शांतनु
लेखक: सिद्धार्थ छाया
(मातृभारती पर प्रकाशित सबसे लोकप्रिय गुजराती उपन्यासों में से एक ‘शांतनु’ का हिन्दी रूपांतरण)
ग्यारह
“एक मिनिट...एक मिनिट...एक मिनिट|” शांतनु ने धीमी आवाज़ में अक्षय को बाइक रोकने को कहा और उसका कंधा ज़ोर से दबाया|
शांतनु का ध्यान उस रो हाउस के भव्य दरवाज़े पर पड़ा जिसकी एक ओर लिखा था ’91– सुवास मेहता’|
“लगता है, यही घर है| सुवास मेहता| शांतनु ने ‘मेहता’ शब्द पर भार रखा और इशारे से अपने बाल सुखा रही उस लड़की की ओर अक्षय का ध्यान खिंचा|
पांच सेंकंड उस लड़की को देखने के बाद अक्षय ने अपनी बाइक चलानी शुरू की और आगे बढ़ने लगा, शांतनु को आश्चर्य हुआ|
“बाइक वहीँ खड़ी रखनी थी ना?” शांतनु ने ज़रा गुस्से से अक्षय को कहा|
“सर जी, भाभी या उनके घर के किसी भी सदस्य को ज़रा सा भी डाउट नहीं होना चाहिये की हम उन्हें ढूंढ रहे है| एक और चक्कर मार कर ही जाते हैं| वो भाभी का घर है वो कन्फर्म ही है|” अक्षय ने कहा|
अक्षय बाइक को उस गली के कोने तक ले गया और फ़िर अनुश्री के घर से पहले वाली गली में उसको मोड़ा और फ़िर से अनुश्री के घर की गली में ले कर आया और इस बार उसने बाइक को अनुश्री के घर के दरवाज़े के बिलकुल सामने रखा|
तब तक अनुश्री अपने बाल सुखा चुकी थी और उन्हें अपने टॉवेल में बांध चुकी थी और जैसे ही अक्षय ने बाइक रोकी उसकी नज़र शांतनु पर पड़ी और शांतनु की अनुश्री पर| शांतनु और अक्षय को अपने घर के दरवाज़े पर देख अनुश्री आश्चर्यचकित हो गयी|
“हेय, वाओ! व्होट अ सरप्राइज? शांतनु...आप यहाँ?” अनुश्री के चेहरे के हावभाव उसकी ख़ुशी ही दिखा रहे थे|
सफ़ेद कुर्ता, लाल पैजामा और अपने थोड़े से गिले पर लंबे बालों को अपने सर के उपर टॉवेल से बांध अनुश्री किसी रुपसुन्दरी से कम नहीं लग रही थी| शांतनु को अनुश्री का यह अलग पर अतिशय सुंदर रूप भी बहुत भा गया पर अब उसने अपने आप पर कंट्रोल करना सीख लिया था|
“हाँ, थोड़ी इमरजेंसी थी|” शांतनु ने धीरे से कहा|
“अरे क्या हुआ? आर यु ओलराईट?” अनुश्री ने दौड़ कर दरवाज़ा खोला और कहा|
“हाँ मैं तो ओलराइट हूँ पर अक्षु को थोड़ा पेट दर्द है|” शांतनु ने सीधे पॉइंट पर आना ही ठीक समझा|
“ओह माय गॉड| आप दोनों अंदर आइये प्लीज़|” अनुश्री के चेहरे पर चिंता के हावभाव स्पष्ट दिख रहे थे|
अनुश्री ने अक्षय की ओर देखा और अक्षय भी किसी मंझे हुए कलाकार की तरह अपना पेट दबा कर दर्द भरे हावभाव दिखने लगा|
तीनो अनुश्री के घर की ओर चलने लगे| घर के मुख्य दरवाज़े के बहार रखे शु रैक में दोनों ने अपने अपने शूज़ पार्क किये| शांतनु ने अपने शूज़ अनुश्री के सेंडिल के बाजु में ही रखे| यह देख कर अक्षय को हंसी आयी पर परिस्थीती की गंभीरता को देख उसने अपनी हंसी दबा दी|
