मैं अपने भाई को क्यूँ मरना चाहता था.. devendra kushwaha द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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मैं अपने भाई को क्यूँ मरना चाहता था..

मैं पिछली सदी में उस साल में पैदा हुआ जब परिवार नियोजन बहुत प्रचिलित नही था और हम दो हमारे दो पर किसी को बहुत विश्वास भी नही था। लोगो के घरों में समय व्यतीत करने के लिए साधन भी नही हुआ करते थे। इसी कशमकश में हम दो भाइयो का जन्म हो चुका था और मैं उनमे छोटा था। यहाँ तक सब अच्छा है क्यूंकि हुम दो हमारे दो वाला संकल्प सुरक्षित था।

क्योंकि हमारी आर्थिक स्तिथि अच्छी नहीं थी इसलिए मेरी माताजी ने मेरे बड़े भाई को जोकि मुझसे सिर्फ तीन साल बड़ा था को मेरी नानी के घर भेज दिया। यानि ऐसा कह सकते है कि मेरा बचपन शेर का बच्चा एक ही अच्छा वाली सोंच पे था। कुछ समय तक तो मुझे ये भी नही पता था कि मेरा कोई बड़ा भाई भी है। मैं सोचता था कि मेरे माँ बाप के लिए सब कुछ मैं ही हूं।

कहानी तो तब शुरू हुई जब मैं सिर्फ तीन साल का था और शायद मेरे माता पिता ने एक और बच्चें के बारे में सोचा। मेरे सामने तो नही सोंचा पर कही तो सोंचा।

अंततः जुलाई 1989 में हमारा तीसरा भाई भी दुनिया मे आ गया। भाई के जन्म के कुछ दिन पहले से ही घर वाले इस बात का ध्यान रखने लगे के कहीं मेरी वजह से मेरी माँ को कोई परेशानी न हो। मैं छोटा बच्चा था और समझ नही पाता था कि मुझे मेरी माँ से दूर क्यों किया जा रहा है। एक सिर्फ लगभग चार साल का बच्चा ये समझ ही नही पा रहा था कि उसके साथ ये नया क्या चल रहा है। एक चार साल के बच्चे के लिए उसकी माँ का साथ बहुत जरूरी होता है।  मेरा बड़ा भाई मेरी नानी के घर पे था और शायद उसको ये पता ही नही था कि घर मे बँटवारा होने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

मेरे पिताजी का पूरा ध्यान मेरी माँ पे और आने वाले बच्चे पे था और उनका प्यार अब बंटने लगा था। अब मैं कुछ समय अपनी बुआजी के साथ के साथ बिताने लगा। मेरा भाई जब पहली बार घर आया तो मुझे नानी के घर भेज दिया गया। ये फैसला मेरे पिताजी ने इसलिए लिया कि कही मैं अपने छोटे भाई को परेशान न करूं। आखिर अब बँटवारा जो होने वाला था।

कुछ दिन मैं नानी के घर पे रहा। वहाँ रहके मुझे मेरी माँ के बिना रहना सिखाया जाने लगा। मेरा समय मेरी मौसी और नानी के साथ बीतने लगा। कुछ समय बाद मैं अपने घर वापिस आ गया। घर आते ही मेरे होश उड़ गए। मैने देखा कि जो माँ सारे दिन मेरे साथ रहती थी, हमेशा मेरे पीछे पीछे भागती थी हमेशा अपने हाथ से खाना खिलाती थी आज वही माँ का पूरा ध्यान उस नए बच्चे पर है। मुझे कोई पूंछता ही नही। मेरा कोई ध्यान रखता ही नही। मुझसे वैसे न कोई बात करता न ही कोई दुलार करता जैसे पहले करता था। मैं आहत हो गया। ये सब मुझे खाने लगा। मुझे यह नही पता कि ये कौन है जिसने मेरी जगह ले ली। मेरी माँ का पुरा ध्यान उस बच्चे पे। उसको दूध पीलाना, कपड़ें बदलना, मालिश करना फिर गोद मे रख के सुलाना फिर दूध पिलाना फिर कपड़े बदलना और बस ये कहानी चलती रही। और मैं हर दिन अकेला होता गया। कभी कभी माँ पूँछती की खाना खाया और मै कुछ कह भी नही पता। क्योंकि मुझे कहना सिर्फ माँ के हाथ से ही अच्छा लगता था। आखिर क्या जवाब देता। अपने हिस्से के प्यार और अहमियत किसी और को मिलता देख मैने मन ही मन उसे अपना दुश्मन मान लिया। माँ का ध्यान उसकी ओर बढ़ता गया और मेरी तरफ घटता गया और मेरे दिल मे उसके लिए दुश्मनी भी बढ़ती गयी।

