देख कबीरा रोया
नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उस को गिरफ़्तार कराया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी लानत दूर होगई।
कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू आगए। लोगों ने पूछा। “ए जूलाहे तो क्यों रोता है?”
कबीर ने रो कर कहा। “कपड़ा दो चीज़ों से बनता है। ताने और पीटे से। गिरफ़्तारीयों का ताना तो शुरू होगया पर पेट भरने का पीटा कहाँ है?”
एक एम ए, एल एल बी को दो सौ खडियाँ अलॉट होगईं। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू आगए। एम ए एल एल बी ने पूछा। “ए जूलाहे के बच्चे तु क्यों रोता है?...... क्या इस लिए कि मैंने तेरा हक़ ग़सब कर लिया है?”
कबीर ने रोते हुए जवाब दिया। “तुम्हारा क़ानून तुम्हें ये नुक्ता समझाता है कि खडियाँ पड़ी रहने दो, धागे का जो कोटा मिले उसे बेच दो। मुफ़्त की खट खट से क्या फ़ायदा..... लेकिन ये खट खट ही जूलाहे की जान है!”
छपी हुई किताब के फर्मे थे। जिन के छोटे बड़े लिफाफे बनाए जा रहे थे। कबीर का उधर से गुज़र हुआ। उस ने वो तीन लिफाफे उठाए और उन पर छपी हुई तहरीर पढ़ कर उस की आँखों में आँसू आगए लिफाफे बनाने वाले ने हैरत से पूछा। “मियां कबीर तुम क्यों रोने लगे?”
कबीर ने जवाब दिया। “इन काग़ज़ों पर भगत सूरदास की कवीता छपी है। लिफाफे बना कर उस की बे-इज़्ज़ती न करो।”
लिफाफे बनाने वाले ने हैरत से कहा। “जिस का नाम सूरदास है। वो भगत कभी नहीं होसकता।”
कबीर ने ज़ार-ओ-क़तार रोना शुरू कर दिया।
एक ऊंची इमारत पर लक्ष्मी का बहुत ख़ूबसूरत बुत नस्ब था। चंद लोगों ने जब उसे अपना दफ़्तर बनाया तो उस बुत को टाट के टुकड़ों से ढाँप दिया। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू उमड आए। दफ़्तर के आदमीयों ने उसे ढारस दी और कहा। “हमारे मज़हब में ये बुत जायज़ नहीं।”
कबीर ने टाट के टुकड़ों की तरफ़ अपनी नमनाक आँखों से देखते हुए कहा। “ख़ूबसूरत चीज़ को बद-सूरत बना देना भी किसी मज़हब में जायज़ नहीं।”
दफ़्तर के आदमी हँसने लगे। कबीर ढारें मार मारकर रोने लगा।
सफ़ आरा फ़ौजों के सामने जरनैल ने तक़रीर करते हुए कहा। “अनाज कम है, कोई पर्वा नहीं। फ़सलें तबाह होगई हैं। कोई फ़िक्र नहीं.... हमारे सिपाही दुश्मन से भूके ही लड़ेंगे।”
दो लाख फ़ौजियों ने ज़िंदाबाद के नारे लगाने शुरू करदिए।
कबीर चिल्ला चिल्ला के रोने लगा। जरनैल को बहुत ग़ुस्सा आया। चुनांचे वो पुकार उठा। “ए शख़्स, बता सकता है, तू क्यों रोता है?”
कबीर ने रोनी आवाज़ में कहा। “ए मेरे बहादुर जरनैल...... भूक से कौन लड़ेगा।”
दो लाख आदमियों ने कबीर मुर्दा बाद के नारे लगाने शुरू करदिए।
“भाईओ, दाढ़ी रख्खो मोंछें कतरवाओ और शरई पाजामा पहनो...... बहनो, एक चोटी करो, सुर्ख़ी सफेदा न लगाओ, बुर्क़ा पहनो!.......... ” बाज़ार में एक आदमी चिल्ला रहा था। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखें नमनाक होगईं।
चिल्लाने वाले आदमी ने और ज़्यादा चिल्ला कर पूछा। “कबीर तू क्यों रोने लगा?”
कबीर ने अपने आँसू ज़ब्त करते हुए कहा। “तेरा भाई है न तेरी बहन, और ये जो तेरी दाढ़ी है। इस में तू ने वसिमा क्यों लगा रखा है...... क्या सफ़ैद अच्छी नहीं थी।”
चिल्लाने वाले ने गालियां देनी शुरू करदीं। कबीर की आँखों से टप टप आँसू गिरने लगे।
एक जगह बहस होरही थी।
“अदब बराए अदब है।”
“महज़ बकवास है, अदब बराए ज़िंदगी है।”
“वो ज़माना लद गया..... अदब, प्रोपेगंडे का दूसरा नाम है।”
“तुम्हारी ऐसी की तैसी..... ”
“तुम्हारे इस्टालन की ऐसी की तैसी......”
