आमची मुम्बई - 5 Santosh Srivastav द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आमची मुम्बई - 5

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

(5)

मुम्बई का टाइम्स स्क्वायर.....

लंदन में मैंने टफ़ालगर स्क्वेयर देखा था जहाँ नेल्सन की प्रतिमा हैं | प्रतिमा के चारों ओर चार बब्बर शेर काले पत्थर से बने हैं | इस पूरे कॉलम को नेल्सन कॉलम कहतेहैं | अब देखिये कुछ इसी तरह का बल्कि इससे भी खूबसूरत मुम्बई का टाइम्स स्क्वेयर मुझे आवाज़ दे रहा हैकि“आओ, हमें देखो, हममें छुपे इतिहास की परतें खोलो..... उसमें तुम मुझे पाओगी और खुद को भी | ” हाँ सच ही है..... अँग्रेज़ों के शासन काल में बनी टाइम्स स्क्वायर की तमाम इमारतें..... अब मुम्बई की धरोहर मानी जाती हैं |

ससून डॉक सेरीगल थियेटर तक और उससे भी आगे की सड़क काफ़ी लम्बाई तक मीना बाज़ार कहलाती है | मुग़लों के समय का मीना बाज़ार फुटपाथ से लेकर दुकानों तक उतर आता है। स्टेंड सिनेमा के पीछे आर. टी. व्ही. सी. यानी रेडियो एंड टी व्ही कमर्शियल का बहुचर्चित ऑफ़िस अभिनयऔर आवाज़ की दुनिया के कलाकारों का जमघट लगाए रहता है | यहाँ मेरे बड़े भाई स्व. विजय वर्मा आठवें दशक में आवाज़ की दुनिया में अपनी पहचान बना चुके थे | जब मैं मुम्बई आई तो मैं भी वहाँ कॉपी राईटिंग के लिए जातीथी | वो दुनिया ही अद्भुत थी | तबस्सुम विजय गोविल, फारुक़ शेख़, बृजभूषण जैसे जाने माने कलाकारों के संग काम करने का अपना ही लुत्फ़ था | उन दिनों रेडियो पर विजय वर्मा का लिखा रामायण धारावाहिक प्रसारित होता था | पत्थर बोल उठे, लाल किले की कहानी उसकी ज़ुबानी, एवरेडी के हमसफ़र आदि एक से एक लाजवाब, रेडियो धारावाहिक विजय भाई के पास थे | लिंटाज़ में अमीन सयानी जी को देखते ही रेडियो सीलोन याद आ जाता था और सीलोन याद आता तो बिनाका गीतमाला भी याद आता और इत्तिफाक ऐसा कि अमीन सायानी जी के अंडर काम करते हुए मुझे पहले टूथपेस्ट का ही जिंगल लिखने को मिला |

नेल्सन कॉलम में प्रेमी प्रेमिका के जोड़े मैंने बैठे देखे थे लेकिन टाइम्स स्क्वायर तो मानो कला नगरी है | चित्रकार, शिल्पकार, गायक, लेखक, रंगकर्मी, नृत्य कला में पारंगत सबसे मुलाकात हो सकती है | जहाँटाइम्स स्क्वायर कला नगरी है तो उसकी राजधानी है ‘काला घोड़ा’ यायूँकह लेंकि मुम्बई की शिक्षा, कलाऔर संस्कृति की राजधानी है काला घोड़ा | विलिंगटन फाउंटेन से रीगल सर्कल तक यूँ तो बड़ी व्यस्तता नज़र आती है | विदेशी पर्यटकों का जमघट लगा रहता है, लगता है जैसे हम विदेश यात्रा पर हों | गेटवे ऑफ़ इंडिया की वजह से यह व्यस्तता और बढ़ गई है | गुलमोहर, अमलतास के झरे फूलों से भरे फुटपाथ परकहीं से अचानक प्रगट हो फोटोग्राफ़रदबोचलेता है, तोशॉपिंगके लिए आवाज़ देने लगता है कोलाबा कॉज़वे | कोलाबा कॉज़वे में जितनी भी इमारतें हैं सब की सब अलग अलग स्थापत्य की |

