हिम स्पर्श - 78 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श - 78

78

“आप? आप यहाँ कैसे?”वफ़ाई ने विस्मय प्रकट किया। वफ़ाई के शब्दों में आनंद भी था और विश्वास भी। वह उस स्त्री की तरफ दौड़ी।

“वफ़ाई आओ। आप सभी का मेरे आँगन में स्वागत है।“ उसने प्रसन्न स्मित से सब का स्वागत किया।

“किन्तु यह जीत? इसकी यह स्थिति?” वफ़ाई उद्विग्न थी, चिंतित भी।

“वफ़ाई, तुम निश्चिंत रहो। जीत को कुछ नहीं होगा।“

वह आगे बढ़ी।

उसने आदेश दिया,“जीत को आप अपनी गोदी में सुला दो।“

विक्टर ने याना और वफ़ाई की गोदी में जीत को सुला दिया।

“आप दोनों इसे जीत के हाथ और पाँव पर घिसो। और तुम जीत की छाती पर यह लेप लगा दो।“ वफ़ाई, विक्टर और याना उस स्त्री के आदेश का अनुसरण करने लगे।

उस स्त्री ने जीत के अधरों पर हाथ फेरा, जीत के खुल्ले मुंह को सहज रूप से बंध कर दिया। जीत के माथे पर स्नेह से भरे हाथ फेरने लगी।

कुछ क्षण इस तरह बीत गए। प्रत्येक व्यक्ति जीत को बचाने के लिए अपने हिस्से का कार्य कर रही थी, वह स्त्री भी।

धीरे धीरे जीत के शरीर में ऊष्मा आ रही थी, किन्तु अभी भी वह निश्चेत था।

“तत्काल तो जीत किसी भी चिंता से मुक्त है। किन्तु उसे उपचार की आवश्यकता है। जीत ठीक हो जाएगा। आप सब मेरे साथ चलिये।“ वह चल पड़ी।

वफ़ाई और विक्टर जीत को साथ लेते हुए उसके पीछे पीछे चलने लगे। याना ने अपना सामान तथा केमरा संभाला और वह भी पीछे चलने लगी।

वह स्त्री तीव्र गति से चल रही थी। वह आगे निकल गई। बाकी तीनों लोग पीछे रह गए। वह उन तीनों की द्रष्टि से भी आगे चली गई।

“कदाचित वह गुम हो गई है। हमें यहाँ भटकने के लिए छोडकर।” याना ने संदेह व्यक्त किया।

“नहीं, वह कभी ऐसा नहीं कर सकती।” वफ़ाई ने उस स्त्री के प्रति अपनी आस्था व्यक्त की। विक्टर अभी भी जीत को साथ लेते हुए आगे चल रहा था। वह स्त्री इतनी आगे निकाल गई थी कि वह दिखाई नहीं दे रही थी।

“विक्टर, कुछ क्षण रुक जाओ। वफ़ाई तूम भी रुक जाओ।“

“याना, रुकना तो मैं भी चाहती हूँ किन्तु...।”

“किन्तु कोई रुकेगा नहीं। जीत को बचाना है ना?” उस स्त्री ने सबको रुकने से रोका,”चलो जीत को मैं उठा लेती हूँ। आप लोग तेज चलते रहिए।“ उसने सहजता से जीत को उठा लिया। अपने कंधे पर डाल कर तेजी से चलने लगी। वह इतनी तेज चल रही थी कि लगता था मानो वह उड रही हो। वफ़ाई, याना और विक्टर भी तेज चलने का प्रयास करते चलते रहे।

एक स्थान पर वह रुकी। वह किसी गुफा का मुख था जो तीन फीट चौड़ा और साढ़े तीन फीट ऊंचा था।

वह वहाँ रुकी, थोड़ी झुकी और जीत के साथ अंदर प्रवेश कर गई।

“आप लोग भी अंदर आ जाइए।“ गुफा के अंदर तीनों चले गए।

एक तरफ पत्थर की बड़ी सी शीला थी जिस पर कुछ बिछाया गया था, जीत को उस पर लेटा दिया। वह कुछ पत्तों को ले आई,”इन पत्तों को जीत की छाती पर घिसते रहना। कुछ ही क्षणों में जीत तंद्रा से जाग जाएगा।“

वफ़ाई जीत की छाती पर पत्तों को घिसने लगी। विक्टर और याना गुफा को देखने और समजने का प्रयास करने लगे।

