देशी दारू की भठ्ठी - 2 shekhar kharadi Idriya द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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देशी दारू की भठ्ठी - 2

अब बाबू की पत्नी चूपचाप दबे पांव घर की ओर हड़बड़ी में वापस लौट गई, क्योंकि बाबू खाट में बिमार पड़ा था । जो अब जोर जोर से खांस रहा था, तभी उसकी जोरू मटकी पास जाकर कहती है " एक लोटा पानी भर लाउं क्या.. ये सूखी खांस तुरन्त बंध हो जाएगी । "

" सीमा... रहने दो..! अब इस शरीर से तंग आ गया हूँ... बस ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है की मुझे इस अत्यंत कष्टदायक पीडा़ से संपूर्ण मुक्ति शीघ्र दिला दे । "

ऐसी अशुभ बात सूनकर सीमा के मन को अधिक ठेस पहुंची तो उसने सांत्वना देते हुये कहा - " आपके मुँह से ऐसी अशुभ बातें अच्छी नहीं लगती ? "

ह्रदय में दबी हुई भावनाएँ खोलते हुये कहा - "क्या कहूँ सीमा तुम पर में जरूरत से ज्यादा बोझ बन गया हूँ जब अच्छाखासा ठिक था, तब तो में तुम्हारी एक बात भी सूनने के लिए तैयार नही था, बस रोज चूपके चूपके या झूठ का बहाना बनाकर दारू पीने के लिये चला जाता फिर यहाँ-वहाँ पागल बनकर अड्डों पर घुमता फिरता था, जैसे मेरी जिंदगी का यही एक अभिन्न हिस्सा बन गया हो, ना तो परिवार के तरफ जिम्मेदारी का एहसास रहा, ना थोडा़ भी फिक्रमंद रहा, ना पत्नी के प्रति अच्छे रिश्तें निभा पाया, बस आखरी क्षणों में निसहाय और मुशिबतों का भार बनकर रह गया हूँ, क्या यही मेरी जिंदगी का असल मकसद था, या तकदीर का लिखा हुआ, जो मेरे जीवन को अस्तव्यस्त करके विनाश के कगार पर लाकर छोड़ दिया " ऐसा कहकर बाबू जोर से फूट फूटकर रो पड़ा, जैसे कई बरसों के बूरे कार्य को सोचकर आंसू बहा रहा हो, वो भी पश्चाताप तथा ग्लानि के भाव में तपकर.

अचानक इतनी तीव्र रूदन सूनकर सीमा एकदम बाबू के खाट नजदीक पहुँच कर स्नेह से हाथ सिर पर फेरते हुये कहती हैं " आप इस तरह रोने लगेंगे तो मुझे भी रोना आ जाएगा, क्योंकि आपकी मनोदशा में अच्छी तरह जानती हूँ ! "
अरे.. बाबरी तुम तो मेरा खरा सोना हो, लेकिन मैं ही काला कोयला क्यूँ निकला जो तुम्हारी सुंदर जिंदगी को नर्क समान बना दिया "

" आप इन बातों को रहने दिजिए ।

" क्यूँ.. नही ? "

" आप अभी खाट में आराम किजिए मैं पास के पहाड़ पर जाकर सूकी लकड़ी काटकर ले आती हूँ "

" अभी क्यूँ.. जाना हैं ?"

" तुम्हें पता नहीं घर में रासन खलास हो गया, इसलिए अभी सूकी लकड़ी की गठ्ठरी बांधकर लाती हूँ ताकी कल भोर होते ही पास के मुनिया गांव में बेंचने जाने की सरलता रहेगीं और रासन का भी प्रश्न हल हो जाएगा । "

" अकेले पहाड़ पर जाओगीं ? "

" ना .. वो नगजी की जोरू कमला साथ आती हैं "

" हा.. ठिक हैं संभलकर जाना । "

" आप भूलीए मत खाट के पासे खाने का और पानी रखा हैं और एक बात छोटू खेलने गया हैं वो जब आ जाये तब उसे कहेना की खाना खाले क्योंकि सुबह से वो खाना भूल गया हैं ? "

" तुम जरा भी चिंता मत करना में सबकुछ ध्यान रखूंगा ।"

अब वक्त और हालत के साथ बाबू की हालत ओर बिगड़ रही थी क्योंकि पहले लगातर दारू पीने से शरीर अंदर के सारे अंग खराब हो चुके थे । जो अब दवा, दुआ से भी ठिक नही हो पाते । इसलिए डॉक्टरों ने साफ मना कर दिया की बाबू के इलाज से कोई फायदा नही होगा, बल्कि वो जबतक जीये तबतक उसकी देख भाल करना बाकि इश्वर की मर्जी उन्हें क्या मंजूर है ।

बड़ी हड़बड़ी में सीमा नगजी के घर जाकर कहती है " ओ रेखा पहाडी पर सूकी लकड़ी लेने आती हो ?"

" हा.. सीमा थोडा रूको.. ! "

उत्सुकता से पूछा " क्या बात हैं ? "

" कुछ नही बस इन बकरियों को थोडें पत्ते डाल दूँ , फिर चलते है "

" तुम्हारा मरद कही दिखाई नही देता क्या कही काम पे गया है ।"

" कही होगा दारू के अड्डे पर.. ! "

" उन्हें दारू छोड़वा क्यूँ नही देती "

" कई बार दारू छोड़वाने के लिए यहाँ-वहाँ गई फिर भी साला सुधरने का नाम ही नही लेता, मानो एक नंबर का पियक्क हैं । "

" रेखा तुम मेरे पति को देख लो.. उसकी दारू की वजह से सारा जीवन उजड़ गया है, बस आखरी दिनों में खाट पर बिमार लेटे पडे़ है । "

" बहनजी.. मेरे पति की हालत भी तेरे पति जैसे होनेवाली है "

" बातों ते घणी चोख्खी कही..! "

" लागे है हमारे गांव में दारू नाम का भूत आया है, जो नशा का दिवाणा बनाकर धीरे धीरे मारता है । "

"ये भूत नही जैसे चुडेल का काला छाया हो । "

इसी तरह बातें करती हुई दो सखी सहेलीयां कंकड़, शूल जैसी विकट विपदा से गिरी हुई पगडंडी पर चलकर पहाडीं ओर जाने लगीं । अपनी जरूरतों का कुछ बोझ करने के लिए ।

------- ---- ( Please wait next chapter- 3 )

- शेखर खराडीं ईडरिया