फूजा हराम दा Saadat Hasan Manto द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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फूजा हराम दा

फूजा हराम दा

टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था। कोई लुधियाने का और कोई लाहौर का। मगर सब के सब स्कूल या कॉलेज की ज़िंदगी के मुतअल्लिक़ थे। महर फ़िरोज़ साहब सब से आख़िर में बोले। आप ने कि अमृतसर में शायद ही कोई ऐसा आदमी हो जो फ़ौजे हरामदे के नाम से ना-वाक़िफ़ हो। यूं तो इस शहर में और भी कई हरामज़ादे थे मगर इस के पल्ले के नहीं थे। वो नंबर एक हरामज़ादा था। स्कूल में उस ने तमाम मास्टरों का नाक में दम कर रखा था हेडमास्टर जिस को देखते ही बड़े बड़े शैतान लड़कों का पेशाब ख़ता हो जाता फ़ौजे से बहुत घबराता था इस लिए कि उस पर उन के मशहूर बेद का कोई असर नहीं होता था। यही वजह है कि तंग आकर उन्हों ने उस को मारना छोड़ दिया था।

ये दसवीं जमात की बात है। एक दिन यार लोगों ने उस से कहा देखो फ़ौजे! अगर तुम कपड़े उतार कर नंग धड़ंग स्कूल का एक चक्कर लगाओ तो हम तुम्हें एक रुपया देंगे। फ़ौजे ने रुपया लेकर कान में अड़सा कपड़े उतार कर बस्ते में बांधे और सब के सामने चलना शुरू कर दिया, जिस क्लास के पास से गुज़रता वो ज़ाफ़रान ज़ार बन जाता। चलते चलते वो हेडमास्टर साहब के दफ़्तर के पास पहुंच गया पत्ती उठाई और ग़ड़ाप से अंदर। मालूम नहीं क्या हुआ हेडमास्टर साहब सख़्त बौखलाए हुए बाहर निकले और चपड़ासी को बुला कर उस से कहा जाओ भाग के जाओ फ़ौजे हिरामदे के घर, वहां से कपड़े लाओ उस के लिए। कहता है मैं मस्जिद के सक़ावे में नहा रहा था कि मेरे कपड़े कोई चोर उठा कर ले गया।

दीनयात के मास्टर मौलवी पोटैटो थे। मालूम नहीं उन्हें पोटैटो किस रियायत से कहते थे, क्योंकि आलूओं के तो दाढ़ी नहीं होती। उन से फौजा ज़रा दबता था मगर एक दिन ऐसा आया कि अंजुमन के मैंबरों के सामने मौलवी साहब ने ग़लती से उस से एक आयत का तर्जुमा पूछ लिया। चाहिए तो ये था कि ख़ामोश रहता मगर फौजा हरामदा कैसे पहचाना जाता। जो मुँह में आया ओल जलूल बक दिया। मौलवी पोटैटो के पसीने छूट गए मैंबर बाहर निकले तो उन्हों ने ग़ुस्सा में थर थर काँपते हुए अपना असा उठाया और फ़ौजे को दो चार चोर की मार दी कि बिलबिला उठा मगर बड़े अदब से कहता रहा कि मौलवी साहब मेरा क़ुसूर नहीं मुझे कलिमा ठीक से नहीं आता और आप ने एक पूरी आयत का मतलब पूछ लिया।

मारने से भी मौलवी पोटैटो साहब का जी हल्का न हुआ। चुनांचे वो फ़ौजे के बाप के पास गए और उस से शिकायत की फ़ौजे के बाप ने उन की सब बातें सुनीं और बड़े रहम नाक लहजे में कहा “मौलवी साहब! मैं ख़ुद इस से आजिज़ आगया हूँ मेरी समझ में नहीं आता कि इस की इस्लाह कैसे हो सकती है। अभी कल की बात है मैं पाख़ाने गया तो उस ने बाहर से कुंडी चढ़ा दी में बहुत गर्जा बे-शुमार गालियां दीं मगर उस ने कहा अठन्नी देने का वाअदा करते हो तो दरवाज़ा खुलेगा और देखो अगर वाअदा कर के फिर गए तो दूसरी मर्तबा कुंडी में ताला भी होगा नाचार अठन्नी दीनी पड़ी अब बताईए मैं ऐसे नाबकार लड़के का क्या करूं।”

