कर्त्तव्य - पालन Ankit kumar Tripathi द्वारा स्वास्थ्य में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • खोयी हुई चाबी

    खोयी हुई चाबीVijay Sharma Erry सवाल यह नहीं कि चाबी कहाँ खोय...

  • विंचू तात्या

    विंचू तात्यालेखक राज फुलवरेरात का सन्नाटा था. आसमान में आधी...

  • एक शादी ऐसी भी - 4

    इतने में ही काका वहा आ जाते है। काका वहा पहुंच जिया से कुछ क...

  • Between Feelings - 3

    Seen.. (1) Yoru ka kamra.. सोया हुआ है। उसका चेहरा स्थिर है,...

  • वेदान्त 2.0 - भाग 20

    अध्याय 29भाग 20संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा वि...

श्रेणी
शेयर करे

कर्त्तव्य - पालन

इस संसार में प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सफल बनाने के लिए सत्कार करता है। इस प्रकार के किए गए सत्कार ही उनके कर्तव्य-पालन को दर्शाता है। तथा इनका प्रकार पालन ही कर्तव्य-पालन कहलाता है। इससे हमारे जीवन में सच्चरित्र गुणों का समावेश होता है और हमारा जीवन सही मायनों में सार्थक सिद्ध होता है। मानव जाति का सबसे बड़ा धर्म उसके कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना होता है और उनका निर्वहन करते हुए प्रत्येक क्षण उस जीवन दाता परमात्मा का स्मरण करना होता है। हम सब इस भ्रम में जीते हैं कि भगवान के मंदिर में जाने से वे खुश होकर कृपा करते हैं। पर उनकी कृपा पाने के लिए भावपूर्ण प्रेम और साधना का होना जरूरी है।

कर्तव्य-पालन तभी होता है जब मनुष्य अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए दूसरे के अधिकारों की रक्षा करता है। ईश्वर ने मनुष्यों को हर प्राणियों में श्रेष्ठ बनाया है और मानव जाति अपनी स्वेच्छा से स्वयं के जीवन को व्यतीत करती है। आज के इस परिवेश में मनुष्य अपने जीवन इकाई के प्रतिपलों को चुनौतियों से भरा हुआ पाता है। हर व्यक्ति का एक लक्ष्य होता है जिसके लिए उसे इस संसार में भेजा गया है और हर लक्ष्य का एक निर्धारित मार्ग होता है जिस पर चलकर वह सफलता के द्वार तक पहुंचता है।

इस कलयुग में मनुष्य को स्वयं को खपाकर, लोहे जैसा पिलाकर खुद को परिस्थिति के अनुरूप ढालना होता है। हमें सदैव लक्ष्य की ओर अग्रसर हो होते हुए, हर बुराइयों से लड़कर उन पर विजय प्राप्त करना चाहिए। हमारा जीतना और भी आवश्यक तब हो जाता है जब हमारी लड़ाई स्वयं से हो।
हमारे मार्ग में कितनी ही कठिनाइयाँ क्यों न आ जाए, हमें खुद को इतना सशक्त करना होगा कि कभी भी किसी दूसरे के आगे हाथ न फैलाना पडे़ व हम आत्मनिर्भर बने। चाहे हमें कितना भी प्रलोभन दिया जाय हमें उसे दरकिनार कर, पूरी श्रद्धा व लगन के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। हमारे जीवन में कई ऐसे मोड़ आते हैं जब हम खुद को असमंजस की स्थिति में पाते हैं। कभी-कभी तो कठिनाइयों का पहाड़ सामने आने पर टूट जाते हैं और अपनी हार स्वीकार कर लेते हैं। समय अपने आप ही सारे घाव भर देता है बस हमें वक्त के अनुसार खुद को ढालने आना चाहिए। आत्मा और शरीर के मध्य एक ऐसा सामंजस्य स्थापित होना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में पीछे न हटना पडे़। इस नश्वर शरीर को आत्मा नियंत्रित करती है जो कि जितनी ज्यादा पवित्र होगी, उतनी ही ताकत से हम बुराइयों पर विजय प्राप्त कर सकेंगे। जब हम दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ेंगे, वही परेशानियाँ छोटी लगने लगेंगी।
वैसे तो शास्त्रों के अनुसार किसी भी मनुष्य के सात जन्म होते हैं परंतु अगर गौर करें तो वो एक ही होता है और वह होता है हमारा वर्तमान, जिसमें सब कुछ समाहित होता है। जितना अच्छा हम अपना वर्तमान बनाएंगे उतना ही अच्छा हमारा भविष्य होगा। कर्म ही सबसे बड़ी पूजा है और हम अपना शत् - प्रतिशत मन कर्म में लगाकर, ह्दयपूर्वक उसको पूर्ण कर सकते हैं तभी हम एक सफल व्यक्ति के तौर पर उभर सकते हैं।