कहाँ गईं तुम नैना (14)
कहानी सुनाते हुए नैना को प्यास लगने लगी थी। चित्रा ने उसे पानी लाकर दिया। पानी पीने के बाद नैना ने आगे कहना शुरू किया।
"एक दिन संजय ने मुझे मिलने के लिए रेस्टोरेंट में बुलाया। हम अक्सर ही यहाँ मिलते थे। जब मैं वहाँ पहुँची तो पाया कि उसने सारा रेस्टोरेंट बुक करा रखा था। मेरे और संजय के अलावा वहाँ कोई नहीं था। उसने केक मंगाया तब मुझे याद आया कि उस दिन मेरा बर्थडे था।"
केक काटने के बाद नैना ने संजय से कहा कि पूरा रेस्टोरेंट बुक कराने की क्या ज़रूरत थी। उसका बर्थडे तो सबके सामने भी मनाया जा सकता था। इस पर संजय ने कहा कि वह उससे आज कुछ खास कहना चाहता है। सबके सामने कह नहीं सकता था। उसकी बात सुन कर नैना सोंच में पड़ गई।
संजय कुछ देर तक अपने मन की बात करने के लिए हिम्मत जुटाता रहा। उसकी इस हालत को देख कर नैना ने कहा कि जो कहना है निसंकोच कहे। नैना से हिम्मत पाकर उसने उससे अपने प्यार का इज़हार कर दिया। उसने कहा कि वह कॉलेज के दिनों से ही उसे चाहता था। लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हुई।
सारे तामझाम को देख कर नैना के मन में यह बात आई थी कि कहीं संजय ने उसकी दोस्ती के गलत मायने तो नहीं लगा लिए हैं। इसलिए उसने निसंकोच उससे अपने मन की बात करने को कहा था। उसका शक सही निकला था। नैना ने बिना उत्तेजित हुए सीधे शब्दों में संजय के प्यार को अस्वीकार कर दिया। अपनी बात कह कर वह वहाँ से चली गई।
नैना ने अब खुद को संजय से दूर कर लिया। संजय कुछ दिन चुप रहा। उसके बाद उसने नैना को फोन करना शुरू किया। नैना उसका फोन उठाती ही नहीं थी। संजय ने उसे मैसेज किया कि वह बस एक बार उससे बात कर ले। बाद में वह उसे परेशान नहीं करेगा। अगली बार जब संजय का फोन आया तो नैना ने उससे बात कर ली। संजय ने कहा कि उसने नैना को अपने मन की बात बताई थी। लेकिन वह कोई जबरदस्ती नहीं कर रहा। अगर वह नहीं चाहती तो बात खत्म हो गई। पर वह यह नहीं चाहता है कि उनकी दोस्ती में कोई दरार आए।
उसके बाद वह बार बार फोन कर दोस्ती दोबारा शुरू करने की बात कर रहा था। इस बीच नैना को फिर से धमकियां मिलना शुरू हो गई थीं। संजय से दोस्ती समाप्त होने के बाद नैना फिर अकेली पड़ गई थी। संजय के बार बार विनती करने पर नैना मान गई। दोनों फिर दोस्त बन गए।
एक बार फिर दोनों पहले की तरह ही बातें करने लगे। संजय अपने बर्ताव में इस बात का पूरा ध्यान रखता था कि नैना को कोई ठेस ना पहुँचे। नैना को यकीन हो गया था कि वह बात खत्म हो गई। संजय बस अब उसका एक दोस्त है।
संजय की दोस्ती से नैना फिर से सामान्य हो गई थी। लेकिन मिलने वाली धमकियों से वह आहत थी। वह चाहती थी कि कुछ दिन छुट्टी लेकर कहीं चली जाए। जहाँ हर चीज़ से दूर कुछ समय एकांत में बिता सके। नैना ने यह बात संजय को बताई। संजय ने कुछ ही समय पहले लखनऊ के एक लग्ज़री अपार्टमेंट में फ्लैट खरीदा था। उसने सलाह दी कि यदि वह चाहे तो कुछ दिन उस फ्लैट में जाकर रह सकती हैं। वह इंतज़ाम कर देगा। नैना को सुझाव पसंद आया। उसने हाँ कर दी।
