बेटा हॉट वाटर से हेंड वाश करके टॉवल से क्लीन कर लो , रचना ने अपनी पांच साल के बेटी से घर में घुसते ही कहा , छोटी सी विन्नी ने लव यू मॉम कहा और पंजों के बल खड़ी हो कर बामुश्किल वाशबेसिन का नल खोला और खुद को सम्भालते हुए साबुन से हाथ साफ़ किये फिर नल बंद किये बगैर ही कूद कर तौलिया खींचा ,हाथ साफ किये , तौलिया वापिस टांगने की उसकी न तो इच्छा थी और न ही उसकी औकात इस लिए जोर से आवाज लगायी मम्मी यहाँ आओ , कमिंग बेटा थोडा सा वेट नी कर सकते आप , झल्ला कर रचना ने कहा | विन्नी ने अपने दादी को खाना खाते देखा था, जो उसे याद रह गया और उसने कहा मम्मी मुझे आज रोटी पे दाल डाल के उसे मचरूंडा ( रोटी को दाल में मसल कर ) करके खाना है जैसे दादी खाती है | रचना ने गुस्से से विन्नी को डांट कर कहा क्या फुलिश बातें करती हो बेटा, फ़ूड को ऐसे ईट करोगी तो कितना डर्टी लगेगा, यही सीख रही हो कान्वेंट स्कूल में, आज इवनिंग में जब आपके पापा आएंगे में उनको टैल करूंगी की तुम कितनी डर्टी बातें करने लगी हो , सहमी सी विन्नी को समझ ही नहीं आता की मेरे मम्मी – पापा की प्रॉब्लम क्या है? क्यों उनको वो सब अच्छा नहीं लगता जैसे दादी और सब बात करते हैं | डोर बैल की आवाज़ सुनके रचना ने दरवाज़ा खोला राकेश पंद्रह दिन बाद घर लौटा था , लुकिंग ग्रेट जानू, मैं टायर्ड फील कर रहा हूँ , विल यू टी से पहले हॉट वाटर पिला दोगी, मेरा मन फुट वाश करने का भी है , रचना ने गर्व से राकेश को देखा , हम दोनों इतना मैनर्स से टॉक करते हैं लेकिन विनी हर डे इतनी अनकल्चर्ड हो रही है की मुझे बहुत शाई फील होता है , क्या हुआ स्वीटहार्ट , उसकी लैंग्वेज ठीक नहीं है रचना ने उलाहना दे कर कहा | मेरे पजामे का नाडा नी खुल रहा आप इसे खोल दो ना मुझे जोर की लगी है, विनी ने बेडरूम में अपने साथ सोयी दादी को जोर से कहा , रचना और राकेश ने सर पीट लिया | मां को वापिस गाँव भेजना पड़ेगा वो यहाँ रही तो विन्नी कुछ भी लर्न नहीं कर पायेगी रचना ने राकेश को सलाह दी |
विन्नी को बचपन से दादी ने ही पाला था, वो ही उसे स्कूल वैन से लेती, रचना के आने तक उसका पूरा ख्याल रखती , रचना विन्नी के ही स्कूल में कोंटरेक्ट टीचर लगी थी | रचना और राकेश दोनों की पृष्ठभूमि गाँव की थी और दोनों ही इस हीन भावना से ग्रस्त थे कि उनकी परवरिश में अंगरेजी की कमी आरएच गयी है , उनको अंग्रेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग संभ्रांतता का एहसास करवाता था , जब से राकेश और रचना ने टाटा स्काई पर इंग्लिश स्पीकिंग और इंग्लिश फिल्मों का विशेष पैक लिया था , दादी और विन्नी को अपने पसंदीदा प्रोग्राम देखने को नहीं मिलते , विन्नी और दादी के संवाद की सहजता उनके अंगरेजी माहौल के एहसास का बेड़ा गर्क कर देती थी , दादी के शब्द विन्नी की जुबान पे ज्यादा सहज थे |
