कहाँ गईं तुम नैना - 5 Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कहाँ गईं तुम नैना - 5

      
            कहाँ गईं तुम नैना (5)


डिनर के बाद आदित्य जब अपने फ्लैट में लौटा तो बहुत देर तक उसे नींद नहीं आई। वह पुराने दिनों के बारे में सोंचने लगा। 
पाँच महीने से अधिक हो गए थे। दोनों ही अब एक दूसरे को भली प्रकार से समझ चुके थे। आदित्य तो पहले से ही नैना को अपना दिल दे बैठा था। लेकिन अब नैना भी उसे चाहने लगी थी। 
आदित्य की माँ के जाने के बाद से उसके पिता अपने में ही रहते थे। आदित्य से भी अधिक बात नहीं करते थे। आदित्य ने अपने पिता को नैना के बारे में बताया। उनका कहना था कि अगर उसकी खुशी नैना के साथ शादी करने में है तो उन्हें कोई ऐतराज नहीं। 
नैना ने भी अपने घरवालों को आदित्य के बारे में बता दिया था। हलांकि उसकी माँ चाहती थी कि उनका होने वाला दामाद बंगाली हो। लेकिन जब नैना ने उन्हें समझाया कि आदित्य एक अच्छा लड़का है। वह हमेशा उसे खुश रखेगा तो वह आदित्य को अपना दामाद बनामे के लिए राज़ी हो गईं। 
आदित्य और नैना दोनों ही एक दूसरे के मन की बात समझते थे। पर नौना इंतज़ार कर रही थी कि आदित्य सही तरह से उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखे। 
आदित्य भी अब नैना से अपने दिल की बात करने के लिए और अधिक समय नहीं लगाना चाहता था। वह सही मौके की तलाश में था। अपने बर्थडे पर आदित्य ने नैना को छुट्टी लेकर आगरा आने को कहा। आदित्य ने उसके सामने अपने प्यार का इज़हार करने की पूरी योजना बना ली थी। 
नैना को लेकर वह कीठम झील पर गया। काले रंग की स्लीवलेस ट्यूब मिडी में नैना बहुत खूबसूरत दिख रही थी। दोनों देर तक झील के आसपास घूमते रहे। नैना समझ रही थी कि अपने बर्थडे के दिन आदित्य ने उसे यहाँ क्यों बुलाया है। बस वह राह देख रही थी उस पल का जब आदित्य उसे प्रपोज़ करेगा।
वैसे तो आदित्य ने मन ही मन कई बार नैना के सामने अपना दिल खोल कर रखा था। लेकिन अब जब वह सामने थी तो वह नर्वस हो रहा था। आदित्य ने सोंचा था कि झील के किनारे किसी एकांत जगह वह नैना को प्रपोज़ करेगा। लेकिन समय बीत रहा था। पर आदित्य हिम्मत नहीं कर पा रहा था। 
नैना भी समय बीतने के साथ सोंच में पड़ गई थी कि आदित्य सचमुच उससे अपने प्यार का इज़हार करना भी चाहता है या नहीं। आदित्य का मन टटोलने के लिए उसने कहा।
"अब हमें चलना चाहिए। मैं चाहती हूँ कि समय से दिल्ली पहुँच जाऊँ।"
यह सुन कर आदित्य परेशान हो गया। आज नैना को प्रपोज़ करने का अच्छा मौका था। वह उसे जाने नहीं देना चाहता था। वह सोंचने लगा कि हिम्मत तो करनी ही होगी। तभी उसके दिमाग में एक बात आई।
"कुछ देर और रुको नैना। हम लोग बोटिंग करने चलते हैं।"
"ठीक है...चलो।"
आदित्य और नैना बोट में बैठ कर कीठम झील की सैर करने लगे। आदित्य अभी भी नर्वस था। वह समझ नहीं पा रहा था कि आज उसे हो क्या गया है। वह नैना से पहली बार नहीं मिल रहा है। पहले दोनों कई बार मिल चुके हैं। तब वह बेझिझक उससे बातें करता था। लेकिन आज जब अपने दिल की बात करने का समय आया तो वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। 
नैना उसकी मुश्किल को समझ रही थी। उसे हिम्मत देने के लिए बोली।
"आदित्य तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो।"
नैना के इस सवाल ने आदित्य का हौंसला बढ़ा दिया। उसने अपने प्यार का इज़हार कर दिया।
"नैना...आई लव यू...."
नैना ने उसका हाथ पकड़ कर कहा।
"आई लव यू टू...."

