फ़ातो Saadat Hasan Manto द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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फ़ातो

फ़ातो

तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँखें खोलीं और देखा फातो फ़र्श पर बैठी, पानी में कपड़ा भिगो कर उस के माथे पर लगा रही है।

जब फातो ने उस के माथे से कपड़ा उतारने के लिए हाथ बढ़ाया तो उस ने उसे पकड़ लिया। और अपने सीने पर रख कर हौले हौले प्यार से अपना हाथ उस पर फेरना शुरू कर दिया।

उस की सुर्ख़ आँखें दो अंगारे बन कर देर तक फातो को देखती रहीं। वो इस दहकती हुई टिकटिकी की ताब न ला सकी और हाथ छुड़ा कर अपने काम में मसरूफ़ होगई। इस पर वो उठ कर बिस्तर में बैठ गया..... फातो से, जिस का असल नाम फ़ातिमा था, उस को ग़ैर महसूस तौर पर मुहब्बत होगई थी हालाँकि वो जानता था कि वो किरदार-ओ-अतवार की अच्छी नहीं..... मुहल्ले में जितने लौंडे हैं उस से इश्क़ लड़ा चुके हैं। लेकिन ये सब जानते हुए भी उस को फातो से मुहब्बत होगई थी।

वो अगर बुख़ार में मुबतला न होता तो यक़ीनन उस से अपने इस जज़्बे का इज़हार कभी न क्या होता..... मगर तेज़ बुख़ार के बाइस उस को अपने दिल-ओ-दिमाग़ पर कोई इख़्तियार नहीं रहा था यही वजह है कि उस ने ऊंची आवाज़ में फातो को पुकारना शुरू किया। “इधर आओ..... मेरी तरफ़ देखो। जानती हो, मैं तुम्हारी मुहब्बत में गिरफ़्तार हूँ, बहुत बुरी तरह तुम्हारी मुहब्बत में गिरफ़्तार हूँ..... इस तरह तुम्हारी मुहब्बत में फंस गया हूँ, जैसे कोई दलदल में फंस जाये। मैं जानता हूँ तुम क्या हो..... मैं जानता हूँ तुम इस क़ाबिल नहीं हो कि तुम से मुहब्बत की जाये। मगर ये सब कुछ जानते बूझते तुम से मुहब्बत करता हूँ। लानत हो मुझ पर। लेकिन छोड़ इन बातों को..... और मेरी तरफ़ देखो..... मैं बुख़ार के इलावा तुम्हारी मुहब्बत में भी फुंका जा रहा हूँ..... फातो ..... फातो..... मैं ..... मैं” इस के ख़यालात का सिलसिला टूट गया और उस पर हिज़यानी कैफ़ीयत तारी होगई। उस ने डाक्टर मुकन्द लाल भाटिय से कौनैन के नुक़्सानात पर बेहस शुरू करदी।

चंद लम्हात के बाद वो अपनी माँ से जो वहां मौजूद नहीं थी, मुख़ातब हुआ “बीबी जी मेरे दिमाग़ में बेशुमार ख़यालात आ रहे हैं। आप हैरान क्यों होती हैं। मुझे फातो से मुहब्बत है, इसी फातो से जो हमारे पड़ोस में पंज बंदों के हाँ मुलाज़िम थी और जो अब आप की मुलाज़िम है। आप नहीं जानतीं इस लड़की ने मुझे कितना ज़लील करा दिया है। ये मुहब्बत नहीं ख़सरा है, नहीं खसरे से बढ़ चढ़ कर। इस का कोई ईलाज नहीं। मुझे तमाम ज़िल्लतें बर्दाश्त करनी होंगी। सारी गली का कूड़ा क्रिकेट अपने सर पर उठाना होगा। ये सब कुछ होके रहेगा, ये सब कुछ हो के रहेगा।”

आहिस्ता आहिस्ता उस की आवाज़ कमज़ोर होती गई और इस पर ग़नूदगी तारी होगई। उस की आँखें नीम वा थीं। ऐसा लगता था कि उस की पलकों पर बोझ सा आन पड़ा है।

फातो पलंग के पास फ़र्श पर बैठी उस की बेजोड़ हिज़यानी गुफ़्तुगू सुनती रही। मगर उस पर कुछ असर न हुआ। वो ऐसे बीमारों की कई मर्तबा तीमारदारी कर चुकी थी।

बुख़ार की हालत में जब उस ने अपनी मुहब्बत का एतराफ़ किया तो फातो ने उस के मुतअल्लिक़ क्या महसूस क्या, कुछ नहीं कहा जा सकता। इस लिए कि उस का गोश्त भरा चेहरा जज़्बात से बिलकुल आरी था। मुम्किन है कि उस के दिल के किसी गोशे में हल्की सी सरसराहट पैदा हुई हो। मगर ये चर्बी की तहों से निकल कर बाहर न आ सकी।

