आमची मुम्बई - 13 Santosh Srivastav द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आमची मुम्बई - 13

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(13)

महानगर का दिल गिरगाँव चौपाटी.....

गिरगाँव चौपाटी को महानगर का दिल कहा गया है | इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है | गाँधीजी ने‘अँग्रेज़ों भारत छोड़ो’का नारा सर्वप्रथम ग्रांट रोड स्थित गवालिया टैंक से आरंभ किया था और क्रांतिकारियों का दल गिरगाँव चौपाटी समुद्र तट पर इकट्ठा हुआ था | उस वक्त यह तट नारियल के पेड़ों से भरा था | अब इक्का दुक्का ही रह गए हैं नारियल के पेड़ | अब यहाँ नाना-नानी पार्क बन गया है जिसमें बुजुर्ग टहलते-बतियाते हैं | यहीं बल उद्यान है जहाँ ठीक उस जगह बाल गंगाधर तिलक की प्रतिमा है, जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया था | एक गोल घेरा रेलिंग को जोड़कर बनाया गया है | बस उतने ही गोल दायरे में कबूतर मटरगश्ती करते और पर्यटकों द्वारा बिखेरे गये दाने चुगते हैं | परिंदे हैं पर अनुशासन बद्ध ..... मजाल है जो गोल दायरा तोड़ बाहर निकलें? यहाँ मॉनसून के दौरान विभिन्न प्रकार के वॉटर स्पोर्ट्स आयोजित किये जाते हैं | स्पीडबोट, जेट स्की, पैरा सेलिंग आदि |

चौपाटी नाम ‘चौ पाटी’ यानी चार जल मार्गों वाला स्थल | १८६५में मालाबार हिल की पहाड़ियाँ काटकर समुद्र को पाटकर निकली ज़मीन तक समुद्र की लहरों को अंतिम स्थान मिला इसी चौपाटी में | यह मुम्बई का बेहद मशहूर समुद्री तट है जहाँ सैलानियों को तनाव भरी ज़िन्दग़ी से थोड़े वक्त के लिए सुकून तो मिलता ही है, साथ ही चाय, नारियल पानी, भेलपूरी, पाव भाजी, वड़ापाव के स्टॉल, सींगदाना यानी मूँगफली टोकरी में भर कर गले सेलटकाए तट पर बैठे टहलते सैलानियों के बीच ‘टाइम पास’ की और ‘चना जोर गरम’ की आवाज़ें लगाते फेरी वाले, रिंग फेंकने और गुब्बारे फुलाने वाले, सैंड आर्टिस्ट से लेकर रूमानी जाड़ों को ब्लैक मेल करने वाली वृहन्नलाओं और ग्राहकों से इशारेबाज़ी करने वाली वेश्याओं तकहज़ारों लोगों की रोज़ी रोटी भी है | रोजाना कितने ही सपने चौपाटी पर पलते और टूटते हैं | देश के स्वतंत्रता आंदोलन की कर्मभूमि तो है ही, देश के सबसे प्रसिद्ध (महाराष्ट्र के त्यौहार) गणपति विसर्जन और दशहरे पर शहर की एक प्रसिद्ध रामलीला के रावण दहन का स्थान भी यही चौपाटी है | २६/११ के रूप में देश पर सबसे बड़े आतंकी हमले के नायक अजमल कसाब को पुलिस ने यहीं पकड़ा था | उसे पकड़ने के प्रयास में अपने जीवन की कुर्बानी देने वाले तुकाराम ओंबले का स्मारक यहीं है |