पहले काला घोड़ा में किंग एडवर्ड सप्तम की तेरह फुट ऊँची कांस्य प्रतिमा जो श्यामवर्णी थी और काले पत्थर से बने घोड़े पर आसीन थी यहाँ लगाई गई थी | उसी की वजह से इस जगह का नाम काला घोड़ा पड़ा | यह प्रतिमा १८७५ में किंग एडवर्ड सप्तम की भारत यात्रा की स्मृति में बनाई गई थी और जिसे अल्बर्ट ससून ने भेंट किया था | इस प्रतिमा की कीमत उस ज़माने में १२५०० पौंड थी जिसे सर एडगर बोकेम ने आकार दिया था | लेकिन यह प्रतिमा १९६५ के आंदोलन में तोड़ फोड़ दी गई थी | लिहाज़ा उसे भायखला स्थित चिड़िया घर भेज दिया गया | लेकिन इससे काला घोड़ा की रौनक में ज़रा भी आँच नहीं आई | काला घोड़ा फेस्टिवल हो या प्रतिदिन की आवाजाही, मूर्ति से ख़ाली हुई जगह पार्किंग के उपयोग में आने लगी | काला घोड़ा फेस्टिवल के तो क्या कहने | नाटक से लेकर पेंटिंग और नृत्य से लेकर कठपुतली का खेल तक..... क्या नहीं देखने मिलता यहाँ ?कारों का जमावड़ा तब यहाँ नहीं होता | पार्किंग काफ़ी दूर करनी पड़ती है और वहाँ तक सजी धजी बच्चों से लदी विक्टोरिया घोड़ा गाड़ी या खुली छत वाली दो मंज़िली बस पर सवार होकर की जाने वाली हेरिटेज वॉक मानो नये युग की सैर करा देती है | दिन के समय प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम जिसे अब छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय कहते हैं के बगीचे में बच्चों के लिए बाँस से बैग बनाने की कला या स्टोन ग्लास पेंटिंग का डिमांस्ट्रेशन होता है तो रात के समय क्रॉस मैदान में केरल का नृत्य मोहिनीअट्टम देखा जा सकता है | हाईकोर्ट के पास से रीगल सिनेमा, एशियाटिक लाइब्रेरी,हार्निमन सर्कल, रेम्पोर्ट रो, डेविड ससून लाइब्रेरी और क्रॉस मैदान तक चक्कर लगाकर पॉटरी वर्कशॉप से लेकर मैक्समूलर भवन में फिल्मों का मज़ा लेते हुए मुम्बईकर जम कर काला घोड़ा फेस्टिवल मनाते हैं |

