purane bargad ki chudail - part 1 books and stories free download online pdf in Hindi

पुराने बरगद की चुड़ैल - पार्ट १

पुराने बरगद की चुड़ैल.....भाग १
गिरीश आज 20 वर्ष बाद अपने गाँव में स्थित अपनी पुश्तैनी हवेली में बापस आया था।
वो अपने बच्चों की ज़िद पर यहां समर वेकेशन पर आया था।
कार उसकी हवेली के सामने आकार रुक गई तो उसमें से गिरीश की पत्नी स्टैलीना जो कनाडा की थी उसके तीन बच्चे और उसका गहरा मित्र सुरेश निकले।
उन्हे देखकर शंभू जो गिरीश का शाही नौकर था, जो कई वर्षों से वीरान पड़ी हवेली की हिफाजत कर रहा था।
उसके पूर्वज भी यही अपनी सेवा देते थे।
शंभू दौड़ता हुआ आया।और सामान उठाकर चल दिया।
"सुरेश! ये हैं शंभू काका जो हमारी गैरमौजूदगी में हमारी हवेली की देखरेख करतें है।"
"ह्म्म्म।"
गिरीश के बच्चे भी शंभू के साथ उछलते हुए हवेली की ओर बढ़ गए।
स्टैलीना सामने वीरान और शाही ठाठ से खड़ी हवेली को देखे जा रही थी।
सुरेश और गिरीश अपने जॉब के सिलसिले में बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
हवेली में जो चमक और खूबसूरती 20 साल पहले थी., वो खो चुकी थी उसकी जगह उस पर उगी घास और हरी शैवाल ने ले ली थी।
जो उसके जर्जर हो चुकी स्थिति से अवगत करा रही थी।
जैसे ही गिरीश मैन गेट से अंदर घुसने वाला ही था कि उसकी नजर सामने खड़े पुराने बरगद के पेड़ पर पढ़ी तो एकाएक उसके पैर वही ठिठक गए।
उसकी बातें रुक चुकी थी उसके चेहरे पर गंभीर रेखाएं उभर आई थी
वह थोड़ा रुका और उस बरगद के पेड़ की और अपना धूप का चश्मा उतार कर देखने लगा।
कुछ पल के लिए गिरीश अपनी बीती यादों के समुद्र में डूब सा गया।
उसका अतीत की घटनाएँ चलचित्र की भाँति उसकी आँखों के सामने घूमने लगीं।
"क्या हुआ? कहां खो गए।" - स्टैलीना ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
"क्क्क्हीं नहीं!"
"तो फिर चलें बच्चे वेट कर रहें होंगे अंदर और रमेश भी।"
"ओह! हां चलो।"
जैसे ही गिरीश अंदर गया तो सामने शंभू काका को बच्चों से घिरा हुआ देखकर मुस्कुरा कर कहा - "संभू काका बच्चे बड़े जल्दी आपसे हिलमिल गए हैं।"
"जी, गिरीश बाबू। मैंने आप सबका सामान सबके कमरे में लगा दिया है और आप सब हाथ पैर धो कर बैठक में आ जाइये। खाना तैयार है।"
"ठीक है।"
"और हाँ आपने बच्चों को प्लेसमेंट और उस बरगद के पास जाने से मना कर दिया है न। "
" जी! बाबू। "
शाम का समय हो चुका था सब डायनिंग टेबल पर बैठे हुए खाना खा रहे थे।
" शंभू काका! आपको कोई दिक्कत तो नहीं होती न अकेले इतना सारा काम करते हो कोई और रख लो साथ मे हेल्प के लिए। "-गिरीश ने खाना खाते हुए कहा।
" साहब कोई भी तैयार नहीं है इस हवेली में काम करने के लिए।"
"क्युं क्या हुआ?"
"पता नहीं दिन भर काम करते हैं और रात को ही भाग जाते हैं, कहतें हैं कि उन्हें किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई देती है सामने वाले बरगद के पेड़ से। "
" क्या बकवास है और आप भी ऎसी बातें करते हो। देखिए, इन बच्चों को कितने डर गए हैं आपकी फालतू बातों से। "
वास्तव में सब बच्चे डर चुके थे वो खाना को छोड़कर संभू काका का मुँह ताक़ रहे थे।
" माफ़ी चाहूँगा बाबू, जैसा उन्होने कहा बैसा मैंने बोल दिया। "
रमेश और स्टैलीना दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा रहे थे।
और फिर सब खाना से निपट कर बाहर आ गए।
सूरज ढल जाने के बाद मौसम सुहाना हो गया था।

