Giribi ke aachran - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

ग़रीबी के आचरण - ५

श्रीकान्त अंकल जी का अपना घर अब उन्हीं को खाने को दौड़ता था। क्योंकि अब उनके उस किराये के बड़े से मकान में पूरे दिन कोई भी नही रहता था। सिवाय श्रीकान्त अंकल जी और उनकी बूढ़ी मॉं को छोड़कर। क्योंकि उनकी पत्नि और बच्चे सुबह काम पर जाते थे, और शाम के समय ही घर में पाँव रखते थे।लेकिन शान्ति आंटी सुबह जल्दी उठकर अपने और घर वालो के लिए खाना बना लेती थीं। और फिर शाम को काम पर से थोड़ा जल्दी आकर शाम के खाने की तैयारी करती थीं।श्रीकान्त अंकल जी सोचते थे कि ' अगर मेरे हालात इतने बुरे नही चल रहे होते तो मेरी बीवी और मेरे दोनों बेटे घर में होते। लेकिन वो कहते हैं ना, 'कि समय बलवान होता है।' श्रीकान्त अंकल जी का समय ही ख़राब चल रहा था। इसलिए उनके कोई भी काम नही बन रहे थे। वो ड्यूटी करना चाहते थे। पर शरीर के दर्द ने उनसे उनका ये हक़ भी छीन रखा था।
एक बार श्रीकान्त अंकल जी और उनकी बूढ़ी मॉं घर पर थे। घर के बाकि सभी सदस्य अपने-अपने काम पर गये हुए थे। वैसे श्रीकान्त अंकल जी ठीक तो थे। पर जैसा मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ। कि श्रीकान्त अंकल जी को या दिन में या फिर हफ़्ते में बहुत ही ज़ोर का दर्द होता था। और वो दर्द शरीर के किसी एक अंग से शुरू होता था। और होते-होते पूरे शरीर को अपने कब्ज़े में ले लेता था। जिससे श्रीकान्त अंकल जी को लगता था कि अब शायद वो नही बच पायेंगे, यमराज उनके प्राण लेने के लिए उनके घर के दरवाज़े पर ही खड़े हैं। दरअसल, जब श्रीकान्त अंकल जी के घर के सभी लोग अपने काम पर चले गये थे। और घर में कोई भी नही था, सिवाय उनकी बूढ़ी मॉं के। तो अचानक श्रीकान्त अंकल जी को वैसा ही भंयकर दर्द होना शुरू हुआ, जैसा कि मैं अभी आपको बता रहा था। वो दरअसल, अपनी बूढी मॉं को खाना वगैरह देकर अन्दर के कमरें में जिसमें एक तरफ़ एक टूटा सा पलंग पडा था, और दूसरी ओर एक चारपाई पडी हुई थी। जिसमें से कहीं-कहीं से कुछ रस्सियॉं टूट कर बाहर की ओर निकल रही थी। और वहीं उस चारपाई के बिल्कुल पास में एक पुरानी बड़ी-सी मेज़ पड़ी थी। जिस पर शान्ति आंटी बिस्तरों को तय लगा कर रख दिया करती थीं। उस कमरे में जाकर उस चारपाई पर लेटे हुए थे। श्रीकान्त अंकल जी लेट कर बस यही सोच रहे थे कि अगर आज मैं इस परेशानी में नही होता तो आज मेरे बीवी और मेरे दोनो बच्चे यहॉं घर पर होते। और मैं दुनिया के हर ज़िम्मेदार पति और पिता की तरह उनके लिए पैसे कमाकर लाता। और अपने बीवी बच्चों व पूरे परिवार को खुश रखता। लेकिन मैं क्या करूं.? मैं इतना बदनसीब हूँ कि अपने परिवार को खुशियां भी नही दे सकता। मुझसे अच्छे तो जानवर होते हैं। कम से कम वो अपने बच्चों को तो खुश रखते हैं।' श्रीकान्त अंकल जी हर रोज़ अपने अाप को इसी तरह कोसते रहते थे।...

मंजीत सिंह गौहर

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