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देश के बहादुर.. वीर सावरकर…पार्ट - २

१८५७ क्रांति का आर्टिकल यूरोप के १६ ओर ब्रिटेन के ४ प्रमुख न्यूजपेपर में छपा...

तब वहां के बुदधिजीवियों ने कहा 
अगर १८५७ का यही सच है तो ब्रिटेन को अपना मुंह काला कर लेना चाहिए...

इसके बाद अंग्रेज़ समझ गए अगर इस युवक ने भारत के नवयुवको की चेतना जगा दी...
ओर इसकी असर बाकी देशों पर समाचार पत्र द्वारा हुई तो हमारा भारत ही नहीं ओर भी देशों में प्रतिकार होगा...
सन १९०७.. जर्मनी में हुई अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में मैडम भीकाजी कामा द्वारा भारत का प्रथम राष्ट्र ध्वज लहराया गया..

जो वीर विनायक दामोदर सावरकर ने बनाया गया ओर १९२० तक मान्य रखा गया...

एक बार इंडिया हाउस में उन्होंने  अभिनव भारत की बैठक में कहा कि
"क्या इसिके लिए तुम्हारी मां ने जन्म दिया..हमारी भारत माता परतंत्र है और तुम यहां मौज मस्ती में लीन हो..

अभिनव भारत के एक सक्रिय सदस्य मदनलाल ढींगरा ने एक बार जब सावरकर जी को कहा था ..
की व्यक्ति बलिदान के लिए कब तैयार होता है..?
तब सावरकर जी कहते है..
मदन,ये जोश का काम नहीं है..
इसके लिए आंतरिक प्रेरणा चाहिए..
नारे लगाने की वीरता नहीं है यह,
इसमें योगेश्वर श्रीकृष्ण सा गांभीर्य  चाहिए..

बाद में १ जुलाई १९०९ को
ब्रिटेन में मदनलाल ढींगरा ने  अंग्रेज़ कर्ज़न वायली की गोली मार के हत्या कर दी..

इसी टाइम अपने पुत्र प्रभाकर कि भी मृत्यु समाचार मिलती हैं..

इसके बाद अंग्रेजो ने सावरकर  नजर रखनी शुरू कर दी ओर
इंडिया हाउस के सभी स्टूडेंट्स पर जासूसी की जाने लगी

इसी अरशे में एक ओर हादसा हुआ.. नाशिक के जिला मैजिस्ट्रेट जैक्सन की हत्या हो गई..
हत्या में यूज हुई पिस्तौल लंदन से सावरकर द्वारा भेजी गई थी...

इसी बात को लेकर १३ मार्च १९१० को वीर सावरकर को लंदन में गिरफ्तार किया गया...
सावरकर मात्रभूमि की लड़ाई के पहले क्रांतिकरि बने जिनका मुकदमा अंतरराष्ट्रीय अदालत "हेग" में लड़ा गया...
और बाद में भारत ले जाया गया...
८ जुलाई १९१० को 
शिप से भारत आते समय उन्होंने मातृभूमि की आजादी के लिए समुद्र में छलांग लगा दी...
उन्होंने लगाई हुई समुद्र छलांग आज तक किसी तैराकी ने भी नहीं लगाई।
उन्हों के नाम ये रिकॉर्ड रहा है

सावरकर जानते थे अगर अंग्रेज़ मुझे इंडिया ले गए तो सीधा फांसी लगवा के छोड़ेगे...
ओर वह ये भी जानते थे कि फ्रांस की धरती से अगर कोई ब्रिटिश का कैदी पकड़ा जाता हैं तो उन्हे अंग्रेज़ कभी भी फांसी नहीं दे सकते....

इसीलिए सावरकर जी ने समुद्र रास्ते तैरकर फ्रांस जाना पसंद किया..

फ्रांस में योजना तहत मैडम भीकाजी कामा और लाला हरदयाल उन्हें लेने आने में लेट हो गए

ओर सावरकर को गिरफ्तार किया गया..ओर भारत लाया गया...


सावरकर पहले भारतीय थे.. जिन्हें अंग्रेज सरकार ने एक  नहीं बल्कि दो जन्मों अर्थात् ५० साल का कठिन कारावास कालापानी का सजा सुनाई गई.…

इसमें १ 
मार्च १९१० में हिंसा ओर युद्ध के लिए उकसाने के आरोप में २५ वर्ष सेल्युलर जेल आजीवन कारावास की सजा दी गई...ओर 
२, नासिक में हुई जैक्सन हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया ..
ओर २५ साल ओर आजीवन कारावास सजा सुनाई गई थी...

