आईना-ए-अक्स:
(ग़ज़ल संग्रह)
हिमांशु मेकवान
(1)
इक़बाल ये क्या हुआ जलने के बाद भी?
बर्फ क्यूँ बाकि है पिघलने के बाद भी ?
ये जो सूरज दिखा रहा है हमको गरमी अभी
कैसे रहेगी आग उसके ढलने के बाद भी?
बाद में करना हिसाब सबकुच तो ठीक हैं?
तुम जिद पे अड़े रहते हो मुकरने के बाद भी ?
मेरी कश्ती शायद अब साथ छोड़ ही देगी
देखी है मैंने जिंदगी शायद मरने के बाद भी
प्यार है तो सबकुछ भी होगा तो क्या करें?
कदमो तले है दिल मेरा तेरे कहने के बाद भी?
***
(2)
कभी इक दौर में, मैं तेरा सबकुच था
जब शुरू हुआ था हममे कुछ कुछ था
जिन्दा रहे तो अल्फ़ाज़ याद भी रखना
मुर्दा हुए तो वसीहत मैं क्या कुछ था ?
हक़ हैं की ठुकराओ तूम लाख मुहोब्बत
मुहोब्बत है हक़ मैं मेरे और कहा कुछ था
आइना बदल दिया जो सच बोलता था
पुराने मैं भी सब वही है जो नए मैं कुछ था
दिल है फरियाद है और समाज कुछ भी
मैं तेरा कुछ था तू तो मेरा सबकुच था
***
(3)
जिंदगी तुज से कोई शिकायत ही नहीं
मौत से बढाकर मेरी ख्वाहिश ही नहीं
अब जागती आँखसे सपना देखता हूँ मैं
नींद अब तो मुझे तेरी भी जरुरत ही नहीं
कुछ और दिखाके लाये थे कुछ और ही है
सुन, तेरे तेवर मेरे यार कुछ ठीक ही नहीं
जो चाहते हो मांग सकते हो मुजसे तुम
तेरे बिनातो साँस की भी जरुरत ही नहीं
लम्हे है यादो के और कुछ सपने है मेरे
इसके आलावा कोई मेरी वसीहत ही नहीं
कोई दूर से कहेता है की आज़ाद कर दूंगा
करीब आने पे कहेता है की ज़ंज़ीर ही नहीं
***
(4)
ख्वाब है कुछ खयालात इससे ज्यादा वसीहत नहीं मेरी
सच कहु तुजसे मैं इश्क़ से ज्यादा औकात ही नहीं मेरी
थक गया हार भी गया और बस बेबस खड़ा हूँ बाजार मैं
लड़ सकु तेरे लिए ज़माने से मैं कोई ताकात ही नहीं मेरी
मरना मुझे आसान लगा साँस लेने से मुझे सहमी सहमी
खुली साँस मिल जाये मुझे इस से बड़ी वारदात ही नहीं
जिंदगी खूब सितम ढाए तूने मुज पर हद करदी अब सुन
एक बार मिला दे मौत से मौत सी कोई मुलाकात ही नहीं
शराब चख भी ली पि भी और नशा भी हुआ मुझे तो सुन साकी
शराब मैख़ाना नींद मैं मिले ख्वाब ही है ख्वाब ही सही
मैं अक्सर खुद से ही हार जाता हूँ तो हार मंजूर मुझे सुन
जितना जैसे ख्वाब ही है जितनाअब मेरी किस्मत मैं नहीं
***
(5)
अब ना कोई मेरी जरुरत है
जिंदगी युही खूबसूरत है
हा खुदा मानता रहा मैं जिसे
वोभी पत्थर की कोई मूरत है
जान लेलो अब मुआफ़ करो
जिन जैसे कोई जरुरत है
आइना फिरसे एक सवाल करे
घर मेरी भी क्या जरुरत है
शराब ले के चले आओ अब
बेहोशी की बहोत जरुरत है
तेरे जैसा कोई, नहीं जग मैं
मानता ही नहीं मुहोब्बत है
***
(6)
अकेले इतवार का मजा ही नहीं
जैसे इतवार कोई इतवार ही नहीं
पुरे हप्ते सोचता हूँ ये एक दिन को
लो इस दिन को भी आराम ही नहीं
यादे क्या हर रोज काम करती है
यादों के हिस्से मैं रविवार ही नहीं
घर, गली, मोहोल्ला सब कुछ देखा
तुम्हारा कही भी अब दीदार ही नहीं
इश्क़ है मर्ज़ तो दवा की जरुरत क्या ?