कोलकाता टैगोर मय है तो मुम्बई शिवाजी मय | शायद ऐसे ही इतिहास रचा जाता है | ऐतिहासिक साक्ष्यों को समेटे प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम यानी छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय राजसी ठाट बाट, खूबसूरत उपवन के बीच है | संग्रहालय में न केवल भारतीय बल्कि तिब्बती और नेपाली ऐतिहासिक साक्ष्य भी मौजूद हैं और इजिप्ट की ४५० वर्षपुरानी ममी भी | इमारत मूरिश और गोथिक कला का बेहतरीन नमूना है | उन्नीसवीं सदी में मुम्बई में ऐसी इमारतों का निर्माण हुआ था जो वास्तु की दृष्टि से इस शहर को दूसरे शहरों से अलग बनाती हैं | उस दौरान बनी इमारतों में वास्तुकला को विशिष्ट स्थान दिया गया | संग्रहालय के निर्माण में भी वास्तुकला के विभिन्न रूपों को दर्शाया गया है | मुस्लिम बनावट की जाली, अर्धखुले बरामदे और राजस्थान के महलों जैसे झरोखे बरबस ध्यान खींचते हैं | इसइमारत का जब निर्माण हो रहा था तो इसके निर्माण से जुड़े जॉर्ज विटीटने बीजापुर के गोलकुंडा किले का बारीकी से अध्ययन किया और इस तीन मंज़िला इमारत में उसी किले से मिलते जुलते गुम्बद का निर्माण किया | संग्रहालय के अंदर भारतीय चित्रकला, शिल्पकला के साथ भारत की प्राचीन संस्कृति के दर्शन होते हैं | संग्रहालय न केवल इतिहास बयां करता है बल्कि यहाँ जीव जन्तुओं और प्राणी विज्ञान का भी सेक्शन है | इमारत में प्रवेश करते ही दाहिनी ओर नेचुरल हिस्ट्री सेक्शन है | दूसरी मंज़िल पर लघु चित्रकला (मिनिएचर पेंटिंग) को प्रदर्शित किया गया है | इसी मंज़िल को डेकोरेटिव आर्ट से सजाया गया है | बायीं तरफ तीसरी मंज़िल पर जाने की सीढ़ियाँ हैं | यहाँ पर तिब्बती और नेपाली कला के दर्शन होते हैं | इसकेअलावा यहाँ पर यूरोपियन पेंटिंग, अस्त्र शस्त्र और प्राचीन वस्त्रकला को प्रदर्शित किया गया है |

संग्रहालय की दूसरी मंज़िल पर प्रदर्शित वस्तुओं को मुम्बई के कला प्रेमियों ने उपहार में दिया है | सर रतन टाटा और दोरब टाटा ने पोर्सिलिन और शीशे की वस्तुओं को यहाँ भेंट किया है | पचास हज़ार से ज़्यादा कला संग्रहों को समेटे एक सौ एक वर्ष पुराने इस संग्रहालय का शिलान्यास ११ नवम्बर १९०५ में प्रिंस ऑफ़ वेल्स ने किया था और दर्शकों का प्रवेश १९२२ से आरंभ हुआ | वैसे प्रथम विश्व युद्ध में घायल हुएसैनिकोंके लिए यह अस्पताल के रूप में भी इस्तेमाल होता था |

मैं जहाँगीर आर्ट गैलरी के लिए प्रिंस ऑफ़ वेल्स म्यूज़ियम के कंपाउंड से गुज़र रही हूँ, देख रही हूँ मालाड स्टोन से निर्मित गैलरी की कलात्मक इमारत जो एक ऐसा दीपघर है जहाँ पहुँचकर चित्र जगमगा उठते हैं | पचास के दशक में दुर्गा वाजपेयी और वाणू भूता द्वारा इसे डिज़ाइन किया गया था और इसके चार प्रदर्शनी कक्षों में स्थान पाया हर चित्र बहुमूल्य माना जाने लगा | यह मुम्बई की पहली स्थाई कला दीर्घा है जो सांस्कृतिक व शैक्षिक गतिविधियों का केन्द्र है | सर जहाँगीर कावस कला के संरक्षक थे उनकी याद में निर्मित है यह कला वीथिका | यहीं मेरे बाबूजी गणेश प्रसाद वर्मा ने चित्रकला सीखी थी हालाँकि तब वे बनारस में बनारसहिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे | वह ज़माना था छात्रों की लगन और जुनून का | यहाँ अंदर जो समोवार कैफ़े था वह अब बंद हो गया है | वह कोई सामान्य कैफ़े नहीं था | वह हमारे आधुनिक कला परिदृश्य और इतिहास का बेहद जीवन्त और जनतांत्रिक गवाह था | जापानी स्त्रियाँ हाथ में जैसा पँखा रखती हैं उसी आकार के प्रवेश द्वार से जब कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर मैंने गैलरी में प्रवेश किया तो चित्रसंसार सिनेमा की रील की तरह खुलने लगा |