तीनो एक विशाल लिविंग रूम में दाखिल हुए| रूम के सारे साझो सामान एकदम महंगे दिख रहे थे| रूम की एक दीवार पर बड़ा सा एल सी डी टेलीविजन चिपका हुआ था और उस पर कोई म्युज़िक चैनल चल रहा था| उसके बराबर सामने एक बड़े से सोफ़े पर एक व्यक्ति अख़बार पढ़ रहा था जो चहेरे से अनुश्री का भाई लग रहा था| उस व्यक्ति ने रूम में चेहल पहल होने से अख़बार में से अपना चहेरा बहार निकाला हुआ था और अचानक से अपने घर पर आ धमके इन दो अनजान प्राणियों को बड़े ध्यान से देखने लगा|
“आप दोनों प्लीज़ यहाँ बैठ जाइये|” अनुश्री का चहेरा उसकी अक्षय के प्रति चिंता दर्शा रहा था| अनुश्री के चेहरे की सच्चाई देख कर थोड़ी देर के लिये शांतनु को भी अनुश्री को ऐसे मूर्ख बनाना अच्छा नहीं लगा, पर वो अपने प्यार के सामने मजबूर था|
“एक्च्युली हम सामने अपने क्लायंट को मिलने आये थे और वहीँ अक्षय को पेन शुरू हो गया| थोड़ा अनबेरेबल होने लगा तो हमनें आसपास किसी मेडिकल स्टोर की भी पूछताछ की पर नहीं मिला| सामने ही आपके रो हाउस का बोर्ड देखा और हमारी बात भी हुई थी की आप यहाँ रहती हो तो सोचा एक चान्स ले लेते हैं अगर आपके पास से कोई पेन किलर मिल जाये, तो इसको अच्छा फ़ील हो जाये और फ़िर मैं उसको घर छोड़ आऊ|” शांतनु ने पूरी कहानी एक ही साँस में कह डाली|
अक्षय बार बार जैसे की उसे बहुत दर्द हो रहा हो वैसे हावभाव दिखा रहा था| सोफ़े पर वैठे हुए उस व्यक्ति पर शांतनु की बात का कोई असर नहीं हुआ है ऐसा लग रहा था, हाँ उसने ध्यानपूर्वक उसकी सारी बातें ज़रूर सुनी|
“श्योर, मेरे पास पेट दर्द की दवाई है, अभी ले आती हूँ|” कह कर अनुश्री ने सोफ़े के पीछे दूर एक कमरे की और दौड़ लगायी|
थोड़ी देर बाद वो उस कमरे से बहार निकली और दूसरी ओर चल दी, फ़िर वहां से पानी का ग्लास और बड़ी सी सफ़ेद गोली ले कर अक्षय के पास आयी|
“ये लो अक्षय इस से आप को पांच मिनट में राहत हो जायेगी|” अनुश्री ने अक्षय को गोली और पानी का ग्लास देते हुए कहा|
अक्षय ने तुरंत ही गोली को अपने मुंह में डाला और दो तीन घूँट पानी के पी लिये और ग्लास अनुश्री को वापस दे दिया| अनुश्री ने वो ग्लास नज़दीक रखे टेबल पर रख शांतनु के पास वाले सोफ़े पर बैठ गयी|
“अक्षय, फ़र्क पड़े तब बोलना, हमें निकलना है|” शांतनु ने अक्षय से कहा|
“नो अक्षय, ज़रा भी जल्दबाजी मत करना, टेइक योर ओन टाईम| फ़िल एट होम ओके?” अनुश्री ने अक्षय को राहत देने की कोशिश की|
इस समग्र चर्चा के दौरान सामने बठे उस व्यक्ति के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला पर हाँ जैसे ही अक्षय ने गोली खाई उसने फ़िर से अपना मुंह अख़बार में घुसेड़ दिया|