फातो ने रूमाल निचोड़ कर ताज़ा पानी में भिगोया और उस के माथे पर रखने के लिए उठी। अब की बार उसे इस लिए उठना पड़ा कि उस ने करवट बदली थी। जब उस ने आहिस्ता से उधर से मुड़ कर उस के माते पर गीला रूमाल जमाया तो उस की नीम-वा आँखें यूँ खुलीं जैसे लाल लाल ज़ख़्मों के मुँह टाँके अधड़जाने से खुल जाते हैं।

उस ने एक लम्हे के लिए फातो के झुके हुए चेहरे की तरफ़ देखा। उस के गाल थोड़े से नीचे लटक आए थे फिर एक दम जाने उस पर क्या वहशत सवार हुई उस ने फातो को अपने दोनों बाज़ूओं में जकड़ कर इस ज़ोर से अपनी छाती के साथ भींचा कि उस की रीढ़ की हड्डी कड़ कड़ बोल उठी। फिर उस ने उस को अपनी रानों पर लिटा कर उस के मोटे और गुदगुदे होंटों पर इस ज़ोर से अपने तपते हुए होंट पैवस्त किए जैसे वो उन्हें दाग़ना चाहता है।

उस की गिरिफ़त इस क़दर ज़बरदस्त थी कि फातो कोशिश के बावजूद ख़ुद को आज़ाद न कर सकी। उस के होंट देर तक उस के होंटों पर इस्त्री करते रहे। फिर अचानक हाँपते हुए उस ने फातो को एक झटके से अलग कर दिया और उठ कर बिस्तर में यूं बैठ गया जैसे उस ने कोई डरावना ख़्वाब देखा था।

फातो एक तरफ़ सिमट गई। वो सहम गई थी। उस के लबों पर अभी तक उस की पपड़ी जमे होंट सरक रहे थे। जब फातो ने कनखियों से उस की तरफ़ देखा तो उस पर बरस पड़ा। “तुम यहां क्या कर रही हूँ। तुम भूतनी हो..... डायन हो..... मेरा कलेजा निकाल कर चबाना चाहती हो ..... जाओ.....जाओ..... ”

ये कहते कहते उस ने अपने वज़नी सर को दोनों हाथों में थाम लिया, जैसे वो गिर पड़ेगा। और हौले हौले बड़बड़ाने लगा। “फातो मुझे माफ़ कर दो। मुझे कुछ मालूम नहीं कि मैं क्या कह रहा हूँ। मैं बस सिर्फ़ एक बात अच्छी तरह जानता हूँ कि मुझे तुम से दीवानगी की हदतक मुहब्बत है, इस लिए कि तुम से मुहब्बत की जाये, मैं तुम से मुहब्बत करता हूँ इस लिए कि तुम नफ़रत के काबिल हो..... तुम औरत नहीं हो..... एक सालिम मकान हो। एक बहुत बड़ी बिल्डिंग हो। मुझे तुम्हारे सब कमरों से मुहब्बत है। इस लिए कि वो ग़लीज़ हैं। शिकस्ता हैं। क्या ये अजीब बात नहीं?”

फातो ख़ामोश रही उस पर अभी तक इस आहनी गिरिफ़त और उस के ख़ौफ़नाक बोसे का असर मौजूद था। वो उठ कर कमरे से बाहर जाने का इरादा ही कर रही थी कि उस ने फिर हिज़यानी कैफ़ियत से में बड़ बराना शुरू कर दिया। फातो ने उस की तरफ़ देखा और वो किसी ग़ैर मरई आदमी से बातें कर रहा था। बिस्तर पर उस ने बड़ी मुश्किल से करवट बदली, फातो को अपनी सुर्ख़ सुर्ख़ आँखों से देखा और पूछा। “क्या कह रही हो तुम।”

उस ने कुछ भी नहीं कहा था। इस लिए वो ख़ामोश रही।

फातो की ख़ामोशी से उसे ख़याल आया कि हिज़यानी कैफ़ियत में वो बेशुमार बातें कर चुका है। जब उस को इस बात का एहसास हुआ कि वो अपनी मुहब्बत का इज़हार भी इस से कर चुका है तो उसे अपने आप पर बेहद ग़ुस्सा आया। इसी ग़ुस्से में वो फातो से मुख़ातब हुआ “मैंने तुम से जो कुछ कहा था वो बिलकुल ग़लत है..... मुझे तुम से नफ़रत है।”

फातो ने सिर्फ़ इतना कहा। “जी ठीक होगा”

वो कड़का “सिर्फ़ ठीक ही नहीं..... सौ फ़ीसद हक़ीक़त है..... मुझे तुम से सख़्त नफ़रत है। जाओ, चली जाओ मेरे कमरे से। ख़बरदार जो कभी इधर का रुख़ किया।”

फातो ने हसब-ए-मामूल नर्म लहजे में जवाब दिया। “जी अच्छा।”

ये कह कर वो जाने लगी कि उस ने उसे रोक लिया। “ठहरो..... एक बात सुनती जाओ।”

“फ़रमाईए।”

“नहीं मुझे कुछ नहीं कहना है..... तुम जा सकती हो।”

