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शांतनु - १०

शांतनु

लेखक: सिद्धार्थ छाया

(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)

दस

चारों जोड़ीयों में ही सीड़ियाँ चढ़ रहे थे, मतलब शांतनु और अनुश्री और सीरतदिप और अक्षय| सबसे पहले अक्षय दरवाज़े पर पहुंचा और उसने दरवाज़ा खोल कर दोनों ‘लेडीज़’ को अंदर आने का आदर पूर्ण इशारा किया| यह देख कर शांतनु को लगा की उसे अभी भी अक्षय के पास बहुत कुछ सीखना बाकी है|

अंदर जाते ही रेस्तरां के फ्लोर मेनेजर ने कितने लोग है वगैरह की पुछताज की और उन चारों को ‘व्यु साइड’ टेबल दिया, जहाँ से बहार का नज़ारा दिख रहा था| टेबल की एक ओर अनुश्री और सीरतदिप बैठे और उनके ठीक सामने शांतनु और अक्षय भी बैठे|

अनुश्री इतनी सुंदर लग रही थी की रेस्तरां के अंदर आने के बाद से ही वहां बैठे कई पुरुषों की नजरें उस पर टिक गई थी जो शांतनु ने भी देखा, और उसको हल्की सी जलन होने लगी| पर शांतनु कुछ नहीं कर सकता था, अनुश्री आज सचमुच बहुत ही सुंदर लग रही थी और लोगों का उस पर ध्यान खिंचना स्वाभाविक था|

“बातें शुरू करने से पहले ऑर्डर डिसाइड कर दें?” अक्षय बोला|

“हाँ वही ठीक रहेगा, फ़िर आराम से बात करेंगे|” सीरतदिप ने अक्षय के सुर में सुर मिलाया|

“ग्रेट, तो फ़िर सूप?” अक्षय ने बाकी के तीन इंसानों की ओर देखा|

“वेजिटेबल!” शांतनु और अनुश्री दोनों एक साथ बोले और फ़िर एक दुसरे की ओर देख कर हंस पड़े|

“क्या बात है|” अक्षय ने शांतनु को आंख मारी, पर शांतनु ने उसे इग्नोर किया, जानबूझ कर|

“सब्ज़ी सिर्फ़ दो ही ऑर्डर करते हैं, बट आप दोनों की चोइस पर|” अनुश्री बोली|

“नो नो, लेडीज़ फ़र्स्ट| ताकी हमें भी आप दोनों की चोइस का पता चले भई|” अक्षय इस बार सीरतदिप की ओर देख रहा था|

“फेयर इनफ, तो एक सब्जी में पसंद करूंगी और दूसरी अनु|” सीरतदिप बोली|

“हमम.. ये ठीक रहेगा|” अब शांतनु भी मैदान में आया, दोनों की सूप की पसंद एक ही है वो पता चलने के बाद अब उसे अनुश्री की सब्ज़ी की चोइस जाननी थी|

“मैं किसी भी रेस्तरां में जब पहली बार जाती हूँ तो वहां की स्पेशियल सब्ज़ी ज़रूर ट्राय करती हूँ, सो इफ़ यु गाय्ज़ डोन्ट माइंड, क्या हम डिनर चीम स्पेशियल सब्ज़ी ऑर्डर करें?” सीरतदिप मेन्यु देख कर बोल रही थी|”

“क्यूँ नहीं? वहीँ मंगवाते हैं|” और कोई बोले उससे पहले अक्षय ने सीरतदिप की पसंद को एक्सेप्ट कर ली|

“सिरु, तुझे तीखा पसंद है, पर मुझे उतना नहीं अगर यह डिश तीखी हुई तो? और इन दोनों में से किसी को तीखा पसंद न हो तो?” अनुश्री ने भी मेन्यु में देख कर अपनी आँखों के सामने आयी लट को अपने कान के पीछे छीपाते हुए कहा|