चौपाटी से बाईं ओर दूर तलक लम्बी दौड़ती मरीन ड्राइव की सड़क और दाहिनी ओर मालाबार हिल के कर्व तक बिल्कुल नेकलेस की शक्ल में सड़कों की बत्तियाँ जब जगमगाती हैं तो लगता है नेकलेसके हीरे दिपदिपा रहे हैं इसलिए इसे क्वींस नेकलेस कहते हैं | डूबते सूरज के तमाम रंग चौपाटी के समँदर को रंगों से भर देते हैं | जब नारियल पूर्णिमा या अनंत चतुर्दशी का त्यौहार गणपति विसर्जन के रूप में मनाया जाता है तो चौपाटी खिल उठती है | देवलोक जैसी नज़र आती है | यहाँ आई. ए. एफ. एयर शो (भारतीय वायुसेना) और मेराथन दौड़ भी आयोजित होती है | आसमान में वायुसेना का करतब देखने समुद्र तट पर लाखों की भीड़ उमड़ पड़ती है | मरीन ड्राइव समुद्र से लगी दीवार साक्षी है प्रेम कहानियों की | शाम होते ही यहाँ दीवार की रेलिंग पर प्रेमी जोड़े आ जुटते हैं और अगर समुद्र में ज्वार रहा तो लहरों की बौछारों में भीगते हैं | लहरों में ज्वार भी तो पूर्ण चंद्र रात्रि में होता है | प्रकृति प्रेम और मानव प्रेम की साक्षी है मरीन ड्राइव की रेलिंग |

अँग्रेज़ों के समय में मुम्बई के तत्कालीन गवर्नर जॉर्ज लॉयड ने मालाबार हिल से कोलाबा के बीच की १००० एकड़ से भी ज़्यादा ज़मीन को पाटकर समुद्र को पीछे ढकेल दिया था और मरीन ड्राइव का जन्म हुआ है | तब यहाँ मरीन बटालियन के रहने के लिए बैरेक्स बनाये गये थे | तभी से ये मरीन ड्राइव कहलाया जबकि इसे सोनापुर, क्वीन्स रोड और लाड़ का नाम क्वींसनेकलेस से बुलाया जाता रहा | पहले यह कैनेडी सी फेस के नाम से भी मशहूर था | उन दिनों समँदर की लहरें मरीन लाइन स्टेशन को छुआ करती थीं |

अँग्रेज़ीवर्णसी C के आकार वाला मरीन ड्राइव देश का सबसे महँगा बिज़नेस डिस्ट्रिक्ट और मशहूर सिलेब्रिटीज़ का बसेरा ही नहीं विश्व का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ समुद्र तट पर अन्य विक्टोरियन गोथिक इमारतों के साथ आर्ट डेको की लगभग ३९ इमारतें हैं जो बेहद खूबसूरत दिखती हैं | इनमें कई ७५ साल पुरानी हैं | ये वर्ल्ड हेरिटेज इमारतों में गिनी जाती हैं | मुम्बई के ६० से ज़्यादा फ्लाई-ओवरों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध है मरीन ड्राइव फ्लाईओवर |

मरीन ड्राइव में कई प्रसिद्ध फिल्मों की शूटिंग हुई | दीवार, सी आई डी का मशहूर गीत “ज़रा हट के ज़रा बच के ये है मुम्बई मेरी जान | ” आज भी लोगों की ज़ुबान पर है |

मरीन ड्राइव से नरीमन पॉइंट तक तीन किलोमीटर तक दौड़ती सड़क पर छै: कंक्रीट लेन हैं | यहाँ आयुर्वेद कॉलेज, महात्मा गाँधी रिसर्च सेंटर, तारापोरवाला एक्वेरियम यानी मत्स्यालय है | जो १९५१ में पर्यटकों के लिए खुला था | इस मत्स्यालय में समुद्री और मीठे पानी की मछलियाँ व्हेल के कंकाल से लेकर जीवित मछलियों के तमाम प्रकार मौजूद हैं | नन्ही गोल्ड फिश सहज आकर्षित करती है | और भी बड़ी बड़ी मछलियाँ जो मत्स्यालय में रखना संभव नहीं उनके कंकाल हैं | विशेष बात यह है कि यहाँ समुद्र से सीधी पाइप लाइन आती है और समुद्री जीवों को ताज़ा पानी मिलता है | आयुर्वेद कॉलेज में अध्ययन के साथ इलाज भी किया जाता है | केरल पद्धति से इलाज की भी सुविधा है | महात्मा गाँधी रिसर्च सेंटर यूँ तो शोध छात्रों के लिए है पर यहाँभारत के तमाम प्रकाशनों से छपी पुस्तकों की विशाल, भव्य लाइब्रेरी भी है | प्रतिमाह हिन्दी और उर्दू ज़बान में मासिक शोध पत्रिका ‘हिन्दुस्तानी ज़बान’ नाम से निकलती है | गाँधीजी ने यहाँ ‘हिन्दुस्तानीप्रचार सभा’ की स्थापना कर विदेशी छात्रों को हिन्दुस्तानी भाषा से परिचित कराने का उद्देश्य निर्धारित किया था | यहाँ सांस्कृतिक व साहित्यिक आयोजन भी समय समय पे होते हैं |

