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यात्रा संस्मरण - “पोखरा मे गुप्तेश्वर गुफा का रोमांच”

यात्रा संस्मरण - “पोखरा मे गुप्तेश्वर गुफा का रोमांच”

अरविंद कुमार ‘साहू’

( संलग्न छाया चित्र – गुप्तेश्वर गुफा द्वार और डेविस फाल )

हमारे पड़ोसी देश नेपाल का विख्यात पर्यटन स्थल है पोखरा | विशाल झीलें, कल-कल करते हुए झरने, लंबी और गहरी गुफाएं, ऊँचे पहाड़ों पर बर्फ की सफ़ेद चादर और मनमोहक हरियाली में लिपटी प्राकृतिक सुषमा इस शहर में पर्यटकों का मन मोह लेती हैं|

राजधानी काठमाण्डू में प्रातःकल भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन कर उनके भव्य मन्दिर से जब हम निकले, तो लगा कि नेपाल की सांस्कृतिक राजधानी पोखरा भी हमें पुकार रही है | सो, हमने एक टैक्सी पकड़ी और काठमाण्डू से पश्चिम की ओर दो सौ किमी का सफर तय करके छः घंटों मे पोखरा पहुँच गये | वहाँ हमने घूमने के लिए स्थानीय टैक्सी की | हमारा ड्राईवर एक बेहतरीन गाइड भी निकला |

पोखरा मे प्रवेश करते ही वहाँ की चौड़ी सड़कें, सुनियोजित बाजार, साफ- सफाई और हरियाली देखकर हमारा मन प्रसन्न हो गया | यह अद्भुद ही था कि समुद्रतल से मात्र 827 मीटर ऊँचाई पर स्थित पोखरा में लगभग 30 किमी दूर आठ हजार मीटर से अधिक ऊँची बर्फ की सफेद चादर से ढकी हुई विशाल चोटियाँ बेहद पास दिखाई दे रही थी | ऐसा लगता था मानो घाटी की ढलान पार होते ही हम सीधे अन्नपूर्णा, धौलागिरि या मनासलू पर्वत पर खड़े होंगे | ‘मछली की पूंछ’ की तरह दिखने वाली माछापुछे (6977मीटर ऊँची) पर्वत शृंखला एक अलग ही आकर्षण पैदा कर रही थी |

एक स्थान पर रुककर हमने तरोताजा होने के लिए कुछ केले खाये और अनानास का ताजा जूस पिया | इस यात्रा मे हमें थकान का आभास तक नहीं हुआ था और हम सीधे घूमने निकल पड़े थे | सबसे पहले हम वहाँ के प्रसिद्ध संग्रहालय पहुंचे | वहाँ जनजातियों से संबन्धित अनेक रोचक जानकारियाँ, वस्त्र-आभूषण, वाद्ययंत्र, हथियार आदि वस्तुएँ देखकर हमें नेपाल की सभ्यता – संस्कृति के बारे मे बहुत कुछ समझने को मिला |

इसके बाद हम सीधे इस नगर के प्रसिद्ध गुप्तेश्वर महादेव मन्दिर की गुफा स्थल पहुँचे | बाहर धार्मिक दुकानों व बाजार से घिरा यह स्थान जितना सुंदर और रमणीक था, भीतर घुसते ही उतना ही रोमांचक और रहस्यमय दिखने लगा | सीढ़ियों से थोड़ा नीचे उतरते ही हमने मन्दिर मे महादेव के दर्शन किया, फिर गुफा मे आगे बढ़ चले | हम जैसे - जैसे आगे बढ़े, गुफा की गहराई भी बढ़ती गई | काले पत्थरों की अंधेरी खुरदरी दीवारें और जगह-जगह टपकते हुए पानी से इस गहरी गुफा के भीतर सीलन और ठंडक थी | हालांकि फिसलन से बचाने के लिए कई जगह लोहे की रेलिंग और प्रकाश के लिए जलते हुए बल्ब भी लगे थे, किन्तु वे हमारे अनजाने भय और रोमांच को कम न कर सके |

हम आगे बढ़ते जा रहे थे | हमारी जानकारी के अनुसार यह गुफा तीन किमी लंबी थी | किन्तु मुश्किल से सौ मीटर आगे बढ़ने के बाद हमारी हिम्मत जवाब देने लगी | किन्तु गाइड ने हिम्मत बंधाते हुए हमे थोड़ा और आगे बढ़ने को कहा | फिर थोड़ा और आगे जाकर हमने देखा कि सामने थोड़ी दूर पर गुफा मे एक दराज है जिससे बाहरी दुनिया की रोशनी साफ दिखाई दे रही है | उस रोशनी मे दिख रहा था, दूधिया पानी का कल-कल करके बहता हुआ एक आकर्षक झरना | हम प्रकृति के उस अद्भुद दृश्य को अपलक निहारते ही रह गये | तभी हमने पाया कि हम जिस सीढ़ीनुमा ढलान पर खड़े थे, वहाँ से ठीक नीचे उसी झरने का पानी एक भूमिगत छोटी सी नदी की शक्ल मे तेजी से शोरगुल करता हुआ बहता जा रहा था |

