हिम स्पर्श 50 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श 50

50

रात के अंधकार में घर की भीत से परे देखते हुए जीत स्वयं से बातें कर रहा था।

वहाँ अंधकार है। क्या यह रात्री के कारण है?

दिवस के प्रकाश में भी तो वहाँ....।

वह अंधकार नहीं एकांत होता है।

क्या अंतर है अंधकार तथा एकांत में? दोनों स्थिति में रंग एवं प्रकाश का कोई अर्थ नहीं होता।

तुम उस बिन्दु को क्यों देखते हो जो एकांत से भरा है? अंधकार से भरा है? जहां सब कुछ स्थिर है?

तो? कहाँ देखूँ?

घर के अंदर, भीत के इस तरफ झाँको। जहां वफ़ाई है। जहां साथी है। जहां प्रकाश है। जहां जीवन की तरंगें है।

“काले पर्वत के प्रवास का कौन सा हिस्सा सबसे अच्छा लगा, जीत?” भीत के इस पार से वफ़ाई ने प्रश्न पूछा और झूले पर बैठ गई।

भीत से बाहर झांक रहे जीत को वफ़ाई के इन शब्दों ने घर लौटा दिया। वह मौन रहा। समय चलता रहा।

वफ़ाई ने धैर्य खोया, जीत के समीप गई,”जीत, घर लौट आओ।” जीत तंद्रा से जागा।

“मैंने तुम्हें कुछ कहा। तुमने सुना?”

“नहीं तो? कहो, पुन: कहो।“

“काले पर्वत के प्रवास का कौन सा हिस्सा सबसे अच्छा लगा, जीत?” वफ़ाई ने पुन: कहा।

जीत हंस पड़ा। उसका हास्य मरुभूमि में प्रतिध्वनित हो गया।

“हमारा प्रवास तो एक ही हिस्से में था, अनेक हिस्सों में नहीं। मुझे तो पूरा प्रवास ही अच्छा लगा।“

“मेरा तात्पर्य है कि कौन सी क्षण तुम्हें उत्तम क्षण लगी?”

“मेरे लिए प्रत्येक क्षण का अनुभव अच्छा था, प्रत्येक क्षण विशेष थी। वह एक पूर्ण अनुभव था जिसे मैं टुकड़ों में विभाजित नहीं कर सकता।”

“यह तो राजनीतिक उत्तर हो गया।“

“तो तुम ही कहो न तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर क्या है?”

“मुझे तो वह मार्ग पसंद आया जिस पर चलते हुए हमने सारे पर्वत की परिक्रमा की थी। तुम्हारा क्या विचार है?”

“तुम्हें वह क्यों सबसे अच्छा लगा?”

“उस मार्ग पर व्याप्त मौन के कारण।“

“तो तुम्हें मौन पसंद है, तुम मौन से प्रीत करती हो।“

“हाँ, अवश्य। जब हम मौन होते हैं तब हम स्वयं से बात करते है। आसपास की निर्जीव वस्तुओं से बातें करते हैं। और रसप्रद बात यह भी है कि यह निर्जीव वस्तुएं भी हमारे साथ बातें करती है। यह भीत, यह झूला, तूलिका, केनवास, रेत, मरुभूमि; ऐसी सभी निर्जीव वस्तुएं हमसे बात करने को उत्सुक रहती है। तुम जानते हो? वह भी बातें करना चाहती है। हमसे बातें करने की प्रतीक्षा में होती है। और जब हम मौन धारण कर लेते हैं तब वह बोलना प्रारम्भ करती है। उन के पास कई कहानियाँ होती है हमें कहने के लिए, किन्तु हम उस पर ध्यान ही नहीं देते। हम सदैव उन की ऊपेक्षा ही करते हैं।” वफ़ाई कहते कहते भीत की दूसरी तरफ चली गई।

“तुम्हारा तात्पर्य है कि निर्जीव वस्तुओं को भाषा होती है, शब्द होते हैं, वाचा होती है?”

“इतना ही नहीं, इन्हें भावनाएं भी होती है। संवेदना होती है। स्नेह भी होता है। उनको हृदय भी होता है।“

“तो पर्वत कुमारी का कहना है कि निर्जीव वस्तुएं बिलकुल निर्जीव नहीं होती। वह जीवन से भरी होती है। वह शुष्क नहीं होती। गति हिन नहीं होती। वह आंदोलित होती है। कहानियों से भरी होती है।“

“बिलकुल। यदि तुम उस हिस्से को चूक गए हो तो तुम पर्वत के हार्द से वंचित हो गए हो।“

“तो मेरा प्रवास व्यर्थ ही गया?”

“नहीं तो।“

“तो उन शब्दों का अर्थ तुम मुझे शब्दों से समझाओगी अथवा मौन से?” जीत ने पूछा।

नहीं, तुम भूल गए कि हमने वार्तालाप की नयी भाषा ढूंढ ली थी। रंगों की भाषा। चित्रों की भाषा।”

“किन्तु इस क्षण मैं शब्दों का ही प्रयोग करना चाहूँगा।“

“ठीक है, कहो जो कहना हो।“ वफ़ाई प्रतीक्षा करने लगी।

“खड़क, पत्थर, मार्ग, धूल आदि निर्जीव वस्तुओं से बातें करना मैं चूक गया।“

“तो दु:खी होने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हें वह अवसर मिलेगा। कुछ भी नहीं छूट गया।”

“वह कैसे?”

