हिम स्पर्श 29 Vrajesh Shashikant Dave द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हिम स्पर्श 29

दिलशाद जब घर पहुंची तो जीत आँगन में झूले पर बैठा था। दिलशाद जीत के पास गई और उसके गाल को चूमने के लिए झुकी। दिलशाद की ढीली छाती भी झूली। जीत ने उसे अनुभव किया। वह समझ गया कि दिलशाद की ब्रा अपने स्थान पर नहीं थी। दिलशाद कभी बिना ब्रा के घर से बाहर नहीं जाती। तो यह कैसे हुआ? सवाल जीत के मन में उठा, जवाब भी उसे ज्ञात था। दिलशाद अपनी ब्रा खो चुकी थी, जीत को भी।

जीत कुछ नहीं बोला। रात भर सोचता रहा। रात भर स्वयं से संघर्ष करता रहा। भोर जब आई तो वह चिंता से परे था। उसने कोई निर्णय कर लिया था। बस उस पर अमल करना था।

“डॉक्टर नेल्सन, मैं इस शस्त्र क्रिया के लिए अभी तैयार नहीं हूँ। मुझे कुछ समय चाहिए।“ जीत अपनी योजना को रूप देने लगा।

“क्या बात है, जीत?” नेल्सन ने पूछा।

“विशेष कुछ नहीं। बस स्वयं को तैयार करना है मुझे, उसके लिए थोड़ा समय चाहिए।“

“कितना?”

“आठ से दस दिन।“

“ठीक है। जैसा तुम चाहो।“ नेल्सन ने फोन काट दिया।

अगले क्षण से ही जीत दिलशाद को भरपूर प्रेम देने लगा। अनराधार बारिश की भांति वह दिलशाद पर बरसता रहा। दिलशाद उस प्रेम की वर्षा को समझ नहीं पाती थी, पर भीगती रही।

जीत अपनी योजना पर काम करने लगा। उसके अंदर एक नयी ऊर्जा जन्म ले चुकी थी। नया उमंग उसकी अंदर दौड़ रहा था। दिलशाद ने उस परिवर्तन को परख लिया था, पर उसे कुछ समझ नहीं पा रही थी।

दिलशाद, उस शाम के बाद नेल्सन से कभी नहीं मिली, ना ही फोन पर बात भी की। जीत के प्रेम ने नेल्सन के साथ बीती उस शाम को भी भूला दिया था। पर जीत नहीं भूला था। जीत की योजना का कारण भी यही था, वह शाम जब दिलशाद नेल्सन से मिलने गई थी ब्रा पहनकर और लौटी थी बिना ब्रा के। जीत उस बात को कभी नहीं भूल पाया।

पूरे सात दिनों के बाद, जीत ने नेल्सन को फोन पर बताया कि वह शस्त्र क्रिया के लिए तैयार है। दूसरे दिवस वह डॉक्टर नेल्सन के अस्पताल में था।

दो दिवस तक भिन्न भिन्न टेस्ट होते रहे। दिलशाद जीत के साथ अस्पताल में ही रहने लगी। हर टेस्ट में वह उसके साथ रहती थी।

नेल्सन से मुलाक़ात होती रहती थी, पर वह नजरें चुरा लेती थी। नेल्सन भी जैसे उस शाम कुछ हुआ ही नहीं ऐसे एक अच्छे डॉक्टर की भूमिका निभाने लगा।

“कल संध्या को ठीक पाँच बजे शस्त्र क्रिया होगी। सब कुछ ठीक ठाक है। तुम तैयार हो न?” नेल्सन ने जीत से पूछा। जीत ने केवल स्मित किया। नेल्सन ने दिलशाद की तरफ देखा।

“हाँ, बिलकुल तैयार है।“

“पर, मुझे कुछ सवाल पूछने हैं, नेल्सन तुमसे।“ जीत ने नेल्सन और दिलशाद की तरफ बारी बारी देखा।

नेल्सन और दिलशाद इस बात से विचलित हो गए, एक दूसरे की तरफ देखने लगे।

“कैसे सवाल, जीत?” नेल्सन ने कहा।

“मेरे स्वास्थ्य के विषय में।“ जीत के शब्दों ने दोनों को निश्चिंत कर दिया।

“अवश्य। पुछो जो पुछना चाहते हो। एक डॉक्टर का यह दायित्व है कि वह अपने रोगी को पूरी जानकारी दे।“

“इस स्थिति में मुझे किन किन बातों का ध्यान रखना होगा? जिससे मेरी क्षण क्षण पिघल रही जिंदगी टिकी रहे। मेरे द्वार पर खड़ी और कभी भी आ जाने वाली मृत्यु को मैं टालता रहूँ।“ जीत नेल्सन की आंख में आँख डालकर एक ही श्वास में बोल गया।