यूँ तो दादी का भी अपना ही अंदाज था जिस से अब रचना परेशान रहने लगी थी , जबकि आज से चार बरस पहले वो ही अपनी सास को सब्ज बाग़ दिखा के शहर लायी थी क्योंकि विन्नी को घर में देखने वाला कोई नहीं था | रचना और उसके सास मजे से रहते दोनों का लेन-देन का रिश्ता था , सास बच्ची को सम्भालती तो रचना उनको खुश रखती | इनका घर जो था उसकी जमीन रचना को नानी से मिली थी और घर उसके सास-ससुर ने बनाया था , अपने रहने के सेट के अलावा चार-पांच सेट किराये पर भी चढ़े हुए थे, कुल मिला के अंग्रेजी के प्रयोग के सिवा बाकी सब सहज था | अब चूंकि विन्नी भी तीसरी कक्षा में हो गयी थी तो अब स्कूल से उसकी और रचना की छुट्टी एक साथ ही होती , इस लिए रचना को अपनी सास का यहाँ रहना अपनी आजादी में खलल लगता | रचना ने राजेश से इस बारे में कहना शुरू किया , शहर में मकान और एशोआराम के चलते राकेश अपने माता-पिता से ज्यादा अपनी बीवी की सुनता था , वैसे कुल मिला के देखा जाए तो उसका स्वभाव परजीवी का था | जब रचना ने उसकी आँखों में आँखें डाल के प्यार से कहा जानू वी आर तो इस तरह से लाइफ लिव नहीं कर सकते , विन्नी को भी स्पोइल नहीं करना है |
राकेश ने गाँव में पिताजी के अकेले होने का हवाला देकर मां को कुछ दिन घर जाने की सलाह दे डाली, जबकि पिछले चार साल से वो लगातार यहीं थी और अब उन्हें भी शहर का जीवन पसंद आने लगा था | इस लिए उन्होने कहा की अब हमारी उम्र हो गयी है और तबीयत भी अक्सर ढीली रहती है गाँव में कौन पूछने वाला है हमें , लेकिन तुम्हारी जो मर्ज़ी | राकेश को माँ की बात सुनके उनकी बात ठीक लगी पर रचना के दबाव के आगे वो मजबूर था |
इन्ही दिनो इनके पड़ोस में रिटायर्ड प्रोफेसर जगत राम जी ने घर लिया , जगत राम जी का जन्म पास ही के एक गाँव में हुआ था ,उनका बचपन गरीबी में बीता लेकिन वो बचपन से ही बहुत ज़हीन थे और उन्होने स्कूल के बाद ही अपना गाँव छोड़ दिया और दिल्ली चले आए, यहाँ उन्हें एक एजेंसी मैं क्लर्क नौकरी करनी शुरू की और नाईट कालेज पढ़ाई भी जारी रखी, डा. सूर्य नारायण सिंह कालेज में गणित के प्रवक्ता थे और वो जगत राम की प्रखरता के कायल हो गए , इस लिए उनकी रूचि जगत राम में बढ्ने लगी, उन्होने जब जगत राम की कहानी सुनी तो उनके मन में इस बच्चे की मदद करने का विचार आया , उन्होने जगत राम से कहा की तुम कहाँ रहते हो , जगत राम ने कहा की मैं जहां नौकरी करता हूँ , वहीं कोने में रात को सो जाता हूँ , सूर्य नारायण जी ने कहा की मेरा सरकारी घर काफी बड़ा है, तुम भी वहाँ रहो , तुम्हें भी आराम हो जाएगा और मुझे भी अच्छा लगेगा , तुम मेरे लिए बेटे जैसे हो , जगत राम संकोची थे पहले कुछ दिन टाल मटोल करते रहे लेकिन एक दिन शाम को वो उसे जबर्दस्ती अपने साथ घर ले गए और कहा की कल सुबह तुम्हारा जो भी समान है , यहाँ आ जाना चाहिए , अब जगत राम के पास कोई चारा न था , जगत राम डा. सूर्य नारायण सिंह की बहुत इज्जत करते, उनकी बेटी दामिनी भी जगत राम की हमउम्र थी वो भी कालेज में पढ़ती थी , लेकिन सामान्य विद्यार्थियों की तरह दिन में कालेज जाती , जगत राम के जीवन में एक सुखद मोड आया जब उन्होने ने गणित विषय से स्नातक के परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया | इसके बाद जगत राम ने मुड़ के पीछे नहीं देखा , मेधावी तो था ही अब आर्थिक तंगी भी नहीं रही क्योंकि अब उसे यूजीसी से वजीफा मिलने लगा था , जगत राम ने गणित विषय के स्नातकोतर में भी विश्वविद्यालय प्रथम स्थान प्राप्त किया , डाक्टरेट के लिए नामी अमरीकन विश्वविद्यालय में फेलौशिप के साथ एड्मिशन हो