नैना लखनऊ जाने की सोंच रही थी तभी एक बात हो गई। अचानक एक दिन महक उससे मिलने पहुँच गई। महक ने बताया कि वह यहाँ सब कुछ बेंच कर वापस न्यूज़ीलैंड जाने वाली है। लेकिन जाने से पहले वह उस दिन जो हुआ उसे स्पष्ट करना चाहती है। उसने नैना को सारी बात खुल कर बता दी। उसने नैना से कहा कि उसका इरादा आदित्य और उसके बीच आने का नहीं था। लेकिन फिर भी उसकी एक गलती से गलतफहमी हो गई। नैना और आदित्य अलग हो गए। इतने दिनों से यह बात उसे कचोट रही थी। इसलिए हमेशा के लिए न्यूज़ीलैंड जाने से पहले वह अपनी बात नैना से कहने आई थी।
महक के जाने के बाद नैना जो कुछ भी उसने कहा उस पर विचार करती रही। उसे अब अपने किए पर पछतावा हो रहा था। क्यों नहीं उसने आदित्य का यकीन किया। उस पर शक कर उसने अपने हाथों अपने रिश्ते का गला घोंट दिया। वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे वह आदित्य से इस बात के लिए माफी मांगे। सोंच सोंच कर वह मानसिक रूप से परेशान हो गई थी।
इसी बीच उसे विपासना के बारे में पता चला। उसने इंटरनेट पर इसके बारे में पढ़ा। वहाँ उसे दस दिनों के ध्यान कोर्स के बारे में पता चला। उसने नोएडा के सेंटर में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवा लिया। जब उसने संजय को इस विषय में बताया तो वह भी कोर्स में जाने के लिए तैयार हो गया और अपना भी रजिस्ट्रेशन करवा लिया।
नैना यह सोंच कर विपासना सेंटर गई थी कि दस दिनों के ध्यान कोर्स से उसके मन को शांती मिलेगी। वहाँ पहुँच कर उसने पूरा प्रयास किया कि अपना मन ध्यान में लगा सके। लेकिन आदित्य की सच्चाई पता लगने के बाद उसका मन बार बार उसकी तरफ खिंच रहा था। वह जितना अपने ध्यान को केंद्रित करने का प्रयास करती थी उतना ही वह भटक जाता था। उसके सभी प्रयास विफल हो रहे थे।
नैना चाहती थी कि वह अपने हिसाब से कहीं बैठ कर इस बात पर विचार करे कि आदित्य से अपने किए की माफी मांगे। वह जानती थी कि उसने आदित्य का दिल दुखाया है। वह तो अपनी बात कहने दिल्ली तक उसके पास दौड़ा आया था। उसने लाख कोशिश की कि अपनी बात कह सके लेकिन नैना कुछ सुनने को तैयार नहीं थी। उसकी हर बात का उल्टा मतलब निकाल रही थी। हार कर उसे लौट जाना पड़ा।
उस दिन के अपने व्यवहार को याद कर नैना बहुत पछता रही थी। उसने आदित्य से कहा था कि उन दोनों का रिश्ता खत्म हो गया। खुद रिश्ता खत्म करने के बाद अब वह कैसे उसे जोड़ने की बात करती। यही कारण था कि महक से सही बात पता चलने के बाद वह सीधे आदित्य के पास नहीं गई। उसने सोंचा था कि यहाँ आकर सही निर्णय पर पहुँचने में उसे मदद मिलेगी। लेकिन सेंटर का अनुशासन अलग तरह का था। वह इस मनः स्थिति में अनुशासन के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रही थी। छह दिन की कोशिश के बाद उसने कोर्स बीच में ही छोड़ने का निश्चय किया।
संजय ने उसे पहले ही कहा था कि दस दिनों का ध्यान कोर्स पूरा करना उसके लिए आसान नहीं होगा। उसने नैना से कहा था कि यदि वह बीच में कोर्स छोड़े तो उसके लखनऊ वाले फ्लैट में जा सकती है। उसने इसके लिए इंतज़ाम कर दिए हैं।
नैना ने संजय के फ्लैट में जाकर अपना निर्णय करने का निश्चय किया। अपनी कुटिया में जाते हुए उसे जब संजय दिखा तो उसने अपना फैसला उसे बता दिया। जब वह दोनों बात कर रहे थे तब श्वेतपद्म ने उन्हें देख कर अनुशासन बनाए रखने की हिदायत दी।