शांतनु - १६ Siddharth Chhaya द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शांतनु - १६

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

सोलह

घर पहुँच कर शांतनु ने ज्वलंतभाई को रविवार को अनुश्री के घर जाने की बात की और ज्वलंतभाई ने उसके लिए तुरंत हां कर दी| नहा कर शांतनु ऑफिस जाने के लिए तैयार हो गया| ज्वलंतभाईने उसके लिए सैंडविच और चाय तैयार रखे थे| शांतनु सिर्फ़ एक घंटे पहेले ही अनुश्री को मिला था पर फ़िर भी उसे ऑफिस पहुँच कर अनुश्री को जल्दी से, फ़िर से मिलना था|

कल रात के बाद शांतनु और अनुश्री का रिश्ता और भी मज़बूत हुआ था और शांतनु को इस बात की ज़्यादा ख़ुशी थी की अब वोट्स अप और फ़ेसबुक द्वारा भी वो अनुश्री से और भी ज्यादा संपर्क में रह सकेगा|

यह सब सोचते सोचते शांतनु ऑफिस पहुंचा, उसने अभी अपनी बाइक पार्क की ही थी की वोट्स अप पर अनुश्री का मेसैज चमका, जिसमे उसने लिखा था की शायद उसे आज आराम की ज़रूरत है इस लिए आज उसने ऑफ़िस से छुट्टी ले ली है| मेसैज पढ़ कर शांतनु थोडा निराश ज़रूर हुआ पर फ़िर सोचा की अगर अनुश्री कल फ्रैश हो कर ऑफ़िस आएगी तो वो दोनों के लिये ही अच्छा रहेगा| अपने आपको ढाढस बंधाते हुए शांतनु कोम्प्लेक्स के दरवाज़े पर पंहुचा जहां हररोज़ की तरह मातादीन उसकी राह देख रहा था| अभी शांतनु मातादीन के लिए बीड़ी और चाय का ऑर्डर दे ही रहा था की...

“क्या बात है हीरो? आज हमारे बगैर ही चाय पियेंगे क्या?” अक्षय अपनी बाइक को शांतनु के करीब खड़ी करते हुए बोला|

“अरे आओ अक्षु, में तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था|” शांतनु झूठ बोला|

“प्यार अच्छे अच्छों को झूठ बोलना सिखा देता है ऐसा सुना था पर आज देखा पहलीबार|” अक्षय हंसते हुए बोला|

शांतनु ने अपनी आखों से मातादीन की ओर इशारा किया और अक्षय को ज़्यादा बोलने से रोका| मातादीन को भी कुछ काम होगा इस लिए वो अपनी बीड़ी का बंडल ले कर तुंरत ही वहां से चल दिया|

“कैसा है तू? और पप्पा जी?” शांतनु ने पूछा|

“मैं और पप्पा दोनों मज़े से हैं, आज सुबह ही वडोदरा से आ गये भाई| मुझे तो आज ऑफ़िस आने का बिलकुल ही मूड नहीं था, पर मुझे आज तो आपको मिलना ही था, कल का पूरा रिपोर्ट जो लेना है आपसे!” अक्षय तत्परता दिखा रहा था| जवाब में शांतनु सिर्फ़ मुस्कुराया|

“रिपोर्ट यहीं दे दूं या फ़िर जब कॉल पर निकलें तब?” चाय की चुस्की लेते हुए शांतनु बोला, उसके हर एक शब्द में गज़ब का आत्मविश्वास दिखाई दे रहा था|

कल रात उसने और अनुश्री ने एक दूसरे के जीवन की छोटी से छोटी बात को एक दूसरे से शेयर की थी उससे शांतनु को विश्वास था की अब वो अनुश्री के और करीब जा सकेगा|

“शुभस्य शीघ्रम, बड़े भाई| और एक एक बन मस्का भी हो जाये? बहुत भूख लगी है!” अक्षय बोला|

“व्हाय नोट? अरे, रामजी दो बन मस्का भी ला|” चायवाले को ऑर्डर देते हुए शांतनु ने कहा|

