Khatti Mithi yadon ka mela - 12 books and stories free download online pdf in Hindi

खट्टी मीठी यादों का मेला - 12

खट्टी मीठी यादों का मेला

भाग – 12

(रात में बेटी के फोन की आवाज़ से जग कर वे, अपना पुराना जीवन याद करने लगती हैं. उनकी चार बेटियों और दो बेटों से घर गुलज़ार रहता. पति गाँव के स्कूल में शिक्षक थे. बड़ी दो बेटियों की शादी हो गयी थी. बड़ा बेटा इंजीनियरिंग और छोटा बेटा, मेडिकल पढ़ रहा था. ससुर जी के निधन के बाद सास बिलकुल ही अकेली हो गईं थीं )

गतांक से आगे

स्मिता ने भूगोल की किताब में पढ़ कर बताया था कि सूरज स्थिर रहता है और हमलोग जिसपर जन्मे हैं वो पृथ्वी उसके चारो तरफ चक्कर लगाती रहती है, वे सोचने लगीं, क्या औरत आदमी का भी कुछ ऐसा ही रिश्ता है. ? आदमी सूरज की तरह स्थिर रहता है और औरत की सारी दुनिया उसके चारो तरफ ही घूमती रहती है. फिर यह भी विचार आया मन में और जब कभी सूरज डूब जाता है तो अँधेरी रात आ जाती है, पर सूरज तो दूसरे दिन फिर निकलता है. जबकि पति के जाने के बाद औरत की ज़िन्दगी में ऐसी अँधेरी रात आ जाती है जो कभी ख़त्म ही नहीं होती.

उसका सूरज तो हमेशा के लिए डूब जाता है, औरत की दुनिया ही रुक जाती है, अब वो किसके गिर्द चक्कर लगाए? वो चलना ही भूल जाती है. जबकि अगर औरत कहीं बिला जाए, गायब हो जाए तो आदमी को कौनो फरक नहीं पड़ता. कोई दूसरी औरत आ जाती है चक्कर लगाने नहीं तो वह अपनी जगह वैसे ही स्थिर रहता है. उसका कुछ नहीं बदलता. पर ये नियम किसने बनाए हैं ? भगवान ने या फिर खुद आदमी ने? उनका दिमाग कुछ काम नहीं करता.

कहीं भी शादी ब्याह हो, अब अम्मा जी उन्हें ही जाने को कहतीं. खुद अँधेरे में लेटी रहतीं. फिर उनका मन भटकने लगता, अब ये नियम किसने बनाए? जिस दादी, चाची, माँ का ह्रदय बच्चे के लिए आशीष से लबालब रहता, हरदम ओठों पर उनके सुख की कामना रहतीं उन्हीं के रस्मों में भाग लेने से कुछ अशौच हो जायेगा? कुछ छू देने से अपवित्र हो जायेगा? मन ही मन प्रण लिया उन्होंने, चाहे जो हो जाए... गाँव वाले कुछ भी कहें, दोनों पोते और पोतियों के ब्याह में अम्मा जी हर रस्म करेंगी. उनको बिलकुल भी वे दूर नहीं रहने देंगी.

पर सोचा हुआ भी हुआ है कभी? अम्मा जी की अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही और खाने पीने से अरुचि बहुत महँगी पड़ी. सिर्फ मलेरिया हुआ. लगा ठीक हो जाएँगी. डॉक्टर भी कहते, कोई चिंता की बात नहीं. पर अम्मा जी की कमजोर काया यह बीमारी झेल नहीं पायी और वे भी सबको रोते-बिलखते छोड़, बाबूजी के पास चली गयीं.

पति के चेहरे की तरफ देखा नहीं जाता. पहले ही कम बोलते थे अब तो ऐसे गुमसुम हुए कि मशीन की तरह बस श्राद्ध कर्म निबटाते रहें. ननदें आयीं, ऎसी दिल दहलाने वाली आवाज़ में रोयीं कि आज भी कलेजा काँप जाता है. ममता, स्मिता प्रकाश, प्रमोद सब आए. पर इतने लोगों के होते हुए भी घर मे सन्नाटा छाया रहता. छोटे बच्चे भी सहम कर धीरे धीरे रोते. अब तो बिलकुल अनाथ हो गए सब.

अम्मा जी के जाने के बाद.. घर में अंदर-बाहर सब सन्नाटा सा छाया रहता. बाबूजी के जाने से ही अहाता सूना हो गया था. शाम होते ही शंकर की आदत थी, चार-पांच, कुर्सियां अहाते में रख देता, बाज़ार आते-जाते कोई ना कोई बैठ बाबूजी से गप्पें किया करता, ऊँची आवाज़ में उनलोगों के ठहाके गूंजते रहते. उनके जाने के बाद भी यह क्रम टूटा नहीं, बस बुजुर्गों के ठहाके की जगह, बच्चों की खिलखिलाहटों ने ले ली. अम्मा जी कुर्सी पर बैठी होतीं और ढेर सारे बच्चे अहाते में खेला करते. रौनक बनी रहती.