“तो आप अपनी चोइस की सबज़ी कम तीखी वाली ऑर्डर कीजिये|” शांतनु ने अनुश्री की ओर देखते हुए कहा, वैसे उसका ध्यान अनुश्री से हट ही नहीं रहा था|

“हाँ वो सही रहेगा, भाई का पॉइंट एक दम ठीक है| बेलेन्स हो जायेगा ना? वैसे मैं तो तीखा खा सकता हूँ|” शांतनु को समर्थन देते हुए अब अक्षय ने सीरतदिप की ओर दाने डाले|

“ओक्के, तो फ़िर डिनर चीम स्पेशियल, मेरी फ़ाइनल चोइस|” सीरतदिप ने अपनी चोइस कह दी|

अब बारी अनुश्री की थी, वो लगातार मेन्यु के पन्ने आगे पीछे कर रही थी और साथ साथ अपनी लट को भी ठीक कर रही थी| शांतनु अनुश्री की चोइस जानने के लिये उतावला हो रहा था, पर अनुश्री की यह अदा उसको घायल कर रही थी और वो अनुश्री की ओर और भी आकर्षित हो रहा था|

“नवरत्न कोरमा, मेरी चोइस, सोरी थोड़ी मीठी डिश पसंद की है, पर अगर दूसरी सब्ज़ी तीखी हो तो मीठी डिश अच्छा बेलेन्स बिठा देती है, और मुझे तो नवरत्न कोरमा बेहद पसंद है|” अनुश्री ने शांतनु की ओर देखा|

शांतनु भोंचक्का रह गया, क्यूंकि नवरत्न कोरमा शांतनु की सबसे पसंदीदा डिश थी और वो जब कहीं बहार खाने जाता तो वो नवरत्न कोरमा बगैर भूले मंगवाता| अक्षय को भी इस हक़ीकत का पता था इस लिये वो भी आश्चर्यचकित हो कर शांतनु की ओर देखने लगा|

“क्या यार अनु, तू हर बार ये एक ही डिश मंगवाती है, वेरी बोरिंग हां!” सीरतदिप ने थोड़े गुस्से से कहा|

“ना ना ना... इट्स फाइन, मुझे भी नवरत्न कोरमा बहुत पसंद है, तो वही मंगवाते हैं|” सीरतदिप का विरोध देख कर अनुश्री उसकी और शांतनु की मनपसन्द डिश ऑर्डर करने का आइडिया ड्रॉप न कर दे इस लिये शांतनु ने तुरंत ही अपनी हाँ भी भर दी|

“हाँ भई, मीठे लोगों को मीठा खाना ही पसंद होता है|” अक्षय शांतनु की ओर देख कर मंद मंद मुस्कराया|

दूसरी और अनुश्री को भी शांतनु की अपनी चोइस में हाँ भरनी अच्छी लगी हो ऐसा लगा और वो भी शांतनु की ओर देख कर मुस्करायी|

“ठीक है, सब्ज़ी तो हो गई, बाकी दाल तड़का?” अक्षय ने फ़िरसे तीनो को पूछा और तीनो ने अपने अपने सर हिलाये|

“रोटी, नान या परोंठे?” शांतनु ने पूछा|

“में प्लेन रोटी लूंगी|” अनुश्री बोली

“मैं नान लूंगी|” सीरतदिप ने अपनी पसंद कही|

“मैं भी नान|” अक्षय शांतनु की ओर हंस कर बोला|

“मैं भी प्लेन रोटी|” बटर रोटी खाने के शौक़ीन शांतनु ने जानबूझ कर अनुश्री की चोइस को एक बार और रिपीट किया|

शांतनु की परछाई जैसे अक्षय को तुंरत यह फ़र्क समझ में आ गया और उसने फ़िरसे शांतनु की ओर देख कर मस्ती से आंख मारी| शांतनु ने उसे देखा पर अवॉयड किया... फ़िरसे...