गाइड ने बताया कि हम जहाँ से इस मन्दिर गुफा दाखिल हुए थे, ये झरना वहाँ से दो सौ मीटर से अधिक दूर सड़क के दूसरी ओर था | ....अर्थात हम गुफा मे काफी गहराई मे तो थे ही, काफी दूर चलकर आगे भी आ चुके थे | गाइड ने यह भी बताया कि डेविड नामक एक पर्यटक की मृत्यु हो जाने के कारण उसके सम्मान में इस झरने का नामकरण ‘डेविड फाल’ कर दिया गया था | यह सुनकर हमारी रही-सही हिम्मत भी जवाब दे गई | मन मे एक ड़र कौंध गया कि अगर यहाँ से फिसल गये तो ? हमने गाइड से तत्काल वापस चलने को कहा |

गाइड मेरे मन की बात भाँप गया था | उसने हँसते हुए हमें धैर्य बँधाया और आश्वस्त किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा | यहाँ इसी रोमांचक अनुभव के लिए प्रतिदिन सैकड़ों पर्यटक सौ रुपए का टिकट खरीदकर आते हैं | गाइड ने हमारे मोबाइल से हमारे कुछ फोटो खींचे फिर हम सावधानी पूर्वक वापस लौट पड़े | मैं इतनी जल्दी मे था, जैसा कोई भय मुझे पीछे से खदेड़ रहा हो | ऊपर मन्दिर तक पहुँचते- पहुँचते मेरी सांसें धौंकनी की तरह चलने लगी थी | सामने महादेव की मूर्ति देखकर मन को बड़ी राहत मिली | थोड़ी देर तक लंबी-लंबी साँसे खींचकर विश्राम करने बाद हम गुफा के बाहर निकल आये | खुली सड़क पर पहुँच कर हमने भव्य गुफा द्वार के सामने अपनी फोटो खिंचवाई |

गाइड ने बताया कि यह सड़क उस गहरी गुफा के ठीक ऊपर से गुजर रही रही है, जहाँ थोड़ी देर पहले घुसे हुए थे | यानी धरती का यह टुकड़ा उस भूमिगत नदी के पानी पर मानो तैर रहा था | गाइड ने बताया कि भारी वाहनों तथा व्यस्त यातायात से उस गुफा की छत को नुकसान न पहुंचे, इसके लिए सरकार भीतर से गुफा की छत को आधुनिक तकनीक से मजबूत करवा रही है | आइये, अब आपको पास में ही इसी से जुड़ी एक और बढ़िया जगह दिखाते हैं |

फिर गाइड हमें सड़क के उस पार पैदल चलते हुए एक पार्क मे ले गया | यहाँ दूसरा प्रवेश टिकट लेना पड़ा | वहाँ भी मनोरंजन के अनेक साधन थे | सामने पार्क मे बुद्ध भगवान की सुनहरी प्रतिमा एक छोटे से मन्दिर मे असीम शांति का अनुभव करा रही थी | हम उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़े तो सामने एक गहरी खाई थी जिसमे नीचे उतरने के लिए चक्करदार सीढ़ियाँ बनी हुई थी | पार्क को रंगबिरंगे फूलों और पत्थरों से खूब सजाया गया था |

थोड़ा नीचे झाँकते ही हमारी आँखें आश्चर्य से फैल गई | नीचे पानी का एक छोटा सा ताल जैसा था | कई पानी से भरे छोटे गड्ढे थे और बगल में एक पतली सी नहर बह रही थी | अगल-बगल पार्क जैसी सजावट थी | वहाँ कुछ पर्यटक टहल रहे थे | हमने देखा कि उस नहर में जिस धारा से पानी आ रहा था वो ऊपर ऊँची पहाड़ी के एक झरने से गिर रहा था | बेहद मनोरम दृश्य था | हम धारा का अनुसरण करते हुए उस कल-कल करते खूबसूरत झरने का विहंगम दृश्य ध्यान से देखने लगे | अचानक उसके शीर्ष को देखते ही हम चौंक उठे | मन पुनः रहस्य-रोमांच से सिहर उठा | ये वही झरना था जो हमने मन्दिर गुफा के भीतर से आखिरी छोर पर देखा था | मेरे रोंगटे खड़े हो गये | इसका सीधा मतलब यह था कि हम जमीन के भीतर ही भीतर गुफा में लगभग 200 मीटर दूर इस झरने के इतने पास पहुँच गये थे |

अब ‘कभी खुशी-कभी गम' वाला हाल था हमारा | एक अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था उस समय, जिसे शब्दों मे व्यक्त करना आसान नहीं था | गाइड हमें देखकर मुस्करा रहा था | ये उसके पोखरा की जीत थी | इसी रोमांच के लिए तो लोग विदेश से नेपाल के लिए दौड़े चले आते हैं | वह हम से मोबाइल लेकर हमारी फोटो खींचने मे जुटा था | आखिरकार हम भी मुस्करा कर फिर आगे बढ़ चले | इस गुफा मन्दिर और डेविड फाल से एक अद्भुत रोमांच लेकर | अगले पर्यटन स्थल की ओर ....|

संपर्क – साहू सदन, ऊंचाहार – रायबरेली (उप्र) पिन – 229404

मोबाइल – 7007190413

ईमेल aksahu2008@rediffmail.com

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