The Author Manjeet Singh Gauhar फॉलो Current Read ग़रीबी के आचरण - ४ By Manjeet Singh Gauhar हिंदी फिक्शन कहानी Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books जिंदगी एक सफर जिंदगी एक सफर हा जिंदगी सफर ही तो हैं जैसे सफर मे इंशान कि... इंटरनेट वाला लव - 96 प्लीज आंटी जी अब रस्म शुरू करवाए. अब लेट मत कीजिए. बाते तो ब... मुक्त - भाग 11 ---------(11वा ससकरण ) ( मुक्त ) " ... क्रांति ज्योति माँ सावित्री बाई फुले सावित्रीबाई फुले जयंती"""जरूरी नहीं कि हर समय जुबान पर भगवान... Devil I Hate You - 23 और फिर वहां सोचने लगती है, ,,,,,वह सोचते हुए ,,,,,अपनी आंखों... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी उपन्यास Manjeet Singh Gauhar द्वारा हिंदी फिक्शन कहानी कुल प्रकरण : 6 शेयर करे ग़रीबी के आचरण - ४ (1) 1.7k 5.6k श्रीकान्त अंकल जी के परिवार के सभी सदस्य उनकी अच्छे से देख-भाल करने लगे। कुछ समय के बाद श्रीकान्त अंकल जी को आराम लगने लगा। उनकी सिर की चोट ठीक हो गई। और धीरे-धीरे वो पहले जैसे स्वस्थ हो गये। और इसी बीच श्रीकान्त अंकल जी की नौकरी छूट गयी, क्योंकि उनके चोट लगने के कारण उन्हें काफी दिनों के लिए अवकाश पर रहना पड़ा। और घर में बहुत ही ज़्यादा पैसों की तंगी रहने लगी। जिसके कारण श्रीकान्त अंकल जी और उनकी मॉं को छोड़ कर बाकि घर के सभी लोग छोटे-मोटे काम करने लगे। यहाँ तक की श्रीकान्त अंकल जी का छोटा बेटा जिसकी उम्र भी नौकरी करने के लायक नही थी। उसे भी घर में पैसो की तंगी के कारण एक छोटे से ढाबे पर बर्तन धोने का काम करना पड़ा। श्रीकान्त अंकल जी वैसे तो लगभग पहले के जैसे ही ठीक हो गये थे, लेकिन कभी-कभी उनके सिर में बहुत तेज़ी से दर्द होने लगता था। ये कहना भी ग़लत है कि श्रीकान्त अंकल जी पूरी तरह से ठीक हो चुके थे। और यही कारण था जिससे वो नौकरी नही कर पा रहे थे। दरअसल, श्रीकान्त अंकल जी ने कई बार अपने घर में ये इच्छा ज़ाहिर की। कि घर के सभी सदस्य काम कर रहे हैं, और बैठा-बैठा खा रहा हूँ। मुझे ये बिल्कुल भी अच्छा नही लगता। वो अपने घर वालों से कहते थे कि ' मैं इस घर का मुखिया हूँ। आप सभी को खुश रखना मेरी ज़िम्मेदारी है। और मेरे होते हुए अाप सभी काम करो, ये मेरे लिए बहुत ही शर्म की बात है। अब मैं रात-दिन मेहनत करूँगा। लेकिन आपको कोई कष्ट नही दूँगा , किसी भी समस्या से नही लड़ने दूँगा।' लेकिन शान्ति आंटी और उनका बड़ा बेटा रोहन उनको काम नही करने देते थे। क्योंकि अभी श्रीकान्त अंकल जी पूरी तरह से ठीक नही थे। घर के सभी लोग सुबह-सुबह ही काम पर चले जाते थे, और वहॉं से देर शाम को ही घर लौटते थे। बस शान्ति आंटी थोड़ा पहले आ जाती थीं। क्योंकि उन्हें शाम को खाना पकाना करना पड़ता था। और रोहन व सोहन शाम के समय अंधेरा होने पर ही घर लौटते थे। घर में परिस्तिथियॉं बहुत ख़राब चल रही थी। इसलिए बेचारे दोनो भाई दो-दो , तीन-तीन जग़ह काम किया करते थे। और शाम को खाना बगैरह खाने के बाद देर रात पढ़ाई किया करते थे। वो दरअसल, श्रीकान्त अंकल जी के घर के सभी लोग सिर्फ़ उनकी मॉं को छोड़कर काम इसलिए किया करते थे। ताकि वो सभी चैन से दो वक़्त की रोटी खा सकें। - अब आप ये सोच रहे होंगे कि सिर्फ़ दो वक़्त की रोटी खाने के लिए सभी को कमाने की क्या ज़रूरत थी। और कमाना तो चलो ठीक है पर बच्चों को दो-दो , तीन-तीन जग़ह काम करने की क्या ज़रूरत थी-। वो एेसा इसलिए क्योंकि श्रीकान्त अंकल जी ने बहुत लोगों से लाख रूपये का कर्ज़ ले रखा था। और उसी कर्ज़ को पटाने के लिए घर के सभी लोग काम करने लगे। ये इतना सारा कर्ज़ श्रीकान्त अंकल जी ने अपने शौक़ पूरा करने के लिए नही लिया था। वो घर की परिस्तिथियों ने उन्हें एेसा करने पर मज़बूर किया था। सोचो जिस घर में पॉंच लोग खाने वाले हों। और कमाकर लाने वाला सिर्फ़ एक, और तन्ख़ाह भी सिर्फ़ चार हज़ार। तो कैसे ना संभव है कर्ज़ होना। श्रीकान्त अंकल जी को बहुत बुरा लगता था, जब उनकी बीवी और बच्चों को उनके होते हुए बाहर काम करना पड़ता है।. .मंजीत सिंह गौहर ‹ पिछला प्रकरणग़रीबी के आचरण - ३ › अगला प्रकरण ग़रीबी के आचरण - ५ Download Our App