"फूजा हराम दा" एक मजेदार कहानी है जिसमें एक शरारती लड़के, फौजा हरामदे, की हरकतों का जिक्र किया गया है। टी हाउस में कुछ लोग अपनी स्कूल के दिनों की शैतानियों के बारे में बातें कर रहे हैं और फौजा का नाम बार-बार आता है। फौजा एक ऐसा लड़का है जो स्कूल में सभी मास्टरों को परेशान करता था और हेडमास्टर उससे बहुत डरते थे। कहानी में एक दिन, फौजा के दोस्तों ने उसे नंग धड़ंग स्कूल में घूमने के लिए कहा, जिससे वह कुछ पैसे कमा सके। फौजा ने यह चुनौती स्वीकार की और ऐसे ही हेडमास्टर के दफ्तर में घुस गया। वहां उसके कपड़े चोरी होने की झूठी कहानी बनाई, जिससे हेडमास्टर और चपड़ासी उसे कपड़े लाने भेजते हैं। फौजा के साथ एक और मजेदार घटना तब होती है जब दीनयात के मास्टर मौलवी पोटैटो ने उससे एक आयत का तर्जुमा पूछा। फौजा ने बिना सोचे समझे जवाब दिया, जिससे मौलवी साहब गुस्से में आ गए और उसे पीटने लगे। कहानी का अंत तब होता है जब मौलवी पोटैटो ने फौजे के पिता के पास जाकर शिकायत की, और फौजे के पिता ने कहा कि वह खुद भी अपने बेटे से परेशान हैं और उसकी सुधार के लिए उपाय नहीं समझ पा रहे हैं। कहानी फौजे की शरारतों और उसके माता-पिता की निराशा के इर्द-गिर्द घूमती है। फूजा हराम दा Saadat Hasan Manto द्वारा हिंदी लघुकथा 17.1k 4.8k Downloads 13.2k Views Writen by Saadat Hasan Manto Category लघुकथा पढ़ें पूरी कहानी मोबाईल पर डाऊनलोड करें विवरण टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर का था। कोई लुधियाने का और कोई लाहौर का। मगर सब के सब स्कूल या कॉलेज की ज़िंदगी के मुतअल्लिक़ थे। महर फ़िरोज़ साहब सब से आख़िर में बोले। आप ने कि अमृतसर में शायद ही कोई ऐसा आदमी हो जो फ़ौजे हरामदे के नाम से ना-वाक़िफ़ हो। यूं तो इस शहर में और भी कई हरामज़ादे थे मगर इस के पल्ले के नहीं थे। Novels मंटो की बदनाम कहानियाँ - पार्ट २ लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा ना घाट का। उन्हों ने आते ही हामिद से कहा। “लो भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंद-ओ-बस्त करो।” हामिद ने कहा। “आप ज़रा... More Likes This उड़ान (1) द्वारा Asfal Ashok नौकरी द्वारा S Sinha रागिनी से राघवी (भाग 1) द्वारा Asfal Ashok अभिनेता मुन्नन द्वारा Devendra Kumar यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (1) द्वारा Ramesh Desai मां... हमारे अस्तित्व की पहचान - 3 द्वारा Soni shakya शनिवार की शपथ द्वारा Dhaval Chauhan अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी हिंदी क्राइम कहानी