“मैं आप लोगों की पहचान करवाती हूँ| सुवासभाई, ये मेरे मित्र शांतनु हैं और ये अक्षय है| दोनों मेरे ऑफ़िस के सामनेवाली इंश्योरेंस कंपनी में जॉब करते हैं| और ये मेरे बड़े भाई सुवासभाई, आश्रम रोड़ पर एस डी एम् इलेक्ट्रोनिक्स का जो शो रूम है, जो काफ़ी फेमस है, वो हमारा है, सुवासभाई ही उसे चलाते हैं| दो-तीन मिनट की शांति के बाद अनुश्री ने सभी की पहचान करवायी|
शांतनु अपनी जगह से खड़ा हुआ और सुवास की ओर दो कदम चल उस से अपना हाथ मिलाया, सुवास पहलीबार उन दोनों के सामने मुस्कुराया|
“मम्मा, ज़रा नीचे तो आइये!!” अनुश्री ने आवाज़ लगायी|
अक्षय अब उसे धीरे धीरे अच्छा फ़ील हो रहा है ऐसा नाटक करने लगा| तभी सीढियाँ उतर कर एक बड़ी उम्र की महिला नीचे आयी|
“ये मेरे मम्मा हैं|” अनुश्री ने पहचान कराई|
शांतनु तुरंत खड़ा हुआ और अनुश्री के मम्मा के पैर छुए| यह देख कर अक्षयने भी उनके चरण स्पर्श किये| अनुश्री ने अपनी मम्मा को इन दोनों के बारे में कहा और अक्षय के पेट दर्द की भी जानकारी दी|
“अक्षय आप बैठे रहिये, आपको तकलीफ होगी|” मम्मा के चरण स्पर्श के बाद भी अक्षय को खड़ा देख अनुश्री बोली|
“अरे, नहीं आई एम् फिलिंग बेटर नाओ, थेंक्स उस गोली से बड़ी राहत महसूस हो रही है|” अक्षय ने कहा|
“ऐसी छोटी मोटी इमरजेंसी के लिये मैं अपने पास पिल्स रखती ही हूँ|” अनुश्री ने कहा|
“तो अब चलें?” शांतनु को अब अनुश्री या उसके परिवार वालों से कोई तकलीफ भरे प्रश्न के वार शुरू होने से पहले यहाँ से निकलना था|
वैसे भी अनुश्री के घर में कौन कौन है उसका पता तो उसे चल ही गया था|
“अरे ऐसे कैसे चलें? आई थिंक एक-एक कप कॉफ़ी ठीक रहेगी, है ना मम्मा?” अनुश्री अपनी मम्मा की ओर देख कर बोली|
“हाँ, बिलकुल और थोड़ी कड़क बनाना, पेट ख़राब हो तब थोड़ी कड़क कॉफ़ी अच्छी रहती है|” अनुश्री के मम्मा ने अनुश्री की हाँ में हाँ मिलायी|
“अनु, मेरे लिये मत बनाना, मुझे अभी नहाना है|” सुवास बोला|
“ओके भाई|” बोल कर अनुश्री सामने सीढियों के नीचे वाले दरवाज़े में चली गयी जो शायद उसके घर की रसोई थी|
थोड़ी देर बाद जब एक ट्रे में कॉफ़ी के चार कप ले कर अनुश्री रसोई में से बहार आयी तो उसे देख शांतनु दंग हो गया|
अनुश्री के लंबे से बाल अभी पूरी तरह सूखे नहीं थे पर उसने अपना टॉवल हटा कर अपने बालों को ढीले रख कर बांध लिये थे और यह बात उसकी सुंदरता में एक और चाँद लगा रही थी|
ट्रे को शांतनु के सामने पड़े टेबल पर रख अनुश्री ने हर एक को एक एक कप दिया| सुवास खड़ा हो कर उपर चला गया, शायद नहाने| शांतनु बार बार अनुश्री के मम्मा की ओर देख रहा था शायद उसे धरित्रीबेन की याद आ रही थी, उसे अनुश्री के घर आना अब और भी अच्छा लग रहा था|
कॉफ़ी पी कर और थोड़ी देर और बातें कर के शांतनु और अक्षय ने वहां से विदाई ली| अनुश्री और उसकी मम्मा ने दोनों से फ़िरसे आने का वायदा लिया और हंस कर उन्हें विदा किया|
रो हाउस के बहार निकलते ही थोड़ी दूर अक्षय ने बाइक रोक दी|
