीक है और तुम भी !

ओके बाय !

बाय ! !

राशि ने फोन रख दिया था ! पूजा से बात करने के बाद भी मन में हल्कापन नहीं आया था !

उसका जी चाहा कि वो रवि के कमरे में चली जाए और थोड़ी देर उनसे बात करे शायद घबराहट में कुछ तसल्ली हो !

वो उठी और गैलरी के आखिरी छोर पर बने रवि के कमरे तक चली गयी ! कमरे का दरवाज़ा थोडा सा खुला हुआ था वहां से रवि की हलकी हलकी आवाजें उसके कानों में पड़ रही थी ! उनकी आवाज सुनना भी मन को प्रफुल्लित कर देता है !

मैं बहुत प्यार करती हूँ रवि तुमसे, बहुत ज्यादा ! राशि जोर से चीख कर यह बात सबको बता देना चाहती थी !

आने मे कोई परेशानी तो नहीं हुईं? रवि किसी से पूछ रहे थे !

नहीं कोई भी परेशानी नहीं।

रवि के कमरे से महिला का स्वर सुनकर वह चौक गई।

कौन है ये?

अभी जाकर रवि से पूछ लेती हूँ लेकिन उसके कदम ठिठक गये, इस तरह शोभा नहीं देता न, किसी गैर के सामने यूँ बात क्या करना।

चलो फिर चाय पी लो, थकान उतर जायेगी। सुबह से कुछ खाया पिया भी है न। या फिर मुझसे मिलने की खुशी में व्रत कर कर लिया।

ऊँह बड़े आये, मैं पूरी तरह से खा पीकर फिट रहती हूँ। सुबह नाश्ता किया दोपहर में लंच ढाबे पे किया। मैं भूखी नहीं रहती।

हाँ तुम्हारी ये आदत मुझे बहुत पसन्द है।

रवि और उस महिला की बाते सुनती हुई राशि ने सोचा ये कोई अनजान तो नहीं लग रही जरूर कोई खास ही है। इतनी बेतकुल्लफी से कोई बेहद करीबी से ही बात कर सकता है ! उसके मन में रवि के लिए वितृष्णा का भाव पैदा हो गया। झूठे व्यक्तित्व के रूप में उनका चेहरा उभर आया। उसका मन दरवाजे को ढेलकर भीतर जाने का किया परन्तु अंदर से आती पदचाप को सुनकर वह ठिठक गई और तेज कदमों से चलती हुई बाल्कनी की तरफ आकर खड़ी हो गई।

***