प्रेरणा की जोत SIJI GOPAL द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्रेरणा की जोत

मैं अपने बच्चों (मनु और तनु) के साथ जब इस बार बरामदे में दीये जला रही थी। जाने क्यों, हर दिये में मुझे आज "जोत" दीदी दिखाई दे रही हैं। जोत दीदी.... दीये की जोत.... प्रभजोत कौर गिल्ल....

"पता है , इस बार पुलिस मेडल लिस्ट में जोत का नाम आया है" भरी आवाज़ में, मम्मी ने आज सुबह फोन पर बताया। जब भी हमारे घर में जोत दीदी का जिक्र होता, मां की आंखों में एक अलग ही प्यार उमड़ आता। 

बात उन दिनों की है, जब पापा की पोस्टिंग जम्मू में हुई थी। मैं तब आठ साल की थी, और मेरा छोटा भाई पांच साल का। नये घर में हम दोनों यहां से वहां मस्ती कर रहे थे, कि 'कौलिंग बेल' बजी। दौड़ कर मैंने दरवाज़ा खोला, मम्मी भी हाथ में पकड़ा सामान, नीचे रखतें हुए दरवाज़े पर पहुंची।" नमस्ते अंटी जी, मेरा नाम प्रभजोत, आपके पड़ोस में रहते हैं हम.. मेरे पापा सुबेदार अमनदीप सिंह गिल्ल.... मम्मी नानी के घर गई हैं, इसलिए मैंने सोचा, मैं ही आप लोगों से मिल लूं.. मैं आपकी कोई मदद कर..." बोलते बोलते ही वो मां के साथ घर सजाने में लग गई।

जोत दीदी तो उस दिन से ही हमारे परिवार का हिस्सा बन गई थी। गिल्ल आंटी थोड़ी शांत स्वभाव की थी, ज़्यादातर बीमार रहतीं थीं, इसलिए घर की ज़िम्मेदारी भी जोत दीदी पर थी। दीदी ने अभी बारहवीं की परीक्षा दी थी, अगले महीने कालेज में दाखिला लेना हैं। उनकी दोनों छोटी बहनों का ख्याल ‌‌‌‌भी जोत दीदी ही रखती थीं। 

उस दिन की सुबह, गिल्ल परिवार के लिए काली रात ही बन गई। ज़ोरो से रोने चिल्लाने की आवाज़ सुनकर मैं उठ गई। पापा मम्मी को बता रहे थे,  खबर आई हैं कि आंतकवादी मुठभेड़ में गिल्ल अंकल शहीद हो गए हैं। उस दिन के बाद से जोत दीदी तो जैसे शांत ही हो गई, और पूरा गिल्ल परिवार चुप। 

अब जोत दीदी हमारे घर नहीं आती थी, पर मम्मी हर दूसरे दिन उनका हाल चाल पूछने चली जाती थी। कुछ महीनों बाद जोत दीदी को बीएसएफ के दिल्ली हेडक्वांटर में ही नौकरी दे दी और फिर गिल्ल परिवार दिल्ली चला गया। मम्मी हर हफ्ते जोत दीदी को एक खत लिखती , जवाब महीने में एक बार ही आता, पर आता ज़रूर...

मैंने इंजीनियरिंग बेंगलौर से की। छुट्टियों में जब घर आती तो मम्मी के साथ घंटों बातें करती। मम्मी ने ही बताया कि रवनीत और सिमरन (जोत दीदी की दोनों बहन) की भी शादी हो गई। सब कुछ जोत दीदी ने अकेले ही संभाला। अंकल के जाने के तीन साल बाद आंटी का भी निधन हो गया था। 

मेरे भाई ने मेडिसिन की और फिर आर्मी होस्पिटल में डाक्टर नियुक्त हो गया था । मम्मी और पापा रिटायरमेंट के बाद भाई के साथ ही रहते थे। मैं बेंगलौर में एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती हूं। बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में मम्मी पापा से मिल आती हूं। मम्मी के साथ घंटों बातें करने का सिलसिला अब भी चलता हैं, और बातों बातों में जोत दीदी का ज़िक्र। मम्मी से मिलने वो भी दो चार बार आई थी। अब वो बीएसएफ स्कूल की टीचर बन गई हैं। दो साल पहले उन्होंने एम ए की परिक्षा भी पास कर ली थी।

एक महीने पहले टी वी की वो खबर आज भी मेरा दिल दहला देती हैं...."पिकनिक से लौटती हुई स्कूल बस पर आतंकवादी हमला.... बच्चों की जान बचाते हुए अध्यापिका प्रभजोत कौर गिल्ल की हुई मौत..."

मुझे ख्यालों से जगाते हुए मनु बोला," देखो मम्मी वो दीये की जोत तो बुझ गई... मैंने कहा ,"नहीं बेटा, वो जोत अमर हो गई... हमेशा-हमेशा के लिए....               ...……...…..............

मेरी ये कविता जोत दीदी को समर्पित

आज स्त्री के रूप में देखा, "जोत" के हर लक्षण, त्याग की मूरत, तू ही हैं खुशियों का दर्पण।

रोशन की वो हथेली भी, जिसने किया सरंक्षण,

माता-पिता को दे दिया अपना बचपन तर्पण।

दीप जलाया यौवन का, था ऐसा आकर्षण,

पति पर किया अपना प्रेम संसार समर्पण।

दूर किया अंधकार, भरा संस्कारों का शिक्षण,

सन्तान पर किया, सपनों और आशाओं का अर्पण।

फैलाई ज्ञानरश्मि, चमका जगत का हर एक कण,

ज्योति की मिसाल बनी, खुद जलती रही हर क्षण।

By Siji Gopal