मैं तो सोंचता हूँ के जिसके 8 से 9 बच्चे होते थे उन बच्चो के दिल पे गया बीतती होगी यहाँ तो सिर्फ एक होने पे इतना बुरा हाल था कि अपने भाई को ही दुश्मन समझने लगे। कभी बड़ा भाई नानी के घर से आता तो कभी मैं नानी के घर जाता पर वो बच्चा माँ को कभी नही छोड़ता और न ही माँ उसको छोडती। एक बार मेरी माँ पिताजी और पूरा परिवार नानी के घर गए। वहाँ पे खेलते हुए छोटे भाई के सिर पे चारपाई का कोना लग गया। सबने सोंचा के मेरी वजह से लगा है और मेरी पिटाई हो गयी। वो माँ जिसने कभी मुझे डांट भी नही लगाई थी उसने आज मेरी पिटाई की और फिर छोटे भाई को दूध पिलाने लगी। मुझे इतना परायापन कभी नही लगा था।
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अब जैसे जैसे मैं और बड़ा होने लगा तो लोग मेरे मन की बात  समझने लगे। मेरी छोटी और बड़ी बुआ मुझे चिढाने लगी। अब बुआ और भांजे का रिश्ता होता ही ऐसा है। बुआ मजे लेती है और छोटा सा भांजा सब सहता रहता। पर बुआ के प्यार जैसा कुछ नही। उनकी सारी बातें आज भी प्यारी लगती है। ये उस समय की बात है जब टेलेविज़न वे सिर्फ एक ही चैनल आता था और उसका नाम था दूरदर्शन। सप्ताह में सिर्फ 2 दिन फ़िल्म आती थी शनिवार और रविवार शाम 5 बजे। मेरा छोटा दिमाग अब पांच साल का हो चुका था और मेरा छोटा भाई लगभग एक साल का। मेरा दिमाग पहले से ज्यादा शैतान हो चुका था। मैं फ़िल्म देखता और दुसरे को मारने के तरीके सीखता। रोज़ नए नए तरीके सोंचता और सोंचते सोँचते सो जाता। आखिर एक बच्चा कितना लोड ही ले सकता था।

फिर आखिर वो दिन आ ही गया जिसका मुझे कब से इंतजार था। मैंने उस जमाने की एक सुपर हिट फिल्म देख के पूरी प्लानिंग बनाई। उस सुपर हिट फ़िल्म का नाम नही लूंगा नही तो आप लोग उस फिल्म के रीमेक की डिमांड करने लगेंगे। मैंने देखा कि अगर कोई बहते हुए पानी मे गिर जाए तो बहता हुआ कही दूर चला जाता है और फिर वापिस नही आ सकता। मैं मन ही मन बहोत खुश हुआ और मौका देखने लगा ये काम मैं अपने छोटे दुश्मन के साथ कब करूँगा। काम सुनने में तो आसान है पर एक 17 किलो के बच्चे यानी कि मेरे लिए बहोत मुश्किल था। पहले भाई को उठाओ फिर कही दूर लेके जाओ जहां खूब सारा पानी बह रहा हो। फिर उसको बहाना और फिर रुक के देखना के कहीं वो वापिस ना आ जाये। घर पे क्या कहूंगा। कुछ समझ नही आया। पर मुझे ये करना था। मैंने अपने पानी के ग्लास से लेके समंदर तक का सोंच रखा था पर मेरा छोटा सा दिमाग इसके आगे कुछ और सोंच नही पा रहा था। अंततः मैने एक जुगाड़ सोंचा। बहता हुआ पानी तो घर पर भी है। आपको याद होगा पहले सबके घरों में हैंडपम्प हुआ करते थे बाथरूम में। मुझे लगा इससे अच्छा कोई जुगाड़ नही हो सकता। मैने अपने भाई को जैसे तैसे उठाया और बाथरूम में ले गया। मैने ये अच्छे से देख लिया था कि कोई मुझे देख न रहा हो।  मैने उसको बाथरूम के अंदर ही नाली के पास रख दिया क्योंकि वहाँ से पानी बहता था तो सोंचा वो भी बह जाएगा। मैं थोड़ी देर रुका पर कुछ नही हुआ। फिर मैंने हैंडपंप को ताबड़तोड़ तरीक़े से चलना शुरु किया। मेरी ताकत के हिसाब से बहुत था पर हैंडपंप की जरूरत के हिसाब से कम था। फिर भी थोड़ा पानी तो निकला। मैन देखा उसको कुछ भी न हुआ बल्कि वो तो पानी को एन्जॉय कर रहा है। मैंने थोड़ी मेहनत और कि पर वो तो हिला भी नही। इस तरह आधे घण्टे हैंडपंप चलाने के बाद हताश होके मैं वही बैठ गया। वो शैतान बच्चा वही पड़ा हुआ मुस्कुराता रहा। भगवान ने उसको बचा लिया और मेरी मेहनत पे पानी फेर दिया।