तो बीमार सब है कोई बीमार ही नहीं
रह मैं नज़रे झुकाये बेठे थे इनकी
अने के उनके कोई आसार ही नहीं
तेरी खुशबू आब तक हवा मैं है यहाँ
तेरे जैसा कोई भी गुलज़ार ही नहीं
***
(7)
मिलावट का बाजार नज़र आती है सियासत अब
इस्तमाल का औज़ार नज़र आती है सियासत अब
जन्नत का हश्र क्या कर के रखा है
मज़हब का व्यापार नज़र आती है सियासत अब
वो जुड़े जरूर मुक्कमिल ना हो सके
उन्हें बड़ी बेकार नज़र आती है सियासत अब
सिर तो तब भी कटे थे हुज़ूर सच है
क्यूँ आज खूंखार नज़र आती है सियासत अब
अच्छे दिन का इलाज जल्दी करना होगा
जुमले का शिकार नज़र आती है सियासत अब
जल्द ही बुलाईए योग करवाने के लिएव
शक्ल सेव बीमार नज़र आती है सियासत अब
***
(8)
जुमले इश्क़ मैं बिक गया हूँ मैं
कोई कहे, क्या था ओर क्या हुँ मैँ
वक्त औज़ार की तरह काटता हैँ
और मै समजा कि तलवार हुँ मैं
खुशियाँ सारी तलाशी दामन मै
उस ने कहा रुक जा सलवार हु मैं
कोई मुझे मिले कोई पढ़ने वाला
पुराना ही सही अखबार हु मैं
वक़्त ने किया कोई मज़ाक होगा
इस लिए तो तेरा तलबगार हु मैं
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(9)
एक कील आधी अंदर अधि बहार ज़िन्दगी बिताती रही
और उस पर टंगी तस्वीर ही आप को नज़र आती रही
न कोई आवाज़ न दर्द न रोना, शिकायत कैसी
तस्वीर के साथ कील न जाने क्या क्या उठाती रही
सफाई वास्ते जब कभी निकाला गया तस्वीर को
तो कही जाके कील को राहत की साँस आती रही
ता उम्र उसने तस्वीर को कभी बोज़ समाजा ही नहीं
इसी लिए ता उम्र वो तस्वीर भी मुस्कुराती रही
वो जो ढोते है बोज़ वो पीछे ही रहते है सच है
ख़ामोश रह के ये बात सबको ही कील समजाती रही
ज़िन्दगी से काश कुछ मांग सकता तो वो क्या होता
ये ही एक बात मुझे ज़िन्दगी भर सताती रही
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(10)
बहरहाल ये इश्क है की व्यापार ये तो बता
कैसा चल रहा है करोबार ये तो बता
टुटा हर जगह से हु तू जरा देख ले मुझे
कहाँ से शुरू करेगा उपचार ये तो बता
इश्क़ है खता, इश्क़ गुनाह है तो होगा
यहाँ कौन नहीं है गुनहगार ये तो बता
सुना है आज कल सुर्ख़ियो मैं छाए रहते हो
कौन है ये नया कदरदार जरा ये तो बता
ये जो आंसू पि के दिन गुजरता है मेरा
इसका कौन है ज़िमेदार ये तो बता
फरिश्तों से है अब निजी तालुकात मेरे
क्यूँ मज़ा तेरे जैसा नहीं यार? ये तो बता
सुना है और भी जुमले सहने होंगे हमें
सुना है बच गई है सरकार ? ये तो बता
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(11)
सुखन्गर हो मौत तो मंजूर है
जिंदगी तो जैसे बस दस्तूर है
साँस लेते है सहमी सहमी सी
साँस लेना जैसे कोई कसूर है
घर मैं हूं कोई संदूवक की तरह
सुनो संदूक मैं ही कोहिनूर हैं
लाख बुरे ही सही तुम, तुम हो
खूबियां भी तो आप मैं भरपूर हैं
लाख बुराई करलो आप ज़नाब
मौत है तो जिंदगी का नूर है
हारने वाला हूँ हारा तो नहीं अभी
हार अब भी मुझसे काफी दूर है
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