अल्लाह ही बेहतर जानता था कि इस का क्या होगा। पढ़ता वड़ता ख़ाक भी नहीं था इंटरैंस के इम्तिहान हुए तो सब को यक़ीन था कि बहुत बरी तरह फ़ेल होगा मगर नतीजा निकला तो स्कूल में उस के सब से ज़्यादा नंबर थे। वो चाहता था कि कॉलेज में दाख़िल हो मगर बाप की ख़्वाहिश थी कि कोई हुनर सीखे, चुनांचे ये नतीजा निकला कि वो दो बरस तक आवारा फिरता रहा इस दौरान उस ने जो हराम-ज़दगियां कीं उन की फ़हरिस्त बहुत लंबी है। तंग आकर उस के बाप ने बिल-आख़िर उसे कॉलेज में दाख़िल करवा दिया पहले दिन ही उस ने ये शरारत की कि मैथेमैटिक्स के प्रोफ़ैसर की साईकल उठा कर दरख़्त की सब से ऊंची टहनी पर लटका दी। सब हैरान कि साईकल वहां पहुंची क्योंकर। मगर वो लड़के जो स्कूल में फ़ौजे के साथ पढ़ चुके थे। अच्छी तरह जानते थे कि ये कारिस्तानी उस के सिवा किसी की नहीं हो सकती, चुनांचे इस एक शरारत ही से उस का पूरे कॉलेज से तआरुफ़ होगया। स्कूल में उस की सरगर्मियों का मैदान महदूद था। मगर कॉलेज में ये बहुत वसीअ होगया। पढ़ाई में खेलों में मुशायरों में और मुबाहिसों में हर जगह फ़ौजे का नाम रोशन था और थोड़ी देर में इतना रोशन हुआ कि शहर में उस के गनडपने की धाक बैठ गई। बड़े बड़े जगादरी बदमाशों के कान काटने लगा। नाटा क़द मगर बदन कस्तरी था उस की भेड-ओ-टक्कर बहुत मशहूर थी। ऐसे ज़ोर से मद्द-ए-मुक़ाबिल के सीने में या पेट में अपने सर टक्कर मारता कि उस के सारे वजूद में ज़लज़ला सा आजाता।

एफ़।ए के दूसरे साल में उस ने तफ़रीहन प्रिंसिपल की नई मोटर के पैट्रोल टैंक में चार आने की शकर डाल दी जिस ने कार्बन बन कर सारे इंजन को ग़ारत कर दिया प्रिंसिपल को किसी न किसी तरीक़े से मालूम होगया कि ये ख़तरनाक शरारत फ़ौजे की है मगर हैरत है कि उन्हों ने उस को माफ़ कर दिया बाद में मालूम हुआ कि फ़ौजे को उन के बहुत से राज़ मालूम थे। वैसे वो क़स्में खाता कि उस ने उन को धमकी वग़ैरा बिलकुल नहीं दी थी कि उन्हों ने सज़ा दी तो वो उन्हें फ़ाश कर देगा।

ये वो ज़माना था जब कांग्रेस का बहुत ज़ोर था। अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ खुल्लम खुल्ला जलसे होते थे। हुकूमत का तख़्ता उलटने की कई नाकाम साज़िशें हो चुकी थी। गिरफ़्तारियों की भरमार थी। सब जेल बाग़ियों से पुर थे। आए दिन रेल की पटड़ियाँ उखाड़ी जाती थीं। ख़तों के भबकों में आतशगीर माद्दा डाला जाता था। बम बनाए जा रहे थे पिस्तौल बरामद होते थे ग़र्ज़ कि एक हंगामा बरपा था और इस में स्कूल और कॉलेजों के तालिब-ए-इल्म भी शामिल थे। फौजा सयासी आदमी बिलकुल नहीं था। मेरा ख़याल है उस को ये भी मालूम नहीं था कि महात्मा गांधी कौन है। लेकिन जब अचानक एक रोज़ उसे पुलिस ने गिरफ़्तार किया और वो भी एक साज़िश के सिलसिले में तो सब को बड़ी हैरत हुई।

इस से पहले कई साज़िशें पकड़ी जा चुकी थीं। सांडर्स के क़त्ल के सिलसिले में भगत सिंह और दत्त को फांसी भी हो चुकी थी इस लिए ये नया मुआमला भी कुछ संगीन ही मालूम होता था इल्ज़ाम ये था कि मुख़्तलिफ़ कॉलेजों के लड़कों ने मिल कर एक खु़फ़ीया जमात बना ली थी जिस का मक़सद मुल्क मुअज़्ज़म की सलतनत का तख़्ता उलटना था।

इन में से कुछ लड़कों ने कॉलेज की लेबोरेटरी से पकरक एसिड चुराया था जो बम बनाने के काम आता है। फ़ौजे के बारे में शुबा था कि वो इन का सरग़ना था और उस को तमाम खु़फ़ीया बातों का इल्म था !

