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केसरी - २१ शिखो की कहानी

___२१ शिखो की वीरगाथा____

"प्रस्तावना"
दोस्तों ईतिहास में कुछ ऐसे युद्ध हुए है, जो हम सब जानते हैं।
और वो ईतिहास में लिखे गये है।
हम और आप इन्ही युद्धो को पढ़ते और समझते आये है।
लेकिन इनके अलावा भी कुछ ऐसे युद्ध हुए हे ,जो भले ही किताबो में दर्ज न किये गए हो।
लेकिन वो अपने आप में शौर्य और वीरता की खुली किताब है।

सारागढ़ी का युद्ध भी एक ऐसा ही युद्ध है।
जल्द ही इस शौर्यगाथा पर हमारे देश में एक नही दो फिल्में बनाई जा रही है।

"शौर्यगाथा"
दोस्तों वो दौर था सन.१८९७ का  ब्रिटिश सेना का दबदबा बढ़ता जा रहा था। उन्हों ने भारत के साथ-साथ अफ़ग़ानियो पे भी हमले शुरू कर दिए थे।
भारत - अफ़ग़ान सिमा पर उस समय दो किले हुआ करते थे। गुलिस्तान का किला और लोखाट का किला जो की ये दोनों एक दूसरे से काफी दूर थे। 
तो सन्देश भेजने के लिए बिच में सारागढ़ी पोस्ट बनवाई गई। 
जहाँ से हेलियोग्राफी कॉमीनुकेशन  के जरिये सन्देश भेजा जाता था।
इसकी सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर शिख रेजिमेंट के २१ शिखो को तैनात किया गया था। 
इस छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व ईश्वरसिंह किया करते थे।
दोस्तों इनकी संख्या कम जरूर थी लेकिन उनकी बहादुरी पर अंग्रेज भी पूरा भरोसा करते थे।
सारागढ़ी का माहौल गर्म था सैनिको को भी  चौकन्ना रहने का कहा गया था। एक तरफ से कहा जाये तो  सारागढ़ी के वक़्त के लिए तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य की जान थे। जिन पर अफगानी कब्ज़ा करना चाहते थे।
३० अगस्त से ११ सितंबर के बीच अफ़ग़ानियो ने सारागढ़ी पे कई हमले किये लेकिन वो २१ शिखो की टोली ने हर बार इनके मानसुबो पे पानी फेर दिया।
अगला दिन था १२ सितंबर १८९७ का समय था सुबह का सभी शिख सैनिक सोये हुए थे। सिग्नल इंचार्ज गुरुमुखसिंग ने देखा की करीबन १२००० अफ़ग़ान सैनिक उनकी और तेजी से बढे आ रहे थे। दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देखकर सब हैरान थे। किसीको समज नहीं आ रहा था की क्या किया जाये ? 
२१ शिखो को उन्हें रोकना एक बड़ी चुनोती थी। वो तुरंत बन्दुक पकड़कर खड़े हो गए। उनके पास बंदूके तो थी पर उतनी मात्रा में नही थी की वो ज्यादा देर दुश्मन का सामना कर पाए ।
हमले का मकसद था लोखाट और गुलिस्तान के बीच संपर्क तोडना  स्थिति की नजाकत को देखते हुए  उन्होंने तुरन्त अंग्रेज सेना को संपर्क करना उचित समजा लोखाट के किले पर अंग्रेजी अफसर बैठे हुए थे। शिखो ने उन्हें सन्देश भेजते हुए बताया की एक बड़ी संख्या में अफ़ग़ानियो ने उनके ऊपर चढ़ाई कर दी है। उन्हें तुरंत आर्मी रेन फ़ोर्स की जरुरत है। अंग्रेज अफसर का जवाब आया अभी वहाँ सेना नहीं भेजी जा सकती,तुम्हे खुद मोरचा संभालना होगा।