अंग्रेज़ी शासनकाल में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का नारा था ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ | महाराष्ट्र में सार्वजनिक रूप से गणपति का उत्सव शुरू करने वाले तिलक ही थे | अब यह त्यौहार मुम्बई में बहुत विशाल पैमाने पर धूमधाम से मनाया जाता है | भाद्रपद चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक मुम्बई गणेशमय रहता है | तिलक ने इस त्यौहार का श्रीगणेश राष्ट्रीय एकता के लिए किया था | मुम्बई में ‘सरदार गृह’ तिलक की गतिविधियों का केन्द्र था | यहीं | अगस्त १९२० को उनका निधन हुआ था | अब यह भवन सूना-सूना सा उपेक्षित नज़र आता है | मकड़ी के जालों के साथ जंग लग रहे लोहे के बीम झाँक रहे थे जब मैं भवन के द्वार पर खड़ी थी | मेहराबदार खिड़कियाँ किसी ज़माने में रही होंगी पर अब वहाँ ग्रिल और ए. सी. और बाल्कनियाँ, अहाते और सीढ़ियों पर बेतरतीबी से सामान अटा पड़ा है | सीढ़ियाँ लकड़ी की हैं | लगता है ये उस ज़माने का लॉज रहा होगा जिसे सरदार गृह के नाम से जाना जाता है | यहाँ महात्मा गाँधी और तिलक ठहरा करते थे | बिस्किट कलर में रंगे दो चौक और चार मंज़िल वाले सरदार गृह का मुख्य आकर्षण चौथी मंज़िल है जहाँ तिलक द्वारा संपादित केसरी अखबार का मुम्बई कार्यालय अब भी कार्यरत है | अंदर की दीवारों पर तिलक के महत्त्वपूर्ण जीवन प्रसंगों को चित्रित किया गया है | एक चित्र में उनकी मृत्युशैय्या के पास महात्मा गाँधी खड़े हैं | तिलक की टकटकी जहाँ लगी है वहाँ एंग्लो गोथिक स्थापत्य की इमारत का चित्र है | विडंबना देखिए कि आज इस इमारत में उसी पुलिस का हेड ऑफ़िस हैजोज़िन्दग़ी भर तिलक की जान के पीछे पड़ी रही | पेंटिंग में क्रॉफ़र्ड मार्केट का शानदार क्लॉक टॉवर है जो अब चोरी चला गया | तिलक के लिखे पत्र, कैबिनेट और मेज कुर्सियाँ जस की तस हैं | एक छोटी सी श्वेत प्रतिमा भी है उनकी | बस लोकमान्य स्मारक ट्रस्ट के अलावा और कोई आकर्षण नहीं रह गया है | हाँ तिलक जयंती पर ज़रूर यहाँ रौनक रहती है |