फातो ने कहा। “मैं जा तो रही थी ..... आप ने ख़ुद मुझे रोका..... ” ये कह उस ने बर्तन उठाए और कमरे से निकलने लगी। मगर उस ने फिर उसे आवाज़ दे कर रोका।

“ठहरो..... मैं एक बात तुम से कहना भूल गया हूँ।”

फातो ने बर्तन तिपाई पर रखे और उस से कहा। “क्या बात है..... बता दीजिए..... मुझे और काम करने हैं।”

वो सोचने लगा कि उस ने फातो को रोका क्यों था..... उसे इस से ऐसी कौन सी अहम बात करना थी। वो ये सोच ही रहा था। कि फातो ने उस से कहा। “मियां साहब मैं खड़ी इंतिज़ार कर रही हूँ। ..... आप को मुझ से क्या कहना है।” वो बौखला गया। “मुझे क्या कहना था..... कुछ भी तो नहीं कहना था..... मेरा मतलब है कहना तो कुछ था मगर भूल गया हूँ।”

फातो ने बर्तन तिपाई पर रखे। “आप याद कर लीजिए..... मैं यहां खड़ी हूँ।”

उस ने आँखें बंद करलीं। और याद करने लगा। उसे फातो से ये कहना था..... उस के दिमाग़ में बेशुमार ख़यालात थे। दरअसल ये कहना चाहता था कि फातो उस के घर से चली जाये। इस लिए कि वो उस से इस क़दर नफ़रत करता है कि वो नफ़रत बेपनाह मुहब्बत में तबदील होगई है।

उस ने थोड़े अर्सा के बाद आँखें खोलीं। फातो तिपाई के साथ खड़ी थी। उस ने समझा कि शायद ये सब ख़्वाब है, पर जब उस ने इधर उधर का जायज़ा लिया तो उसे मालूम हुआ कि ख़्वाब नहीं हक़ीक़त है, लेकिन उस की समझ में नहीं आता था कि फातो क्यों बुत की मानिंद उस की चारपाई के साथ खड़ी है।

उस ने कहा। “तू यहां खड़ी क्या कर रही है।”

फातो ने जवाब दिया। “आप ही ने तो कहा था कि आप को मुझ से कोई ज़रूरी बात कहनी है।”

वो चिड़ गया, झुँझला कर बोला। “तुम से मुझे कौन सी ज़रूरी बात कहना थी..... जाओ..... दूर हट जाओ मेरी नज़रों से।”

फातो ने तशवीशनाक नज़रों से उस की तरफ़ देखा।

“ऐसा लगता है आप का बुख़ार तेज़ होगया है..... मैं बीबी जी से कहती हूँ कि डाक्टर को बुलालें।” वो और ज़्यादा चिड़ गया। “डाक्टर आया तो मैं उसे गोली मादूंगा..... और तुम्हारा तो मैं इन दो हाथों से गला घूँट दूँगा।”

फातो ने अपने लहजे को और ज़्यादा नर्म बना कर कहा। “आप अभी घूँट डालिए..... मैं अपनी ज़िंदगी से उकता चुकी हूँ।”

उस ने पूछा “क्यों?”

“बस अब जी नहीं चाहता ज़िंदा रहने को .....मियां साहिब आप को मालूम नहीं मैं ये दिन कैसे गुज़ार रही हूँ..... अल्लाह की क़सम ..... एक एक पल ज़हर का घूँट है। ..... ख़ुदा के लिए आप मेरा गला घूँट कर मुझे मार दीजिए!”

वो लिहाफ़ के अंदर काँपने लगा..... “फातो..... जाओ मुझे तुम से नफ़रत है।”

फातो ने बड़ी मासूमियत से कहा। “मैं जाने लगती हूँ ..... पर आप मुझे रोक लेते हैं।”

उस ने भुन्ना कर कहा। “कौन हरामज़ादा तुझे रोकता है..... जा..... दूर होजा।”

फातो जाने लगी तो उस ने उसे फिर रोक लिया..... “ठहरो”

वो ठहर गई..... “फ़रमाईए।”

“तुम निहायत वाहियात औरत हो..... ख़ुदा तुमहें ग़ारत करे..... जाओ अब मेरी नज़रों से ग़ायब हो जाओ..... ” फातो बर्तन उठा कर चली गई।

एक महीने बाद मुहल्ले में शोर मचा कि फातो किसी के साथ भाग गई है। सब उस को बुरा भला कह रहे थे। औरतें खासतौर पर उस के किरदार में कीड़े डाल रही थीं और फातो अपने मियां साहब के साथ कलकत्ते में अज़दवाजी ज़िंदगी बसर कर रही थी।

उस का शौहर हर रोज़ उस से कहता था। “फ़ातिमा, मुझे तुम से नफ़रत है।”

और वो मुस्कुरा कर जवाब देती। “ये नफ़रत अगर न होती तो मेरी ज़िंदगी कैसे संवरती ..... आप मुझ से सारी उम्र नफ़रत ही करते रहिए।”