शांतनु ने सब की चोइस याद रख कर फ्लोर मेनेजर को ऑर्डर दिया और अपनी ओर से चार मसाला पापड़ और अंत में चार छांछ का ऑर्डर भी एड कर दिया|

“ग्रेट, आपने मसाला पापड़ और छांछ मंगवाई वो अच्छा किया शांतनु, मैं मँगवाने वाली ही थी|” अनुश्री ने शांतनु की तरफ़ देख कर कहा|

शांतनु को अनुश्री के मुंह से कहा गया अपना नाम बहुत ही अच्छा लगा और उस पर उसने ‘आप’ कहा वो सुन कर तो वो अत्यंत खुश हो गया, पर उसको यह ध्यान भी था की उसे इस ख़ुशी को अपने चहरे पर नहीं दिखानी थी इस लिये उसने अनुश्री की ओर सिर्फ़ स्माइल दिया|

ऑर्डर तो दे दिया अब जब तक खाना परोसा नहीं जायेगा तब तक तो इंतजार करना ही था| अक्षय को लगा की शांतनु तो अपनी तरफ़ से बात शुरू नहीं करेगा इस लिये उसीने सीरतदिप की तरफ़ देख कर बात शुरू की...

“तो बताइए आप के घर में कौन कौन हैं? अक्षय ने बात शुरू की|

“मम्मी है, मुझसे छोटा एक भाई है और में|” सीरतदिप ने जवाब दिया|

“और आपके?” अनुश्री को सवाल करते हुए अक्षय ने पहेले उसकी ओर देखा और फ़िर शांतनु की ओर|

“मैं, मम्मा और भाई, मुझसे बड़े हैं|” अनुश्री ने कहा|

“मेरे घर में पापा, हैं, मम्मी है, दो बहने हैं| एक बहन की शादी दो साल पहले ही हो गयी थी और दूसरी बहन की शादी इस साल दिसम्बर मैं है, और हाँ मैं भी अपने घर में रहता हूँ|” अक्षय के आखरी वाक्य पर सभी हंस पड़े|

“व्होट अबाउट यु शांतनु?” अनुश्री ने फ़िर से शांतनु का नाम लिया|

“बस मैं और पप्पा, हम दोनों|” शांतनु ने जवाब दिया और फ़िर मन भर के अनुश्री को देख लिया|

तभी वेइटर सबकी चोइस अनुसार सूप और मसाला पापड़ परोस गया|

“मुझे एक बात आज तक समझ में नहीं आयी की हम मसाला पापड़ सूप के साथ ही क्यूँ मंगवाते हैं? आई मीन पापड़ तो मेइन कोर्स की आइटम नहीं है?” अक्षय ने फ़िरसे चर्चा का दौर शुरू किया|

“अब उसमें क्या ख़ास है? पहले से ही ऐसा है, और जब रेस्तरां वाले ऑर्डर लेते हैं तब वो भी हमें यही पूछते हैं ना की सूप के साथ मसाला पापड़ चाहिये?” सीरतदिप के पास कोई ख़ास दलील नहीं थी|

“खास तो है मैडम, कोई भी प्रथा अपने आप तो शुरू नहीं होती ना? उसके पीछे कोई न कोई लोजिक ज़रूर होता है|” सीरतदिप के जवाब के बाद अक्षय ने चर्चा को मरने नहीं दिया|

“मेरे ख्याल से सूप के साथ पापड़ का स्वाद अच्छा लगता है इस लिये?” अनुश्री ने सूप पीते हुए अक्षय की ओर देख अपना मत ज़ाहिर किया|

“देखिये, सूप के साथ पापड़ खाने से पेट करीब करीब दस-बीस प्रतिशत भर जाता है, इस लिये पहले से ऑर्डर देनेवाला व्यक्ति भी कम ही खाता है और एक बार इस सत्य का पता चलते ही वो अगली बार कम खाना ऑर्डर देता है, पर अंत में होटल या रेस्तरां वाले का ही फ़ायदा है|” रह रह कर शांतनु की बोलने की बारी आयी|

