भारत को वीरों की भूमि ऐसे ही नहीं कहते, यहां पर ना जाने कितने वीर पुरुष और महिलाएं हुई हैं जिन्होंने अपने धर्म और कर्म को बचाने के लिए अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए। उन्हीं वीरों में एक थे वीर छत्रपति संभाजी जिन्होंने ना जाने कितने मुगलों को मौत के घाट उतार दिया और जब दुश्मनों से हर तरह से घिर गए तो हंसते हुए वीरगति को गले लगा लिया। इस लेख में हम आपको उनके बारे में कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं।
1. साल 1675 में पुरंदर किले में संभाजी महाराज का जन्म हुआ था और दुर्भाग्यवश उनकी मां सईबाई का 2 साल के बाद निधन हो गया। इनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज ने दूसरी शादी कर ली और संभाजी का लालन-पोषण उनकी दादी जीजाबाई ने किया था।
2. बचपन में संभाजी को उनके पिता छवा कहकर पुकारते थे क्योंकि इसका मतलब शेर का बच्चा होता है। संभाजी बचपन से ही सीखने में माहिर थे और उन्होंने 8 भाषाएं, तलवारबाजी, घुड़सवारी और तीरदाजी सीख ली थी।
3. संभाजी की सौतेली मां सोयराबाई चाहती थीं कि शिवाजी का उत्तराधिकारी उनका बेटा बने और इसलिए वे समय-समय संभाजी के खिलाफ शिवाजी को भड़काती थी। इसके साथ ही संभाजी को भी उल्टा-सीधा बोलकर कहती थीं कि वे मुलगों में जा सकते हैं।
4. संभाजी रोज-रोज की बातों से तंग आकर अपने पिता को छोड़कर मुगलों में शामिल हो गए। मगर जब वहां पर मुगलों ने इनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया तब इन्हें अपने पिता शिवाजी की याद आई और वे कुछ समय बाद वापस आ गए।
5. 11 जून, 1665 में पुरंदर की संधि में शिवाजी ने इस बात की सहमति दी कि उनका पुत्र मुगल सेना को सेवाएं देगा और इस वजह से 8 साल के संभाजी ने अपने पिता के साथ बीजापुर सरकार के खिलाफ औरंगजेब का साथ दिया था।
6. शिवाजी और संभाजी औरंगजेब के दरबार में गए और वहां पर उन्हें नजरबंद कर दिया गया था। मगर ये पिता-बेटे वहां से भागने में कामयाब रहे। मगर एकदम से शिवाजी का निधन होने से संभाजी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
7. साल 1681 को संभाजी का राज्यभिषेक हुआ लेकिन इसके बाद कुछ लोगों ने उन्हें राजा मानने से इंकार कर दिया और हमेशा प्रयास करते रहे कि उन्हें इस गद्दी से हटा दिया जाए। मगर संभाजी ने अपने दोस्त कवि कलश को अपने सलाहकार के रूप में चुन लिया था और ये इनके काफी करीबी रहे हैं।
8. औरंगजेब ने महाराष्ट्र पर कब्जा करने के लिे 5 लाख सेना, 40 हजार हाथी, 70 हजार घोड़े और 35 हजार ऊंट लेकर हमला कर दिया था। उसकी सेना इतनी विशाल थी कि 3 मील तक सब फैला था। औरंगजेब ने बहुत प्रयासों के बाद कवि कलश और संभाजी महाराज को अपनी गिरफ्त में कर लिया था।
9. औरगंजेब की एक शर्त थी कि या तो इस्लाम धर्म अपना लो या फिर अपनी जान दे दो। संभाजी हमेंशा यही कहते थे कि जान ले लो लेकिन ना सिर झुकेगा और ना ही श्रीराम और महादेव के सिवा किसी को पूजेंगे।
10. काफी दिनों के बाद जब संभाजी नहीं माने तो औरंगजेब ने उनके शरीर का एक-एक अंग काटकर अंत में उन्हें मार दिया लेकिन महाराष्ट्र की जनता आज भी शिवाजी और संभाजी के त्याग को नहीं भूली है। वे हमेशा ही इन दो महापुरुषों को याद करती है और वे महाराष्ट्र के साथ ही हिंदूत्व के भी वीरपुरुष रहे हैं जिन्होंने हिंदुत्व को कायम रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
अधिक जानकारी के लिए यंहा पर क्लिक करें: https://shabd.in/post/109030/sambhaji-maharaj-biography-