दिन में भी अम्मा जी, बरामदे में चौकी पर बैठी होतीं और गाँव की कोई ना कोई घास काटने वाली, या गाय - भैंस चराने वाले पाए से पीठ टिकाये सुस्ताते होते. गाँव भर के हाल-चाल.. अपने घर के पड़ोसी के किस्से, सुनाया करते. अक्सर अम्मा जी सिवनाथ माएँ को आवाज़ देतीं और वह उनके लिए कुछ खाने-पीने का लेकर हाज़िर होती. वे भी काम से खाली होतीं तो चौखट के पास एक मचिया लिए बैठी जातीं और सबकी बातें, सुना करतीं.

शाम को तो उन्हें बिलकुल समय नहीं मिलता. शाम को पति स्कूल से लौटते, तो उनके चाय-नाश्ते, फिर रात के खाने की तैयारियों में लगी होतीं. अब दिन भर वह सूना बरामदा और शाम को सूना अहाता देख, उनकी आँखें भर आतीं. पर वे यह सोच आँसू अंदर ही अंदर पी लेतीं कि शाम को आँसू गिराना अपशकुन माना जाता है.

वे पति को कहतीं, शाम को बाहर बैठने के लिए. पर पति ज्यादा सामाजिक नहीं थे, वे गाँव वासियों से ज्यादा मिलते जुलते नहीं थे... तुरंत ही ऊब जाते और कमरे में आकर कोई किताब खोल लेते. एक उनका नया साथी भी बन गया था रामजस बाबू. वह भी कमरे मे आकर ही बैठा रहता. अम्मा जी के श्राद्ध कर्म में काफी मदद की थी. अब भी जब पैसों की जरूरत पड़ती और जमीन या बगीचा गिरवी रखना या निकालना होता तो मदद करता. सही लोगों से पहचान करवाता. पति तो एकदम अनाड़ी थे. बाबूजी के रहते कभी कुछ जानने की कोशिश ही नहीं की. फिर भी इतना मीठा बोलता कि उन्हें पसंद नहीं आता. उन्होंने अम्मा जी से उसके बारे में एक बार पूछा भी था कि उसका खर्च कैसे चलता है? सुन्दर पक्का मकान था, उसका. बीवी बड़ी सुन्दर साड़ियाँ पहना करती, बेटा दूर शहर में पढता था और जमीन जायदाद या नौकरी कुछ थी नहीं. सात भाई था, सबके हिस्से बस टुकड़े भर जमीन आई थी. अम्मा जी ने बड़ी विद्रूपता से कहा था... "क्या करेगा... तेला-बेला करता है"

पर वे समझ नहीं पायी थीं. पर अब समझ रही थीं. उसका यही काम था और कमीशन से उसके घर के खर्चे चलते. मन में शंका भी जन्मी... ना जाने कितना कमा लेता है, बीच में. पति से भी जिक्र किया... पर उन्होंने कहा... "अब मुफ्त में आगे-पीछे थोड़े ही ना करेगा... कोर्ट कचहरी सब जगह साथ जाता है, मुझे भी तो कोई साथ चाहिए. "

और ये कोर्ट कचहरी का चक्कर बढ़ता ही गया. रोज ही बेटों की मांगें सुरसा की तरह मुहँ बाए खड़ी रहतीं. जिनमे सुन्दर खेत - खलिहान, बाग़ बगीचे समाहित होते जा रहें थे.. एक बार प्रमोद से कहा भी था, कि जरा खर्चे संभाल कर किया करो. तो उसने कह दिया था, "पता है एक एक किताब कितने की आती है? अब डाक्टर बनाने का शौक है तो खर्चा तो करना पड़ेगा. "

पति के सामने चिंता व्यक्त करतीं तो कहते... "अरे बस बेटों की नौकरी भर लगने की देर है, देखो.. कैसे सब छुड़ा लेता हूँ "

पर उन्हें थोड़ा शक होने लगा था, दोनों बेटे जैसे शहरी रंग ढंग में ढल रहें थे और घर से दूर होते जा रहे थे. उन्हें नहीं लगता था कि उनको कोई फिकर थी कि उनकी पढ़ाई के पैसे कहाँ से आ रहे हैं ? जब भी छुट्टियों में आठ- दस दिनों के लिए आते और साथ में आते उनके दोस्त. जिन लोगों ने गाँव नहीं देखा होता. दिन भर बेटे फरमाईशी चीजें बनवाते और सारा दिन बागों में घुमा करते. रात को देर तक छत पर उनकी हंसी -मजाक चलती रहती. कभी दो पल, अपने पापा जी के पास या उनके पास बैठ उनका हाल-चाल लेने की जरूरत नहीं समझते.

