Kya parmeshwar mar gaya hai ? books and stories free download online pdf in Hindi

क्या परमेश्वर मर गया है ?

"क्या परमेश्वर मर गया है ?"



यह सवाल सिर्फ एक धर्म के लिए नही ह सभी धर्म के लिए है



दुनिया मे सब लोग कोई न कोई धर्म मे आस्था रख के अपना जीवन जीते है.. बहोत कम ऐसे लोग मिलेंगे जो नास्तिक हो क्यों कि इंसान की ज़रूरते ही उस को ईश्वर को मानने पे मजबूर कर देती है


बचपन मे खिलौना लेना है माता पिता नही ले देते ह बच्चे ईश्वर से प्रार्थना करते है


जवानी में नोकरी धंधे को ले कर हम दुआ करते है अब अच्छा हो जाये आराम से ज़िन्दगी कटे उतना पैसा बन जाये


बुढ़ापे में हम ईश्वर से बीमार न होने की दुआ करते है बच्चे हमारा ध्यान से ख्याल करे ऐसी दुआ करते है


सीधे मुद्दे पर बात करि जाए तो हम हर उस काम मे ईश्वर का सहारा लेना चाहते है जो काम हम नही कर सकते या हमे ऐसे लगता है कि काम सिर्फ हम से नही होगा हर ना मुमकिन चीज़ को हम ईश्वर के हवाले पर छोड़ के रख देते है चाहे कोई भी धर्म के लोग हो आप


दुनिया का कोई भी धर्म नही जो अपने ज़िंदा ईश्वर को दिखा सके बस उसके इस दुनिया मे होने के दावे पेश कर  सकता है , सीधे शब्दों में बस आंख बन्द कर के विश्वास करने को ही आस्था कहते है । ना तो आपका ईश्वर आप से कभी बात करेगा न तो आप ऐसे मुकाम पर पोहच पाओगे की आप ईश्वर से सीधे बात कर सको उतने महान हो सको , ये सवाल भी जाइज़ है कि ईश्वर एक है या बहोत सारे ? अगर एक ईश्वर है तो इतने धर्म बन ही नही सकते , अगर बोहत सारे है तो उन में से कोई भी  इंसान से सीधे मिलना नही चाहता क्या ? क्यों ईश्वर को खुद की तारीफ पसन्द है?


मान लो अगर आप कोई खाना पकाते है , बड़ी मेहनत से , आप को पता भी है खाना बहत ही बेहतरीन बनाया है, और आपका पति आपके खाने की बजाए आप के कपड़े की तारीफ कर रहा है तो आप को ये विचार ज़रूर ही आये गया कि खाने की तारीफ नही हुई , सभी धर्म कहते है कि उस खुदा ने ही हम सब को बनाया है ! तो हम उस की तारीफ(प्रार्थना)  करेंगे तो वो हमारी दुआ कबूल फरमाएगा , ये वही बात हो गई कि आप तारीफ की उम्मीद अपने पकाये खाने से करते है , न कि उस को खाने वाले से , खुदा हम को बना रहा है जो बना है उस से अपनी तारीफ(प्रार्थना) सुन ने के लिए !


ये असम्भव है कि आपका पकाया खाना आप से दुआ करे (मानलो कोई मछली पकाई जा रही है ) हाथ जोड़ कर करे या सिर जुका कर करे कि आप मुजमे नमक डालें तो में ज़्यादा मज़ेदार बनु !  जैसे ये असम्भव है वैसे ही ईश्वर कर रहा है , हम सब को बना कर( दुनिया मे लाकर) वो दुआ ए मंगवा रहा है जब कि हम सब जानते है कि आखिर जाना तो बनाने वाले के पेट मे ही है ( मौत )।


सभी धर्म के ईश्वर का ज़िक्र सिर्फ तबसे ही है जब से इंसान बना है , न तो पहले डाइनोसॉर के समय के ईश्वर मिल रहे है, न तो अभी भी जानवरो के ईश्वर मिल रहे है, सड़क के कोई कुते और किसी अमीर के पालतू कुत्ते में ऐसा नही देखने को मिलता की सड़क वाला ईश्वर की कम इबादत कर रहा है तो वो सड़क में रहेगा , और कोई पालतू कुत्ता ईश्वर की ईबादत कर रहा है तो आराम से अमीर के घर रहेगा! हम जानते ही है कि दोनों में से कोई भी ईश्वर है ये भी नही जानता या तो वो हम से ज़्यादा जानते है ईश्वर को की इबादत / प्रार्थना / खुशामदी से ईश्वर खुश नही होने वाला , न ही ये करने को यह भेजा है ।