“ह्म्म... आई थिंक शांतनु, यु गोट अ पॉइंट| मुझे भी ऐसा ही लग रहा है, पापड़ चीज़ ही ऐसी है की हम उसे देख कर ही टूट पड़ते हैं और कुछ लोग तो ऐसे होते हैं की एक मसाला पापड़ खाने के बाद दो-तीन और मंगवा लेते हैं|” शांतनु के मत के साथ अनुश्री फ़िर से सहमत हुई उसका आनंद तो उसको था ही पर वो अब बार बार उसका नाम ले रही थी ये सुन कर शांतनु को विशेष आनंद हो रहा था|

“राईट अनुश्री, अब देखिये जब हम फ़िक्स्ड लंच या थाली मंगवाते हैं तो उसमें मसाला पापड़ नहीं होते, क्यूंकि उसमें इन को पैसे गंवाने पड़ते हैं| शांतनु ने अपनी दलील को और भी मज़बूत किया, अब वो अनुश्री के साथ बात करने में और भी खुल रहा था|

“वाह! ग्रेट माइंड्स थिंक अलाइक, राईट अनुश्री मेम? शांतनु भाई?” अक्षय ने मौका देख अनुश्री को मख्खन लगाया|

“अरे! यह मेम या मैडम क्या है? हम सिर्फ़ अनुश्री और सीरतदिप हैं, है ना सिरु?” अनुश्री बोली और सीरतदिप ने अपना सर हिलाया|

“ओके, ओके, ओके... अब से हम दोनों आपको आपके नाम से ही बुलाएँगे, पॉइंट नोटेड|” अक्षय ने हंसते हंसते कहा|

ऐसे ही हंसते और बातें करते उस शाम का अंत हुआ|

शांतनु के लिये आज की शाम उसकी ज़िन्दगी की सबसे यादगार शामों में से एक लगी, पर उसके आने वाले जीवन की यह आखरी यादगार शाम नहीं थी, इसके जैसी या इससे भी यादगार शाम उसकी ज़िन्दगी में आनी बाकी थी|

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शांतनु और अनुश्री अब रविवार या छुट्टी के दिनों के अलावा अपनी ऑफ़िस के बिल्डिंग में रोज़ मिलने लगे| एस एम् एस से भी अब दोनों की दोस्ती मज़बूत हो रही थी और अनुश्री को किसी बात पर अगर सलाह लेनी हो या किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो वो सीधा ही शांतनु को कोल कर देती थी या फ़िर ऑफ़िस के पैसेज में उसको बुला लेती थी|

अनुश्री को शांतनु में एक मेच्योर और इंटेलिजेंट लड़का दिख रहा था और उसकी सोच बिलकुल ग़लत नहीं थी| कई बार तो वो अगर समय हो तो ऑफ़िस के सामनेवाले कैफे में साथ में कॉफ़ी पीने भी चले जाते| लडकियों के मामले में शांतनु शर्मिला ज़रूर था पर तब तक जब तक उस लड़की के साथ उसकी पूरी जान पहचान नहीं हो जाती थी, और उसके पास सामान्य ज्ञान और दुनियादारी का भंडार था इस लिये सिर्फ़ अनुश्री ही नहीं कोई भी उसके ज्ञान के भंडार से मदद ले सकता था|

थोडा समय और बीता और अब शांतनु और अनुश्री के बीच ‘दोस्ती’ का यह संबंध और भी गहरा रंग पकड़ चुका था| इस तरफ़ अक्षय भी सीरतदिप के लिये सिरियस हो गया था और सीरतदिप अक्षय की तरफ़ आकर्षित हुई है ऐसा शांतनु और अनुश्री दोनों को लग रहा था| पर अक्षय का मानना था की सीरतदिप के सामने अपने प्यार का इज़हार करने में अभी उसको थोडा वक्त चाहिये था|