उस दिन नैना के कहे वो शब्द आदित्य के कान में गूंजने लगे। लेटे हुए उसकी आँखें भर आईं। उसके मन में हूक उठी। क्यों नैना तुमने मुझ पर तब यकीन क्यों नहीं किया ? क्यों मुझे छोड़ कर चली गईं। 
आदित्य ने घड़ी पर नज़र डाली। रात के एक बज रहे थे। उसे सुबह गाज़ियाबाद के लिए निकलना था। उसने मन ही मन तय कर लिया कि चाहे जो हो पर वह अपनी नैना को ढूंढ़ कर रहेगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और सोने की कोशिश करने लगा।  

आदित्य बसंत के घर के दरवाज़े पर खड़ा था। उसने दरवाज़ा खटखटाया तो एक महिला ने दरवाज़ा खोला। 
"नमस्ते... मुझे बसंत से मिलना है।"
उस महिला ने घूर कर देखा। फिर रुखाई से बोली। 
"यहाँ कोई बसंत नहीं रहता है।"
"पर मुझे तो यही पता दिया गया था।"
"हम कह रहे हैं ना कि यहाँ कोई बसंत नहीं रहता।"
आदित्य को शंकर की बात याद आई कि बसंत बहुत डरा हुआ है। वह घर में छिप कर रहता है। 
"देखिए बहनजी मेरा उससे मिलना बहुत ज़रूरी है। आप बस उनसे कह दीजिए कि नैना मैडम का पती आया है।"
नैना का नाम सुन कर वह महिला और चिढ़ गई।
"बड़ी मुश्किल से तो जान बची है उनकी। नैना मैडम को अभी भी चैन नहीं। हम नहीं मिलने देंगे उनसे। जाओ यहाँ से।"
वह आदित्य के मुंह पर दरवाज़ा बंद करने जा रही थी। तभी पीछे से आवाज़ आई।
"भीतर आने दो।"
वह महिला एक ओर होकर खड़ी हो गई। आदित्य भीतर चला गया। घर के आंगन में बसंत चारपाई पर लेटा था। उठ कर बैठते हुए उसने महिला से आदित्य के लिए कुर्सी लाने को कहा। वह महिला बड़बड़ाती हुई एक कुर्सी रख कर चली गई। 
"माफ करिएगा सर ये मेरी पत्नी रमा है। जो मेरे साथ हुआ उससे डर गई है। मुझे घर से बाहर भी नहीं निकलने देती है।"
"मैं समझ सकता हूँ। मैं भी तो अपनी पत्नी के लिए फिक्रमंद हूँ।"
"क्यों ? नैना मैडम ठीक तो हैं ना ?"
"एक महीना होने को आया उसका कोई पता नहीं चल रहा है। मुझे जमुना प्रसाद पर शक है। पर पुलिस को उसके खिलाफ कुछ नहीं मिला।"
नैना के बारे में जान कर बसंत परेशान हो गया। उसे भी यही लग रहा था कि जमुना प्रसाद ही नैना के मामले में शामिल है।
"सर आपका शक सही है। जमुना प्रसाद बहुत ही दुष्ट आदमी है। उसी ने मैडम को गायब कराया होगा।"
"बसंत तुम तो नैना के कहने पर उसके खिलाफ सबूत इकठ्ठे कर रहे थे। तुम उसे कानून के घेरे में लाने के लिए मेरी मदद कर सकते हो।"
बसंत चुप हो गया। कुछ देर शांत रहने के बाद उसने आदित्य को जमुना प्रसाद के बारे में बताना शुरू किया।

