सफर कुछ लम्हों का.. Satyendra prajapati द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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सफर कुछ लम्हों का..

शाम का समय था जब मैं अहमदाबाद से दूर लगभग ६०० मील दूर अपने गांव के लिए ट्रेन में बैठा। तो सामने मैंने एक लड़की को कोई अंग्रेजी कक्षा की किताब पढ़ते देखा। जो इस प्रकार किताब पकड़े हुए थी कि मुझे उसका चेहरा दिखाई नहीं पड़ रहा था। मैने बहुत प्रयास किया पर सफल ना हो पाया। वो पढ़ने में इतनी मग्न थी शून्य बनी बैठी थी। कुछ समय पश्चात उसने अचानक किताब बंद की और मायूस सा चेहरा लेकर उसे अपने बैग के उपर रख दिया।

मेरी आंखे इतने देर से खूबसूरत चेहरे को देखने को तड़प रही थी। अचानक से तिलमिला उठी। कोई इतना भी खूबसूरत हो सकता है? फिि कुछ देर बाद उसने एक छोटी सी  मुस्कान लेकर मुझे देेेखा। जो मेरे रूखे से होठो को छूकर निकल गई।
और फिर ट्रेन ने सीटी बजाई और चलना शुरू किया। तो कुछ लोग मेरे डब्बे में आकर बैठ गए। पर मैंने उनमें सबके चेहरे भी ना देखे।
एक सज्जन आए और उस लड़की से इशारों में कुछ पूछने लगे।
उसने ना के जवाब में सर हिला दिया।
और वो सज्जन दूसरी सीट पर जा बैठे और आंखे बंद कर शायद सोने का प्रयास करने लगे।
कुछ ही देर में उसने उस किताब को फिर से उठाया और मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगी।
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे घूरने पर वो मूझपर मुस्कुरा रही हैं।
और मै फिर दूसरी तरफ देखने लगा। पर सोच तो उसी की तरफ खीचे जा रही थी। उसने अपने बैग की एक के बाद एक सारी चैन खोली शायद वो अपने बैग में कुछ ढूंढ रही थी। पर उसे नहीं मिला।
फिर उसने किताब खोलते ही मेरी तरफ पेन लेने के लिए इशारा किया।
तो मैंने बिना समय गंवाए झट से पेन नीकाल कर उसे दे दी।
उसने जैसे ही कुछ लिखने का प्रयास किया थोड़ी देर हैरान सी होकर मेरी तरफ देखकर मुस्कराने लगी।
ऐसा ही उसने दो से तीन बार किया। मै उसके मुस्कुराने की वजह गलत समझू उससे पहले उसने इशारा किया। कि ये आपकी पेन खराब है। तो मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा,
और फिर मैने उसे दूसरी पेन निकालकर दे दी।
कुछ समय पश्चात एक आंटी के उससे बात करने पर उसके अंकल द्वारा ज्ञात हुआ कि वो बोल नहीं सकती सिर्फ सुन सकती है। मुझे उस समय  झटका सा लगा। फिर अंकल ने उसके बारे 
 में उन आंटी को बहुत सारी बाते कही जिन्हें में बड़े चाव से सुनता रहा।
उसने इस साल १२ वी कक्षा, अंग्रेजी माध्यम से फर्स्ट क्लास में उत्तीर्ण की थी।
सच कहूं तो मुझे ऐसा लग रहा था कि उसके होठों की जो रूखी सी चुप्पी है मेरा बस चले तो मै एक पल में तोड़ दू। मगर ऐसा कहा मुमकिन था।
कुछ समय पश्चात मैने उससे बात करने की चेष्टा की मैने अंग्रेजी में उससे कहा आप बहुत होशियार है।
उसने फिर एक छोटी सी मुस्कान ली और ना के जवाब में सर हिला दिया।
फिर में उससे ऐसे ही सवाल पूछता रहा और वो वही मुस्कुराहट लिए जवाब देती गई।
मेरी नजर अब तक उसके होंठों पर थी जो मुझसे बात करने की चेष्टा कर रहे थे और मै सिर्फ और सिर्फ उसे ही घूरे जा रहा था।
एक स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी लगभग आधी रात का समय हो गया था। सभी सोने में लगे हुए थे शायद उस डब्बे में हम दोनों ही जाग रहे थे।
तो मैंने उससे पूछा कि आपको कुछ चाहिए। तो जबाब न में आया।
मगर मैने यही सवाल फिर से किया मगर फिर से वही जवाब और फिर में ट्रेन से नीचे उतर गया।
उसे ऐसा लगा कि मैने उसकी बात ना मानी और उसके लिए कुछ लेने को उतरा हू।
वो खिड़की से मेरी तरफ ही नजर लगाए हुए थी।
इतफाक़ से वहां कुछ गुलाब और चमेली के फूल लिए एक लड़का आकर मेरे बगल में खड़ा हो गया।
वो मुझसे फूल लेने को कहने लगा।
उस वक़्त मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो रहा था।
और मुस्कुराते हुए उस खिड़की की तरफ देखा।
वो भी मुस्कुराई और डर से भरी आंखो से उसने मुझे देखा।
और मुझसे नज़रे हटा के कुछ सोचने लगी। वो शायद मेरे ही वारे में सोच रही थी। और फ़ूल लिए बिना मैने उस लड़के को कुछ रुपए दे दिए।