मैंने उसको वहाँ से उठाया और घर के बाहर सरकारी नाली में रख दिया। नाली बहुत गहरी नहीं थी। मैंने सोंचा कि मेरे एक घर का पानी शायद काम पड़ गया होगा बाहर बहुत सारे घर का पानी बहता है। अगर इसको वह रख दे तो सच मे ये बह जाएगा। लेकिन यार बहने के लिए तो फ़िल्म में दिखाया था कि एक नाव होनी चाहिए। अब नाव कहाँ से आएगी। मैं जल्दी से अंदर गया और एक बड़ा सा न्यूज़पेपर लाया और उसकी एक नाव बनाई जो हम खेलने के लिए बनाते थे बारिश के मौसम में। मैंने नाव को नाली में रखा तो वो थोड़ा आगे बह गई मैं खुश हुआ कि शायद अपना काम बन जायेगा। मैंने न इधर देखा न उधर उसको उठाकर नाव पे रख दिया और दोनों हाथ कमर पे रखके उसके बहने का इंतजार करने लगा। कभी देखता ही पानी का एक झोंका आया पर उसको हिला भी नही पाया। फिर और बड़ा पानी का झोंका देखके खुश हो जाता पर ऐसा कोई झोंका नही आया जो उसको बहा के ले जाये। मैं बहुत थक गया और शायद हार भी गया।
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मैं उसको वहाँ से उठाके वापिस उसके बिस्तर पे सुलाने लगा और खुद भी बगल में खुद भी लेट गया। लेटने के बाद पता नही मैं कब सो गया औऱ जब सोके उठा तो अगले दिन की सुबह थी। माँ ने बोला जल्दी उठो स्कूल नही जाना है क्या। मैंने बोला आज सिर में दर्द है इसलिए नही जाना। प्लीज। माँ तो सब समझती है उसने बोला मत जाओ आज घर पे ही आराम कर लो।

यहाँ वहाँ खेलते और घूमते हुए फिर से शाम हो गयी। शाम को बुआ जी का बड़ा लड़का घर आया और वो अपने साथ एक दोस्त को भी लेके आया। दोनों की उम्र लगभग बारह साल थी। दोस्त के हाथ मे एक पुराना पेचकस था जिससे पेंच टाइट करते है।  पेचकस कई जगह से टूटा हुआ था और उसकी प्लास्टिक भी आधे से ज्यादा निकल चुका था। बुआ के लड़के के दिमाग मे शैतानी सूझी और वो अपने दोस्त से शर्त लगाके बोला के अगर उसने ये पेंचकस बिजली के बोर्ड में लगाके वापिस निकाल लिया तो वह उसे दस रुपये देगा। उस बेवकूफ दोस्त ने पैसे का लालच में शर्त लगाली। जैसे ही उसने पेचकस को बोर्ड में डाला उसे इतने जोर का करंट लगा कि पांच मीटर दूर जाके गिरा। सब डर गए कि क्या हुआ और बुआ के लड़के की जमके पिटाई हुई। इस सब मे मैंने बहुत कुछ सीखा। मैने सीखा की बिजली के बोर्ड और भाई के दोस्त के बीच मे जो था उसको कुछ नही हुआ और जो नीचे था उसको करंट लगा। क्योंकि पेंचकस अभी भी बोर्ड में घुसा हुआ था और भाई का दोस्त लगभग बेहोश था। मेरा बच्चे वाला शैतानी दिमाग फिर चला और मुझे मेरे छोटे भाई को सताने का एक और तरीका मिल गया।