उस के साथ कॉलेज के दो और लड़के भी पकड़े गए थे इन में एक मशहूर बैरिस्टर का लड़का था और दूसरा रईस ज़ादा। इन का डाकटरी मुआइना कराया गया था इस लिए पुलिस की मार पीट से बच गए मगर शामत ग़रीब फ़ौजे हिरामदे की आई। थाने में उस को उल्टा लटका कर पीटा गया। बर्फ़ की सिलों पर खड़ा किया गया। ग़र्ज़ कि हर क़िस्म की जिस्मानी अज़ियत उसे पहुंचाई गई कि राज़ की बातें उगल दे मगर वो भी एक कुत्ते की हड्डी था, टस से मस न हुआ। बल्कि यहां भी कमबख़्त अपनी शरारतों से बाज़ न आया। एक मर्तबा जब वो मार बर्दाश्त न कर सकता उस ने थानेदार से हाथ रोक लेने की दरख़्वास्त की और वाअदा किया कि वो सब कुछ बता देगा। बिलकुल निढाल था इस के लिए उस ने गर्म-गर्म दूध और जलेबियां मांगें...... तबीयत क़दरे बहाल हुई तो थानेदार ने काग़ज़ क़लम सँभाला और उस से कहा लो भई बताओ.... फ़ौजे ने अपने मार खाए होई आज़ा का जायज़ा अंगड़ाई लेकर किया और जवाब दिया “अब क्या बताऊं ताक़त आगई है चढ़ालो फिर मुझे अपनी टिकटिकी पर।”

ऐसे और भी कई क़िस्से हैं जो मुझे याद नहीं रहे मगर वो बहुत पुरलत्फ़ थे। मलिक हफ़ीज़ हमारा हम-जमाअत था, उस की ज़बान से आप सुनते तो और ही मज़ा आता।

एक दिन पुलिस के दो सिपाही फ़ौजे को अदालत में पेश करने के लिए ले जा रहे थे। ज़िला कचहरी में उस की नज़र मलिक हफ़ीज़ पर पड़ी, जो मालूम नहीं किस काम से वहां आया था। उस को देखते ही वो पुकारा। “अस्सलामु अलैकुम मलिक साहब।” मलिक साहब चोंके। फौजा हथकड़ियों में उन के सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था.... “मलिक साहब बहुत उदास होगया हूँ, जी चाहता है आप भी आजाऐं मेरे पास। बस मेरा नाम ले देना काफ़ी है।”

मलिक हफ़ीज़ ने जब ये सुना तो उस की रूह क़ब्ज़ होगई। फ़ौजे ने उस को ढारस दी। घबराओ नहीं मलिक, मैं तो मज़ाक़ कर रहा हूँ। वैसे मेरे लायक़ कोई ख़िदमत हो तो बताओ। अब आप ही बताईए कि वो किस लायक़ था। मलिक हफ़ीज़ घबरा रहा था। कन्नी कतरा के भागने ही वाला था कि फ़ौजे ने कहा “भई और तो हम से कुछ नहीं हो सकता कहो तो तुम्हारे बद-बूदार कुँवें की गार निकलवा दें।”

मलिक हफ़ीज़ ही आप को बता सकता है कि फ़ौजे को उस कुवें से कितनी नफ़रत थी। उस के पानी से ऐसी बसानद आती थी जैसे मरे हुए चूहे से। मालूम नहीं लोग उसे साफ़ क्यों नहीं कराते थे।