नमिता से तो पहले ही नहीं बनती थी उनकी. और नमिता को भी उसके दोस्त फूटी आँखों नहीं सुहाते. प्रकाश का एक दोस्त साथ आया था और गले में कैमरा लटकाए सारे दिन गाँव में घूमता रहता और तस्वीरें उतारता रहता. एक बार उन्हें लगा भी कि ये पेड़ पर चढ़ी नमिता की तस्वीर उतार रहा है या पेड़ की?? फिर उन्होंने सोचा... पत्तों में छिपी नमिता वैसे भी नहीं दिख रही. क्या फोटो लेगा.

लेकिन जब पुआल के ऊँचे ढेर पर बैठी, ईख चबाती नमिता की तस्वीर वो सामने से खींचने लगा तो उनका माथा ठनका.... वे बाहर निकल, प्रकाश को बताने ही जा रही थीं कि देखा नमिता उस लड़के की तरफ बढ़ रही है. वे खिड़की के और करीब आ गयीं सुनने कि आखिर करती क्या है, लड़की? नमिता ने सीधा पूछा, "आपने मेरी फोटो क्यूँ खींची??"

"वो मैने ऐसी लड़की कभी देखी नहीं, ना, पेड़ पर चढ़ने वाली.... इतने ऊँचे ढेर पर बैठी ईख चबाने वाली... इसीलिए खींची.. सब नया है मेरे लिए"

"अच्छा और भी नए तरह के फोटो खींचने हैं आपको?"

हाँ.... जरूर"

और नमिता ने बगल की सड़क से गुजरते, भैंस की पीठ पर लेटे किसना को आवाज़ दी.. "किसना चल.. भैंस को इधर लेके आ"

उसके करीब आने पर बोला उसे.. "उतर नीचे" और प्रकाश के दोस्त की तरफ मुड़ी... "आपको एकदम नए तरह का फोटो चाहिए ना?"

" हाँ... "

और आगे बढ़कर उसने उस लड़के के हाथ से कैमरा ले लिया.. "चलिए मैं खींच देती हूँ.. एकदम नए तरह का फोटो.... "

"क्या मतलब... मेरा कैमरा दे दीजिये... अरे संभाल के" अब उसे कुछ आशंका होने लगी थी.

"मुझे पता है.. कैसे फोटो खींचते हैं, कैमरे से... मेरी बम्बे वाली दीदी के पास है" अब बाहर कहीं भी वो छोटकी दीदी की बजाए स्मिता को बम्बे वाली दीदी ही कहती थी.

"आप भैंस की पीठ पर बैठ जाइए... बुशर्ट पैंट में भैंसा पर बैठा शहरी लड़का.. एकदम नए तरह का फोटो लगेगा"... किसना और मीरा दोनों हाथों से मुहँ दबाये खी खी करके हंस रहें थे.

नमिता ने घुड़का... "हंस क्या रही है... ले ईख पकड़.... "और कैमरा संभालने लगी.

"मेरा कैमरा दीजिये... अब मुझे नहीं खींचना... "

"क्यूँ नहीं खींचना... आपने मेरा खिंचा.. हिसाब तो बराबर होना चाहिए... चलिए चलिए.... किसना भैंस को भैया साब के करीब ला"

और उसने भैंस के साथ उस लड़के की फोटो ले ली

तभी भैंस ने जोर से रम्भा कर पूंछ हिलाई और थोड़े गोबर के छींटे लड़के के ऊपर पड़ गए और वह डर कर दूर छिटक गया.

"अरे डरिए मत.... वो थैंक्यू बोल रही है, आपको.. आपने उसके साथ फोटो खिंचवाया ना. " मीरा और किसना फिर से हंस पड़े.

"चल मेर ईख दे... ये लीजिये अपना कैमरा... सबको जरूर दिखियेगा.. एकदम नए तरह का फोटो है"

वो लड़का... मुहँ लटकाए कैमरा लिए घर में वापस आ गया. और प्रकाश से कहने लगा, अब उसे जाना है... शाम को कितने बजे बस मिलेगी?"

वे हंसती हुई वापस अपने काम में लग गयी... "ये लड़की है या अगिया बैताल... सारे मामले खुद सलट लेती है. किसी की मदद की जरूरत नहीं उसे.

(क्रमशः )

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