हर दुआ ईश्वर से मांगते है पर एक तरह से दुआ मांगना ही गुनाह है , जो अपने आप कुदरती हो रहा है जो ईश्वर की मर्ज़ी है वो न हो ऐसी दुआ मांगना ( उदाहरण के तौर पे मौत से बचानेकी दुआ ) एक गुनाह ही तो हुआ ना ।


आप ने एक बच्चा पैदा किया जैसे हमको ईश्वर ने पैदा किया, ज़ाहिर बात है सबसे पहले आप यही चाहोगे की वो ज़िंदा रहे, ताउम्र ज़िंदा रहे , अगर दो बचे है तो भी आप चाहोगे दोनो ज़िंदा रहे , अगर हम सब खुदा की औलाद है तो वो क्यों हमे मार देते है ? आप सोचेंगे दुनिया मे हर कोई मर जाता है , आप देखे आकाश को कभी भी नही मरेगा , चंद्रमा नही मरेगा , सूरज नही मरेगा । पर ये सब तो ज़िंदा चीज़े नही है ।


तो क्या ये समजा जाए की सिर्फ जीवित चीज़ों पर ही अपना ज़ोर चला सकता है , ईश्वर मुर्दा चीज़ों को बिना इबादत के ही महफूज़ रख रहा है ।


फिर से यह बात आ गई कि जैसे आप कुछ पैदा तभी कर सकते हो जब आप खुद ज़िंदा हो , ईश्वर भी हम सब इंसान से लेकर जानवर को तभी बना सकता है जब वो खुद ज़िंदा हो !


कोई भी ऐसे माता पिता नही मिलेंगे जो अपने बचों को न देखे न मिले न उनका ध्यान रखे , जानवर में भी कोई नस्ल ऐसी नही है जो बचा पैदा कर के बचे को कहि छोड़ दे उस उम्मीद से की जिस माता पिता को उसने पैदा होने के बाद में कभी नही देखा, ऐसे वालिद की तारीफ बच्चा ताउम्र  करता,  रहे , ऐसे नियम में रहा करे जो नियम आपने अपने बच्चो को अपने मुंह से सीधे सीधे बताये ही न हो । यह तर्क ईश्वर के वजूद पर शक पैदा करता है। बड़ी अवैगन्निक बात मालूम पड़ती है ।


ऐसे कहा जाता है कभी ईश्वर भूतकाल में खुद आया है किसी एक समूह की मदद करने के लिए, कभी अपने दूतो को भेजता है किसी समूह को अपने नियम समजने के लिए , पर ये सब महेरबानी सिर्फ इंसानो पर ही वो करता रहता है , जानवरो का ईश्वर भी नही देखने को मिलता न हमारा ईश्वर उन के लिये कोई नियम देता है वो जैसे चाहे जी सकते है , पानी को नियम देता है ना तो आग को न तो पेड़ पौधों को ! बस सभी मेहरबानियां इंसानो पर ही हो रही है पृथ्वी ग्रह पर !


आने वाले वक्त में शायद अवकाश विज्ञान में बहोत खोजभिन हो सकती है , शायद कही जीवन भी मिले अंतरिक्ष मे शायद न भी मिले पर सोचने की बात यही है कि ईश्वर कहो या खुदा कहो बस सब महेरबानी इतने बड़े अंतरिक्ष को छोड़ कर सिर्फ पृथ्वि के इंसानो तक ही सीमित कर के बैठा है , जानवरो , बेजान चीज़ो का , पेड़ पौधों , पक्षी , कीटाणु , सूरज , चंद्रमा, वगेरह का तो ध्यान ही नही रख रहा न तो इन सब को  खुद को राजी करनेका तरीका बता रहा है , न तो कोई नियम दे रहा है , इंसान पर ही सब महेरबानी है। रोज़ इंसान इंसान के बनाये नियम और आसमानी नीयम को मानने में मरता जा रहा है अपने आस पास की दुनिया का ख्याल ही नही करता ।


तर्क की बात ये है कि ईश्वर की ऐसी बात कर के किसी को नास्तिक बनाने का इरादा नही है पर यह बात है कि शायद हम जो दावे , जो मज़हब ,जो ईश्वर ,जो खुदा को जान ने का दावा करते रहते है जो कुछ भी हो रहा है वो सही तरीके से नही हो रहा , सब मान्यता सिर्फ खोखले दावो पर आधारित है...


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