“भाई, वो गोली... लोपामाइड थी... दस्त बंद करने की दवाई|” अक्षय सिर्फ़ इतना बोला और दोनों दिल खोल कर हंस पड़े|
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अनुश्री के घर जा कर और उसके परिवार के बारे में जानकारी लेने में सफलता हांसिल होने का आनंद जितना शांतनु को था उससे कहीं ज़्यादा आनंद अक्षय को था, पर वो अभी भी संतुष्ट नहीं था| अक्षय को अब अनुश्री और ज्वलंतभाई का आमना सामना करवाना था, पर उसका कोई भी आइडिया काम में नहीं आ रहा था| इस के पीछे अक्षय की सोच यह थी की एकबार ज्वलंतभाई भी अनुश्री को देखे या उससे बातचीत करे तो भविष्य में वैसे तो उनकी तरफ से कोई इनकार होना ही नहीं था पर फ़िर भी शांतनु का एक प्लस पॉइंट बढ़ जायेगा|
और अनुश्री भी ज्वलंतभाई का निर्मल स्वभाव को देख कर अपने भविष्य के बारे में निश्चिंत हो जाये| इस बारे में अक्षय शांतनु के साथ अनुश्री के घर से आने के बाद हररोज़ कोई न कोई प्लान बनाते थे पर ठीक न लगने के कारण दोनों ही उसे रिजेक्ट कर देते थे|
पर वो कहते हैं ना की उपरवाले की मर्ज़ी के बगैर पत्ता भी नहीं हिलता? और जब उसकी मर्ज़ी हो तब कैसी भी असंभव मुलाकात भी संभव हो जाती है? बस ऐसा ही कुछ हुआ उसके लगभग एक महीने बाद...अगस्त के महीने में|
बारिश के मौसम में अगर ऑफ़िस जाने के समय बारिश हो रही हो, चाहे कितनी भी हल्की हो, शांतनु सलामती को सोच कर जल्दी ही घर से निकलता था, पर आज तो कल मध्यरात्रि से शुरू हुई धीमी धीमी बारिश अभी भी चल रही थी इस लिये शांतनु अपने रोज़ के समय से दस पन्द्रह मिनट पहले ही रेनकोट पहन कर घर से निकल गया और करीब साड़े आठ बजे तक अपने ऑफ़िस पहुँच भी गया|
उसने पार्किंग में थोड़ी देर मातादीन का इंतजार किया पर वो दिखा नहीं इस लिये शांतनु ने लिफ्ट की ओर प्रयाण किया| अपने तल पर पहोंचते ही उसने पैसेज के एक छोड़ पर खिड़की के पास अनुश्री को अपने सैलफोन पर बातें करते देखा|
वैसे शांतनु को अब इस बात का कोई आश्चर्य नहीं था, इतने महीनों में उसने कई बार अनुश्री को ऐसे जल्दी आ कर सैलफोन पर बातें करते देखा था| शांतनु का ऑफ़िस तो खुल गया था इस लिये उसने अपना बैग अपने डेस्क पर रखा और रेनकोट पेंट्री के दरवाज़े के पीछे लटका दिया| आईने में देख कर रुमाल से अपना चेहरा साफ़ किया और फ़िर बाल ठीक किये और ऑफ़िस के बहार आया|
अनुश्री अभी भी अपने फ़ोन पर बात कर रही थी, वो काफ़ी ख़ुश भी दिख रही थी| अनुश्री का ध्यान शांतनु पर पड़ा और उसने अपना हाथ खड़ा कर उसकी ओर हिलाया| शांतनु ने भी ऐसे ही जवाब दिया, दोनों में अब यह सब सामान्य हो गया था| थोड़ी देर बाद अनुश्री का कोल खत्म हुआ और वो शांतनु की ओर आयी|
