मिस अडना जैक्सन
۔۔۔۔۔۔कॉलिज की पुरानी प्रिंसिपल के तबादले का एलान हुआ, तालिबात ने बड़ा शोर मचाया। वो नहीं चाहती थीं कि उन की महबूब प्रिंसिपल उन के कॉलेज से कहीं और चली जाये। बड़ा एहतिजाज हुआ। यहाँ तक कि चंद लड़कियों ने भूक हड़ताल भी की, मगर फ़ैसला अटल था....... उन का जज़बाती पन थोड़े अर्से के बाद ख़त्म हो गया।
नई प्रिंसिपल ने पुरानी प्रिंसिपल की जगह ले ली। तालिबात ने शुरू शुरू में उस से बड़ी नफ़रत-ओ-हिक़ारत का इज़हार किया मगर उस ने उन से कुछ न कहा। हालाँ कि उस के इख़्तियार में सब कुछ था। वो उन को कड़ी से कड़ी सज़ा दे सकती थी।
हर वक़्त उस के पतले पतले होंटों पर मुस्कुराहट तैरती रहती.......वो सर-ता-पा तबस्सुम थी। कॉलेज में खिली हुई कली की तरह आती और जब वापस जाती तो दिन भर गूना-गूं मस्रूफ़ियतों के बावजूद उस में मुरझाहट के कोई आसार न होते।
थोड़े अर्से के बाद....... कॉलेज की तालिबात उस की गिरवीदा हो गईं। हर वक़्त उस से चिम्टी रहतीं। एक दिन, जब कोई जल्सा था, मिस एडना जैक्सन ने तक़रीर की और कहा। “मैं बहुत ख़ुश हूँ कि तुम अब मुझ से मानूस हो गई हो। शुरू शुरू में जैसा कि मैं जानती हूँ तुम मुझ से नफ़रत करती थीं, मेरी प्यारी बच्चियो, मैं यहाँ अपनी मर्ज़ी से नहीं आई थी। मुझे यहाँ मेरे हाकिमों ने भेजा था....... एक दिन आने वाला है जब तुम संजीदा और मतीन बन जाओगी।
तुम्हारी गोद में बच्चे खेलते होंगे, तुम से भी कहीं ज़्यादा शरीर और नटखट....... मैं तुम्हारी प्रिंसिपल हूँ। लेकिन दिल में ये ख़याल कभी न लाना कि मैं कोई ज़ालिम औरत हूँ....... मैं तुम सब से मोहब्बत करती हूँ....... और चाहती हूँ कि मुझ से भी कोई मोहब्बत करे।”
ये तक़रीर सुन कर लड़कियां बहुत मुतअस्सिर हुईं और मिस जैक्सन की मोहब्बत में और ज़्यादा गिरिफ़्तार हो गईं। सब दिल में नादिम थीं कि उन्हों ने ऐसी शरीफ़ और शफ़ीक़ प्रिंसिपल के आने पर क्यूँ एतराज़ किया।
एक दिन बी.ए की एक लड़की ताहिरा जिस ने मिस जैक्सन की आमद पर आवाज़े कसे थे और बड़े सख़्त अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किए थे, प्रिंसिपल के कमरे में थी।
ताहिरा का सर झुका हुआ था। ख़ौफ़-ओ-हरास उस के चेहरे पर फैला हुआ था। प्रिंसिपल काग़ज़ात पर दस्तख़त कर रही थी। बेहद मुनहमिक थी। थोड़ी देर के बाद जब उस ने ताहिरा की सिसकियों की आवाज़ सुनी तो उस को उस की मौजूदगी का इल्म हुआ। एक दम चौंक कर उस ने अपना नन्हा सा फाउंटेन-पेन एक तरफ़ रखा और उस की तरफ़ मुतवज्जे हुई। उस को याद नहीं आ रहा था कि उस ने ताहिरा को बुलाया है।
“क्या बात है ताहिरा?”
ताहिरा की आँखों से आँसू रवां थे। “आप आप ही ने तो मुझे यहाँ तलब फ़रमाया था”
एक लहज़े के लिए मिस जैक्सन ख़ाली-उद-दिमाग़ रही, लेकिन उसे फ़ौरन याद आ गया कि मुआमला क्या है। ताहिरा के नाम एक मर्द का मोहब्बतनामा पकड़ा गया था। ये उस की एक सहेली नाहिद ने मिस जैक्सन के हवाले कर दिया था।
ये ख़त उस की दराज़ में महफ़ूज़ था। मिस जैक्सन के मुस्कुराते हुए होंट ताहिरा से मुख़ातब हुए। “बेटा....... ये क्या बप्ता है?”