“हाँ, तो शुरुआत से शुरू कीजिये...” अक्षय से अब रहा नहीं जा रहा था|

शांतनु ने कल जो कुछ भी हुआ वो सब बातें बतानी शुरू की और आज सुबह वो अनुश्री को उसके घर तक छोड़ कर आया है वोह भी कहा और आखिर में उसने वो और ज्वलंतभाई इस रविवार को अनुश्री के घर चाय नाश्ते पर जा रहे हैं वो भी बताया|

“मतलब की इस रविवार का आप अपना प्रोमिस नहीं निभाएंगे राईट? यु नो बड़े भाई? मुझे यहाँ... गले तक विश्वास था की आप कुछ ना कुछ झोल ज़रूर डालेंगे|” अक्षय के चहेरे पर निराशा और फरियाद दोनों थे|

“और मुझे भी पता था की जैसे ही मैं रविवार की बात तुझसे करूंगा, तू रोने लगेगा|” शांतनु आँख मार कर हंसने लगा|

“बस ना? भाभी करीब आने लगी इस लिए हमारी फ़िरकी लेना शुरू!” अपना मूड सुधारते हुए अक्षय बोला और हंसा|

“नहीं यार... इस रविवार को नहीं तो अगले रविवार को, आई प्रोमिस| मैं इस बात का निर्णय बहुत ही जल्द लाने वाला हूँ|” शांतनु ने अक्षय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा|

“ओक्के, तो मैं भी सिरु को तभी प्रपोज़ करूंगा जिस दिन आप अनुभाभी को प्रपोज़ करेंगे और आप मुझे ज़रा सा भी फ़ोर्स नहीं करेंगे, क्यूंकि मैंने डिसाइड कर लिया है की मैं आपके बाद ही प्रपोज़ करूंगा, शादी भी आपके बाद ही करूंगा और मेरे घर पहला बच्चा भी आपके घर बच्चा आने के बाद ही आयेगा, नाओ यु प्रोमिस मी|” अक्षय ने बड़ी कठिन शर्त शांतनु के सामने रखी|

“तू बहुत लंबा सोचता है यार...” शांतनु हंसते हुए बोला|

“नहीं मैं एकदम विश्वास के साथ बोल रहा हूँ| मेरी बात याद रखियेगा बहुत जल्दी ही अनुभाभी आपके जीवन का एक खास हिस्सा बन जायेंगी|” अक्षय ने शांतनु से कहा|

“तथास्तु|” शांतनु ने छोटा सा उत्तर दिया और दोनों चाय और बन मस्का खत्म कर अपनी ऑफ़िस चले गये|

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ऑफ़िस पहुँचते ही शांतनु ने अपना इनबोक्स खोला और अनुश्री का कल रात वाला मेइल पढ़ा, उसके आनंद की कोई सीमा न रही| अचानक ही शांतनु को अपना प्रोमिस याद आया और उसने अपने लेपटॉप से अपने मनपसन्द पांच गाने पसंद किये और अनुश्री को मेइल कर दिये

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आज और रविवार के बीच तिन दिन और थे, इन तिन दिनों में शांतनु और अनुश्री ऑफ़िस पर हर रोज़ मिले और वोट्स अप पर भी देर रात तक एक दूसरे से चैट करते रहे| और आख़िरकार रविवार भी आ गया, शांतनु सुबह से ही शाम होने का इन्तज़ार करने लगा| धीरे धीरे शाम भी हो गई और शांतनु और ज्वलंतभाई पिछले दिन तय किये हुए समय पर अनुश्री के घर पहुंचे...