“किसने कहा कि मौत के समीप हो तुम?” दिलशाद ने जीत के माथे पर हाथ फेरा।

नेल्सन कुछ नहीं बोल सका। एक डॉक्टर तब निराश हो जाता है जब उसका रोगी स्वयं की मृत्यु को सामने देख लेता है और उसे वह स्वीकार भी कर लेता है। नेल्सन भी निराश था।

“मेरा सवाल डॉक्टर से है। वह सत्य जानते हैं।“

नेल्सन जीत के पास आया, “जब तुम जानते हो कि तुम्हारे पास बची हुई जिंदगी का गणित कोई लंबा चौड़ा नहीं है तो मुझे बता देना चाहिए।“

“बता दो, मुझे सब कुछ सुनना है।“ जीत लैटा हुआ था, वह बैठने का प्रयास करने लगा। वह दुर्बल था अत: नेल्सन और दिलशाद ने उसे सहारा दिया। वह बैठ गया। दिलशाद और नेल्सन ने दूरी बनाए रखी।

“तुम्हारे पास कितना समय बचा है वह कोई नहीं बता सकता। हो सकता है चार छ: महीने निकल जाये और हो सकता है कई साल तक कुछ न हो। यह पूरी अनिश्चितताओं का खेल है।“

“अर्थात कोई दिवस, कोई तारीख नक्की नहीं है। कभी भी आ सकती है मृत्यु मेरे पास।“

“यह मृत्यु वर्षों तक ना आए, यह भी तो हो सकता है।“ दिलशाद ने आशा बंधाई।

“और कल भी आ सकती है। यह भी तो हो सकता है।“ जीत ने कहा।

“दोनों बात सही है। कुछ भी हो सकता है, कभी भी। किन्तु ...” नेल्सन अटक गया।

“किन्तु क्या, डॉक्टर नेल्सन?” जीत और दिलशाद एक साथ बोले।

“किन्तु बात यह है कि हम अपना धैर्य और अपनी हिमत क्यूँ छोड़े? हम अपना प्रयास जारी रखें और एक सशक्त लड़ाई लड़ेंगे। ऐसे हम हार क्यूँ मान लें? मैं मृत्यु को इतनी सरलता से सफल नहीं होने दूंगा। क्या आप मेरा साथ दोगे?” नेल्सन ने दोनों को नया उत्साह दिलाने का प्रयास किया।

“जो लड़ाई का परिणाम निश्चित हो उसको लड़ने का क्या औचित्य?” जीत ने पूछा।

“जब तक सामने वाला जीत ना जाय, हमें हार नहीं माननी है।“

“वह कैसे संभव होगा?”

“बस दो तीन बातों का ध्यान रखना है।‘

“क्या क्या?”

“एक, कोई ऐसा काम महेनत का नहीं करना है जिसके आघात से हिम का टुकड़ा खिसक जाय। दूसरा, खाने पीने की कोई पाबंदी नहीं है। तीसरा, ऊंची, बहुत ऊंची पहाड़ियों पर जाना नहीं है।“

“पहाड़ियों पर क्यूँ नहीं?”

“तुम्हारी मूल समस्या सांस के साथ जुड़ी है। ऊंचाई पर अधिकांश लोगों को सांस लेने में कठिनाई हो जाती है। हवा वहाँ धरती पर होती है वैसी नहीं होती। ऊंचाई पर सांस बंध भी हो सकती है। तो यह ध्यान रहे कि बर्फीले पहाड़ियों पर जाना अब बंध।“

“मैं भी कभी नहीं जाऊँगी उन पहाड़ियों पर।“ दिलशाद ने अपना निर्णय बताया।

तुम जाओ ना, तुम्हें कहाँ प्रतिबंध है? नेल्सन तुम्हारे साथ चलने को उत्सुक होगा, ले चलो उसे अपने साथ।

जीत के मन में विचार आ तो गया पर उसे अधरों तक जाने से रोक लिया।

“ठीक है। और कुछ ध्यान रखना है मुझे?”

“विशेष कुछ नहीं, बस समय समय पर दवाइयाँ लेते रहो, और जब भी जरूरी हो वह मेडिकल उपाय करवाते रहो। और खास, जीवन की अभिलाषा बनाए रखो।“

“जीने की तीव्र इच्छा मृत्यु को भी परास्त कर देती है।“ दिलशाद ने साहस बँधाया।

“धन्यवाद डॉक्टर नेल्सन, धन्यवाद दिलशाद।“ जीत लैट गया।

नेल्सन चला गया। दिलशाद वहीं बैठी रही। खिड़की से बाहर शून्य मन से देखती रही।