एक हफ़्ते के बाद जैसा के मलिक हफ़ीज़ का बयान है वो बाहर नहाने के लिए निकला तो क्या देखता है कि दो तीन टूबे कुवें की गंदगी निकालने में मसरूफ़ हैं। बहुत हैरान हुआ कि माजरा किया है। उन्हें बुलाया किस ने है? पड़ोसियों का ये ख़याल था कि बड़े मलिक साहब को बैठे बैठे ख़याल आगया होगा कि चलो कुवें की सफ़ाई हो जाये, ये लोग भी क्या याद रखेंगे लेकिन जब उन्हें मालूम हुआ कि छोटे मलिक को इस बारे में कुछ इल्म नहीं और ये कि बड़े तो शिकार पर गए हुए हैं तो उन्हें हैरत हुई। पुलिस के बे-वर्दी सिपाही देखे तो मालूम हुआ कि फ़ौजे हिरामदे की निशानदेही पर वो कुँवें में से बम निकाल रहे हैं।

बहुत देर तक गंदगी निकलती रही। पानी साफ़ शफ़्फ़ाफ़ हो गया मगर बम क्या एक छोटा सा पटाखा भी बरामद न होगा। पुलिस बहुत भुन्नई चुनांचे फ़ौजे से बाज़पुर्स हुई। उस ने मुस्कराकर थानेदार से कहा “भेले बादशाहो! हमें तो अपने यार का कुँआं साफ़ कराना था सौ करा लिया।”

बड़ी मासूम सी शरारत थी मगर पुलिस ने उसे वो मारा वो मारा कि मार मार कर अध-मुवा कर दिया.... और एक दिन ये ख़बर आई कि फौजा सुलतानी गवाह बन गया है उस ने वाअदा कर लिया है कि सब कुछ बक देगा।

कहते हैं उस पर बड़ी लॉन तान हुई उस के दोस्त मलिक हफ़ीज़ ने भी जो हुकूमत से बहुत डरता था उस को बहुत गालियां दीं कि हरामज़ादा डर के ग़द्दार बन गया है मालूम नहीं अब किस किस को फंसाएगा।

बात असल में ये थी कि वो मार खा खा के थक गया। जेल में उस से किसी को मिलने नहीं दिया जाता था, मुर्ग़न ग़िज़ाएं खाने को दी जाती थीं मगर सोने नहीं दिया जाता था। कमबख़्त को नींद बहुत प्यारी थी इस लिए तंग आकर उस ने सच्चे दिल से वाअदा कर लिया कि बम बनाने की साज़िश के जुमला हालात बता देगा।

यूं तो वो जेल ही में था मगर अब उस पर कोई सख़्ती न थी कई दिन तो उस ने आराम किया कि उस के बंद बंद ढीले हो चुके थे अच्छी ख़ुराक मिली बदन पर मालिशें हुईं तो वो बयान लिखवाने के काबिल होगया।

सुबह लस्सी के दो गिलास पी कर वो अपनी दास्तान शुरू कर देता थोड़ी देर के बाद नाश्ता आता। इस से फ़ारिग़ हो कर पंद्रह बीस मिनट आराम करता और कड़ी से कड़ी मिला कर अपना बयान जारी रखता।

आप मुहम्मद हुसैन इसटीनो ग्राफ़र से पूछिए जिस ने उस का बयान टाइप किया था। उस का कहना है कि फ़ौजे हिरामदे ने पूरा एक महीना लिया और वो सारा जाल खोल कर रख दिया जो साज़िशियों ने मुलक के इस कोने से उस कोने तक बिछाया था या बिछाने का इरादा रखते थे उस ने सैंकड़ों आदमियों के नाम लिए। ऐसी हज़ारों जगहों का पता बताया जहां साज़िशी लोग छुप के मिलते थे और हुकूमत का तख़्ता उलटने की तरकीबें सोचते थे।

ये बयान मुहम्मद हुसैन इसटीनो ग्राफ़र कहता है फ़ुल एस्केप के ढाई सौ सफ़हों पर फैला हुआ था जब ये ख़त्म हुआ था तो पुलिस ने उसे सामने रख कर प्लान बनाया। चुनांचे फ़ौरन नई गिरफ्तारियां अमल में आईं और एक बार फिर फ़ौजे की माँ बहन पुनी जाने लगी।

