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जब पड़ोसी को सिलेंडर दिया


गरीबी भी सोलवहें साल की पहली मोहब्बत की तरह होती है जो उम्र भर पीछा नहीं छोड़तीI मेरा पीछा ना तो पहली मोहब्बत ने छोड़ा और ना ही गरीबी नेI जवानी के दिनों का उबाल मारता इश्क़ आज रसोईघर में झमाझम बर्तन पटक रहा हैI रेडियो पर गाना बज रहा है, छोटा सा घर है ये मगर ...और मेरी नज़र अचानक ही अपने छोटे से घर के चारों कोनों में बने मकड़ी के जालों पर जाकर ठहर गईI कल तो यहाँ पर जाला नहीं था शायद गानें की लय पर मकड़ी थिरक उठी होI 

पर गाने की दूसरी लाईन की तरह मै दरवाजा बंद नहीं कर सकता था वरना मेरी बीवी बेताल की तरह मेरी पीठ पर सवार होकर सिलेंडर के लिए मेरे सिर के बाल नोंच डालतीI बर्तनों के आड़े टेढ़े मुँह करने के बाद वह रसोई घर से तीर की तरह दनदनाते हुए सीधी मेरी तरफ़ आती दिखाई दीI 

मैंने अकबकाकर मेज पर रखा अखबार उठा लिया और पढ़ने लगाI

शीर्षासन कर लो..कमरे में उसकी रौबदार आवाज़ गूंजी

पेपर मुँह में गढ़ाते हुए मैंने धीरे से पूछा-"क्यों?""

क्योंकि उल्टा पेपर तो सिर के बल ही खड़े होकर पढ़ा जाएगा ना...

हाहाहा...मैं पूरे गुर्दे हिलाते हुए नकली हँसी हँसा

पर वह अभी भी मुझे घूर रही थी

धड़कते दिल को काबू में करते हुए मैंने कहा-"भगवान कसम, अगर मैं जानता कि सिलेंडर खत्म हो जाएगा तो मैं अपनी जान दे देता पर किसी भी कीमत पर दूसरा सिलेंडर कल रात गुप्ता जी को ना देताI "

"तो पूछा क्यों नहीं था?" वह सप्तम सुर में चीखी

बेचारा शेरू घबराकर सोफ़े के नीचे घुस गयाI

मुझे पहली बार अपनी भारी भरकम काया पर बहुत गुस्सा आयाI

"एक कप चाय पिला दो तो कहीं से जुगाड़ कर के लाता हूँI" मैंने दयनीय नज़रों से उसे देखते हुए कहा जवाब तो वह बहुत करारा देने वाली थी पर शायद गैस सिलिंडर सुनकर उसके पाषाण हृदय का कोई कोना भीग गया होगा और वह पैर पटकते हुए रसोई घर में स्टोव में हवा भरने के लिए चल दीI  बेचारा शेरू डर के मारे कूँ कूँ करने लगाI

"खुद के खाने के खाने के ठिकाने नहीं हैं, चले है कुत्ता पालने" कहते हुए वह चाय का बर्तन उठाने लगीI तभी मेरे दोस्त मिश्रा जी आए जो गैस वितरण का ही कार्य करते थेI पत्नी उनको पहचानती नहीं थी, इसीलिए मैंने उनसे तुरंत कहा-"आप यह नहीं बताइयेगा कि आप सिलेंडर सप्लाई करते होI"

"क्यों!"  आपकी धर्मपत्नी क्या इन्कमटेक्स विभाग में है, उन्होंने घबराते हुए पूछा 

अरे नहीं, वह तो ग्रहचंडी..मेरा मतलब गृहलक्ष्मी हैI"

ओह्ह, कहते हुए उन्होंने चैन की साँस ली    ..

"पर आप मेरी पत्नी को कह  देना कि आप किसी बैंक में काम करते होI" मैं फुसफुसाया

"मैं झूठ नहीं बोलूंगाI"

"अरे मामले की नज़ाकत को समझोI" पर जब तक मैं उनको पूरे वाकये से अवगत कराता, पत्नी चाय लेकर आ चुकी थीI

घर की अंदरुनी इज्जत को छोड़ दिया जाए तो बाहरी लोगों से शिष्टाचार के मामले में उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता थाI उसने तुरंत मिश्रा जी को नमस्ते करते हुए चाय का कप उनकी ओर बढ़ा दियाI

"आप...." कहते हुए पत्नी ने झूठी मुस्कान से मेरी ओर देखा 

मैं जैसे ही बोलने को हुआ, मिश्रा जी ने मुझे चुप करा दिया और बोल  उठे

"अरे भाभी जी, अहोभाग्य मेरे,आज तो साक्षात अन्नपूर्णा के दर्शन हो गएI मेरे बैठते ही चाय ले आई और यह सज्जन मुझसे आपको ही झूठ बोलने के लिए कह रहे थेI "

