चौबे जी शहर के नामी गिरामी समाजसेवी हैं। उनका एनजीओ “सशक्त समाज” कई जिला और प्रदेश स्तरीय पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त कर चुका है। आये दिन कोई न कोई आयोजन होता रहता है, कभी बाल कल्याण पर तो कभी नारी सशक्तिकरण पर, कभी पर्यावरण पर तो कभी जैविक कृषि पर, कभी नारी सशक्तिकरण पर तो कभी शैक्षिक सुधार पर ….. वो अलग बात है कि उनकी बहू ने चौबे जी और उनकी पत्नी समेत परिवार के कई लोगों को दर्ज उत्पीड़न के मामले में नामजद किया हुआ है लेकिन चौबे जी की “सेटिंग” और सामाजिक प्रभाव के चलते मुकदमे की कार्यवाही पिछले पांच वर्ष से “तारीख पर तारीख” और “डेट पर डेट” से आगे नहीं बढ़ पा रही है।
सुबह से ही चौबे जी आज के कार्यक्रम की तैयारियों में व्यस्त हैं। “हैंग ओवर” उतारने के लिए नींबू चाय से लेकर उम्र छिपाने के लिए “हेयर डाई” तक सफलतापूर्वक कर चुके हैं। ये 40 से 45 की उम्र होती ही कुछ ऐसी है ….. न आदमी जवान ही रह जाता है और न मन बुढ़ापा स्वीकार करने को तैयार होता है।
सफेद चिट्टा खादी का कुर्ता-पाजामा पहने, सर पर टोपी और मस्तक पर लम्बा लाल तिलक लगाएं चौबे जी घर से निकले। अभी गली के उस नुक्कड़ पर ही पहुंचे थे जो मुख्यमार्ग से जोड़ता है …. बच्चों के शोर और गाली-गलौज की आवाज सुनकर ठिठक गये। देखा कि छोटे भाई का बेटा “चिंटू” किसी बच्चे के परिवार की महिलाओं की “इज्जत अफजाई” कर रहा था। चौबे जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, “इसे तो इस समय स्कूल में होना चाहिए था” …..
उन्होंने इशारों से चिंटू को बुलाया और पूछा कि आज वह स्कूल क्यों नहीं गया और इस तरह गाली-गलौज क्यों कर रहा है।
समाजसेवा के “खेल” में मस्त चौबे जी सुनकर दंग रह गए कि उनके बेरोजगार भाई के घर में कई दिन से खाने-पीने का ठिकाना न था, कई महीने से फ़ीस न भर पाने के कारण हफ्ता भर पहले चिंटू का नाम स्कूल से काट दिया गया था और इस समय चिंटू गली की एक गुमटी टाइप दुकान से ब्रेड चोरी करते पकड़ा गया था …….
समाजसेवा का भूत चौबे जी के सिर से उतर चुका था। चौबे जी चिंटू को गोद में उठाये वापिस घर की ओर मुड़ चुके थे।
आकसर चिराग तले अंधेरा होता है। आज चौबे जी ने प्रत्यक्ष अनुभव किया। अपने समाजसेवा के क्रम में उन्होंने न जाने कितनों की सहायता की, कितने ही अनुदान गोलमाल किये और न जाने कितने घरों को तोड़ा। आजकल चौबे जी विधायक बनने के सपने देख रहे थे लेकिन उनके अपने परिवार की वास्तविक छवि उनकी आंखों के सामने से गुजरी तो आज उन्हें अपनी सब गलतियां याद आने लगीं।
किचौबे जी चिंटू का बैग अपने कंधे में लटकाए और चिंटू को गोद में उठाये उसके स्कूल पहुंचे। सारी फीस का भुगतान करने के अलावा पूरे सत्र की फीस जमा की और घर वापिस आ गए।
चौबे जी प्राण कर चुके हैं कि बदलाव और सुधार की समाजसेवी बयार अब स्वयं उनके घर से शुरू होगी।