पीछे लायन गेट है और गेट पार करते ही समुद्र के विशाल हृदय पर तमाम जहाज खड़े नज़र आये | कुछ छूटने की तैयारी में कुछ आने की तैयारी में | यह एक बड़ा डॉकयार्ड है जहाँ सबसे पहला एयरक्राफ़्टकेरीअर आई. एन. एस. विक्रांत का अब तैरता संग्रहालय है जो इंडियन म्यूज़ियम शिप विक्रांत के नाम से प्रसिद्ध है | यह संग्रहालय अद्भुत मरीन वस्तुओं का संग्रह है |

टाइम्स स्क्वेयर में छै: रास्ते कुछ इस ढंग से आपस में जुड़े हैं जिनके एकदम बीच में अद्भुत एवम् अलग-अलग प्रकार की इमारतें इन रास्तों को लेकर अलग-अलग दिशाओं में खुलती हैं | उत्तर में हुतात्मा चौक (फ्लोरा फाउंटेन) है | १८६४ में रोमन देवी फ्लोरा के नाम से फ्लोरा फाउंटेन कहलाया | यहाँ देवी फ्लोरा की मूर्ति दूर से ही आकर्षित करती है | रात की रोशनी में फव्वारे का पानी झिलमिलाताहै | मुम्बई का यह बेहद व्यस्त इलाका है | सस्ते दामों में अँग्रेज़ी की किताबें यहाँ के फुटपाथों पर मिल जाएँगी | तमाम बैंक, बड़ी बड़ी एजेंसियों के दफ़्तर यहाँ की शान हैं |

दक्षिण में रीगल सिनेमाघर है, पूर्व में मुम्बई बंदरगाह तथा पश्चिम में ओवल मैदान है | इन सभी छै: रास्तों में मानो मुम्बई का इतिहास, कला, संस्कृति, शिक्षा एकजुट होकर दिखाई देती है | यहीं कैथेड्रल का भ्रम देती दुनिया भर की पुस्तकों से और पुस्तक प्रेमियों से खचाखच भरी डेविड ससून लाइब्रेरी बुद्धिजीवियों को आमंत्रण देती सी प्रतीत होती है | क्या कोई यकीन करेगा कि विश्व के ४७ क्लासिकल पुस्तकालयों में से एक डेविड ससून लाइब्रेरी की इमारत का निर्माण १८७० में डेविड ससून के द्वारा दान में दिये गये साठ हज़ार रुपियों से हुआ? इसकी चौड़ाई में बनी बड़ी बड़ी सीढ़ियाँ और उद्यान इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं |

रीगल सिनेमा के सामने अँग्रेज़ों के ज़माने का महाराष्ट्र स्टेट पोलीस हेडक्वार्टर है | यह पहले नेवल ‘रॉयल’ अल्फ्रेड सेलर्स का घर था | यहीं विलिंगटन फाउंटेन है | १८६५ में ड्यूक ऑफ़ विलिंग्टन जब मुम्बई आया था तब यह फाउंटेन बना था | एलफिंस्टन कॉलेज, रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस, कावसजी जहाँगीर हॉल, मैक्समूलर भवन, के आर. कामा ओरियंटल इंस्टिट्यूट, हार्नबिलहाउस,आर्मी और नेवी की बिल्डिंग, सेंट एंड्रूज़ चर्च, कोलेबाज़ चर्च, दि ग्रेट वेस्टर्न बिल्डिंग ओल्डकस्टम हाउस, मैजेस्टिक होस्टेल, वाटरलूमेंशन और राइटर्स बिल्डिंग | टाइम्स स्क्वेयर चकरा देता है किपर्यटक क्या-क्या देखे | इन सभी बेहद खूबसूरत इमारतों-फव्वारों, हरेभरे विशाल दरख़्तों से घिरी सड़कों पर टहलते हुए ऐसा लगता है जैसे हम अंग्रेज़ों के ज़माने की सैर कर रहे हों | इस जीवंत इतिहास को और भी जीवंत बनाती हैं यहाँ की गोथिक कला कीइमारतें | पुरातत्वविभागइनकासंरक्षकहै | जबरातकी जगमगाती रोशनियों में मुम्बई अपना हुस्न बिखेरती हैं तो इन तमाम इमारतों की ख़ास-ख़ास गोथिक कला की जगहों पर पीली रोशनियाँ फूटकर निकलती हैं | मुम्बई के इस रूप सौंदर्य की कोई बराबरी नहीं |