अख़बारों ने भी दबी ज़बान में फ़ौजे के ख़िलाफ़ काफ़ी ज़हर उगला। अक्सर हुक्काम के ख़िलाफ़ थी इस लिए उस की ग़द्दारी की हर जगह मुज़म्मत होती थी। वो जेल में था जहां उस की ख़ूब ख़ातिर तवाज़ो हो रही थी। बड़ी तुर्रे वाली किलिफ़ लगी पगड़ी सर पर बांधे दो घोड़े बोसकी की क़मीस और चालीस हज़ार लट्ठे की घेरेदार शलवार पहने वो जेल में यूं टहलता था जैसे कोई अफ़्सर मुआइना कर रहा है

जब सारी गिरफ्तारियां अमल में आगईं और पुलिस ने अपनी कार्रवाई मुकम्मल कर ली तो, साज़िश का ये मार्का अंगेज़ केस अदालत में पेश हुआ। लोगों की भीड़ जमा होगई।

पुलिस की हिफ़ाज़त में जब फौजा नुमूदार हुआ तो ग़ुस्से से भरे हुए नारे बुलंद हुए।

“फौजा हरामदा मुर्दा बाद फौजा ग़द्दार मुर्दा बाद।”

हुजूम बहुत मुश्तइल था ख़तरा था कि फ़ौजे पर न टूट पड़े इस लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा जिस के बाइस कई आदमी ज़ख़्मी होगए। अदालत में मुक़द्दमा पेश हुआ। फ़ौजे से जब ये पूछा गया कि वो इस बयान के मुतअल्लिक़ क्या कहना चाहता है जो उस ने पुलिस को दिया था तो उस ने लाइलमी का इज़हार किया।

“जनाब मैंने कोई बयान वयान नहीं दिया। उन लोगों ने एक पलंदा सा तैय्यार किया था जिस पर मेरे दस्तख़त करवा लिए थे।”

ये सुन कर इन्सपैक्टर पुलिस की बाक़ौल फ़ौजे के भनभीरी भूल गई और जब ये ख़बर अख़बारों में छपी तो सब चकरा गए कि फ़ौजे हिरामदे ने ये क्या नया चक्कर चलाया है।

चक्कर नया ही था क्योंकि अदालत में उस ने एक नया बयान लिखवाना शुरू किया जो पहले बयान से बिलकुल मुख़्तलिफ़ था ये क़रीब क़रीब पंद्रह दिन जारी रहा जब ख़त्म हुआ। तो फ़ुल एस्केप के १५८ सफ़े काले हो चुके थे। फ़ौजे का कहना है कि इस बयान से जो हालत पुलिस वालों की हुई नाक़ाबिल-ए-बयान है। उन्हों ने जो इमारत खड़ी की थी कमबख़्त ने उस की एक एक ईंट उखाड़ कर रख दी।

सारा केस चौपट होगया। नतीजा ये निकला कि इस साज़िश में जितने गिरफ़्तार हुए थे उन में से अक्सर बरी होगए। दो तीन को तीन तीन बरस की और चार पाँच को छे छे महीने की सज़ाए क़ैद हुई।

जो सुन रहे थे उन में से एक ने पूछा। “और फ़ौजे को?” महर फ़िरोज़ ने कहा। “फ़ौजे को क्या होना था वो तो वाअदा माफ़ यानी सुलतानी गवाह था”

सब ने फ़ौजे की हैरतअंगेज़ ज़ेहानत को सराहा कि उस ने पुलिस को किस सफ़ाई से गच्चा दिया। एक ने जिस के दिल-ओ-दिमाग़ को उस की शख़्सियत ने बहुत ज़्यादा मुतअस्सिर किया था महर फ़िरोज़ से पूछा “आजकल कहाँ होता है?”

“यहीं लाहौर में आड़त की दुकान है” इतने में बेरा बिल लेकर आया और प्लेट भर फ़िरोज़ के सामने रख दी, क्योंकि चाय वग़ैरा का आर्डर उसी ने दिया था। फ़ौजे की शख़्सियत से मुतअस्सिर शूदा साहब ने बल देखा और उन का आगे बढ़ने वाला हाथ रुक गया क्योंकि रक़म ज़्यादा थी चुनांचे ऐसे ही महर फ़िरोज़ से मुख़ातब हुए।

“आप के इस फ़ौजे हिरामदे से कभी मिलना चाहिए”

महर फ़िरोज़ उठा “आप उस से मिल चुके हैं। ये ख़ाकसार ही फौजा हरामदा है। बिल आप अदा कर दीजिएगा। अस्सलामु अलैकुम” ये कह कर वो तेज़ी से बाहर निकल गया।