The Author Manjeet Singh Gauhar फॉलो Current Read ग़रीबी के आचरण - ५ By Manjeet Singh Gauhar हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books Between Feelings - 3 Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,... वेदान्त 2.0 - भाग 20 अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि... Avengers end game in India जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल... Bhay: The Gaurav Tiwari Mystery Episode 1 – Jaanogey Nahi Toh Maanogey Kaise? Plot:Series ki... पहली नज़र की चुप्पी - 8 कभी-कभी वक्त के सारे जवाब शब्दों में नहीं होते,कभी-कभी वो बस... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Manjeet Singh Gauhar द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 6 शेयर करे ग़रीबी के आचरण - ५ (611) 2.7k 8.9k श्रीकान्त अंकल जी का अपना घर अब उन्हीं को खाने को दौड़ता था। क्योंकि अब उनके उस किराये के बड़े से मकान में पूरे दिन कोई भी नही रहता था। सिवाय श्रीकान्त अंकल जी और उनकी बूढ़ी मॉं को छोड़कर। क्योंकि उनकी पत्नि और बच्चे सुबह काम पर जाते थे, और शाम के समय ही घर में पाँव रखते थे।लेकिन शान्ति आंटी सुबह जल्दी उठकर अपने और घर वालो के लिए खाना बना लेती थीं। और फिर शाम को काम पर से थोड़ा जल्दी आकर शाम के खाने की तैयारी करती थीं।श्रीकान्त अंकल जी सोचते थे कि ' अगर मेरे हालात इतने बुरे नही चल रहे होते तो मेरी बीवी और मेरे दोनों बेटे घर में होते। लेकिन वो कहते हैं ना, 'कि समय बलवान होता है।' श्रीकान्त अंकल जी का समय ही ख़राब चल रहा था। इसलिए उनके कोई भी काम नही बन रहे थे। वो ड्यूटी करना चाहते थे। पर शरीर के दर्द ने उनसे उनका ये हक़ भी छीन रखा था। एक बार श्रीकान्त अंकल जी और उनकी बूढ़ी मॉं घर पर थे। घर के बाकि सभी सदस्य अपने-अपने काम पर गये हुए थे। वैसे श्रीकान्त अंकल जी ठीक तो थे। पर जैसा मैं पहले ही आपको बता चुका हूँ। कि श्रीकान्त अंकल जी को या दिन में या फिर हफ़्ते में बहुत ही ज़ोर का दर्द होता था। और वो दर्द शरीर के किसी एक अंग से शुरू होता था। और होते-होते पूरे शरीर को अपने कब्ज़े में ले लेता था। जिससे श्रीकान्त अंकल जी को लगता था कि अब शायद वो नही बच पायेंगे, यमराज उनके प्राण लेने के लिए उनके घर के दरवाज़े पर ही खड़े हैं। दरअसल, जब श्रीकान्त अंकल जी के घर के सभी लोग अपने काम पर चले गये थे। और घर में कोई भी नही था, सिवाय उनकी बूढ़ी मॉं के। तो अचानक श्रीकान्त अंकल जी को वैसा ही भंयकर दर्द होना शुरू हुआ, जैसा कि मैं अभी आपको बता रहा था। वो दरअसल, अपनी बूढी मॉं को खाना वगैरह देकर अन्दर के कमरें में जिसमें एक तरफ़ एक टूटा सा पलंग पडा था, और दूसरी ओर एक चारपाई पडी हुई थी। जिसमें से कहीं-कहीं से कुछ रस्सियॉं टूट कर बाहर की ओर निकल रही थी। और वहीं उस चारपाई के बिल्कुल पास में एक पुरानी बड़ी-सी मेज़ पड़ी थी। जिस पर शान्ति आंटी बिस्तरों को तय लगा कर रख दिया करती थीं। उस कमरे में जाकर उस चारपाई पर लेटे हुए थे। श्रीकान्त अंकल जी लेट कर बस यही सोच रहे थे कि अगर आज मैं इस परेशानी में नही होता तो आज मेरे बीवी और मेरे दोनो बच्चे यहॉं घर पर होते। और मैं दुनिया के हर ज़िम्मेदार पति और पिता की तरह उनके लिए पैसे कमाकर लाता। और अपने बीवी बच्चों व पूरे परिवार को खुश रखता। लेकिन मैं क्या करूं.? मैं इतना बदनसीब हूँ कि अपने परिवार को खुशियां भी नही दे सकता। मुझसे अच्छे तो जानवर होते हैं। कम से कम वो अपने बच्चों को तो खुश रखते हैं।' श्रीकान्त अंकल जी हर रोज़ अपने अाप को इसी तरह कोसते रहते थे।...मंजीत सिंह गौहर ‹ पिछला प्रकरणग़रीबी के आचरण - ४ › अगला प्रकरण ग़रीबी के आचरण - ६ Download Our App