वो पहले भारतीय थे..जिन्हें इतिहास की प्रथम दो जन्म आजीवन कारावास यानी ५० वर्ष की सजा सुनाई गई थी....

४ जुलाई १९११ काला पानी की डबल आजीवन कारावास अंतर्गत सावरकर जी को सेल्युलर जेल अंडमान भेजा गया

अंडमान जाते समय अपनी पत्नी यमुना से मिले 50 साल  की जेल हुई थी
अब कैसे मिलन होगा ?

तब मुस्कुरा कर जेल के लिबास पहने सावरकर बोले थे।
"यमुना, मेरे सिर्फ कपड़े बदले गए है.. में तो वहीं हूं...
जीवन  का अर्थ अगर सिर्फ बच्चे पैदा करना ओर उसे खिलाना पिलाना ही है तो यह कार्य पशु पक्षी भी करते हैं...
लेकिन आनेवाले दिनों में हरेक जीव को आजादी नसीब हो,हर घर चुला प्रगटे  इसीलिए मैंने हमारा चूला शांत किया है."

तब यमुना जी ने भी एक क्रांतिकारी अर्धाग्नी का परिचय देते कहा था
"मुझे आप पर गर्व है"

कितनी महान आर्य नारी होगी वो..जो पहले मातृभूमि फिर परिवार..की ऊंची सोच रखती होगी...

सावरकर पर अमानुशी अत्याचार किए गए...
उन्हे तोड़ने की कोशिश की गई..

1 दिन में 30 पाउंड तेल कोल्हू पर बैल की जगह जुत कर निकलवाया जाता था...
पूरा दिन तन तोड़ महेनत करवाई जाती...
किसिसे आपस में बातचीत भी नहीं की जाती थी और नहीं अंग्रेज़ हुकूमत के सामने अपनी बात रखने की छूट थी..
अगर कुछ बोला तो सीधे मारा जाता...

ओर खाने में जो भी रूखा सुका मिलता था उससे ही गुजारा करना पड़ता...

फिर भी सबकुछ सहन करते हुए अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए जिंदा रहने  की उम्मीद के साथ
जेल की दीवारों पर वीर रस की कविताएं नाखून ओर लहू से लिखी....
ओर कविताएं की १०००० पंक्तियां अपने माइंड में सेव कर ली..
जो जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने पब्लिश करवाई
कितनी महान याद शक्ति महत्ता थी उन्हों की...

१९१४ के बाद दो बार दया याचिका की गई .लेकिन खारिज किया गया...
बाद में १९१७ में तीसरी बार की गई मर्सी पिटीशन को मान्य रखते उन्हे २१ जनवरी १९२१ में कारावास से मुक्त किया गया..
ओर भारत लाया गया..

बाद रत्नागिरी में १९२४ में कुछ बेशर्त नियम के साथ जेल से मुक्त नजर केद रखा गया..
पर 
१९३६ तक ना वो किसी पॉलिटिक्स का हिस्सा बन सकते थे ओर नहीं कोई आजादी कि बात लेकर अभियान या
राजकीय प्रवृति कर सकते थे..  उनके पर प्रतिबंध लगा दिया गया...

इसी समय सामाजिक क्रांति करते हुए उन्होंने हिंदुत्व, हिंदुपद पादशाही, उ:शाप, उत्तर क्रिया, संन्यस्ती खड्ग  आदि पुस्तक लिखकर पब्लिश की....

क्रमश : पार्ट -३ ( last part )
आभार..!!
बंधु एवम् भागीनी..!


मैं कौन होता हूं...
इन हुतात्मा की जीवनी सारांश लिखने वाला....

मैं कौन होता हूं...
इन अमर बलिदानी शहीदों से आपको अवगत कराने वाला.….

ये सिर्फ मेरे दिल में...
ओर मातृभूमि पर पुण्य आहुति देने वाले प्रचंड राष्ट्रवादी महापुरुषों के दिल का प्यार है....

जो आपस मे बांट रहा हूं....

धन्यवाद..!!
हसमुख मेवाड़ा
भारत माता की जय..!

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