सिख बिना कोई फरियाद किये हुए अपनी - अपनी बंदूके तानकर किले की ऊपरी हिस्से पर खड़े हो गए। औसतन १ सिख को५७१ अफ़ग़ानियो को मारना था । अब भला ये लड़ाई कैसे मुमकिन थी 
दोस्तों इतिहास गवाह है,की ऐसा आत्मविश्वास सिर्फ एक सिख सैनिक पर ही शोभा देता है।
सन्नाटा हर जगह पसर चूका था। बस आगे बढ़ते हुए अफ़ग़ान सैनिको के घोड़ो की टापुओं की आवाजें सुनाई दे रही थी।
थोड़ी ही देर में सिपाही भगवानसिंह की बन्दुक से निकली गोली से जंग शुरू हो गयी।
दोनों तरफ से अंधाधुन गोलिया चल रही थी।
शिखो की सिर्फ २१ बंदूके दहाड़ रही थी अफ़ग़ानियो के १२००० सिपाहियो के सैन्य के सामने  कुछ ही समय में अफगानी समज चुके थे की ये जंग आसान नही होने वाली
अफ़ग़ानियो ने शिखो को कईबार आत्मसमर्पण करने को कहा पर उन्हें क्या पता की १ हो या २१ सिख कभी पीछे नहीं हटता।
अफगानी संख्या में बहुत ही अधिक थे उसके बावजूद सिख सैनिक लड़ते ही रहे।
धीरे -धीरे  अफ़ग़ानियो ने उन्हें चारो तरफ से गेर लिए
कई सिख सैनिको को गहरी चोटें  लग चुकी थी।
दोस्तों
उन २१ शिखो में से कुछ ऐसे भी थे जो पूरी तरह से सैनिक भी नहीं थे, उनमे से कुछ रसोइये थे तो कुछ सिग्नल मेन लेकिन वो सब अपने साथियो के लिए जंग में उतरे हुए थे।
बन्दुक की गोलियां ख़त्म होने पर उन्हों ने अफ़ग़ानियो को अपनी तलवारो से मारना शुरू किया।
इसी दरमियान किसी कोने से एक आवाज आयी।
"जो बोले सो निहाल,सस्रिय काल" 
ये सुनते ही मानो उनके घाव भर से गये।
और वो दोनों हाथों से अफ़ग़ानियो को मोत के घाट उतारते गए।
लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गयी।
एक-एक करके सारे सिख सैनिक शहीद होते गए।
अफ़ग़ानियो ने ये सोचा की सारे सिख सैनिक मारे गये।
लेकिन अभी भी एक शेर बचा था। १९ साल का वो शेर गुरुमुखसिंह सारी परिस्थितियो की खबर लोखाट तक पहोंचा रहा था।
उसी के कारण हम आज इस वीरगाथा को इतनी सच्चाई से जान सके है।अब उसकी बारी थी वो वीर शेर इतना बहादुर था कि कोई अफगानी उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करता था। देखते ही देखते गुरुमुखसिंह ने ४२ अफ़ग़ानियो को दिन का सूरज दिखा दिया।
जब अफगानी उससे जित ना सके तो उसकी पोस्ट को ही आग लगा दी। 
वो २१ शिख ८०० से १००० अफ़ग़ानियो को मार चुके थे।
लाल खून और लाशो से गढ़ी पूरी तरह से भर चुकी थी।
जब ब्रिटिश संसद तक ये खबर पहोंची , तब सारे अंग्रेज अफसर खड़े हो कर उन वीर शिखो को श्रद्धांजलि दिए।
उन सभी शिखो को उस समय का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "इंडियन ऑर्डर ऑफ़ मेरिट" दिया गया।
ये लड़ाई इतनी बड़ी और साहस से भरी थी की यूनेस्को ने इसे ८ सबसे महानतम लड़ाई ओ में शामिल किया।

अक्षय कुमार की "केसरी" और
रणदीप हुडा की "बेटल ऑफ़ सारागढ़ी"
एकबार फिरसे उन २१ शिखो को सबके दिलों में जिन्दा कर जायेंगी।

धन्यवाद___________________

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