अक्षय को अपने जीवन में आये इस हकारात्मक परिवर्तन का लाभ अपने काम में भी होने लगा, और अब वो शांतनु की मदद के बगैर भी बड़ी बड़ी पालिसी क्लोज़ करने लगा था और उसमें से बचाया हुआ समय वो सीरतदिप के साथ कुछ पल गुज़ार कर खर्च करता था|

ऐसा करते करते दो महीने और बीत गये| शुरू में जिस तेज़ गति से शांतनु और अनुश्री मिले और मिलने के सिर्फ़ अड़तालीस घंटो में दोनों में जिस तरह पक्की जान पहचान हो गयी थी उस हिसाब से अक्षय का मानना था की शांतनु की प्रेमकहानी की आगे बढ़ने की गति कम हो गयी है|

अक्षय को लग रहा था की शांतनु अब अनुश्री की दोस्ती से कुछ ज्यादा ही संतुष्ट हो गया है और अपना लक्ष्य जो अनुश्री को अपने प्यार के रंग में रंगने का था उसको भूल रहा है| अक्षय के मत अनुसार उन दोनों की दोस्ती को अगर अब आगे बढ़ाना है तो दोनों के परिवारों में भी इन दोनों की पहचान होनी ज़रूरी थी|

अगर शांतनु और अनुश्री का प्यार परवान चड़ता है और बात कभी शादी तक पहुँचती है तो अक्षय जानता था की ज्वलंतभाई तो हंसीखुशी दोनों को आशीर्वाद दे देंगे, पर अनुश्री के घर में शांतनु की पहचान और पहुँच बढ़े वो ज़रूरी था ताकी वहां कोई तकलीफ़ न हो| इतने दिन हो गये पर दोनों ने अपने परिवार में कौन कौन है उससे ज्यादा उनके बारे में और ज्यादा कुछ शेयर नहीं किया था|

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शांतनु को भी अनुश्री के परिवार के बारे में ज़्यादा जानकारी चाहिये थी और इसीलिये एक रविवार की सुबह शांतनु और अक्षय आई आई एम् अहमदाबाद की प्रसिध्ध ‘चाय की किटली’ पर मिले|

“तो फ़िर? भाभी के घर जाते हैं| वे सूर्य संजय में रहते हैं वो तो हमे पता ही है?” अक्षय ने चाय का घूंट अंदर डालते हुए कहा|

“ऐसे कैसे जा सकते हैं अक्षु? आई मीन कोई बहाना तो होना चाहिये ना?” शांतनु ने वाज़िब सवाल किया|

“इसीलिये तो आपको ऑफ़िस वाले कपड़ों में बुलाया है| हमें बस भाभी के घर जाना है और कहना है की हम सामने हमारे क्लायंट प्यारेलाल के यहाँ आये थे तो सोचा आपसे मिलते चलें!” अक्षय ने अपना प्लान बताया|

“हां, क्यूंकि मेरे बड़े भैया को अब हररोज़ की मुलाकातों से भी पेट नहीं भरता और रविवार को भी आपसे मिले बगैर उन्हें नींद नहीं आती, साथ साथ वो भी बता देना ठीक है? संडे को कौन सा ऑफ़िस खुला रहता है बे?” शांतनु ने अक्षय के आइडिया की धज्जियां उड़ा दी|

“पॉइंट!” अक्षय ने शांतनु की दलील को स्विकार कर लिया और दूसरा कोई आइडिया सोचने लगा|

“देखो हम, उतना तो बता सकते हैं ना की क्लायंट ने इम्पोर्टेंट पालिसी होने के कारण आज हमें उसने ख़ुद बुलाया था और वहीँ मुझे यानी की अक्षय को पेट में अचानक से दर्द शुरू हो गया और हमें याद आया की यहीं कहीं आपका घर है और आज दुकाने भी बंद है इस लिये... बस ऐसा कह कर हम उनके पास से पेट दर्द की दवाई ले लेंगे और फ़िर बातों बातों में उनके घरवालों का स्वभाव भी जान लेंगे| कुछ नहीं तो तेल की धार ही नाप लेंगे?” थोड़ी देर सोचने के बाद अक्षय के शैतानी दिमाग में ज़बरदस्त आइडिया आया|