टाइम्स स्क्वायर में इमारतों के अतिरिक्त सहज मिल जायेंगे रेस्तरां, कैफ़े, किताबेंऔर म्यूज़िक की दुकानें | बूटीक्स और हस्तकला के अद्भुत नमूनों से भरी दुकानें | दोपहर हो, शाम हो या रात हो..... यहाँ जमघट रहता है महानगर के कलाकारों, पत्रकारों, साहित्यकारों, प्रकाशकों, वैज्ञानिकों, संगीत प्रेमियों और मूर्तिकारों का | ज़रूरी नहीं है कि वे एक दूसरे से परिचित हों | उन्हें उनकी कला जोड़ती है और एक कप कॉफ़ी या चाय उन्हें अंतरंगबना देती है | यहीं से मशहूर चित्रकार राजा रवि वर्मा और हुसैन ने चित्रकला का आंदोलन छेड़ा था और यहीं से जमशेदजी टाटा, लोकमान्य तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और दादाभाई नौरौज़ी आज़ादी की लड़ाई में कूदे थे | यहीं भारतके प्रथम संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अंबेडकर औरदेश को परमाणुशक्ति देनेवाले होमी जे. भाभाने अपनी कीर्ति पूरी दुनियामें फैलाई थी | इनसब महान विभूतियोंने और इनके अतिरिक्त महादेव गोविंदरानाडे, बदरुद्दीन तैयबजी, दिनशा वाच्छा, भूलाभाई देसाई और के. आर. कामा जैसे दिग्गजोंने जहाँ शिक्षा पाई वो एलफिंस्टन कॉलेज मुम्बई की शान है | विक्टोरियन नियो और गोथिक शैली में इस कॉलेज की इमारत दो मंज़िला है | विशाल अहाता है | इसकी जो बीच की और आख़िरी बुर्जियाँ हैं वहाँ और भी मंज़िलें हैं | इमारत के अग्रभाग में मुम्बई के शिक्षा प्रेमी गवर्नर रे माउंट स्टुअर्ट एलफिंस्टन का चेहरा दूर से दिखाई दे जाता है | इमारत का सबसे बड़ा आकर्षण है महाराष्ट्र स्टेट आर्काइव और एक लाख से ज़्यादा दुर्लभ पुस्तकों वाला पुस्तकालय | इसे २००४ में यूनेस्को का एशिया पैसिफिक हेरिटेज अवार्ड मिल चुका है | टाइम्स स्क्वेयर घुमते हुए मैं अभिभूत हूँ..... राजा रवि वर्मा के बनाए चित्र ने मेरे उपन्यास ‘मालवगढ़ की मालविका’ को मूल्यवान बना दिया है क्योंकि उसका मुखपृष्ठ उन्हीं के बनाए चित्र से सुशोभित है | वैसे चित्रकारों के लिए काशी कही जाने वाली देश विदेश के चित्रकारों की प्रदर्शनियाँ इस जगह को और मूल्यवान बना देती हैं | चित्रकार महीनों इंतज़ार करते हैं कि कब आर्ट गैलरी में उन्हें अपने चित्र प्रदर्शित करने का मौका मिले क्योंकि आसानी से गैलरी की बुकिंग ही नहीं मिलती |

