आईना-ए-अक्स:
(ग़ज़ल संग्रह)
हिमांशु मेकवान
(12)
हमने उनकी खबर, लेना ही छोड़ दिया
सौदा जान का तो, जीना ही छोड़ दिया
बाज़ार मैं बेठे थे वो संगमरमर के तो
शीशा था दिल उसने पटका तोड़ दिया
टुटा हुआ दिल था जाते कहा जहाँ में
तो हमने फिर बाहिर जाना छोड़ दिया
थे बड़े मगरूर हम, इश्क़ मैं प्यार मैं
कर दिया किनारा रुख हवा ने मोड़ दिया
जान की परवाह, जीना पसंद है किसे
मौत को गले लगाया साँस लेना छोड़ दिया
***
(13)
लिफ़ाफ़े मैं कुछ और भी होगा देख तो ले
ख़त के साथ इश्क़ भी होगा देख तो ले
सिर्फ साहिल ही नहीं दरिया भी भेजा होगा
आँख है तो अश्क़ भी होगा देख तो ले
कही भी एकेले नहीं पाये जाते ये दोनों
आशिक़ है तो इश्क़ भी होगा जरा देख तो ले
मुक़मिल हो ही नहीं सकता मुमकिन ही नहीं
इश्क़ है तो थोडा शक भी होगा देख तो ले
***
(14)
धुंधला सा हैं, धुआँ सा है
इश्क़ कोई अफवा सा है
तुजे महसूस किया है मैंने
तू तो बिलकुल हवा सा है
इश्क़ भी क्या मर्ज़ है मियां
जो दर्द है वो ही दवा सा है
मैख़ाने ऊम्र नहीं होती कोई
बुज़ुर्ग भी यहाँ जवाँ सा है
मौत भी जालिम आती नहीं
कोई जिंदगी से रुसवा सा है
***
(15)
शीशे सा शहर, लोग पत्थर से
कांच का दिल, निकले घर से ?
तबाही तबाही, चारो तरफ है
हम भी कहाँ, बचे है असर से
खौफ का मंज़र फैला हुआ हैं
डर भी डरा सा है कोई डर से
शोख जो था, हुनर बन गया है
बचा ही लेंगे तुजे,बुरी नज़र से
शराब शायद, मजा न देगी
निकले है हम, उसके नगर से
इश्क़ है जरा संभल ना होगा
इधर से बचोगे गिरोगे उधर से
तुजे अब कसम है मैख़ाने की
बता भी न देना दोनों किधर थे
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(16)
ख़ामोशी का शोर है
जो मेरी चारो ओर है
मौत भी नज़दीक है
साँस भी कमज़ोर है
तेरे लिये लिखा जो
पढता कोई और है
याद तो याद ही है
इसपे किसका जोर है
निभाना मुश्किल है
इश्क़ नाजुक डोर है
हम मैख़ाने क्या गये
चरचा चारों और है
शायरी, शराब इश्क़
अब इन्ही का दौर है
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(17)
हिदायत हैं की दबे पाव चले जाना
बेवजह, बेवजह कोई शोर ना मचाना
चाहने वाले होंगे हज़ारो ज़माने मैं
मुजको तुम्हारे नाम से जानता ज़माना
कुछ पुरानी यादों को भुला नहीं सकते
वो अज़ीज़ इश्क़ था, नायाब था खज़ाना
तुम्हारे चाहने वालो की तादाद तो देखलो
आगे न कोई मंज़र पीछे है बस फ़साना
देहलीज़ पार कोई रिश्ता नहीं होगा सुनो
जो कुछ भी है बताना दहलीज़ मैं बताना
नये होंगे आशिक, देखभाल तो करेंगे वहाँ
मुश्किल है पुराने प्यार मैं जी के बताना
बदलना इश्क़ फितरत है तुम्हारी सच माना
बदलने से पहले का इश्तिहार तो दिखाना
आखरी मंज़िल हासील हो ही गई आखिर
ठोकर लगी वहाँ पर, सामने था मैख़ाना
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(18)
अजब सी कश्मकश मैं गुज़र रही हैं
जैसे कोई बेवा मातम मना रही हो
जिंदगी तुजसे पुरना कोई बैर होगा
तभी तुम मुझे इतना सता रही हो
मरहम लगे ही नहीं पुराने हो चले है
और रोज जख्म नये दिखा रही हो
खामोश हो जाऊ तो ये अच्छा होगा
बोलना जैसे तुम चुप करा रही हो
कौनसी धरा है की सुकून मिले मुझे
हर कही तुम फैलती जा रही हो
शराब,साकी से बैर हो ही नहीं सकता
खामखा उन पर इलज़ाम ढा रही हो
मेरा मरना त्यौहार हो भी सकता है
जो हररोज़ मुझे दिन गिना रही हो
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(19)
मजहब के नाम, बाँट के रखा है
सब ने वोट बैंक, संभाल रखा है
सियासत शर्मसार क्यूँ नहीं होती
जिस्म मैं जैसे पानी उबाल रखा है
बयाँ कैसे करे, नादान सी बेटियां
सरकार ने भीतर ही दलाल रखा है
मुल्क है पूछेगा, बताना भी होगा
कुछ पूछने पर क्यूँ सवाल रखा है
ये शानो शौकत है हमारी वजह से
तुमने हमारा खाक खयाल रखा है
इस बार कोई नया जुमला नहीं
पुराना हर जुमला संभाल रखा है
आप भी इंसान मैं आते है कया ?
हमने जवाब मैं ही सवाल रखा है
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(20)
मैं चला तो था साथ लेकर
हौसले कमजोर थे टूट गये
किस्मत किस्मत की बात है
किस्मत से ही हम छुट गये
नजाने कौनसी आंधी है जो
बिखरी,उसके पहले बिखर गये
कभी अंदाज़ा हो तो बता देना
कितने बेघर थे जो घर गये
तुम महफूज़ रहो दुआ है हमारी
पूछेगा ज़माना जालिम किधर गये
ये जो बात बात पे कहर ढाते हो
सोचोगे हालाते दिल किधर गये
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(21)
सुहाना था सबकुछ, सबकुछ सुहाना था
कुछ हमें भूलना था, कुछ तुम्हे भुलाना था
वक़्त के दरिया मैं, क्या कुछ बहे गया है
देख लिया है हमने जो तुमको दिखाना था
कुछ पल का ही सही साथ तो रहा अपना
कुछ पल के लिए कदमो तले जमाना था
रखते है ख्वाहिश के जन्नत नसीब हो जाएं
तो खुद ही मरना था खुद को ही मिटाना था
कुछ भी रास आया है न आएगा इश्क़ सिवा
आग का दरिया था और डूब के जाना था
जब छोड़ने का फ़ैसला कर लिया शराब को
अगली गली के मोड़ पे साकी था मैख़ाना था
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(22)
तिरंगे मैं लिपटे हुए जिस्म जब घर आते है
पता है उन घरो मैं क्या मातम छाते है
हमें अंदाज़ा ही नहीं सरहद के हालातो का
कितने वहा जागते है तो हम सो जाते है
दो दिन ही सही जागती है देश भक्ति हमारी
कई ऐसे भी है उस मैं ही जिंदगी बिताते है
सलामत उन्ही से ये आशियाना हम सब का
शदीद हो कर वो बस गुमनाम से हो जाते है
आँखों मैं अश्क़ है सब महान वीरो के लिए
देश के नाम पर जो जान जहान लुटाते है
सियासत भी नहीं बची उनकी शहादत पे
पता नहीं ये नेता कैसे जिन्दा रह पाते है
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