अगले दिन बिल्कुल सुबह पिताजी दूध लेने गए और माँ स्नान के लिए भाई को मेरे भरोसे छोड़ के गयी। जैसे ही वो दोनों गए मैने अपना काम शुरू कर दिया। बच्चे के छोटे से बिस्तर को बिजली के बोर्ड के पास लाया और फिर इधर उधर देखा और मैने अपने एक बायें हाथ से छोटे भाई को पकड़ा और दूसरे हाथ की एक उंगली बिजली के बोर्ड में डाल दी। क्योंकि मैं बिजली के बोर्ड और भाई के बीच मे था इसलिए मुझे कुछ नही होना चाहिए था पर मैं गलत था। मेरे प्यारे प्यारे और नन्हे पैरों में चप्पलें नही थी और बच्चा तो लकड़ी के बिस्तर पे था। कसम से मैं इतनी दूर जाके गिरा की चार दिन बुखार में पड़ा रहा। पर इतना खुराफाती था के किसीको बताया नही आज तक कि सच मे उस दिन हुआ क्या था। सबको लगा शायद नींद में चक्कर खाके गिर गया और चोंट आ गयी। सच्चाई बताने की हिम्मत आज तक नही जुटा पाया। अपने दिमाग से बनाई हुई सारी फिजिक्स उस दिन खुद पे ही भारी पड़ गयी। छोटा था सिर्फ पाँच साल का इसलिए कोई शक भी नही करता था के मेरे दिमाग मे चल क्या रहा है। एक छोटा सा बच्चा कभी पूरी तरह भिगा हुआ मिलता है और कभी उसका बिस्तर कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंच जाता है कभी किसी ने ध्यान ही नही दिया। कभी किसीको शक नही हुआ और आज तक किसी को पता भी नही है। सच कहूं तो था तो मैं शैतान वो भी एक नम्बर का।
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अब मैं उस छोटे से बच्चे से एक बार फिर हार के कुछ दिन दुखी रहा पर मेरे जैसे कमीना कब तक शांत रहता। फिर से दिमाग चलाया और फिर से एक आईडिया आया। मेरी बुआ के घर मे एक भैंस थी। कुछ दिन पहले बुआ के लड़के के पैरों पे भैंस ने अपना पैर रख दिया। बेचारे को दिन में तारे दिख गये और बहुत दिन हॉस्पिटल में बिताने पड़े। बेचारे ने बहूत दर्द सहा होगा पर उसने मुझे एक अच्छा सा आईडिया भी दे दिया। अब मैने सोंचा के कैसे भी छोटे भी को लेके बुआ के घर जाए और वहां पर इसको उसी भैंस के पैर के नींचे रख दिया जाए। अगर गलती से बच भी गया तो भैंस के गोबर की बदबू से जरूर मरेगा। उस समय का बहुत ही पॉपुलर शो महाभारत हर रविवार टेलीविजन पे आता था। अब क्योंकि मेरे घर पे टेलीविजन नही था इसलिए हम सब महाभारत देखने बुआ के घर जाया करते थे और मुझे वहाँ मौका मिल सकता था। और ऐसा ही हुआ जिस समय महाभारत में शकुनि पांडवों को मारने का षड्यंत्र रच रहा था ठीक उसी समय मैं भी किसी को ठिकाने लगाने का षड्यंत्र रच रहा था। मैं अकेला पाते ही भाई को उठा लिया और जल्दी से जाके भैंस के नीचे रख दिया। भैंस या गाय बहोत ही संवेदनशील होती है अपने नीचे बच्चे को देख कर शायद वो समझ गयी और एक झटके से बच्चे के ऊपर से हट गई और इससे पहले कि मैं भाग पाता उसने अपना भारी भरकम सा पैर मेरे पैरों पे दे मारा। अब दिन में तारे दिखने की बारी मेरी थी और मैंने देखे भी। दर्द के बारे में बाद में बताऊंगा पर बिल्कुल अपने पैर जैसा डिज़ाइन मेरे पैरों पे बनाके भैंस अपना खाना खाने लगी। दर्द की तो इंतेहा हो गयी। इतनी जोर से चिल्लाया की सारे लोग महाभारत छोड़ के मेरा वध होते देखने आ गए। तुरंत सबने मुझे उठाया और कुछ लोगो ने छोटे भी को। मैं लगभग 6 दिन हॉस्पिटल में रहा और छोटा भाई आराम से घर पे। उस दिन सबके दिमाग मे एक सवाल था कि मेरा तो कुछ नही वो छोटा सा बच्चा भैंस के नीचे कैसे आया। पर किसी ने भी आजतक मुझसे ये सवाल नही किया। मुझे लगता है शायद उस दिन सबको मुझपे शक हो गया था पर यकीन से कुछ नही कह सकते। आज तक जब जब जूते पहनने के लिए अपना दायाँ पैर देखता हूं हॉस्पिटल के दिन याद आ जाते है जब मेरी कमर पे रोज़ सात या आठ इंजेक्शन लगते थे।
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खैर एक बार फिर से मुंझे एक बहुत ही बुरा अनुभव हुआ। घर वालो को शायद शक भी हो गया। अब मै थोड़ा सा सतर्क हो गया पर मैं सुधरा नही। इस तरह के छोटे छोटे बहुत से शिकार मैं करता रहा और हमेशा उसका शिकार मैं खुद ही होता रहा। शायद भगवान साथ था उसके और ये शायद समय की जरूरत भी थी।