अनुश्री के मम्मा और सुवास ने ज्वलंतभाई और शांतनु का उस दिन अनुश्री को संभाल लेने के लिये दिल से उनका धन्यवाद किया तो ज्वलंतभाई और शांतनु ने भी उन्हों ने जो किया वो उनका फर्ज़ बताया|

अनुश्री तो जैसे ज्वलंतभाई को सालों से जानती हो वैसे उनकी बगल में बैठ गयी और उनके बारे में उनके घर के बारे में अपने मम्मा और सुवास को बताने लगी| बीचबीच में अनुश्री और ज्वलंतभाई शांतनु की खिल्ली भी उड़ा लेते थे पर शांतनु को इस से ज़रा सा भी गुस्सा नहीं आ रहा था, बल्कि उसे लग रहा था की अगर अनुश्री और ज्वलंतभाई एक दूसरे के इतने करीब आयेंगे और भविष्य में अनुश्री अगर उसके प्यार के प्रपोज़ल को मान लेती है तो शादी के लिये ज्वलंतभाई की मंज़ूरी लेने में उसे आसानी होगी|

शांतनु को सरप्राइज तो तब मिला जब नाश्ते में अनुश्री ने गरमागरम सेव-उसल परोसा| इतने महीनों में अनुश्री को शांतनु की खाने पिने की च्वाइस का सही पता लग चुका था और शांतनु को बहुत अच्छा लगा की अनुश्री ने उसकी सबसे पसंदीदा डिश आज ख़ास उसके लिए बनाई है|

“यु नो शांतनु? नाश्ते में भिंडी की सब्ज़ी सूट नहीं होती वरना मैं तो वही बनाती|” अनुश्री ने सेव उसल की डिश शांतनु को देते हुए उसको चिढ़ाया| जवाब में शांतनु सिर्फ़ मुस्कुराया|

“क्यूँ बेटा? तुम्हें भिंडी की सब्ज़ी पसंद नहीं है?” अनुश्री के मम्मा ने शांतनु से पूछा|

“नहीं, थोड़े दिनों पहेले तक तो अच्छी नहीं लगती थी पर पता नहीं उस दिन अनुश्री ने क्या जादू किया की अब उसे भिंडी की सब्ज़ी बहुत अच्छी लगने लगी है, ठीक कह रहा हूँ ना शांतनु?” ज्वलंतभाई अनुश्री के सामने हंसते हुए बोले और अनुश्री भी खिलखिलाते हुए हंस पड़ी|

शांतनु की हालत पतली थी पर उसने सिर्फ़ चुप रह कर मुस्कुराना ही पसंद किया|

“आप इस तरह बेचारे को मत चिढाओ, और अनुश्री तुम भी? तुम्हें शांतनु को पूछ कर सब्ज़ी बनानी थी ना?” अनुश्री की मम्मा ने शांतनु की साइड ली और शांतनु को तुरंत ही धरित्रीबेन की याद आ गई|

“अरे, पर मम्मा घर में और कोई सब्ज़ी थी ही नहीं, पूछिये अंकल को, है ना अंकल?” अनुश्री अपने बचाव में बोली और ज्वलंतभाईने भी सर हिला कर हां भरी|

“नहीं नहीं आंटी जी, सब्ज़ी सचमुच अच्छी थी, उस दिन अनुश्री ने वाकई बहुत अच्छी रसोई बनाई थी|” आख़िरकार शांतनु बोला|

“तो फ़िर?” अनुश्री ने अपने बगैर कोलर के ड्रेस पर काल्पनिक कोलर को उपर उठा कर कहा और सब के चेहरे पर मुस्कान आ गई|

नाश्ता कर और थोड़ी देर और बातें कर के ज्वलंतभाई ने अनुश्री के मम्मा और सुवास से घर जाने की इजाज़त मांगी और अपने घर आने का निमंत्रण भी दिया जो तीनो ने सहर्ष स्वीकार किया| वैसे अनुश्री को ज्वलंतभाई ने कभी भी घर पर आ धमकने को कहा जिसे अनुश्री ने तुरंत मान लिया| यह सब हो रहा था तब शांतनु के चहेरे पर मुस्कान थी, उसे यह सब बहुत अच्छा लग रहा था|

फ़िर शांतनु और ज्वलंत भाई ‘आवजो’ कह कर वहां से निकले|

अनुश्री के घर से अपने घर जाते समय बाइक चलाते हुए शांतनु बस यही सोच रहा था की उसका विचार तो अनुश्री के साथ की दोस्ती से भी आगे बढ़ने का है, पर वो योग्य समय पर ही योग्य निर्णय करेगा और उसे यकीन था की ज्वलंतभाई भी जब शांतनु उनके सामने अनुश्री को अपनी भावी जीवनसाथी के रूप में प्रस्तुत करेगा तब वो तुरंत ही उसे स्वीकार कर लेंगे|

“अनुश्री बहुत अच्छी लड़की है, है ना शांतनु?” पीछे बैठे ज्वलंतभाई ने शांतनु का ध्यानभंग करते हुए कहा|

“जी पप्पा|” शांतनु और तो क्या कहेगा?