१९वीं सदी के आख़िरी वर्षों में बनी एलफिंस्टन बिल्डिंग बहुरंगी पत्थरों से बनी है | यह बिल्डिंग इतनी खूबसूरत है कि प्रवेशद्वार और विशाल मेहराबों को देख मन इसकी ओर खिंचता चला जाता है | सड़क के उस पारबलुई पत्थरों से बने इंडो सारसेनिक शैली के रैडीमनी मैंशन की ख़ासियत उसके घुमावदार छज्जे और झरोखे हैं जो जयपुर की हवेलियों की याद दिलाते हैं | एलफिंस्टन बिल्डिंग के बाजू में ब्रैडी हाउस जो पहले रॉयल इंश्योरेंस बिल्डिंग के नाम से जाना जाता था | पश्चिम रेल वाली ‘बॉम्बे बड़ौदा ऐंड सेंट्रल इंडिया रेलवे’ तथा‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के कार्यालय भी यहीं थे | नियो क्लासिकल शैली में बनी इसी से लगी हुई इमारत ‘ब्रिटिश बैंक ऑफ़ दि मिडिल ईस्ट’ है | दो मंज़िल की वाडिया बिल्डिंग पोत निर्माता वाडिया परिवार की विरासत है |

ब्रिटिश बैंक बिल्डिंग के बाद कावसजी पटेल स्ट्रीट पर १९वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प वाली कुछ और आकर्षक इमारतें हैं | जैसे मेरवान बेकरी पारखी व्यापारी बानाजी लिमजी द्वारा बनवाई अगियारी है | महात्मा गाँधी रोड पर गोथिक शैली की तिमंज़िली ओरियंटल इंश्योरेंस बिल्डिंग है | पहले इस बिल्डिंग में जॉन कैनन स्कूल हुआ करता था | दादाभाई नौरोज़ी की१९२५ में बनवाई गई प्रतिमा इस बिल्डिंग के बाहर लगी है जो फ्लोरा फाउंटेन के ठीक सामने है |

कास्ट आयरन बिल्डिंग एस्प्लेनेड हाउस इस इलाके की ही नहीं बल्कि भारत की सबसे पुरानी इमारत है और अगर कहें कि आज की गगनचुम्बी इमारतें इसी निर्माण १८६० से ६३ के बीच हुआ | यह मुम्बई का सबसे ग्लैमरस होटल यानी वोटसन का ठिकाना रहा है जहाँ ल्यूमरे ब्रदर्स ने अपनी पहली फिल्म प्रदर्शित की थी |

बीसवीं सदी के पहले दशक में बनी आर्मी एन्ड नेव्ही बिल्डिंग नियोक्लासिकल शैली का बेहतरीन नमूना है | टाटा ग्रुप और कला मैग्ज़ीन मार्ग के कार्यालयों को समेटे यह भव्य इमारत अतीत की सैर करा देती है |

टाइम्स स्क्वायर सदियों के स्थापत्य का इतिहास समेटे है | अब यहाँ स्थित रीगल सिनेमाघर को ही ले लीजिए! अद्भुत..... याद आ रहा है इसी रीगल के सामने मेरी मुलाकात फिल्म अभिनेत्री निम्मी से हुई थी | उनका शो था यहाँ..... उनके साथ निर्माता निदेशक भी रहे होंगे पर मैं तो उनकी सुन्दरता देखती रह गई थी | रीगल उन सबकी स्मृति सँजोये बरकरार है | ..... भारत की पहली अंडरग्राउंड कार पार्किंग यहीं है | यहीं है बॉम्बे हाउस | कालाघोड़ा और फ्लोरा फाउंटेन के नज़दीक है बॉम्बे हाउस जो प्रसिद्ध उद्योगप जमशेदजी टाटा यानी टाटा घराने का मुख्यालय है | इसे जॉर्ज विलेट ने आकार दिया | स्थापत्य मालाड पत्थरों का है | चार मंज़िला यह इमारत अपनी भव्यता की वजह से दूर से ही देखी जा सकती है | यहीं १९३२ में भारतीय एयरलाइन की संकल्पना की गई थी |