इस के बाद उस ने मेज़ का दराज़ खोल कर ख़त निकाला और ताहिरा से कहा “लो.......ये तुम्हारा ख़त है पढ़ लो और अगर चाहो तो मुझे सारी दास्तान सुनाओ ताकि मैं तुम्हें कोई राय दे सकूं।”
ताहिरा कुछ देर ख़ामोश रही। उस की समझ में नहीं आता था क्या कहे।
प्रिंसिपल मिस जैक्सन ने उठ कर उस के कांधे पर शफ़क़त भरा हाथ रखा “ताहिरा! शर्माओ नहीं। हर लड़की की ज़िंदगी में ऐसे लमहात आते हैं।”
ताहिरा ने रोना शुरू कर दिया। बूढ़ा चपरासी किसी काम से अंदर दाख़िल हुआ तो मुस जैक्सन ने उस से कहा। “निज़ामुद्दीन! अभी तुम बाहर ठहरो....... मैं बुला लूँ गी तुम्हें।”
जब वो चला गया तो मिस जैक्सन ने बड़े प्यार से ताहिरा से कहा। “मोहब्बत एक अज़ीम जज़्बा है। मुझे इस पर क्या एतराज़ हो सकता है। लेकिन तुम्हारी उम्र की लड़कियां अक्सर धोका खा जाया करती हैं....... मुझे तमाम वाक़ियात बता दो। मैं तुम से उम्र में बहुत बड़ी हूँ मगर मुझ से आज तक किसी ने मोहब्बत नहीं की, लेकिन मैं ने कई उस्तुवार और ना-उस्तुवार मोहब्बतें देखी हैं.......बेटा, मुझ से घबराओ नहीं.......बैठ जाओ।”
ताहिरा अपने दुपट्टे से आँसू पोंछती हुई कुर्सी पर बैठ गई।
प्रिंसिपल अपनी घूमने वाली कुर्सी पर नशिस्त इख़्तियार करते हुए अपनी शागिर्दा से बोलीं “अब देर न लगाओ.......बता दो....... मुझे बहुत से ज़रूरी काम करने हैं।”
ताहिरा कुछ देर हिचकिचाती रही। लेकिन इस के बाद उस ने अपना दिल खोल के अपनी प्रिंसिपल के सामने रख दिया। उस ने बताया कि एक नौजवान लेक्चरार है जिस से वो ट्यूशन लेती है। क़रीब क़रीब एक साल से वो बाक़ाएदा पाँच बजे उस के घर में आता रहा है। उस की बातें बड़ी दिलफ़रेब हैं। शक्ल-ओ-सूरत के लिहाज़ से भी ख़ूब है। फ़ारसी के अशआर का मतलब समझाता है तो एक नक़्शा खींच देता है। उस की ज़बान में ग़ज़ब की मिठास है।
ताहिरा ने मज़ीद बताया कि उस के दिल में लेक्चरार के लिए जगह पैदा हो गई। आहिस्ता आहिस्ता बे-क़रार रहने लगी। उस को हर वक़्त उस की याद सताती। पाँच बजने वाले होते तो उस को यूँ महसूस होता कि वो मुजस्सम घड़ी बन गई है....... उस का रुवां रुवां टुक-टुक करने लगता।
वो उस से ज़बानी तो कुछ नहीं कह सकती थी, इस लिए कि शर्म-ओ-हया इजाज़त नहीं देती थी। उस ने एक रात लेक्चरार के नाम ख़त लिखा....... उस ने अपनी ज़िंदगी भर में ऐसा ख़त कभी नहीं लिखा था हालाँ कि वो अपने ख़ान-दान में ख़त लिखने के मुआमले में काफ़ी मशहूर थी कि हर बात बड़े सलीक़े से लिखती है, लेकिन ये ख़त लिखते हुए उसे बड़ी दिक्कतें पेश आईं।
अलक़ाब क्या हो, मज़मून कैसा होना चाहिए, फिर ये सवाल भी उस के दरपेश था कि हो सकता है कि वो ये ख़त उस के बाप के हवाले कर दे।
वो एक अर्से तक सोचती रही। उस के दिल में कई ख़दशे थे लेकिन आख़िर उस ने फ़ैसला कर लिया कि वो ख़त ज़रूर लिखेगी। चुनांचे उस ने राइटिंग पेड के कई काग़ज़ ज़ाए कर के चंद सुतूर उस लेक्चरार के नाम लिखें:।
“आप बड़े अच्छे उस्ताद हैं। मुझे इस तरह पढ़ाते हैं जैसे....... जैसे आप को मुझ से ख़ास लगाओ है। वर्ना इतनी मेहनत कौन उस्ताद करता है.......मेरा तो ये जी चाहता है कि सारी उम्र आप मेरे उस्ताद और मैं आप की शागिर्दा रहूँ। बस इस से ज़्यादा मैं और कुछ नहीं लिख सकती।”