“मौन की खोज में हमें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं। यहाँ मौन सदैव व्याप्त रहता है। जैसे वह हमारा साथी हो। निर्जीव वस्तुएं भी यहीं है। और तुम भी यहीं हो।“ वफ़ाई ने कहा।

“कौन सी ऐसी निर्जीव...।”

“यह भीत, धरती, मार्ग, तूलिका, रंग, चित्राधार, केनवास, झूला, रेत के कण, मरुभूमि, अंधेरी रात्रि, गगन...।”

जीतने आस पास देखा। उसे अनेक निर्जीव वस्तुएं दिखी।

“चलो मौन का अभ्यास करते हैं तथा इन निर्जीव वस्तुओं की ध्वनि सुनते हैं।“ वफ़ाई ने सूचना दी और वह मौन हो गई। जीत भी।

मौन समय के लंबे अंतराल के पश्चात जीत ध्यानवस्था से बाहर आ गया। जीत के शरीर में विशेष ऊर्जा प्रवाहित होने लगी। मन आनंद का अनुभाव करने लगा।

वफ़ाई अभी भी ध्यान मुद्रा में झूले पर थी। बाकी सारा संसार स्थिर था, मौन था।

जीत वफ़ाई की प्रतीक्षा करने लगा, किन्तु वफ़ाई का ध्यान समपान नहीं हुआ। अंतत: जीत ने धैर्य खोया और वफ़ाई के कानों में जाकर पूछा,”वफ़ाई, तुम्हारा जन्म दिवस कब है?”

वफ़ाई ध्यान से चौंक कर जागी, ”क्या?”

“मैंने पूछा, तुम्हारा जन्मदिवस कब है?” जीत ने फिर पूछा।

“ओ श्रीमान, क्या आशय है तुम्हारा? मुझे तो कोई...।”

“कोई मलिन आशय नहीं है। मेरा विश्वास करो।“

“तो तुम मेरी जन्म तिथि तथा मेरी आयु क्यों पूछते हो? तुम्हें ज्ञात होगा कि लड़की की आयु कभी नहीं पूछा करते।“ वफ़ाई के मुख पर कृत्रिम रोष था।

“मुझे ज्ञात है। किन्तु तुम मार्ग भटक गई हो। मैंने तुम्हारी जन्म तिथि अथवा आयु कभी नहीं पूछी।

मैंने केवल जन्म दिवस पूछा है। मेरी धारणा है कि जन्म दिवस कभी किसी छोकरी की आयु का रहस्य प्रकट नहीं करता।“

“यह बात है? तो मेरा जन्म दिवस एक अप्रेल को है।“

“पहली अप्रैल? तुम उपहास कर रही हो।” जीत हंसने लगा।

“नहीं, मैं सत्य कह रही हूँ। पहली अप्रेल ही है मेरा जन्म दिवस।“

“ठीक है। मैं तुम्हारे जन्म दिवस पर तुम्हें कुछ उपहार देने को विचार कर रहा हूँ।“

“सुनकर अच्छा लगा। उपहार में क्या होगा?”

“कोई वस्तु उपहार में नहीं होगी।”

“ओह। मैं तो किसी विशेष वस्तु की अपेक्षा कर रही थी।“

“यह विशेष ही है जिसका भौतिक अस्तित्व नहीं है। इसे आकार, रंग तथा सुगंध नहीं है। तथापि यह सुंदर है। रंगों से भरी है। सुगंध से भरी है।”

“क्या है वह? जीत मैं अधीर हो रही हूँ।“

“तुम पहली अप्रेल तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती?”

“स्वाभाविक रूप से नहीं। मुझे अभी बता दो और हो सके तो दे भी दो।“

“ठीक है। मेरा विचार है कि यदि हम किसी को कोई विशेष उपहार देना चाहते हैं तो उसे ’मौन’ का उपहार देना चाहिए।“

“अर्थात? मौन?”

“मौन ही तो है उत्तम उपहार। मौन ऐसी सशक्त वस्तु है कि उसमें सभी कुछ समाविष्ट होता है। उस में स्नेह, उत्साह, शब्द, वाक्य आदि भी होते हैं। मौन के अनेक मित्र होते हैं, मौन के शत्रु भी। मौन में अनेक घटनाएँ होती है, संगीत होता है, रंग होते हैं, भावनाएं होती है।“

“रुको रुको। जीत, रुको।“ वफ़ाई ने जीत को रोका। जीत ने वफ़ाई को देखा, वह दुविधा में थी। मुख पर अनेक भाव थे जिसे देखकर जीत आनंद लेने लगा।

“जीत, तुमने कहा कि मौन के पास सब कुछ है। तुमने उस में से कई का नाम भी लिया। किन्तु धीरे धीरे कहो। मैं उन शब्दों तथा भावों का आनंद लेना चाहती हूँ।“

“आओ झूले पर बैठो।“ वफ़ाई झूले पर बैठ गई, जीत समीप खड़ा हो गया।

“वफ़ाई, तुमने मुझे मौन का अभ्यास करवाया। हमने मौन रखा। मुझे मौन ध्यान से भी बढ़कर लगा। मौन सर्व श्रेष्ठ लगा। और उपहार में तो वही देते हैं जो सर्व श्रेष्ठ होता है।“

“अर्थात तुम्हारे पास जो सर्व श्रेष्ठ है वह मौन है।“ जीत हंसने लगा, वफ़ाई भी।

“मेरे जन्म दिवस पर इस उपहार के लिए धन्यवाद, जीत।“ वफ़ाई ने गगन कि तरफ हाथ उठा कर ऊपरवाले का भी धन्यवाद किया।

दोनों मौन हो गए। मौन रात भर वहीं रुक गया।