मुझे सजा ना दो - भाग 2 Surjeet Singh Bindra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मुझे सजा ना दो - भाग 2

दिमाग को झटका लगा ___अब आगे, कहीं ये वो तो नहीं जब हम सदर बजार मे रहते थे, मैं उस वक़्त जमीन पर बेठा , था सामने दिवार से सटी सहमी डर से कांपती मट्टी के तेल में भीगी हुई, खाट पर सिख युवक बेठा हुआ है एक हाथ में माचिस एक में कुछ कागज थे, जमीन पर लुङकती खाली बोतल, कुछ वक़्त मेरी ओर निहारना और फिर हस्ताक्षर कर देना, कहीं ये वो तो नहीं?जो खाट के एक ओर खङी जहरीले अंदाज में मुस्कुरा रही थी, 
मैं बङे भाई के साथ उन दिनों स्कुल की छुट्टियाँ में कश्मीर घूूूूमने गया था वहीँ से मधु बहन को पत्र लिखकर बताया कि क्यो पढ़ने में मन नहीं लगता क्यो खेेलता  रहता हूँ,  घर में जब भी पिता हैं बस पैर दबानेे को कहते हैं , बल्ली भाई के साथ मिल कर मज़ाक उठते रहते हैंं, एक मां और स्वर्ण भाई हैं जो प्यार करते है,  पहले मां मीठी रोटी बना कर खिलाती थी और साथ साथ समझाती भी आज तो खिलाती हूूँ  कल कोई नहीं खुुुद सीख कर बना, फिर क्या था धीरे-धीरेे  घर  के  सारेे काम  करने लगा था कभी कभी लालच भी देती तो कर दिया करता, आज कश्मीर आया तो भाई की सहायता कर दिय करता, कश्मीर का कोना  - कोना घूूूम के देखा कभी भाई के साथ कभी  उनके दोस्त ले जाते-रौशनी और ध्वनि का शो ही नहीं शो चलता कैसे  हैै, मशीन  भी  दिखाई  , मां का फोन आया कि लङकी देेखी है एक सप्ताह के लिए आ जाओ. 
शादी में और  रिश्ते दारो में होशियार पुर (सदर बजार) वाली बहन परिवार के साथ आई थी, अब पश्चिम पुरी डी डी ए फ्लेट में रहती है.     
जब मां को कोई आपत्ति नहीं तो.   हमारा आना जाना आरम्भ हो गया. में ज्यादा ही आने जाने लगा था , धीरे-धीरे नजदिकिया जा रही रही थी.
एक दिन मेरी नजर खिड़की पर पड़ी, वहां लाईफ़ इज़ नथिगं इंग्लिश में लिखा था, उस पर टेबिल लैम्प के द्वारा रोशनी डालते दिखाई दे रहा है, मुझे अपना अतीत नजर आ गया, एक दिन बातों बातों में उसे मिटा कर लाईफ़ इज़ लाईफ़ लिख दिया. मेरा भानजा रवी मेरा दोस्त जैसा हो गया था, वो मेरा बहुत साथ दिया कर ता था, एक दिन उसने आकर बताया कि उसकी चचेरी  बहन शीनू (मेरा दिया हुआ नाम) बहुत नाराज हो रही थी, आपको भला बुरा कह रही थी, मगर बाद में शांत भी हो गई थी. 
शीनू माता सुन्दरी कोलेज में प्रथम वृष में पढ़ रही थी, आशा उसकी बेस्ट फ्रेंड थी- वह भी पंजाबी बाग जनता फ्लेट (पछिम पुरी भी कहलाता है) में ही रहती थी: मिनी बस करम पुरा टर्मिनल से बस लेकर दिल्ली गेट डिलाइट सिनेमा स्टाप उतर कर पैदल चल कर कोलिज तक पहले उसी परिसर के गुरू द्वारे में मत्था टेकने के बाद जाती. रवि को कागज पर लिखा-प्रिय मित्र, हाथ जौड कर माफी चाहता हूँ, मैं आपके भावुक दिल को ठेस न ही पहुँचाना नहीं चाहता था, मुझे अपना अतीत नजर आ गया तो भावुक हो कर गया, शेष फिर   ,