ये ख़त उस ने कई दिन अपने पर्स में रखा। इस के बाद जुर्रअत से काम लेकर उस ने काग़ज़ का ये पुर्ज़ा अपने उस्ताद की जेब में धड़कते हुए दल के साथ डाल दिया।
दूसरे रोज़ जब वो शाम को ठीक पाँच बजे आया तो उस का दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था। उस ने किसी क़िस्म के रद्द-ए-अमल का इज़हार न किया। उसे सख़्त मायूसी हुई। दो घंटे के बाद जब वो चला गया तो उस ने बड़े चिड़चिड़ेपन से अपनी किताबें उठाईं और अपने कमरे में जाने लगी। एक किताब उस के हाथ से गिर पड़ी। ताहिरा ने बड़ी बे-दिली से उठाई तो उस के औराक़ में से काग़ज़ का एक टुकड़ा झांकने लगा। उस ने ये टुकड़ा निकाला। उस पर चंद अल्फ़ाज़ मर्क़ूम थे।
ताहिरा के ज़ख़्मी जज़्बात पर मरहम के फाहे लग गए। उस के उस्ताद ने ये लिखा था:
“मुझे तुम्हारी तहरीर मिल गई है....... मैं सब कुछ समझ गया हूँ। ज़िंदगी भर तुम्हारा उस्ताद रहने का तो मैं वअदा नहीं कर सकता लेकिन ख़ादिम ज़रूर रहूँगा। मैं उस्तादी शागिर्दी से तंग आ गया हूँ। तुम्हारी गु़लामी इस से हज़ार दर्जे बेहतर होगी।”
इस के बाद दोनों में किताबों के औराक़ की ओट में ख़त-ओ-किताबत होती रही। लेकिन ताहिरा के वालदैन को यक-लख़्त शहर छोड़ना पड़ा, इस लिए कि उस के बाप ज़हीर की तबदीली किसी सिलसिले में दूसरे शहर में हो गई।
ताहिरा को हॉस्टल में दाख़िल कर दिया गया, जिस की सुप्रिंटनडंट मिस जैक्सन थी। उस का क़याम उसी हॉस्टल में था।
कॉलेज से फ़ारिग़ हो कर आती तो अपने कमरे में अक्सर नावल पढ़ती रहती। अजीब अजीब क़िस्म के। हॉस्टल की लड़कियाँ उस के पास आतीं और उस के कई नावल चुरा के ले जातीं और मज़े ले लेकर पढ़तीं। फिर वापस वहीं पर रख देतीं जहाँ से उन्हों ने उठाए थे.......मिस जैक्सन को लड़कियों की इस शरारत का कोई इल्म नहीं था....... ताहिरा ने भी कई नावल पढ़े और उस का इश्क़ अपने उस्ताद के इश्क़ से बढ़ता गया। वो हॉस्टल से बाहर निकल नहीं सकती थी इस लिए उस ने एक ख़त लिखा और उसे किसी न किसी तरीक़े से अपने उस्ताद तक पहुंचा दिया।
ये ख़त जो उस नौजवान लेक्चरार ने जवाब में लिखा था, ग़लत हाथों में पहुंच गया। यानी नाहिद के पास जिस को ताहिरा से सिर्फ़ इस लिए बुग़्ज़ था कि वो उस के मुक़ाबले में कहीं ज़्यादा ख़ूबसूरत थी....... ये ख़त उस ने प्रिंसिपल के हवाले कर दिया।
ताहिरा, जब अपनी सारी दास्तान सुना चुकी जो मिस जैक्सन ने बड़ी दिलचस्पी लेते हुए सुनी तो उस ने कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद ताहिरा से कहा। “अब तुम क्या चाहती हो?”
“मुझे कुछ मालूम नहीं....... आप जो फ़ैसला फ़रमाएंगी, मुझे मंज़ूर होगा।”
मिस जैक्सन अपनी कुर्सी पर से उठीं और कहा “नहीं ताहिरा, मोहब्बत के मुआमले में मुझे फ़ैसला देने का इख़्तियार नहीं। ये मज़हब से भी ज़्यादा मुक़द्दस जज़्बा है....... तुम ख़ुद बताओ।”
ताहिरा ने शर्म से भरी हुई आँखें जो नम-आलूद थीं, झुका कर सिर्फ़ इतना कहा “मैं उन से शादी करना चाहती हूँ।”
मिस जैक्सन ने ठेट प्रिंसपलाना अंदाज़ में पूछा। “क्या वो भी चाहता है?”