गिरगाँवचौपाटी से नाना चौक तक के रास्ते को गाम देवी भी कहते हैं | मुख्य सड़क से दाएँ-बाएँ के रास्तों के भी अलग-अलग नाम हैं | लेबर्नम मार्ग पर हरे भरे पेड़ों से घिरा हलका जमुनी और सफेद रंग से पुता शानदार बँगला आज़ादी की कहानी कहता नज़र आता है | यह बँगला ‘मणि भवन’ नाम से जाना जाता है जो महात्मा गाँधी के मित्र रेवाशंकर जगजीवन झावेरी का है | १९१७ से १९३४ तक यहाँ गाँधीजी का निवास रहा इसलिए इसका बहुत अधिक ऐतिहासिक महत्व है | गाँधी जी की आज़ादी के प्रति सरगर्मियां असहयोग आंदोलन, दाण्डी यात्रा,सविनय अवज्ञा आंदोलन, तमाम ऐतिहासिक बैठकें, सलाह मशविरे आदि का साक्षी यह बँगला आज भी गाँधीजी को समर्पित है | गर्मी के दिनों में आज़ादी के मतवालों का जमावड़ा मणिभवन की छत पर होता था | गाँधीजी ने पहली बार चरखे पर सूत यहीं काता, बकरी के दूध का सेवन भी यहीं से उन्होंने आरंभ किया था | यहीं से अंग्रेज़ी साप्ताहिक पत्र यंग इंडिया और गुजराती साहित्यिक पत्र नवजीवन के संचालन की ज़िम्मेवारी उन्होंने ली | इसके ग्राउंड फ़्लोर में लाइब्रेरी है जिसमें महात्मा गाँधी के और उनके विचारों से जुड़ी ५० हज़ार किताबें हैं | पहली मंज़िल पर चढ़ते हुए दीवारों पर गाँधीजी की कई तस्वीरें हैं | एक छोटा सा ऑडिटोरियम (प्रेक्षागृह) भी है | दूसरी मंज़िल पर जहाँ गाँधीजी बैठते थे उस जगह को शीशे से सील कर दिया गया है | शीशे के उस पार चरखा, उनका टेलीफोन, हाथ से हवा झेलने वाला पँखा, गद्दा, तकिया रखा है | बा-बापू के काते हुए सूत की लच्छी भी वहाँ रखी है | कमरे के साथ लगी बालकनी पर खड़े होकर वे लोगों का अभिवादन स्वीकार करते थे | बड़े हॉल में प्रदर्शनी है जिसमें उनके जीवन से जुड़ी झाँकियाँ बेहद खूबसूरत तरीके से लगी हैं | बाजू के कमरे में टैगोर को लिखा पत्र रखा है और उसके बाजू में सुभाषचंद्र बोस के द्वारा गाँधीजी को लिखे पत्र हैं |

कन्हैयालाल मुन्शी ने ७ नवंबर १९३८ को गाँधीजी की प्रेरणा से भारतीय विद्या भवन की स्थापना की | यह मार्ग के. एम. मुन्शी मार्ग कहलाता है | भारतीय विद्या भवन साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र है | इसके पूरे भारत में ११७ केन्द्र हैं और ७ केन्द्र विदेशों में हैं | इसके द्वारा ३५५ संस्थाएँ संचालित की जा रही हैं | लोकप्रिय हिन्दी साहित्यिक मासिक पत्रिका ‘नवनीत’ पिछले ६३ वर्षों से यहीं से निकल रही है | नवनीत अन्य भाषाओँ में भी प्रकाशित होती है |

गिरगाँव चौपाटी के सामने विल्सन कॉलेज है | यह भारत के पुराने कॉलेजों में से एक है जिसकी नींव १८३२ में रखी गई | बिल्डिंग बनी १८८९ में जिसका डिज़ाइन जॉन एडम्स ने किया था | विक्टोरियन गोथिक शैली की इस इमारत को हेरिटेज इमारतों में ग्रेड का दर्ज़ा दिया गया है | यहाँ विभिन्न विषयों की पढ़ाई होती है | लाइब्रेरी, हॉस्टल, चैपल, विल्सन जिमखाना, नेचरक्लब, काउंसलिंग सेंटर में विद्यार्थी अध्ययनरत हैं | मेरे लिए तो यह तीर्थ के समान है क्योंकि हेमंत (पुत्र) ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी | अक़्सर फ़िल्मी दृश्य भी यहाँ फिल्माए जाते हैं |

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