फुलवारी केस में नैना जमुना प्रसाद को सीधे सीधे नहीं घेर पाई थी। लेकिन फिर भी उसके शो ने जमुना प्रसाद की छवि को बहुत नुकसान पहुँचाया था। इस बात से तिलमिला कर वह नैना को गुंडों के ज़रिए धमकी दिला रहा था कि उसने जो किया उसका परिणाम बहुत बुरा होने वाला है। उसकी धमकियों से नैना तनाव में आ गई थी फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी थी। वह जमुना प्रसाद का असली चेहरा लोगों के सामने लाना चाहती थी। लेकिन वह सीधे सीधे कुछ नहीं कर सकती थी। बसंत पहले भी उसके लिए काम कर चुका था। उसने बसंत को बुला कर सारी बात उससे कही।
बसंत जानता था कि जमुना प्रसाद के खिलाफ जासूसी करना बहुत कठिन काम है। अतः उसने सोंचने का समय मांगा। दरअसल वह भुक्तभोगी था। जमुना प्रसाद ने उसे भी चोट पहुँचाई थी। 
जिस बस्ती में बसंत रहता था वहाँ अधिकांश लोग छोटे छोटे काम करके जीवन यापन करते थे। उसके पड़ोस में कैलाश रहता था जो कि दर्ज़ी का काम करता था। कैलाश की चौदह साल की बेटी दीपा की शक्ल बसंत की बहन से मिलती थी। बसंत की बहन चार साल पहले बीमारी के कारण चल बसी थी। बसंत दीपा को अपनी बहन मानने लगा था। 
कैलाश को शराब पीने की लत थी। उसकी कमाई शराब की भेंट चढ़ जाती थी। कैलाश के एक जानने वाले ने उसे समझाया कि दीपा को किसी बड़े घर में काम पर रखवा दे। अच्छे पैसे मिलेंगे। कैलाश लालच में आ गया। उस आदमी ने दीपा के लिए गुरुग्राम में एक रईस परिवार सुझाया। दीपा की माँ नहीं थी जो इस फैसले का विरोध करती। बसंत ने अपनी तरफ से कैलाश को समझाने का प्रयास किया कि दीपा अभी छोटी है। अपनी हिफाज़त नहीं कर सकती है। उसे एक अंजान घर में भेजना ठीक नहीं है। पर कैलाश पर लालच सवार था। दीपा को उस घर में काम करने के लिए भेज दिया गया।
मनसुख भाटिया गुरुग्राम का एक बड़ा व्यापारी था। बड़े बड़े लोगों का उसके यहाँ आना था। दीपा उसके यहाँ ही काम करती थी। 
एक बार जमुना प्रसाद मनसुख भाटिया के घर आया था। उसकी नज़र दीपा पर पड़ गई। उसने मनसुख से दीपा की फरमाइश की। अपने निजी स्वार्थों के चलते मनसुख मान गया। जमुना प्रसाद उसे गुरुग्राम के अपने फ्लैट में ले गया। वहाँ उसने कई दिनों तक उसके साथ दुष्कर्म किया। 
वापस लौटने पर मनसुख ने यह इल्ज़ाम लगा कर कि दीपा चोरी करती है उसे नौकरी से निकाल दिया। दीपा जब लौट कर आई तो उसकी हालत बहुत खराब थी। उसने कैलाश को सारी सच्चाई बताई। बसंत ने उसे पुलिस में जाने को कहा। पर कैलाश मनसुख के पास शिकायत लेकर पहुँचा। मनसुख ने उसे पैसों का लालच देकर चुप करा दिया। दीपा का कमज़ोर शरीर उसके साथ हुए अन्याय को सह नहीं सका। उसकी मौत हो गई। इस बात से बसंत को उतना ही दुख हुआ जितना अपनी बहन के मरने पर हुआ था। वह उन बड़े लोगों के विरुद्ध खुल कर कुछ नहीं कर सकता था। तभी उसकी मुलाकात नैना से हुई। उसे एक ऐसे आदमी की तलाश थी जो नया हो पर बुद्धिमानी से लोगों की सूचनाएं बटोर सके। उसने कुछ दिन उसे ट्रेनिंग भी दी। पोल खोल के समय बसंत ने कई मामलों में उसकी मदद की। जमुना प्रसाद से बदला लेने के लिए उसने ही फुलवारी के बारे में नैना को जानकारी दी थी। 
बसंत ने नैना के प्रस्ताव पर अच्छी तरह से विचार किया। काम कठिन भी था और जोखिम से भरा भी। लेकिन इस विचार ने कि जमुना प्रसाद वह दरिंदा है जिसने दीपा की तरह कई मासूम बच्चों को बर्बाद किया है ने बसंत को उसके निर्णय पर पहुँचा दिया। वह जमुना प्रसाद के खिलाफ सबूत इकठ्ठे करने को तैयार हो गया।