गया और फिर वहीं वो प्रोफेसर हो गए , सूर्य नारायण जी की बेटी दामिनी और जगत राम एक दूसरे को पसंद करते थे इस लिए उन दोनों की शादी भी घर वालों की रजामंदी से हो गयी, इस बीच वो जब भी समय मिलता हिंदुस्तान आते रहते उन दोनों के मन में अपने देश से प्यार बढ़ता ही गया, उन्होने अपने बेटे सार्थक को भी भारतीय संस्कार दिये , घर में वो सब हिन्दी में ही बात करते | कुछ बरस अमेरिका , लंदन और सिंगापुर में काम करने के बाद माता-पिता की खुशी के लिए सार्थक ने हिमाचल में एक रिज़ॉर्ट बनाने का निर्णय लिया | उसने पैतृक गाँव में अपनी जमीन से लगती जमीन गाँव वालों से दुगने दामों पर ले ली थी | जगत राम और दामिनी बहुत खुश हुए आज उन्हें अपनी परवरिश पर नाज हो रहा था | वो सब अमेरिका को छोड़ के हिमाचल में आ गए और उन्होने राकेश और रचना के पड़ोस में एक अंग्रेजों के जमाने के कोठी खरीद ली , सार्थक और उसके पत्नी साक्षी रिज़ॉर्ट और फार्म हाउस को बनाने में व्यस्त थे वो कभी देर से आते तो कभी रिज़ॉर्ट में ही रुक जाते, इस सिलसिले में उन्हें शहर से व देश से बाहर भी जाना पड़ता , उनका बेटा अथर्व , विन्नी का हम उम्र था और उसके स्कूल में उसका भी एडमिशन करवा दिया , दामिनी ने अपने बेटे और बहु से कह दिया की इसकी फिक्र तुम मत करो और इसे हमें बोर्डिंग भी नहीं भेजना, यहीं पढ़ाई भी कराएंगे और संस्कार भी देंगे | प्रोफेसर साहिब ने कोठी का कायाकल्प किया तो ये किसी महल सी लगने लगी , साक्षी और सार्थक ने जिद करके उनकी सेवा के लिए खानसामा, माली और ड्राईवर भी रख दिये , ये सब भी खुश थे क्योंकि इनको अच्छा वेतन , रहने को कोठी में घर, और इनके बच्चों की एड्मिशन भी अथर्व के साथ ही करवा दिया | प्रोफेसर साहिब का ड्राइवर सुबह सब बच्चों को को स्कूल छोड़ने जाता, विन्नी और अथर्व एक क्लास में थे और दोनों जल्दी ही घुल मिल गए , पड़ोसी थे तो स्कूल के बाद भी वो दोनों और बाकी बच्चे साथ-साथ खेलते | रचना और राकेश अपने पड़ोसियों के रहन-सहन से बहुत प्रभावित थे, एक दिन प्रोफेसर साहिब और उनकी पत्नी शाम की सैर से वापिस आ रहे थे तो रास्ते में रचना और राकेश भी मिल गए , पहचानते तो थे ही तो रचना ने प्रोफेसर साहिब और उनकी पत्नी को नमस्ते की वो दोनों भी भी बड़ी आत्मीयता से उन्हें मिले और घर चल के चाय पीने का आग्रह किया , रचना ने औपचारिकता वश कहा की अभी इतनी वेजीटेबल और राइस कैरी किया है सून ही किसी दिन हम आएंगे , लेकिन दामिनी ने कहा के तुम दोनों घर समान रख के आ जाओ और विन्नी ओर उनकी दादी को भी साथ ले आना , अब रचना और राकेश के पास कोई चारा नहीं था , वो सामान घर में रख के विन्नी को और उसकी दादी के कपड़े बदलवा कर साथ ले आए | प्रोफेसर साहिब के घर आ कर उनको लगा की मानो किसी और दुनिया में आ गए , बच्चे खेलने लगे , बड़े लोगों के लिए लॉन में बैठने का इंतजाम था , इधर उधर की बातें होने लगी , रचना और राकेश ने देखा की खानसामा के होते हुए भी दामिनी मेहमानों के लिए चाय , पकोड़े ,प्तीड़ और पुदीने की अनारदाने वाली चटनी ले के आई , बच्चों के लिए जूस भी लेकिन बच्चों को कहाँ परवाह थी वो तो साथ-साथ खेलते हुए खुशी से पागल हो रहे थे , विन्नी ने भी बरसों बाद