कुछ दिन बाद नवंबर के महीने में मेरे सबसे छोटे चाचा की शादी थी। शादी की तैयारी मस्त थी और हम सारे भाई बहन और सभी रिश्तेदार और उनके सभी बच्चे हम सब बहुत एन्जॉय कर रहे थे। शादी हो गयी, नई चाची भी घर आ गयी। उन्होंने भी वही किया जो सब करते थे । मेरे साथ खेलने के जगह वो छोटे भाई के साथ खेलने लगी उसको प्यार करने लगी और मैं फिर एक बार ये सोंचता रह गया कि आखिर ऐसे मेरे साथ ही क्यों हो रहा है। आखिर मैं इस दुनिया मे उससे पहले आया तो मुझे प्यार पाने का हक सबसे ज्यादा है। अब मेरी सहन शक्ति समाप्त हो चुकी थी। अब मै आर या पार की लड़ाई चाहता था।

चाची अपने साथ बहुत सारा दहेज लेके आयी थी। उस जमाने मे दहेज यानि लेन देन को समाज में अपनी शान समझा जाता था। टेलीविजन, फ्रिज, वाशिंग मशीन, कूलर के साथ साथ एक बड़ा और एक छोटा बक्सा भी लायी थी। सारा नया समान चाचा के कमरे में रखवा दिया गया। सारी सेटिंग करने के बाद सब लोग आराम करने लगे और मैं एक बार फिर से अपनी प्लानिंग में लग गया। लाये हुए सामान में कुछ ऐसा समान था जो मेरे काम आ सकता था। सभी मेहमान घर से जाने लगे और घर खाली होने लगा। जब घर पे शायद दस से बारह लोग बचे तो मैंने अपना काम करने की सोंची। सबसे पहले मैं अपनी नई चाची के कमरे में गया और उनकी सबसे छोटी वाली बक्सा जिसमे ज्यादा समान नही था उसको पूरा खाली किया। बक्से को कमरे के किनारे लगाया और कमरा बंद कर दिया। फिर थोड़ी देर बाद मैं अपने छोटे भाई को लेके आया और मैंने उसको उस बक्से में रख दिया और बक्से के ऊपर मैं बैठ गया। हाँ आपने सही पढ़ा मैंने उसको बक्से में बंद कर दिया और ख़ुद उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गया। शायद अब तक के सभी तरीको में ये सबसे फूल प्रूफ तरीका था। पहली बार मुझे लगा कि शायद मुझे कुछ नही होगा। पहले कभी भैंस मेरे पैर पे अपना पैर रखती थी कभी मुझे करंट लग जाता था तो कभी कुछ और पर इस बार ऐसा कुछ नही था। इस बार जीत पक्की थी। मैं अपने आपको एक शहंशाह समझ रहा था। मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पे था। मैं वो सिकंदर था जिसने बिना किसी वार के और बिना किसी तलवार के अपने दुश्मन को खत्म करने जा रहा था। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। आँखों के आगे माँ बाप का पूरा प्यार दिख रहा था और अब उसको बांटने वाला भी कोई नही था।