 मै खाली हाथ जाकर उसके सामने अपनी जगह बैठ गया। मेरे खाली हाथ देख उसने मुझसे कुछ बोलने की चेष्टा की पर उसकी आवाज कोमल से गुलाबी होंठो में दबी रह गई।
उसने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और कुछ लिखने लगी। उसने उस पर अंग्रेजी में थैंक यू लिखा था और साथ में इसका कारण जानने को भी मना किया था।
सच में सबकुछ इतना अच्छा लग रहा था समय और सफर कब निकल गया पता ही नहीं चला।
सोचा मुमकिन हो ये सफर कुछ दिन तक चले और हम इसी तरह बैठे रहे।
मगर समय को कौन रोक सकता है ट्रेन ने फिर से सीटी बजाई। मगर इस बार मेरी धड़कनों को बढ़ा दिया।
क्यूकी मेरा स्टेशन आ गया था।
ट्रेन रुकी और में चल पड़ा मगर कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे। आखिर लगभग २ मिनट खड़े रहने के बाद मैने उसे बाय बोला। और चलने लगा।
कुछ लम्हों के सफर ने ना जाने कितने एहसास दे दिए।
उस मुस्कुराते चेहरे पर अब मायूसी थी ऐसा लग रहा था उसको गले से लगाकर कहूं मै कही नहीं जा रहा। और उसके साथ फिर से बैठ जाऊ।
मगर ये सिर्फ मेरे सोचने की बाते थी।
और फिर में हस्ते मुस्कुराते चेहरे को उदास कर चला आया। मै खुद बेसुध उसी 
 में गुम हो गया था।
स्टेशन पर पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया।
लगभग एक घंटे के बाद मैने अपने बैग से अपनी डायरी और पेन निकाली।
और इन खूबसूरत लम्हों को कैद करने लगा।।
लिखते लिखते मै इतना खो गया कि सुबह के ६ बज चुके थे। मगर मुझे जरा भी खबर ना थी।
चाय वाला लड़का मुझसे आकर बोला भैया जी चाय पियोगे। उसने शायद एक बार नहीं दो तीन बार मुझे आवाज लगाई।
मै यका यक होश में आया। और लंबी सास भरी चाय पी और घर के लिए बस में बैठ गया।
आज लगभग पूरा साल बीत गया मगर जब भी मुझे याद आती। तो मै डायरी में कैद उन लम्हों में खो जाता। ऐसा लगता मानो वो "कुछ लम्हों का सफ़र" आज भी मेरी ज़िन्दगी के सफ़र में हैं....
                 ? समाप्त?

✍️ आपका सत्येन्द्र कुमार प्रजापति (sattu)