खुल कर सांस ली | प्रोफेसर साहिब राकेश की माता जी के साथ पुराने दिनो को याद कर रहे थे और वो दोनों आपस में पहाड़ी में बात कर रहे थे , रचना असहज हो रही थी अपनी सास के सहज संवाद से | वो और राकेश दामिनी जी से अमेरिका के बारे में बात करते इतने में सार्थक और साक्षी भी पहुँच गए और निर्णय ये लिया गया की आज रात का खाना भी यंही होगा , साक्षी रचना को साथ ले कर घर दिखने लगी , सार्थक और राकेश उनके बार में आ कर बैठ गए ,दामिनी रसोई में जा कर रात के खाने की योजना बनाने लगी, प्रोफेसर साहिब और विन्नी की दादी लान में बैठ कर ठाहके लगते रहे | साक्षी के परवरिश देहरादून में हुई थी उसके पिता जी फौज में ब्रिगेडियर थे , उसने होटल मैंजमेंट की पढ़ाई लंदन से की थी | वो बहुत ही सौम्य थी लेकिन रचना भी अपनी योगयता को प्रदर्शित करने से कहाँ बाज आने वाली थी , दीदी आपका हाउस तो बहुत वैल डेकोरेटेड है , हू इज द आर्किटेक्ट , साक्षी को ज़ोर की हंसी आयी कहा ये तो मेरी सास का कमाल है और रचना आर्किटेक्ट का काम कुछ और होता है, घर तो आपसी प्यार और समान से सजता है , सहज जीवन की खूबसूरती बेशकीमती है | सार्थक ने राकेश से पूछा के क्या लेना पसंद करोगे व्हिस्की, वाईन या बीयर , राकेश पीना तो सब चाहता था लेकिन रचना के प्रतिरोध से चिंतित था , लेकिन उसे ये भी पता था की वो इनसे प्रभावित है इसे लिए कुछ नहीं कहेगी | इसी तरह बातों में नौ बज़ गए , फिर सबने दामिनी जी के हाथ का स्वादिष्ट खाना खाया , प्रोफेसर साहिब ने रचना से विशेष आग्रह किया की आप भी बच्चों के साथ गाड़ी से स्कूल आया-जाया करो | रचना ने थैंक्स अंकल कह के कृतग्यता जाहिर के तो प्रोफेसर साहिब ने कहा अंकल नहीं तुम दोनों मुझे मामा जी कह सकते हो क्योंकि विन्नी की दादी मेरी बहन जी हैं, बचपन से एक बहन की तमन्ना मन में थी जो आज पूरी हुई | अब हमारे तीन गुट बन गए हैं एक बच्चों का, एक सार्थक, साक्षी, रचना और राकेश का और एक मेरा , दामिनी और विन्नी की दादी का |
रचना और राकेश घर आते हुए सोच रहे थे की कैसे हैं ये लोग , कितने प्यारे और कितने सहज एक पैसे का गुमान नहीं | इतने बरस अमेरिका में रहे लेकिन ऐसा लगता है हमेशा से यहीं के हैं | घर पहुंचते ही विन्नी ने कहा मम्मी मेरे क्लोथ्स डर्टी हो गए , प्लीज इनको चेंज कर दो फिर टीथ क्लीन कर लूँगी अपने नियू ब्रुश से | रचना और राकेश ने एक साथ कहा बेटा अब हाफ इंग्लिश नहीं , या तो हिन्दी या फिर कंप्लीट इंग्लिश लेकिन वो भी घर में नहीं स्कूल में | रचना ने सोते हुए राकेश से कहा माता जी कहाँ जाएंगी अब घर पिता जी को ही यहाँ बुला लेते हें और हाँ घर में जो घर और जमीन है उसकी देख रेख अब हमारी जिम्मेवारी , राकेश की आँखों में पहली बार सम्मान की चमक थी | रचना तुमको पता है सार्थक भैया ने मुझे कहा की वो हमारे गाँव चलेंगे और हमारे सेब के बगीचे में कुछ कोटेजीज़ की संभावनाओ को देख कर कुछ सोचेंगे , क्योंकि विदेशी पर्यटक प्राकृतिक वातावरण को ज्यादा पसंद करते हैं | रचना आज जब विन्नी की दादी के लिए पहली बार गरम दूध देने गयी तो उन्हें लगा की प्रोफेसर साहिब की बहन होने की बात ही कुछ और है | आज घर में एक सोंधी महक थी और दिमाग में हल्कापन |