जमशेदजी टाटा गुजरात के नवसारी में नौशेरवानी टाटा के घर जन्मे उनके एकमात्र पुत्र थे | जिन्होंने मुम्बई के चिंचपोकली इलाके में १८६९ में एक जर्जर और दिवालिया मिल को खरीद कर टाटा साम्राज्य की नींव रखी थी | टाटा पहला औद्योगिक समूह है जिसके मुख्यालय का नाम ‘बॉम्बेहाउस’ है | अंग्रेज़ों के शासन काल में उन्हें भारतीय होने के कारण वोटसन होटल में प्रवेश नहीं मिला था जिसे चुनौती मान उन्होंने ताजमहल होटल का निर्माण किया | उस ज़माने में बिजली का उपयोग करने वाला यह पहला होटल था |

जनरल पोस्टऑफ़िस यानी जी. पी. ओ. अंग्रेज़ी शासनकाल में १९१३ में निर्मित हुआ था | ११००० वर्गमीटर में फैला यह मुख्य डाक घर अंग्रेज़ों ने १९लाख रुपयों में इस उद्देश्य से बनवाया था ताकि भारत के दूरदराज़ के इलाके संपर्क कायम रख सकें | बीजापुर के गोल गुम्बद से मिलता ६५ फीट की परिधि में फैला विशालतम गुंबद, ऊँची सीलिंग वाले बड़े बड़े कमरे, १०१ काउंटरों वाला,१२० फुट ऊँचा विशाल गोलाकार सेंट्रलहॉल, १२००० वर्गमीटर का बाइसेंटेनरीहॉल, लम्बे-लम्बे गलियारे, गोल सीढ़ियाँ, लम्बा चौड़ा बेसमेंट, दोनों ओर से खुली लिफ्टें ..... जब मैं टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह में पत्रकार थी तो अपने डाक टिकट संग्रह के शौक की वजह से फर्स्ट-डे-कव्हर और नई डाक टिकटों को ख़रीदने पहुँच जाती थी वहाँ | न जाने कितनी डाक टिकटें आज मेरे डाक टिकट अल्बम की शान हैं | जिसमें मुझे सबसे प्रिय है प्रथम चंद्रयात्री नील आर्मस्ट्रांग द्वाराचाँद से पृथ्वी का खूबसूरत चित्र जो उन्होंने चाँद पर ही बनाया था | जी. पी. ओ. का फिलैटलीसेक्शन मेरा यह शौक पूरा करने में अहम भूमिका निभाता था |

जी. पी. ओ. इमारतइंडो अरब शैली की है | काले और पीले पत्थरों तथा सफ़ेद धारंग धरा पत्थरोंसे बनी यह इमारत जहाँ मौजूद है वह मुम्बई काव्यापारिक क्षेत्र है | इसकेअधीन एक ब्रांच और सत्रह सब पोस्ट ऑफ़िस हैं जो साढ़े चार किलोमीटर के इलाके में अपनी सेवाएँ पहुँचाते हैं | सुबह छै: बजेसे रात दस बजे तक काम चलता है और लगभग ग्यारह हज़ार कर्मचारी काम करते हैं | अक्टूबर २०१० में इमारत के सामने वाले बगीचे में २०० साल पुराना एक तहख़ाना जब मिला तो मुम्बई महानगर चौंक पड़ा था | १८वीं सदी में जब फ्राँस में नेपोलियन बोनापार्ट दुनिया में नई ऊँचाईयाँ छू रहा था तो अंग्रेज़ों ने इसडर से कि कहीं फ्राँसीसी सेना यहाँ भी न अ धमके, भागने के लिए एक चोर सुरंग अपोलो बंदर से मुम्बई हाई कोर्ट और सेंट जॉर्ज फोर्ट तक बनाई थी | इस इमारत में मुन्ना भाई एम बी बी एस, रब ने बना दी जोड़ी, फरारी की सवारी, वंस अपॉन ए टाइम इन मुम्बई, अब तक छप्पन नामक फिल्मों की शूटिंगहो चुकी है | टीवी सिनेमा पर हिट मशहूर विज्ञापनों में कई ऐसे हैं जो यहीं फिल्माए गये हैं |

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