साबित amit sonu द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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साबित

साहिल मध्यमवर्गीय परिवार से संबध रखने वाला एक आम लड़का था। उसे आज तक ये समझ में नहीं आया था कि मध्यमवर्ग  में निम्न और उच्च मध्यम वर्ग का वर्गीकरण क्यों किया गया है? खेर अब उसने इसपर सोचना भी बंद कर दिया था। परिवार में वो सबसे बड़ा लड़का था;सो परिवार और समाज ने संस्कार का सारा बोझ उसी के मजबूत कंधो पर रखा ताकि छोटी बहन पर ज्यादा मेहनत न करना पड़े।यहां तक तो सबकुछ ठीक ही था लेकिन असली दिक्कत शुरू हुई २१ वे साल के बाद।चूंकि अबतक के उसके जीवन में उसे एक आदर्श बालक के रूप में मान्यता मिल चुकी थी।सो परिवार वाले उम्मीद कर रहे थे कि उसका आदर्श अब यथार्थ में बदलेगा।यानी "पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नबाब ,खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब" के मुतबिक़ उसे नबाब बन जाना चाहिए था।लेकिन साहिल का वर्तमान इससे कोसो दूर था।ऐसा नहीं था कि उसे नबाब नहीं बनना था,वो पूरी कोशिश कर रहा था।पर कुछ ठीक हो नहीं पा रहा था।साल पर साल बीतता चला गया; उसे सफलता नहीं मिली।उसका आदर्श व्यक्तित्व कमजोर हो रहा था।
इन्हीं सब बातों के बीच उसने एक दिन अपनी छोटी बहन को देखा,जो उसके लिए चाय ला रही थी।उम्र में सिर्फ तीन साल का ही अंतर था लेकिन दोनों के बीच काफी असमानताएं थी;एक ही समानता थी कि दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे।साहिल प्यार से बहन को बुलबुल बुलाता तो बुलबल भाई को दादू कहकर बुलाती।बुलबुल बिल्कुल बुलबुल की ही तरह थी।
हां ,तो जब साहिल ने बुलबुल की तरफ गौर से देखा तो उसे लगा वो कुछ परेशान है,चाय का कप लेते हुए उसने कहा " यहां बैठ तो कुछ बात करनी है"।तुझे कुछ चाहिए क्या? 
अपने नाम के उलट बुलबुल ने गंभीरता से कहा - हां चाहिए न ।
तो बोल इतना सोचती क्यों है? साहिल ने धीमी सी मुस्कान के साथ कहा।
दादू मुझे आपका आत्मिश्वास चाहिए,आप क्यों उलझे हुए है इन सबों में। मैं जानती हूं कि आप खुद को साबित करना चाहते है।लेकिन आप भूल जाते है कि आप खुद को नहीं अपनी परवरिश को साबित करना चाहते है।जबकि सही तो ये है आपको ये सब करने की जरूरत ही नहीं है।नबाब बनने से ही अगर सबकुछ साबित हो जाता है तो चलिए आज के बाद से सबको साबित करके दिखाएं; उसे भी जिस बाबा ने आपका हाथ देखकर कहा  था कि आप डॉक्टर बनेंगे और दास बाबू को भी जो आज तक आपसे इंजिनियर बनने की उम्मीद लगाए बैठे है।
दादू आपको ये सब करने की जरूरत नहीं है।ये जिंदगी दूसरो को साबित करने के लिए नहीं दी गई है।इसपर आपका हक है ,आप वो कीजिए जो आप करना चाहते है।उस रास्ते भी आप सबका भला कर सकते हैं।
साहिल ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि इतना आसान नहीं होता है अपनी आदर्श छवि को तोड़ना। मैं अब समझता हूं कि जिसे मैं पहले अपनी शान समझता था,अब वो मुझे उसकी कीमत चुकाने को कह रहा है।ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की ,लेकिन मुझसे हो नहीं पाता।मैंने जो इन २७ सालों में सीखा - समझा,वो लकीर की फकीर की तरह मुझसे चिपका हुआ है जिसे मै उखाड़ नहीं पा रहा हूं।मेरे पास अब एक ही रास्ता है की पहले मैं अपने आदर्शों को साबित करके दिखाऊं कि मैं अभी जिंदा हूं फिर उसके बाद खुद को।
चल अब  मेरी दादी अम्मा !चाय गरम करके ला, बरफ हो गई है।इतना कहते हुए साहिल ने अपने गर्म  आंसू कि बूंदों को इतनी सफाई से पोछा कि बुलबुल के अलावा उसे कोई ना देख पाया;उसका आदर्श व्यक्तित्व भी नहीं।
साहिल की ये कहानी आज हर दूसरे घर की कहानी है ; जहां उसकी पूरी जिंदगी उसके परिवार और समाज के द्वारा बनाए गए उसके कृत्रिम व्यक्तित्व को साबित करने में ही लग जाती है लेकिन साबित करने का ये दौर कभी खत्म ही नहीं होता है।ऐसे में हर वो साहिल जो ये सोचता है कि अब वो अपने लिए कुछ करेगा,वो दिन आता ही नहीं। न जाने ऐसे कितने साहिल खुद साहिल होते हुए भी अपनी नाव साहिल तक नहीं पहुंचा पाते हैं।सिर्फ इसलिए की उन्हें साबित करना है।