“हां ये हो सकता है... पर तुझे क्यों? मुझे पेट दर्द नहीं हो सकता?” शांतनु ने सवाल किया|

“भाईसाहब, अगर आपका पेट दुखेगा तो भाभी से बात कौन करेगा?” अक्षय की दलील शांतनु के गले में फटाक से उतर गयी|

“तो चलें?” शांतनु ने अक्षय की ओर देख कर कहा|

“शुभस्य शीघ्रम” अक्षय ने चायवाले को पैसे दिये, अपनी हेलमेट पहनी और बाइक को किक मारी| शांतनु अक्षय के पीछे बैठ गया|

“तेरी याद आती है, मेरा पेट दुखाती है...” शांतनु ने एक हिंदी फ़िल्म के गाने की पैरोडी की और दोनों हंस पड़े|

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करीब बीस मिनट में दोनों बोपल के ‘सूर्य संजय हाइट्स’ नामक अतिधनिक वर्ग के लोगों के लिये बने रो-हाउस के बड़े से दरवाज़े के सन्मुख खड़े थे| वोचमेन की केबिन ख़ाली थी, पर बाद में कोई तकलीफ न हो इस लिये शांतनु ने अक्षय को पांच मिनिट वोचमेन की राह देखने की सलाह दी| पर जब दस मिनट तक वोचमेन नहीं दिखा तो फ़िर अक्षय ने बाइक फ़िरसे स्टार्ट की और रो हाउस में दाखिल हुए|

रो हॉउस का एक मेइन रोड़ था और उस से जुड़े पांच छोटे छोटे रास्ते थे और हर रास्ते की दोनों ओर दस दस लक्ज़ुरिय्स बंग्लोज़ थे|

“भाई, में वन बाय वन एक एक गली में मैं बाइक लूँगा और एकदम धीरे से चलाऊंगा, जब तक भाभी की कोई झलक न दिखे या कोई एक्स..वाय ज़ेड मेहता के नाम की नेइम प्लेट न दिखे तब तक लेफ़्ट राइट दोनों ओर ध्यान से देखते रहिये, और ज़रा सा भी डाउट हो तो मुझे बता देना में बाइक खड़ी कर दूंगा, हमें किसी को भाभी का नाम पूछ कर उनका घर नहीं ढूंढना ओके?” अक्षय ने प्लान समझाया|

“ह्म्म...” शांतनु ने सिर्फ़ इतना सा ही जवाब दिया, उसकी नज़रें अभी से पहले रस्ते के आखरी घर तक अनुश्री को ढूँढने लगी थी|

अक्षय ने बाइक चलाना शुरू किया, पहले रास्ते में घूम लिया पर अनुश्री का कोई पता नहीं चला, वैसा ही दूसरे, तीसरे और चौथे रस्ते पर भी यही हाल हुआ| पांचवे रस्ते की बायीं और आखरी घर तक भी अनुश्री नहीं दिखी और ना ही किसी घर के बहार किसी मेहता का नेइम प्लेट दिखा, पर अभी दाहिनी ओर के दस मकान देखने बाकी था इस लिये शांतनु अभी तक निराश नहीं हुआ था|

अचानक जैसे ही अक्षय ने यु टर्न लिया और ठीक सामनेवाले घर पर जैसे ही शांतनु की नज़र पड़ी उसने देखा की एक लड़की घर के बड़े से लोन पर लगे झूले पर बैठी है| वो कमर से झुकी हुयी है और टॉवेल से अपने बाल झटक रही थी| उसके खुले और गिले बालों ने उसके चहेरे को ढंक दिया था, पर शांतनुने उसे पहचान लिया...

शांतनु की नजरें उस लड़की पर ही स्थिर हो गयी|

क्रमशः

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