पर ये क्या तभी अचानक मुझे अपने बड़े भाई की याद आयी। शायद उसने आवाज लगाके मुझे बुलाया। बहुत प्यार करता था मुझे वो। आखिर कभी कबार जो मिलता था। वो मुझसे लगभग तीन साल बड़ा था। लगभग तीन ही साल वो माँ के साथ रहा फिर उसको नानी के घर भेज दिया गया था। आखिर वो भी तो इतने दिनों से माँ से दूर है पर उसने कभी मुझे अपना दुश्मन नहीं समझा बल्कि हमेशा मुझसे बहुत प्यार किया। क्या उसने कभी ऐसा सोंचा होगा जैसे मैं अपने छोटे भाई के लिए सोंचता हूं और उसे मारने चाहता हूं। अगर सोंचा होता तो शायद मैं आज जिंदा ही नही होता।

मैं जोर जोर से रोने लगा, मेरे हाथ पैर काँपने लगे और पूरा शरीर सुन्न पड़ने लगा। हाँ दो भइओ में प्यार हो सकता है, हाँ दो भाइयों में दोस्ती भी हो सकती है, हाँ माँ बाप सभी बच्चों से बराबर प्यार करते है, मैं भी अपने छोटे भाई से प्यार करूँगा और वो भी मुझसे प्यार करेगा ऐसे सोंचते सोंचते मैं बक्से से उतरा और मैन उस बक्से को खोल दिया। मेरे भाई की सांस लगभग रुक गयी थी। मैं और जोर से रोने लगा। मैं तड़पने लगा। कसी को कुछ बोलने या चिल्लाने की हिम्मत ही नही बची थी।  मैं चाहता था कि ये धरती फट जाए और मैं उसी में समा जाऊ। एक एक सांस भारी हो गयी थी। भाई की आँखे बंद थी मैं समझ गया था कि शायद अब सब कुछ खत्म हो गया। मुझे पिछले एक साल के सारे काम फ्लैशबैक में दिखने लगे।

सांस न ले पाने की वजह से शायद वो हमें छोड़ के जा चुका था। मैंने उसको जोर से हिलाया। सर्दी की वजह से उसने कपड़े भी बहुत से पहन रखे थे। मेरे काँपते हांथो से हिलाने के बाद भी उसे कुछ नही हुआ। मैंने उसे बाहर निकला और अपने सीने से लगाकर रोने लगा और भगवान से कहने लगा कि चाहे मेरी जान ले ले पर इसको ठीक कर दे नही तो माँ और पापा मुझे जान से मार देंगे। अभी जो उम्र है उसका तो पता नही पर शायद भगवान पांच साल की उम्र के बच्चे की सुन लेता है। अचानक छोटे भाई की सांस फिर चलने लगी। वो बहुत ही गहरी नींद में सो रहा था और मेरे सीने से चिपका हुआ था। यह प्यार माँ के प्यार से बिल्कुल कम नहीं था। मैंने भगवान को धन्यवाद दिया और उसको लेके सीधा माँ के पास गया और बोला,"माँ इसको पकड़ो के बहुत शैतान है पर बहुत प्यारा है"।

उस दिन के बाद मैंने उसको कभी अपना दुश्मन नही समझा और इस बात को समझा की क्योंकि वो बहुत छोटा है इसलिए माँ उसकी तरफ ज्यादा ध्यान देती है जैसे मेरी तरफ दिया था मेरे बड़े भाई को नानी के घर छोड़ के। कोई भी माँ अपने बच्चे को अपने से दूर नही करती पर मेरी माँ ने किया हमारी बेहतर परवरिश के लिए।

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बहुत प्रयास के बाद हिंदी में लिखना प्रारंभ किया है। उम्मीद करता हूँ की आपको यह कहानी पसंद आई हो। जब कहानी की शुरुआत की तो सोंचा की थोड़ा सा हास्य व्यंग्य डालके कहानी को मजेदार बना सकू। पर जैसे जैसे बचपन की पुरानी बातें याद आती गयी दिल पसीजता गया और आँखों मे आँसू आ गए और कहानी भावनात्मक हो गयी।
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किसी कमेंट या कॉम्प्लिमेंट के लिए मैं सदैव उपस्थित हूं। कृपया कुछ कहे जरूर।

-----देव