“उस ने अभी तक इस ख़वाहिश का इज़हार नहीं किया.......लेकिन वो.......
मैं समझती हूँ। वो भी तो तुम से मोहब्बत करता है.......उसे क्या उज़्र हो सकता है....... लेकिन क्या तुम्हारे वालदैन रज़ामंद हो जाऐंगे? ”
“हरगिज़ नहीं होंगे।”
“क्यूँ?”
“इस लिए कि वो मेरी मंगनी एक जगह कर चुके हैं।”
“कहाँ?”
“मेरे ख़ाला-ज़ाद भाई के साथ।”
“हम क्रिस्चियनों में तो ऐसा नहीं होता।”
“हमारे हाँ तो अक्सर ऐसा होता है।”
“ख़ैर छोड़ो इस बात को....... क्या मैं तुम्हारे इस लेक्चरार को अपने पास बुला कर उस से मुफ़स्सिल बातचीत करूं? ताहिरा ये ज़िंदगी भर का सवाल है ऐसा न हो कोई ग़लती हो जाये....... मैं उम्र में तुम से बहुत बड़ी हूँ। मैं तुम्हें सही मशवरा दूँगी। एक मर्तबा तुम मुझे उस से मिल लेने दो।”
ताहिरा ने शुक्रिया अदा किया। “आप ज़रूर मिलिए लेकिन.......उस से कह दीजिएगा.......कि.......”
प्रिंसिपल ने बड़ी शफ़क़त से कहा। “रुक क्यूँ गई हो....... जो कुछ तुम उस से कहना चाहती हो, मुझ से कह दो।”
“जी.......बस सिर्फ़ इतना कि अगर उस के क़दम मज़बूत न रहे तो मैं ख़ुद-कशी कर लूंगी....... औरत ज़िंदगी में.......सिर्फ़ एक ही मर्द से मोहब्बत करती है।”
मोहब्बत का लफ़्ज़ सुनते ही प्रिंसिपल मिस एडना जैक्सन के दिल की झुर्रियां और ज़्यादा गहरी हो गईं। उस ने ताहिरा के आँसू अपने रूमाल से बड़ी शफ़क़त के साथ पोंछते हुए रुख़स्त कर दिया।
इस के बाद उस ने घंटी बजा कर चपरासी को अंदर बुलाया। उस ने बड़े ज़रूरी काग़ज़ात उस के मेज़ पर रखे। उस ने सरसरी नज़र से उन को देखा। एक काग़ज़ पर ताहिरा के उस लेक्चरार के नाम ख़त लिखा कि वो अज़राह-ए-करम उस से किसी वक़्त शाम को बोर्डिंग हाऊस में मिले।
ये ख़त उस ने लिफाफे में डाला, पता लिखा और चपरासी से कहा कि फ़ौरन साइकल पर जाये और ये लिफ़ाफ़ा लेक्चरार साहब को पहुँचा दे।
चपरासी चला गया।
शाम को मिस एडना जैक्सन अपने कमरे में बैठी पर्चे देख रही थी कि नौकर ने इत्तिला दी कि एक साहब आप से मिलने आए हैं।
वो समझ गई कि ये साहब कौन हैं, चुनांचे उस ने नौकर से कहा। “उन्हें अंदर ले आओ!”
ताहिरा का उस्ताद ही था जो उस के कमरे में दाख़िल हुआ। मिस जैक्सन ने उस का इस्तिक़बाल किया। गर्मियों का मौसम था। जून का महीना, सख़्त तपिश थी....... मिस जैक्सन उस से बड़े अख़लाक़ के साथ पेश आई। नौजवान लेक्चरार बहुत मुतअस्सिर हुआ।
इधर उधर की बातें होती रहीं। मिस एडना जैक्सन ताहिरा के बारे में बात शुरू करने ही वाली थी कि उस पर हिस्टीरिया का दौरा पड़ गया। उस को ये मर्ज़ बहुत देर से लाहक़ था। लेक्चरार बहुत फ़िक्रमंद हुआ। घर में कोई नौकर नहीं था, इस लिए कि वो छुट्टी कर के कहीं बाहर सो रहे थे। उस ने ख़ुद ही जो उस की समझ में आया, किया।
जब.......कॉलेज गर्मीयों की छुट्टियों के बाद खुला तो लड़कियों को ये सुन कर बड़ी हैरत हुई कि उन की प्रिंसिपल मिस एडना जैक्सन से उस लेक्चरार की शादी हो गई है, जिस को ताहिरा से मोहब्बत थी.......ये दिलचस्प बात है कि लेक्चरार लतीफ़ की उम्र पच्चीस बरस के क़रीब होगी और मिस एडना जैक्सन की लग-भग पच्चास बरस।