सामान्य विषय और हर रोज़ शाम को घर जाने के बाद और ऑफ़िस आने से पहेले उन्हों ने क्या क्या किया वो सब एक दूसरे को बताना शांतनु और अनुश्री में आम हो गया था| कल रात को क्या खाया, या फ़िर एक दूसरे की तबीयत में कुछ खराबी हुई हो, एक दूसरे के परिवार या दोस्तों के साथ क्या हुआ वो सब भी वो एक दूसरे से शेयर करते थे| आज भी वो सारी बातें शेयर कर दोनों अपने अपने ऑफ़िस की ओर मुड़े|
शांतनु वैसे तो आज काफ़ी जल्दी आया था पर मुखोपाध्याय को शिकायत का कोई मौका न मिले इस लिये वो तुरंत अपने ऑफ़िस में घुस गया| अक्षय को आज अपने पिता के किसी काम से वड़ोदरा जाना था इस लिये आज वो छुट्टी पर था| शांतनु को आज ढेर सारे रिपोर्ट्स फ़ाइल करने थे इस लिये आज उसे ऑफ़िस में ही रुकना था
दोपहर में लंच के बाद पता नहीं पर क्यूं, बारिश ने अपना स्वभाव अचानक ही बदला और अपनी स्पीड बढ़ा दी और करीब डेढ़ घंटे तक ऐसे ही बरसती रही और उसके धीमे होने का कोई आसार नज़र नहीं आ रहा था| तो दूसरी ओर अँधेरा और भी गहरा हो रहा था|
दो-तीन बार ज्वलंतभाई का भी कोल आ गया और उन्हों ने शांतनु को घर आ जाने को कहा| वैसे भी शांतनु के काम पर तो कोई प्रश्नार्थ लगाने का सवाल ही नहीं था इस लिये उसे आधे दिन की छुट्टी भी आसानी से मिल जाती, पर जब साड़े तीन बजे जब मुखोपाध्याय ने ख़ुद ही सब को घर जाने को कहा तब शांतनु को आश्चर्य हुआ|
पूरे स्टाफ़ के चले जाने के बाद जब मुखोपाध्याय और शांतनु प्यून के ऑफ़िस के मुख दरवाज़े को लोक करते देख रहे थे की अनुश्री अपनी ऑफ़िस से दौड़ती हुयी बहार आयी...
“थैंक गॉड शांतनु आप अभी भी यहीं हो, में आप को मैसेज करने ही वाली थी|” अनुश्री के चहेरे पर चिंता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी|
“क्यूँ? क्या हुआ?” शांतनु ने अनुश्री से पूछा|
इसी बीच मुखोपाध्याय और प्यून ऑफ़िस लोक कर चले गये|
“ये बारिश... मेरे एरिया में जबरदस्त जलभराव हो जाता है जब इतनी तेज़ बारिश होती है| सिरु की जल्दी छुट्टी हो गयी, मुझे पता नहीं चल रहा शांतनु मैं क्या करूँ?” अनुश्री गभरा कर बोल रही थी|
“आप मत गभराइये, अनु, मैं हूँ ना? मैं आप को आपके घर तक छोड़ दूंगा, जस्ट डोन्ट वरी|” शांतनु की आवाज़ में अजीब सा आत्मविश्वास था जिसने अनुश्री की चिंता को करीब आधा कर दिया|
दोनों ने अपने अपने रेनकोट पहने और लिफ्ट में नीचे गये| शांतनु ने ज्वलंतभाई और अनुश्री ने अपने मम्मा से वे ऑफ़िस से घर आने निकल रहे हैं और अब सैलफोन भीगने का डर था इस लिये उसे स्विच ऑफ़ कर के दोनों अपने अपने बैग में रख रहे हैं ऐसा कह दिया ताकी दोनों को फ़िक्र ना हो|
अनुश्री की स्कूटी शांतनु ने ऑफ़िस के बेजमेंट में पार्क कर मातादीन को ज़रूरी सुचना दे दी| शांतनु ग्राउंड फ्लोर के पार्किंग में आया और हेलमेट पहना और इशारे से अनुश्री को अपने पीछे बैठ जाने को कहा|