"क्या मतलब" पत्नी ने आश्चर्य से पूछा

"मेरी गैस सिलेंडर की एजेंसी है और आपके पतिदेव मुझसे कह रहे है कि आपसे झूठ बोल दूँ कि मैं बैंक में काम करता हूँI"

"क्या कहा , गैस सिलेंडर ..वहीँ रसोई गैस वाला..लाल लाल.."पत्नी की बाँछें खिल गई

"बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया आपने .." मिश्रा जी गर्व से बोले

पत्नी ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ दिए और कहा-"अरे, मैं तो चाय के साथ-साथ पकोड़े भी तल देती पर सिलेंडर ने भी सुबह ही धोखा दे दिया और एक यह है कलयुग  के कर्ण,जिन्होंने मेरा भरा सिलेंडर पड़ोस वाले गुप्ता जी को दे दिया

क्या कहा..सिलेंडर दे दिया..अरे कुछ तो सोचा होता आपने बेचारी भाभी जी का

मिश्रा तेरे गोडाउन में आग ना लगा दी तो मेरा भी नाम बांकेलाल नहीं ..मैंने उसी वक़्त प्रतिज्ञा की  ..

पत्नी विनती करते हुए बोली- भाईसाहब ,सिर्फ़ एक सिलेंडर की व्यवस्था कर दीजियेI"

मिश्रा जी खींसे निपोरते हुए बोले-"अरे भाभी मैं तो पूरा ट्रक खड़ा कर दूँ आपके दरवाज़े पर ..पर कम्बख़्त कंपनी ने भी गला दबा रखा है पूरी सप्लाई ही नहीं दे रहे हैI 

भाईसाहब, सिर्फ़ एक सिलेंडर की ही तो बात हैI  पत्नी ने विनती करते हुए कहा

बस इसी बात की तो माफ़ी माँगने के लिए तो आपके घर तक चला आयाI भाईसाहब के फोन से ही तो नींद खुली थी आज सुबह...सिलेंडर की व्यवस्था नहीं कर सका

पत्नी के चेहरे के बदलते भावों को देखकर मैंने आगे की वार्तालाप की कल्पना कर ली और तुरंत अपने दोनों हाथों से कान ढक लिएI

अचानक ही मधुभाषिणि अन्नपूर्णा साक्षात चंडी  के रूप में आ गई  

वह कुर्सी से खड़े होते हुए मिश्रा जी से बोली-"अभी दद्दन पहलवान का फ़ोन आ जाता तो अपने रसोई का सिलेंडर उनके घर तक खुद पहुँचा कर आतेI कप भर चाय सुड़क गए और सिलेंडर देने के नाम पर नाटक दिखा रहे होI कालाबाज़ारी करते हो ना तुम..चोरी करते हो ना..खुद के घर में दस दस सिलेंडर रखे होंगे पर एक देने में तुम्हारे प्राण जाने लगेI 

"हे भगवान, मिश्रा जी को बचा लो आज " मेरे मुँह से निकला

तभी मेरी बीवी ने उनका मोबाइल उठा लिया और दहाड़ी-"धनपिपासु, लालची ...इतना महँगा मोबाइल लेकर चलता है तू ...

और यह कहते हुए बीवी गुस्से में काँपने लगीI

मिश्रा जी रिरियाते हुए बोले-"लगता है भाभी जी पर माता आ रही हैI "

हाँ..तो यह भी समझ लो कि आपको कूटने के लिए आ रही है

मिश्रा जी के हाथ का चाय का कप इतनी जोर से हिल रहा था जैसे वह भूकंप पीड़ित क्षेत्र में बैठे हो

हिम्मत बटोरते हुए उन्होंने काँपती टाँगों को बमुश्किल इकठ्ठा किया और रही सही शक्ति को इकठ्ठा करके दरवाज़े की ओर दौड़ लगा दीI पल भर में ही मिश्रा जी भूत की तरह कमरे से गायब हो गएI  मुझे पहली बार पता चला कि उनके अंदर एक कुशल धावक भी छिपा हुआ बैठा थाI 

अगला शिकार मैं ही था इसलिए मैंने तुरंत चप्पल पहनते हुए कहा-"मैं पड़ोस में पूछकर आता हूँ सिलेंडर का.."

और पत्नी की तरफ़ बिना देखे ही मैं भाग खड़ा हुआI

सच्चाई तो यह है कि शादी के बाद से मैं हमेशा सड़क पर खुद को ज़्यादा सुरक्षित महसूस करता हूँI

पर आज तो सड़क पर भी बीवी के शब्द कानों में लगातार बज रहे थे-"अगर बिना सिलेंडर के घर के अंदर कदम भी रखा तो.....

 

 

  





डॉ. मंजरी  शुक्ला


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