“तुम्हारे रजअत पसंद और फ़ुलां फ़ुलां बीमारियों के मारे हुए फ़ला बेअर और बाद लीअर की ऐसी की तैसी।”
कबीर रोने लगा बहस करने वाले बहस छोड़ कर उस की तरफ़ मुतवज्जा हुए। एक ने उस से पूछा। “तुम्हारे तहत-अल-शुऊर में ज़रूर कोई ऐसी चीज़ थी जिसे ठेस पहुंची।”
दूसरे ने कहा। “ये आँसू बोरज़वाई सदमे का नतीजा हैं।”
कबीर और ज़्यादा रोने लगा। बहस करने वालों ने तंग आकर बयक-ज़बान सवाल किया। “मियां, ये बताओ कि तुम रोते क्यों हो?”
कबीर ने कहा। “मैं इस लिए रोया था कि आप की समझ में आजाए, अदब बराए अदब है या अदब बराए ज़िंदगी।”
बहस करने वाले हँसने लगे। एक ने कहा। “ये परोलतारी मस्ख़रा है।”
दूसरे ने कहा। “नहीं ये बोरझ़वाई बहरूपिया है।”
कबीर की आँखों में फिर आँसू आगए।
हुक्म नाफ़िज़ होगया कि शहर की तमाम कसबी औरतें एक महीने के अंदर शादी करलीं और शरीफ़ाना ज़िंदगी बसर करें। कबीर एक चकले से गुज़रा तो कसबियों के अड़े हुए चेहरे देख कर उस ने रोना शुरू कर दिया। एक मौलवी ने उस से पूछा। “मौलाना। आप क्यों रो रहे हैं?”
कबीर ने रोते हुए जवाब दिया “अख़लाक़ के मुअल्लिम इन कसबियों के शौहरों के लिए किया बंद-ओ-बस्त करेंगे”
मौलवी कबीर की बात न समझा और हँसने लगा। कबीर की आँखें और ज़्यादा अश्क-बार होगईं।
दस बारह हज़ार के मजमा में एक आदमी तक़रीर कर रहा था। “भाईओ। बाज़-याफ़्ता औरतों का मसला हमारा सब से बड़ा मसला है। इस का हल हमें सब से पहले सोचना है अगर हम ग़ाफ़िल रहे। तो ये औरतें क़हबा ख़ानों में चली जाएंगी। फ़ाहिशा बन जाएंगी...... सुन रहे हो, फ़ाहिशा बन जाएंगी........ तुम्हारा फ़र्ज़ है कि तुम उन को इस ख़ौफ़-नाक मुस्तक़बिल से बचाओ और अपने घरों में उन के लिए जगह पैदा करो..... अपने अपने भाई, या अपने बेटे की शादी करने से पहले तुम्हें इन औरतों को हरगिज़ हरगिज़ फ़रामोश नहीं करना चाहिए।”
कबीर फूट फूट कर रोने लगा। तक़रीर करने वाला रुक गया। कबीर की तरफ़ इशारा करके उस ने बुलंद आवाज़ में हाज़िरीन से कहा। “देखो उस शख़्स के दिल पर कितना असर हुआ है।”
कबीर ने गुलू-गीर आवाज़ में कहा। “लफ़्ज़ों के बादशाह, तुम्हारी तक़रीर ने मेरे दिल पर कुछ असर नहीं किया...... मैंने जब सोचा कि तुम किसी मालदार औरत से शादी करने की ख़ातिर अभी तक कुंवारे बैठे हो तो मेरी आँखों में आँसू आगए।”
एक दुकान पर ये बोर्ड लगा था। जिन्नाह बूट हाऊस। कबीर ने उसे देखा। तो ज़ार-ओ-क़तार रोने लगा।
लोगों ने देखा कि एक आदमी कट मिरा है। बोर्ड पर आँखें जमी हैं और रोय जा रहा है। उन्हों ने तालियां बजाना शुरू करदीं। “पागल है...... पागल है!”
मुल्क का सब से बड़ा क़ाइद चल बसा तो चारों तरफ़ मातम की सफ़ें बिछ गईं। अक्सर लोग बाज़ूओं पर स्याह बिल्ले बांध कर फिरने लगे। कबीर ने ये देखा तो उस की आँखों में आँसू आगए। स्याह बिल्ले वालों ने इस से पूछा। “क्या दुख पहुंचा जो तुम रोने लगे?”
कबीर ने जवाब दिया। “ये काले रंग की चिन्दियाँ अगर जमा करली जाएं तो सैंकड़ों की सतरपोशी कर सकती हैं।”
स्याह बिल्ले वालों ने कबीर को पीटना शुरू कर दिया। “”तुम कम्युनिस्ट हो, फिफ्थ कालमिस्ट हो। पाकिस्तान के ग़द्दार हो।”
कबीर हंस पड़ा। “लेकिन दोस्तो, मेरे बाज़ू पर तो किसी रंग का बिल्ला नहीं।”