सामने ही एक बड़ी सी शीला खड़ी थी, सात-आठ फीट ऊंची और पाँच फीट चौड़ी। जैसे किसी कक्ष की दीवार हो। वह स्त्री उसके पीछे चली गई।

याना और विक्टर ने एक दूसरे के सामने देखा, संकेतों में कुछ बात की और याना ने केमरा चालू कर दिया। उस गुफा के प्रत्येक कोने को, गुफा की प्रत्येक वस्तु को वह कैद करने लगी। विक्टर प्रत्येक वस्तु को ध्यान से देखने लगा।

गुफा के एक कोने पर एक और शीला पड़ी थी, तीन फिट चौड़ी और साढ़े छ: फिट लंबी।

“याना, यह तो किसी पलंग जैसा लग रहा है। क्या यह स्त्री इस पलंग पर सोती होगी?”

“हो सकता है। पर ओढ़ने के लिए तो यहाँ कुछ भी नहीं दिख रहा। और यह देखो, यह कुर्सी जैसा कुछ है। तो यह शीला किसी टेबल जैसी लग रही है। क्या वह इस का प्रयोग कुछ लिखने और पढ़ने के लिए करती होगी?” याना और विक्टर गुफा को देखने लगे।

“यहाँ एक कक्ष में वह सब कुछ है जो एक व्यक्ति को दिन भर चाहिए।“

“विक्टर, तुम सही कह रहे हो। और देखो, यह सब कुछ पर्वत की शिलाओं से ही बने हुए हैं। किसी और वस्तु का प्रयोग ही नहीं हुआ है।“

“यह तो ठीक है याना, किन्तु इस शीलाओं से बनी वस्तुएँ हिम से अलिप्त है। इन सब पर हिम गिरि नहीं है अथवा तो हिम जमी नहीं है। हिम के प्रभाव से यह सब मुक्त है। इन पथ्थरों में कुछ तो बात है।“

याना शीला से बनी कुर्सी की तरफ घूमी, शीला पर हाथ फेरने लगी।

“विक्टर, यहाँ आओ। इस पर अपना हाथ रखो।“

विक्टर याना के पास गया और शीला पर हाथ रख दिया।

“इतनी ठंड में भी यह शीला में उष्णता है।‘

“यह तो खूब ठंडी होनी चाहिए थी। चलो और शिलाओं को भी देख लेते हैं।“

याना और विक्टर बाकी शिलाओं को स्पर्श करने लगे। सभी शिलाएँ उष्ण थी। शिलाओं का तापमान पहाड़ के तापमान से कहीं अधिक था।

“यह तो...।“

“अचंभित करने वाली बात है, याना।“

“इस पर तो बड़ी सी स्टोरी बन सकती है। तुम एक एक पत्थर के पास जाओ और अपनी प्रतिक्रिया दो। मैं केमरा ओन करती हूँ और यह स्टोरी स्टुडियो तक भेज देती हूँ।“

विक्टर शिलाओं की तरफ गया, याना ने केमरा घुमाया। विक्टर ने एक शीला पर हाथ रखा और बोलने लगा,”हम लोग धरती से 17000 फिट की ऊंचाई पर हैं। चारों तरफ पहाड़ पर हिम जमी हुई है। पहाड़ के किसी अज्ञात स्थान पर यह गुफा है। इस गुफा तक हमें एक स्त्री लेकर आई है। उस स्त्री के विषय में बताने से पहले आइए हम इस गुफा को पूरी तरह देख लें, समझ लें। इस गुफा के अंदर कुछ ऐसी बात है जो सुनकर और देखकर हम विचलित हो गए हैं।

गुफा के बाहर का तापमान -15 से -17 तक होगा। किन्तु आप जिस पत्थर को देख रहे हो उस पर मैं हाथ रखता हूँ तो यह शीला उष्ण लगती है। इसका तापमान क्या होगा? आइये देखते हैं इस शीला का तापमान।“

विक्टर ने हाथ के मौजे निकाल दिये और शीला पर हाथ रखा। उसने अपनी जेकेट से तापमान मापक यंत्र निकाला और शीला पर रख दिया। यंत्र पर तापमान 17 डिग्री बता रहा था।

“यह शीला का तापमान 17 डिग्री है। -15 से -17 डिग्री तापमान गुफा का है और इस शीला का तापमान 17 डिग्री है। दोनों तापमानों के बीच 32 से 34 डिग्री का अंतर है। यह बात हैरान करने वाली है। मैं इस बात को कोई वैज्ञानिक रहस्य ही मान रहा हूँ। मैं इस के कारण नहीं जानता, किन्तु जो भी है किसी रहस्य से कम नहीं है। यह प्रश्न का उत्तर हम किसी वैज्ञानिक से जान सकते हैं।“

विक्टर याना की तरफ बढ़ा। “कैसा रहा? यदि यह बात हमारी चेनल पर आ गई तो?”