“आप उनका सदा ख्याल रखना शांतनु| दोस्ती होने को तो हो जाती है पर उसको टिका कर रखना बहुत मुश्किल होता है, और अनुश्री तो लड़की है इस लिए दोस्ती का हर फर्ज़ निभाने के साथ उसकी सुरक्षा का ख्याल भी आपको सदा रखना होगा|” ज्वलंतभाई बोले|

“हाँ पप्पा, मैं ठीक वैसा ही करूंगा, आप फ़िक्र मत कीजिये|” बाइक चलाते हुए शांतनु ने अपना बायाँ हाथ पीछे कर ज्वलंतभाई का हाथ हल्के से दबाया|

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शांतनु और अनुश्री अब हररोज़ अपनी ऑफ़िस के सामनेवाले कोम्प्लेक्स में एक रेस्तरां में एक साथ लंच करने लगे थे और उनकी बातें तो कभी कम ही नहीं होती थी, ओन लाइन और ऑफ़ लाइन भी| शांतनु और अनुश्री वोट्स अप पर गुड मोर्निंग से अपना दिन शुरू करते और गुड नाईट पर खत्म| इस के उपरांत भी दोनों एक दूसरे से सारा दिन चैट करते रहते थे|

शांतनु को अब एक नई आदत लगी थी| जब भी दोनों साथ होते और अनुश्री का ध्यान कहीं और रहता तब शांतनु अनुश्री की अलग अलग अदाओं को अपने मोबाईल के कैमरे से कैद कर लेता और उसे अपने मोबाइल के ‘पर्सनल’ फ़ोल्डर में सेव कर लेता| हर रात सोने से पहेले शांतनु इस फ़ोल्डर में सेव की गई अनुश्री की सारी तस्वीरों को एक बार देखे बगैर सोता नहीं था|

मतलब की अब शांतनु को अनुश्री की लत लग गई थी|

इस तरफ अक्षय भी सीरतदिप के साथ काफ़ी अटैच हो चुका था पर वो शांतनु के अनुश्री को प्रपोज़ करने का इंतज़ार कर रहा था| बारिश वाले दिन के तुरंत बाद शांतनु जिस तरह अनुश्री को प्रपोज़ करने के लिये आत्मविश्वास से भरपूर था वो आत्मविश्वास उसकी और अनुश्री के बढ़ते मेलमिलाप से दिन ब दिन घट रहा था| जब भी अक्षय शांतनु को प्रपोज़ करने की बात याद दिलाता शांतनु या तो उसे टाल देता या फ़िर उसकी और अनुश्री की दोस्ती एक झटके में टूट जायेगी ऐसा बता कर उसे एक और प्रोमिस दे देता|

ऐसा करते करते एक महिना और बीत गया...

एक रविवार की सुबह भी शांतनु और अनुश्रीने साथ में लंच करने का निर्णय लिया| सितम्बर के दिनों में वैसे तो बारिश कम ही होती है, पर उस दिन जब लंच के लिए फ़िक्स की गई रेस्तरां पर शांतनु अनुश्री से पहले पहुँच गया की अचानक ही बारिश शुरू हो गई| शांतनु ने अनुश्री को कोल किया पर उसने उठाया ही नहीं|

“शायद अचानक से बारिश गिरने लगी इस लिए कहीं फंस गई होगी|” ऐसा शांतनु सोच ही रहा था की उसने अनुश्री को सामने से अपनी स्कूटी पर आते हुए देखा, वो पूरी तरह भीग गई थी|