ठंडी हवा बह रही थी साथ में हवेली के बगीचे में फुलवारी से फूलों की मंद मंद खूशबू सबको मंत्रमुग्ध कर रही थी।
जो शहरों की दूषित वायु में कहा थी। सभी लोग सुकून महसूस कर रहे थे।
" डैडी! "-गिरीश के सबसे बड़े लड़के ने हाथ पकड़ते हुए कहा।
"हां! बेटा बोलो क्या बात है?"
"पापा उस पेड़ पर भूत रहता है?" - पीयूष ने उस बरगद के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा।
"नहीं, बेटा वहां कोई नहीं रहता।"
"पर संभू काका तो बोल रहे थे कि वहां चुड़ैल रहती है। "
" अरे ! वो तो आप सबको डराने के लिए कह रहे थे वहां चुड़ैल नहीं जंगली जानवर रहते हैं
। आपने देखा यहां पास मे जंगल है और कोई गाँव या हॉस्पिटल नहीं है।"
दरअसल उस हवेली के आसपास कोई घर नहीं था बस जंगल के सिवाय।
रात हो चुकी थी संभू काका ने सभी गेट सावधानी पूर्वक लगा दिए और प्रकाश के लिए मॉमबत्तियाँ जला दी।
सब रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में चले गए।
सभी आराम से सो रहे थे।
रात के तकरीबन 2बजे गिरीश के कानों में एक अजीब सी आवाज ने उसकी आँख खोल दी।
गिरीश ने पलट कर देखा तो स्टैलीना सो रही थी।
गिरीश उठ कर बैठ गया उसे महसूस हुआ कि हवेली के बगीचे में कोई है।
उसने अपने रूम की खिड़की को खोलकर देखा तो पाया कि बगीचे में कोई भी नहीं है। किसी के चलने की आहट उसका भ्रम नहीं हो सकती क्योंकि ऎसा उसके साथ पहली दफा हुआ था, ऎसा सोचते हुए गिरीश अपने बेड की ओर जैसे ही मुड़ा तभी किसी के चीखने की आवाज़ उसके कानों को चीरती हुई चली गई।
पहले तो वह बहुत डर गया, लेकिन उसने हिम्मत करके खिड़की के बाहर देखा तो सामने खड़ा बरगद का पेड़ उसे हिलता हुआ प्रतीत होता है और फिर उसे वहाँ से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी।
जो बेहद खौफनाक थी गिरीश का सारा बदन हिल गया और दिमाग सुन्न हो गया था।
वह उस आवाज को तुरंत पहचान गया उस आवाज में दर्द और दहशत उसे साफ़ साफ़ महसूस हो रही थी।
वह गुमसुम सा अपने बेड पर आ गया।
उसे डर भी था कही ये आवाजें उसके लिए मौत का सबब न बन जाए।
इन्ही से तो दूर उसे कनाडा जाना पड़ा था।
और इसी तरह उसकी करवटें बदलते हुए रात कट गई।
सुबह जब उसने आँखे खोली तो सामने स्टैलीना काफ़ी लिए खड़ी मुस्कुरा रही थी।
गिरीश ने एक अंगड़ाई ली और काफी को टेबल पर रख कर खिड़की से झाँका तो बरगद का पेड़ रात को जितना भयानक लग रहा था उतना ही अच्छा सुबह दिख रहा था।
उसने बगीचे की ओर देखा तो उसके सारे बच्चे रमेश अंकल के साथ खेल रहे थे और पास ही में संभू काका खड़े थे।
गिरीश के दिमाग में रात वाली घटना घूम रही थी वह परेशान था कि कही रात वाली घटना का उसके अतीत से कोई संबंध न हो।
अगर ऎसा हुआ तो वो अपनी और अपने परिवार की जान जोखिम में नहीं डाल सकता वह कल ही इस हवेली को छोड़कर वापस कनाडा चला जाएगा, ऎसा निश्चय करके वह कॉफी पीने लगा।
रमेश एक फ़ोटोग्राफ़र है, उसे नेचर की फोटोग्राफी करने का बहुत शौक है।
"शंभू काका! प्लीज आप इन बच्चों को यही खिलायीए तब तक मैं एक दो शॉट लेकर आता हूँ।"
"जी, साहब।"
रमेश वहां के मनोरम दृश्य में ऎसा खो गया कि उसे ये नहीं पता चला कि वह कब फोटो खींचते खींचते उस पुराने बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच गया उसे वह बहुत अच्छा लगा तो उसने उस पेड़ की भी फोटो लेने के लिए जैसे ही कैमरा रोल किया तो उसकी चीख निकल पढ़ी उसने कैमरा झटके से फेंक दिया जैसे उसमे बिजली दोड़ गयी हो।
उसने डरते डरते ख़ुद पर काबू पाया और हिम्मत करके कैमरा उठाया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कैमरा जो दिखा रहा है वो वास्तव में है ही नहीं बरगद पर कुछ भी नहीं है।
उसने फिर से कैमरे में देखा तो उसके पसीने छूट गए।
सामने बरगद पर एक खौफनाक चेहरे वाली औरत दिख रही है जिसके हाथ और चेहरे साथ साथ पूरे शरीर से खून रिस रहा है और उसके लंबे लंबे नाखूनों वाले हाथ बंधे हुए हैं।
जो लगातार उसे घूरे जा रही थी।
"मुझे आजाद कर दो, मेरे बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं......" - उस औरत के भयानक चेहरे से आवाज आई।
रमेश पागल सा गिरता भागता हुआ संभू काका के पास पहुंचा उसकी हालत गंभीर हो चुकी थी।
उसकी हालत देखकर गिरीश, स्टैलीना और बच्चे सब डर गए थे।