“तो क्या? भूचाल आ जाएगा।”

“तुम उसे चेनल को भेज दो।”

“मैं भेज देती हूँ।“ याना केमरे में कैद कहानी को भेजने की चेष्टा करने लगी।

“विक्टर, यह वीडियो भेजने में समस्या आ रही है। तुम जरा इसे देखो तो।“

“ठीक है।“ विक्टर उसे भेजने का प्रयास करने लगा। किन्तु वह भी विफल रहा।

“याना, इस में संकेत नहीं आ रहे हैं। हम गुफा के अंदर हैं इसी कारण ऐसा हो रहा है। मैं कुछ दूर जाकर प्रयास करता हूँ।“ विक्टर गुफा से दूर जाने लगा।

“विक्टर, रुक जाओ। तुम कहीं भी जाओ किन्तु तुम्हें वह संकेत नहीं मिलेंगे और ना ही तुम कुछ भेज पाओगे।“ उस स्त्री की ध्वनि सुनकर विक्टर रुक गया। याना और वफ़ाई भी उसकी तरफ देखने लगे।

“ऐसा क्यूँ? अभी तो यहाँ पूरे संकेत आ रहे थे। थोड़ा दूर जाऊंगा तो...।”

“तो भी नहीं होगा। जब तक मैं नहीं चाहुं तब तक कुछ नहीं होगा।“

“क्या अर्थ है इन शब्दों का?” याना उत्तेजित हो गई।

“यहाँ के सारे संकेत मेरे नियंत्रण में है। मेरी इच्छा के विपरीत यहाँ कुछ नहीं होगा। मैं जानती हूँ कि तुम दोनों किसी जर्मन टीवी चेनल के लिए काम कर रहे हो और इस हिमाच्छादित पहाड़ियों में किसी जोगन को खोज रहे हो। उस पर कोई कहानी बनाने के लिए ही तुम दोनों यहाँ आए हो।“ उसने कहा।

“हाँ, यह सत्य है। क्या आप ही वह जोगन हो? यदि नहीं तो आप कौन हो? क्या आप हमें उस जोगन से मिला सकते हो?“ याना ने उत्साह दिखाया।

“मैं कौन हूँ? वह जोगन कौन है? सब बता दूँगी। उस जोगन से मिला भी दूँगी। किन्तु मेरी कुछ बातों को मनाना होगा।“

“क्या उसे मानना आवश्यक है?” विक्टर ने पूछा।

“आपके पास विकल्प नहीं है। यदि आप नहीं मानोगे तो इस गुफा से बाहर भी नहीं जा पाओगे। पूरा जीवन यहीं बीत जाएगा। किसी को ज्ञात भी नहीं होगा कि तुम दोनों कहाँ खो गए।“

“ऐसा तो नहीं हो सकता। हमने कई ऐसे दुर्गम पहाड़ों पर काम किया है जहां एक बार पहुँच गए तो लौटने के मार्ग खो जाते हैं। वहाँ से भी हम निकल आए हैं।” याना ने साहस दिखाया।

“प्रयास करके देख लो। यदि यहाँ से निकल पाओ तो तुम दोनों मुक्त हो जाओगे। यदि नहीं निकल पाये तो तुम दोनों को मेरी शरण में आना पड़ेगा।“

“हमें स्वीकार है।“ याना और विक्टर दोनों ने एक साथ कहा।

अब तक मौन रहकर सब कुछ देख रही वफ़ाई ने कहा,”जीत की स्थिति अभी भी स्थिर है। किसी भी स्थिती में जीत को बचाना होगा।“

उस स्त्री ने आँखों के भाव से वफ़ाई को धैर्य और श्र्ध्धा रखने को कहा। वफ़ाई ने उस संकेत को पढ़ लिया। वह निश्चिंत हो गई।