उस दिन जब जबरदस्त बारिश में शांतनु अनुश्री को अपने घर ले गया था तब तो बारिश का सीज़न ज़ोरों पर था, इस लिए दोनों अपने साथ रेनकोट रखे हुए थे, पर इन दिनों बारिश ना के बराबर होने से दोनों में से कोई भी अपना रेनकोट अपने साथ नहीं रखते थे और इसीलिए शांतनु ने देखा की अचानक पधार चुकी बारिश में अनुश्री शायद कुछ इस तरह फंस गई थी की वो अपनी स्कूटी साइड में ले कर किसी पेड़ के निचे खड़ी भी नहीं रह पाई और वो सर से पैरों तक नहा चुकी थी| रेस्तरां के पार्किंग में अनुश्री ने जैसे ही अपनी स्कूटी पार्क की, की बारिश कम होने लगी और फ़िर बंद भी हो गई|

“हाई!” अपना हेल्मेट डिग्गी में रख कर पार्किंग से चलते हुए अनुश्री शांतनु के सामने संपूर्ण भीगे हुए वस्त्रों में चली आई|

“हाई!” शांतनु ने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया|

“देखो ना शांतु, यह बारिश भी कैसी है? मैं अगले मोड़ पर ही थी और टूट पड़ी और जैसे ही यहाँ पहुचीं की बंद हो गई| और ज़रा उस तरफ़ देखो धुप निकल रही है...” अनुश्री अपनी आदत अनुसार बगैर रुके बोल रही थी और शांतनु भी अपनी आदत अनुसार उसको लगातार देखते हुए सस्मित सुन रहा था|

“लीजिये, इस से अपना चेहरा साफ़ कर लीजिये, सोरी, यहाँ टॉवेल तो नहीं मिल सकता|” शांतनु ने अनुश्री की खिंचाई करते हुए अपना रुमाल उसकी ओर बढ़ाया|

“वेरी स्मार्ट ऑफ़ यु शांतु, चल उपर चलें? मुझे बड़ी भूख लगी है यार|” अनुश्री शांतनु के मज़ाक को समझ गई और अपने चेहरे को साफ़ करते हुए बोली|

“थोड़ी देर यहीं रुकते हैं ना? आपकी हालत तो देखिये? उपर रेस्तरां में एसी फूल स्विंग में चल्र रहा होगा| अभी धुप आएगी, थोडा सूख जाइए नहीं तो सर्दी लग जायेगी|” शांतनु ने अनुश्री को सलाह देते हुए कहा|

“नहीं यार, उपर ही जाते हैं और फटाफट पहले गरमागरम सूप मंगवा लेते हैं, मुझे कुछ नहीं होगा तू मेरी इतनी फ़िक्र मत किया कर|” अनुश्री ने आंख मारते हुए कहा|

“महारानी ऑफ़ अहमदाबाद का हुक्म सर आखों पर|” शांतनु ने हंस कर कहा, अब वो अनुश्री के लिए ऐसे विशेषणों का उपयोग कर लेता था|

दोनों उपर रेस्तरां में गये और एक टेबल पर आमने सामने बैठे| शांतनु ने जैसा कहा था रेस्तरां का एसी एकदम ज़ोरों से चल रहा था और कुछ ही पल में पूरी तरह भीगी हुई अनुश्री थरथर कांपने लगी| शांतनु ने तुरंत ही दो टोमेटो सूप का ऑर्डर दे दिया और बाकी का ऑर्डर डिसाइड करने का काम अनुश्री को दे दिया|

जैसे ही वेटर सूप का ऑर्डर ले कर गया और अनुश्री ने मेन्यु कार्ड हाथ में लिया शांतनु ने फ़िर से अनुश्री को निहारना शुरू किया| अनुश्री ने आज लाईट पिंक रंग का लखनवी कुर्ता पहना था और बारिश में भरपूर भीगने के कारण वो उसके शरीर से एकदम चिपक गया था| अनुश्री को निहारते निहारते अचानक ही शांतनु का ध्यान वहां गया जहाँ तक शायद उसे नहीं पहुंचना चाहिए था...

क्रमशः