ज़बरदस्त बारिश के बीच शांतनु ने बाइक चलाना शुरू किया| एक ओर अनुश्री को सकुशल उसके घर पहुंचा देने की बड़ी ज़िम्मेदारी उसके कंधो पर थी पर आज पहलीबार अनुश्री उसके बाइक पर उसके पीछे बैठी उस अदम्य आनंद को भी शांतनु रोक नहीं पा रहा था और वो मंद मंद मुस्कुरा रहा था|
अनुश्री ने अपनी दोनों हथेलियों को शांतनु के दोनों कंधो पर रख उन्हें जोरों से दबा दिया था| शांतनु के लिये ये अपनी जिंदगी का सबसे हसीन पल था, पर यह हसीन पल ज़्यादा देर तक टीके नहीं|
... क्यूंकि इस्कोन चार रस्ते पर जबरदस्त जलभराव हो चूका था और लगभग पूरे एस जी हाइवे का यही हाल था| लोग अपने अपने वाहन चार रस्ते से यु टर्न ले कर वापिस आ रहे थे क्यूंकि रास्ते के उस पार जाने की कोशिश भी करना खतरे से ख़ाली नहीं था|
“क्या करेंगे अनु? आगे बिलकुल नहीं जा सकते|” शांतनु ने बाइक को रास्ते के एक तरफ खड़ा कीया और अनुश्री से पूछा|
“नहीं... नहीं...नहीं मुझे घर जाना है, अभी...” अनुश्री एकदम गभरायी हुई थी|
“में समझ सकता हूँ, पर आप ही देखिये, कितना रिस्की है?” शांतनु ने अनुश्री को समझाते हुए कहा|
“तो फ़िर मुझे सिरु के घर छोड़ आइये शांतनु|” अनुश्री ने जलभराव की ओर देख कर कहा|
“आइडिया बुरा नहीं है पर उनका घर भी हाइवे की उस ओर ही है ना? अच्छा एक काम कीजिये एकबार आप उनसे पूछ लीजिये|” शांतनु ने अनुश्री को सही सलाह दी|
“हममम... ऐसा ही करती हूँ|” शांतनु की सलाह अनुश्री के गले उतर गयी|
शांतनु ने अपना बाइक नज़दीकी कोम्प्लेक्स में ली और एक बंद दुकान की छत के नीचे वो और अनुश्री खड़े हुए| दोनों ने अपने अपने बैग से अपने सैलफोन निकाले| अनुश्री ने सीरतदिप को कोल लगायी और शांतनु ने अपने घर का नंबर डायल किया और ज्वलंतभाई से बात की| शांतनु की बात तो खत्म हो गयी पर अनुश्री अभी भी सीरतदीप से बात कर रही थी|
“तो क्या करूँ सिरु? आई एम् सो स्केर्ड... ठीक है मैं भाई और मम्मा से बात कर तुझे बताती हूँ|” अनुश्री की आवाज़ में अब भी गभराहट थी| थोड़ी देर और बात कर अनुश्री ने कोल कट किया और शांतनु की ओर देख अपना सर नकार में हिलाया|
“क्या हुआ अनु?” शांतनु ने पूछा|
“सिरु की हालत तो और भी ख़राब है, उसके तो बिल्डिंग में पानी भरने लगा है|” अनुश्री की आवाज़ में निराशा थी|
“एक आइडिया है अगर आप को कोई तकलीफ़ न हो तो!” शांतनु बोला|
“हमममम...” अनुश्री शांतनु की ओर देख कर अपने दांत के बीच अपने सैलफोन के एक कोने को दबा कर बोली|
“देखिये, मेरा घर यहीं पीछे ही आश्रम छावनी में है... सो इफ़ यु डोन्ट माइंड आप मेरे घर चलिये| जैसे ही बारिश कम होगी मैं आप को आपके घर छोड़ आऊंगा और अभी तो सिर्फ़ साड़े चार ही हुए हैं|” शांतनु ने अनुश्री को आइडिया दिया|
शांतनु का आइडिया सुनते ही अनुश्री शांतनु की ओर ऐसे देखने लगी जैसे की उसको यह आइडिया शायद पसंद नहीं आया था|
क्रमशः