"संभू काका आप सारा सामान बापस कार में रखिये, हम वापस जा रहे हैं कुछ दिन हम अपने ग्वालियर वाले घर में रहेंगे और फिर कनाडा जाएंगे हमे यहा नहीं रुकना मुझे तो कुछ गलत होने की आशंका लग रही है कही वो वापस न आ जाए।" - गिरीश ने घबराते हुए कहा।
"स्टैलीना! रूबी तुम्हारे पास है क्या?, चलो हमे ग्वालियर के लिए अभी निकलना है "
" नहीं! मेरे पास नहीं है रूबी। "
" क्या? "
" सब यही खड़े हैं तो रूबी कहा है। रमेश संभू काका उसे बुलाकर लाओ कहना हमे अभी निकलना है, देखना कही वो उस पुराने बरगद के पेड़ के पास तो नहीं है। "
" जी, "
वास्तव में रूबी गिरीश की बड़ी लड़की खेलते खेलते बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच चुकी थी।
वह अपने खेल में मग्न थी कि तभी एक हल्की आवाज ने उसको अपनी ओर आकर्षित किया।
" रबईईई.... बेटा। "
रूबी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां एक औरत खड़ी थी जो कि बरगद के पेड़ से चिपकी खड़ी थी।
"आप कौन हैं अंटी।"
"मेरे पास आओ... मैं तुमको ढेर सारे खिलौने और मिठाइयाँ दूँगी तुम्हारी पसंद की।"
"आप वहां क्यूँ खड़ी हो, यहाँ आओ।"
"नहीं बेटा मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकती क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए हैं देखो।" - उस औरत ने रूबी को अपने हाथों को दिखाते हुए कहा।
" ओह। माय गॉड! किसने किया ऎसा आपके हाथों से खून निकल रहा है। "
इतना कहते हुए रूबी उस औरत के पास पहुच गई।
" ये सब मेरे पति ने किया है, वो मेरे हाथ बाँध गए हैं। क्या तुम मेरे हाथ खोल दोगी। "
" हाँ! क्यूँ नहीं ये लीजिए। अभी खोल देती हूँ।"
तभी पीछे से रमेश और संभू काका की आवाज सुनाई दी जो रूबी को बुला रहे थे।

" मुझे रमेश अंकल बुला रहे हैं।"
"बुलाने दो तुम मेरे हाथ खोल दो, न मेरे बहुत दर्द हो रहा है। हाथ खोलने के बाद तुम चली जाना। "
" ओके। "
तभी रूबी के पास आकर संभू काका ने कहा -" यहाँ क्या कर रही हो, तुमको वहा सब ढूँढ रहे हैं, यहां आने के लिए मना किया था न आपसे। फिर भी चली आई। "
" वो अंटी ने मना किया था न बोलने को....... "
इतना कहकर जैसे ही रूबी पीछे मुड़ी तो देखा कि वहां कोई भी नहीं है सिवाय उसके हाथ में कलावा के जिससे उस औरत के हाथ बंधे हुए थे।
" कौन अंटी कैसी अंटी कोई नहीं है यहां और ये कलावा तुम्हारे पास कैसे आया? "_संभू काका ने परेसान होते हुए कहा।

" हां! ये कलावा उन्ही के हाथ में था जिससे वो बंधी हुई थी और खून भी निकल रहा था, पता नहीं कहा चली गई। "

" क्या??? सब अनर्थ कर दिया तुमने। भागो यहाँ से।"


संभू काका रूबी का हाथ पकड़कर हवेली की ओर दौड़ पड़े।

उस बरगद पर बैठी वही औरत की आँखें अंगारों की तरह लाल और चेहरे पर रहस्यमयी हँसी थी, जो सामने दूर हवेली की तरफ भाग रहे लोगों पर थी।


" गिरीश बाबू। अनर्थ हो गया! "
" क्यूँ क्या हुआ? "

" आपकी बेटी ने उस पुराने वाले बरगद की चुड़ैल को आजाद कर दिया।"
"क्या?"

"कौन बरगद वाली चुड़ैल??" - स्टैलीना ने कहा।

"पहले तुम जल्दी से निकलो और कार में बैठो सब पता चल जाएगा तुमको ओके,रमेश यार चल न जल्दी से कार में बैठ। "-गिरीश ने हड़बढाते हुए कहा।

"ओके, लेट्स गो। "


सब दौड़कर कार के पास पहुंचे तो दंग रह गए क्यों कि कार के चारों टायर पंचर हो गए थे जो कुछ देर पहले सही थे।
सबका डर से बुरा हाल हो गया था।

अचानक हवेली के अंदर से संभू काका की चीख सुनाई दी।
सब दौड़कर उनके पास पहुंचे तो देखा कि वह जमीन पर पड़े तड़प रहे हैं और कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं।
गिरीश भागकर उनके पास पहुँचा. और उनसे बात करने की कोशिश करने लगा।
संभू काका के चेहरे पर नाखूनों के चीरने के निशान बने हुए थे जिनसे ढेर सारा खून बह रहा था।
जो बहुत भयंकर था।

उससे भी भयंकर संभू काका द्वारा गिरीश को बतायी गयी बात थी जिसने गिरीश को एक खौफनाक मौड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था।

"तुम्हारी बेटी ने उसे गलती से आजाद कर दिया है और वह वापस लौट आई अपना बदला लेने के लिए, अब वह अपने द्वारा कही गई हर बात को सही करेगी, वह अभी भी यही कही पास ही में है।" - इतना कहकर संभू ने दम तोड़ दिया।

सभी इस हादसे को देखकर बहुत डर गए।
गिरीश अपने सर को पकड़ कर बैठ गया था क्योंकि अब वह अपनी फ़ैमिली के साथ उस हवेली में फंस चुका था।
उसने सभी को उस हवेली में बंद कर लिया और सुबह होने का इंतजार करने लगा।

क्रमशः...........
पूरी कहानी पढ़ने के लिए कृपया नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करें - पुराने बरगद की चुड़ैल https://myultimatestories1.blogspot.com/2019/08/blog-post_19.html
Fore more updates please click on my blog - myultimatestories1.blogspot.com

Jai shri radhe ? ?
सोनू समाधिया रसिक

अन्य रसप्रद विकल्प